भाई वक्त चुनाव का है, बिना आचारसंहिता के दायरा को पार किए हुए बयानों को मीडिया सुनती ही नही । अब अपने चुनाव में बैनर पोस्टर का दाम बचाना हो प्रचार सामग्री केलिए पैसे कम पड़ गए हों तो चुनाव आयोग ने बहुत अच्छा तरीका निकाल दिया है फ्री के प्रचार का। उदहारण के लिए वरुण गाँधी को हीं ले। वरुण जी का प्रचार मुफ्त में बिल्कुल वैसे ही होगया जैसे नैनो मुनिया की । अब जीत हार तो कहते हैं की भाग्य जाने पर पैसे तो बचे हैं ये स्पष्ट दिखा। सारे नेशनल से रीजनल मीडिया तक उनके पीछे हाथ धोकर पड़ गई की किसी तरह वो मेरे पर लाइव हो जायें, अरे वोतो पी एम् इन वेटिंग आडवानी जी से भी ज्यादा प्रसिद्धि पाए हैं ।
यकीन मानिये अगर इतनी ही प्रसिद्धी किसी अन्य शरीफ वयानदार नेता को पाने की हसरत होती तो करोड़ों रुपये केवल मीडिया मैनेजमेंट में लग जाता। आसन सा काम किया वरुण जी ने अपने भावना को कुछेक सिरफिरे की भावना से मिलाते हुए दो चार शब्द कह दिया। आज इतना हो हल्ला होने के बाद कोर्ट ने कहा की ठीक है सॉरी बोलो घर जाओ। अरे भाई सॉरी ही तो बोलना पड़ेगा अरबों रुपये जो बच गए, देश भर में एक नया हिंदू झंडाबरदार के नाम से मोदी जी के बाद वाले पंक्ति में जोड़ दिए गए।
वरुण जी तो शुरुआत किए थे उसके बाद तो नजाने कितने लोग कोई रोल्लर लेके तो कोई गाली गलौज करके कोई किसीको कुछ तो कोई किसी को कुछ इतना सारा कहा है की उसकी चर्चा मात्र करना भी आचार संहिता का उल्लंघन माना जाएगा। और मुझे तो मुफ्त का प्रचार करना है नही फिर मैं क्यूँ किसीके बात को कह के या दुहरा के खतरा मोल लूँ। हो सकता है मैं प्रत्याशी नही हूँ इसलिए मेरी ये इक्षा न हो पर होते तो जरूर होती। क्योंकि मेरे पास प्रचार के लिए पैसा तो है नही ।
ये तो चुनाव सुधार की दृष्टि से आयोग का अच्छा कदम है की सारे लोगो पर निगरानी रखे हैं पर काश हाथ में सजा देने कीभी शक्ति होती! आज जो जहरीला बोलने का चलन सा बन गया है उसकी वजह यही है की सजा इसके लिए न के बराबर है। गिरफ्तार भी होते हैं तो घंटो के अंदर छोड़ दिए जाते हैं। भाई थोडी सी शक्ति आयोग को भी देनी चाहिए ताकि वो अपने कुसूरवार को ख़ुद सजा दे सके। ...........बाकि जहरीले वक्ताओं को शुभकामना वक्त चुनाओ का है खूब पैसा बचाएं ।
अधिनाथ झा
फिर शाक्ति देने वाले खुद न उलझ जायेंगे...
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