२१ अप्रैल को शायर- ऐ- इंकलाब , अल्लामा इकबाल साहब की वफात का दिन होता है ...........वही इकबाल साहब जिन्होंने दुनिया को बताया था की उर्दू शायरी सिर्फ़ माशूका के पुरनम दामन में महसूस होने वाली मुअत्तर बाद-ऐ-सबा नही, सिर्फ गुलो-बुलबुल की तसव्वुराती दास्ताँ नही , सिर्फ़ रिन्दों का शिकवा-ओ-छेड़ नही, ...........उसके आगे भी एक मुसलसल रिवायत-ऐ-सुखन है,वह आवाम को नींद से जगा सकती है .......मुखतलिफ कौमों में इख्तेलात पैदा कर सकती है, मुल्क की कदमबोसी कर सकती है, और वक्त की पाबंदियों से भी आगे जा सकती है ।
सितारों से आगे जहाँ और भी है
अभी इश्क के इम्तेहां और भी हैं
तू शाहीन है परवाज़ है काम तेरा
तेरे लिए आसमाँ और भी हैं
गए दिन की तनहा था मैं अंजुमन में
यहाँ अब मेरे राजदाँ और भी हैं
हिमांशु बाजपेयी "हिम"
Himanshu achcha laga aapka lekh padh kar ..... janaab lekin jo urdu aap likhte hain behtar hog ki uska tarjuma kar diya karein .... kyunki aam aadmi usse koso door hai aur ham CAVS Sanchar hain so patrkaar bane sahityakaar nahi !! matlab khalis urdu ke liye mere blog Savaa Sher par likh sakte hain !!
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