मुझे क्रिकेट मे कैरियर बनाना है।
बस बल्ला ही तो घुमाना है।
राष्ट्रीय खेल न सही पर इसी का ज़माना है।
कौन सा मुझे ओलमपिक खेलने जाना है।
वैसे भी हॉकी मे बड़ी मारा मारी है।
पैसे देकर खेलने की आती बारी है।
अच्छे खिलाड़ी मुफलिसी मे जीते हैं
और जोड़-तोड़ वाले मेज़ से घी पीते हैं।
गिल को गिला नहीं खेल कहीं भी जाए।
ऐसे हालत मे और किया भी क्या जाए।
कोई ज्योतिकुमारन जब तक इसकी सेवा करेगा।
अपना राष्ट्रीय खेल यूही तिल-तिल मरेगा।
फिर किसी और पर दोष मढ़ दिया जाएगा।
कुछ को निकाल कर पल्ला झाड़ लिया जाएगा।
- तन्जीर अंसार ( एम् ऐ बी जे - चतुर्थ सेमेस्टर )
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