यह तस्वीर उस संघर्ष का प्रतीक है जो पिछले ६० सालो से चल रहा है अपने मातृभूमि तिब्बत के लिए और इसकी मशाल उन लोगो के हाथ मे है जिनका जन्म भी तिब्बत मे नही हुआ। इतने सालो मे न जाने कितने पड़ाव आए लेकिन तमाम मुश्किलात के बाद भी प्रतिरोध की ज्वाला शांत नही हुई है। फ्रांस से भारत तक इस तरह के प्रदर्शन शायद उनकी जिजीविषा को ही दिखाते है।
''पराधीन सपनेहु सुख नाही ''
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