नहीं मिलेगा कभी मुझे
क्या मेरे सपनों का भारत !!
यह प्रश्न चित्त मी होता है ,
जब होता है मन रोता है
जो स्वप्न सजाये थे मैंने,
क्या दफना दूँ मैं वो चाहत!!
यह स्वयं सभ्यता छोड़ रहा,
संस्कृति के बन्धन तोड़ रहा,
सोचा था सारी दुनिया में,
यह होगा संस्कृति का वाहक!!
इसकी उन्नति का अमृत,
कर देगा एक दिन मुझे तृप्त,
पाऊँगी एक दिन स्वाती बूँद ,
इस हेतु बनी थी मैं चातक!!
ये देश तो है नेताओं का,
उनकी सुयोग्य संतानों का ,
मेरे जैसे अदना ने इसको,
अपना माना था नाहक!!
नहीं मिलेगा मुझे कभी,
क्या मेरे सपनों का भारत!!!
behad umda !!
ReplyDeleteये देश तो है नेताओं का,
ReplyDeleteउनकी सुयोग्य संतानों का ,
मेरे जैसे अदना ने इसको,
अपना माना था नाहक!!
व्यंग्य तीखा है, रचना बेहद अच्छी...
***राजीव रंजन प्रसाद