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Monday, May 26, 2008
डर 'एक यात्रा वृतांत'
· नवम्बर की वो शिद्दत की सर्दी मुझे आज भी याद है जब सूर्य देवता के दर्शन हुए करीब १५ दिन बीत चुके थे कोहरा ऐसा की चंद कदम की दूरी पर रखी चीज़ भी सफेदी मे गुम हो जाए ।स्कूलों को बंद करने के आदेश जारी किए जा चुके थे ,अलाव और रजाई को छोड़ना जंग पर जाने से कम न था .और मेरा दिल ये सोंच -सोंच कर बैठा जा रहा था कि आज मुझे बरेली से लाखनाऊ की यात्रा करनी है और वो भी रात की ट्रेन से ,दिन के अपने तमाम काम निबटने के बाद मैंने अपने दोस्तों अनीस और अतहर को फ़ोन लगाया ,ये दोनों भी साथ जा रहे थे ,लाखनाऊ मे हम साथ ही रहा करते है और कोचिंग मे दाखिला भी साथ ही लिया था . ट्रेन 8:३० कि थी बरेली जंक्शन से ही बन कर चलने कि वजह से लेट होने कि सम्भावना कम ही थी फिर हमारा घर भी स्टेशन से 8-10 कम दूर था इसलिए हमे 7 बजे तक घर से निकल जाना था .दोस्तो के साथ सारा प्रोग्राम फिक्स करने के बाद मैंने अपना बैग पैक करना शुरू किया ,इधर अम्मी भी एक -एक चीज़ याद दिला कर रख्वती जा रही थी ,घर का घी और आचार अलग से ख़ास ताकीद करके रख दिया गया था कि खाने मे कोताही मत करना सेहत का ख्याल रखना . घड़ी ने 7 बजे का इशारा किया और अब्बू ने अम्मी को टोकना शुरू किया कि मुझे जल्दी निकल कर स्टेशन पहुच जाना चाहिए ,कहीं मेरी लेट लातिफी मे ट्रेन न छूट जाए . घर से निकल कर कुछ दूर चलने पर ही ऑटो रिक्शा मिल जाता है लेकिन ये क्या आज एक भी रिक्शा नज़र नही आ रहा था ,कुछ देर इंतज़ार करने के बाद मेरी धड़कने बदने लगी और मे बेचैन होने लगा .घबराहट और बाद गई जब मैंने घड़ी पर निगाह की,सूइयाँ 7:45 का इशारा कर रही थी ,इसी वक्त दूर से कोई आता दिखाई दिया ,करीब आया टू मैंने झट से आगे बढ़ कर उसकी साइकिल का हंदले थाम लिया ,वो बेचारा लड़खादा गया लेकिन मैंने सँभालते हुए एक ही साँस मे आपनी सारी व्यथा सुना डाली , किस्मत अच्छी थी वो भी स्टेशन के करीब मंदी तक जा रहा था . बिना इजाज़त लिए मई उचक कर कारिएर पर सवार हो गया और उम्मीद भारी निगाहें उसके चेहरे पर गदा दी ,जैसे वो ही अब मेरा आखरी सहारा हो .साइकिल आगे बड़ी और साथ मे मेरी उम्मीद भी ,इतनी देर मे न जाने कितने बुरे ख्याल दिल मे आ चुके थे . अल्लाह -अल्लाह करते हुए हम स्टेशन चौराहे पर पहुंचे ,मैंने घड़ी पर नज़र दौदै टू कलेजा मुह को आ गया । 8 बज्के 25 मिनट हो चुके थे और अभी स्टेशन आधे किलोमीटर दूर था मैंने आओ देखा न ताओ और लगी दी दौड़ स्टेशन की ओर और मांग डाली साडी मन्नतें ट्रेन पकड़ने के लिए .ठीक साधे आठ बजे मई स्टेशन पहुँच गया ,इधर अनीस और अतहर मेरे ऊपर अपना दांत पीस रहे थे ,वो टू अच्छा हुआ की अतहर ने टिकेट पहले से ही ले रखा था । इधर ट्रेन प्लात्फोर्म पर रेंग चुकी थी हम लोग दौड़ते हुए प्लात्फोर्म पर पहुंचे और कूद कर सामने वाले डिब्बे मे चढ़ गए ,बाहर चल रही हवाओं की सनसनाहट के अलावा और कोई आवाज़ उस डिब्बे मे नही थी ,कुछ देर बाद एहसास हुआ की हम लोग लगेज कोम्पर्त्मेंट मे चढ़ गए थे . ट्रेन चल चुकी थी और रात के अंधेर मे किसी अगले स्टेशन पर उतर कर डिब्बा बदलने की हिम्मत हम मे से कोई नही कर पा रहा था मे आगे बढ़ कर जगह तलाशने लगा to मेरी टांग से कोई चीज़ टकराई और मुझे एहसास हुआ की नीचे कुछ पड़ा है , झुक कर देखा टू कुछ लोग बड़ी बेखबरी के साथ सो रहे थे ,पास की जगह खली थी हमने भी उनको बिना कोई तकलीफ दिए अपनी चादर बिछा दी और लेट गए ,पूरी तरह खुले दरवाज़े के दोनों तरफ़ बहती हवाएँ जैसे हमें अपनी बाँहों मे जकड़ने के लिए बेताब हओ रही थी और हम छोटे बचों की तरह पकड़ से आजाद होने के लिए अपनी ही बाँहों मे सिमटे चले जा रहे थे ,एक दूसरे का आलिंगन हमें गर्मी का हल्का एहसास करा रहा था ,और इस वक्त रिश्तों की गर्मी के एहसास ने ठंड के एहसास को भी कुछ देर के लिए ही सही पर पिघला ज़रूर दिया हम सिमट कर लेट गए और कुछ ही देर मे हमें नींद ने आ घेरा ,देर रात जब मुझे तेज़ ठंड का एहसास हुआ to मेरी नींद टूट गई ,देखा to अनीस पूरा कम्बल अकेले ही लपेटे सो रहा था .कहिलियत ki वजह से मैंने भी उसे जगाया नही और अपने बघल मे सोये हुए शक्स की ही चादर मे पाऊँ दाल दिए ,वो भी शायद गहरी नींद मे था जो मना नही किया .मैंने लगभग दो घंटे की नींद और ली ,मेरी आँख करीब तीन बजे उस वक्त खुली जब हमारे डिब्बे मे हलचल शुरू हुई ,तोर्चों से पीली रौशनी बिखेरते हुए दो लोग डिब्बे के अन्दर दाखिल हुए और उनके पीछे करीब आठ दस लोग और भी ,एक शूर सुने दिया “उठाओ भाई उठाओ सभी लाशों को नीचे उतारो .”लाश शब्द सुनते ही मेरी नींद फक्ता हओ गई ,अब तक अतहर और अनीस भी जाग चुके थे .मामला समझ मे आता इससे पहले ही एक पुलिस वाले ने हमें बाहर निकलने का इशारा किया ,शदीद तेज़ ठंड मे हम बाहर खड़े थे और हमारे बदन se पसीने ऐसे छूट रहे थे जैसे झेथ की गर्मी के मौसम मे .अब तक हम समझ चुके थे जो लोग हमारे बघल मे सोते हुए से लग रहे थे वो डर असल उन लोगों की लाशें थी जो किसी स्टेशन पर हादसे का शिकार हओ गए थे .
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abe hila diya.... ise Aahat vaalo ke paas bhejo ek badhiya episode hai !
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