आखिरकार राजनीति के मैदान पर मौका देख कर चौका मारने वाले जनादेश की इन स्विन्गिंग यार्कर नही झेल पाये। कर्नाटक विधानसभा के परिणामो ने ये साबित कर दिया कि २०-२० का फॉर्मेट राजनैतिक खेल के लिए माकूल नही है ,यहाँ आपको पिच का मिजाज समझे बिना खेलेंगे तो हारना तय है । जनता दल सेकुलर शायद अब कभी कर्नाटक में आई पी एल या आई सी एल का कोई मैच नही देखना चाहेगा ।
२००४ के चुनावों में ५८ सीटें जीतने वाली जे दी एस इस बार सिर्फ़ २८ सीटों पर सिमट गयी । वास्तव में जितना बड़ा अपराध लोकतंत्र के साथ जे दी एस द्वारा किया गया था उसके बदले में जनता नें जो उसे सजा दी , यह कम ही कही जायेगी । कायदे में उसे एक भी सीट नही मिलनी थी और सभी प्रत्याशियों कि जमानत जब्त होनी थी । खैर इस बात से सभी मौका परास्त लोगों को ये ज़रुर समझ आ गया होगा कि जंग और मुहब्बत में भले ही सब जायज़ हो लेकिन राजनीति में सब कुछ जायज़ नही होता । पर समझ में तो तभी आएगा न जब समझ होगी।
कर्नाटक चुनाव भाजपा के लिए ऐतिहासिक हैं । पहली बार वह दक्षिण में अकेले सरकार बनाकर ये सिद्ध करने जा रही है कि वह मात्र उत्तर कि पार्टी नही है । ऐसा राजनाथ जी कह रहे हैं। पर शायद उन्हें अपने कथन का मूल्यांकन करते रहना होगा क्यूंकि भाजपा दक्षिण में बधाई कि पात्र हो सकती है लेकिन अपने गढ़ उत्तर में कमज़ोर हो रही है । और उत्तर में अपना प्रभाव बनाये रखने के लिए उसे काफ़ी मेहनत करनी होगी । खासकर उत्तर प्रदेश में , जहाँ के जनमानस में उसकी छवि वैचारिक भटकाव वाली पार्टी कि बन रही है । फिर भी भाजपा के पक्ष का एक व्यक्ति विशेष बधाई का पात्र है वह है , अरुण जेटली । चुनाव प्रबंधन का गुरु।
कांग्रेस इस बात को लेकर खुश है कि उसकी सीटें पिछली बार से १५ बढ़ कर ८० हो गयी । अच्छी बात है । उसका वोट प्रतिशत भी बढ़ा है लेकिन उसे इस बात पर विचार अवश्य करना चाहिए कि क्यों भाजपा कि ३१ सीट बढ़ी जबकि उसकी मात्र १५।
निर्दलीय इस बार ६ हैं । कम हैं । लेकिन कर्नाटक की राजनीती में या कहे भारत की राजनीति में जो काम वह करते आए हैं , उसे करने के लिए पर्याप्त हैं । कर भी रहे हैं । आप समझ ही गए होंगे... मतलब ...सरकार बनवाना । कम से कम इन्हे आप जे दी एस कि तरह मौकापरस्त मत मान लीजियेगा । ये तो राजनीति की महाभारत के बर्बरीक हैं भाई । ये जिधर जाते हैं वह पक्ष शक्ति-केन्द्र बन जाता है । ......
sahi kaha Homanshu..... last vala achcha tha ... Barbareek !
ReplyDeletekumaraswami ko aaina dikhana hai to ye article bhej do unhe 4 month pahle diye gaye aapne interview par sharm aa jaegi. BAHOT BADIYA LAGE RAHE.
ReplyDeletebdadhiya hai himanshu ab dekho up, uttarakhand, punjab, himachal, nagaland, meghalay, punjab yaha tak ki bangal ke panchayat elections se ek trend dikh raha hai ki bharat ki janata ab political party ko galati ke badale maaf karne ke mood me nahi dikhyee de rahi hai.
ReplyDeletein elections se ek baat aur samajh me aa rahi hai ki ab parampragat voter aur jatiy samikaran jaise baaton ke liye jyada jagah nahi hai(kuch exceptions ke alava). ab yah hamari samajhdari par depend karta hai ki ham ise janata ki samajhdari samjhe ya media ki sakriyata. kyonki leaders ki choti-choti galatiyan media ke jariye janata ke paas jane se bach nahi pati. shayad loktantra ke liye yah sahi bhi hai.