५ तारीख को आकाशवाणी पर नौशाद साहब की बरसी , के मौके पर प्रोग्राम तैयार कर रहा था । मौका बहुत जज्बाती था। फ़िल्म संगीत की महान हस्ती , नौशाद को हमसे बिछड़े दो साल हो गए। ज्यादातर युववाणी में ऐसे प्रोग्राम्स मैं ही करता हूँ .......शायद अपनी जानकारी उड़ेलने में मुझे ज्यादा मज़ा आता है। उस दिन भी बस इसी की तैय्यारी कर रहा था । अचानक राकेश धौंदियाल साहब ने पूछा ..."किशन महाराज के बारे में क्या जानते हो ?" मैंने कहा "तबला नवाज़ हैं" राकेश साहब ने आश्चर्य भरे स्वर में कहा ..."हैं ?" फिर जैसे मेरे दिल में एक अजीब सी खामोशी गूँज गयी।
"कल रात किशन महाराज नही रहे !" ( जेहन अभी नौशाद साहब से आजाद भी नही हो पाया था।) ; सुन कर लगा की मैं दुनिया से अलग था क्या ? और सुनने के बाद तो जैसे वाकई दुनिया से विरक्त हो गया । वह व्यक्ति जिसका नाम लेने से ही ऐसी रौबीली और विशाल छवि उभरती है, जिसकी आभा और आकार दोनों को समेट पाना मन के बस में नही है, मृत्त्युशैय्या पर कैसा लग रहा होगा ? शायद मृत्यु को भी वह ललकार रहे होंगे की ...."जीते जी तो मुझसे बनारस कोई छुडा नही पाया ,अब तुम्हारा वक्त है कोशिश कर लो "
महाराज को बनारस से अलग कर पाना वाकई सम्भव नही है , उनके तबले की ताल बनारस के घाटों पर सुनाई देने वाली गंगा की कलकल में बसी है । और जब तक गंगा बनारस से होकर , हिंदुस्तान के मुखतलिफ कोनों से गुज़रती रहेगी , महाराज जी भी पूरे हिंदुस्तान को अपनी थपक का अहसास कराते रहेंगे, और आनेवाली पीढ़ी को , (जो की उन्हें तब अधिक जान पाती अगर वह मुम्बई के मायाजाल को अपने साथ बाँध लेते ), यही संदेश देते रहेंगे...
भीगी हुई आंखों का ये मंज़र न मिलेगा
घर छोड़ के न जाओ , कही घर न मिलेगा
आंसू को कभी ओस का कतरा न समझना
ऐसा तुम्हे चाहत का समंदर न मिलेगा ........
ता ता तिरगित ता ता तिरगित ता ता धिन धिन
ReplyDeleteताल के ईश्वर को इस भक्त का अन्तिम प्रणाम ........हिमांशु बहुत अच्छा