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Thursday, March 18, 2010

मायावती...मालावती...ताकत और निर्लज्जता.....


मायावती ने इतिहास बना दिया है। एक इतिहास दलितों को राजनैतिक शक्ति दिलवाने का है और दूसरा सार्वजनिक बेशर्मी का। मायावती ने जाहिर कर दिया है कि उन्हें न भारत के संविधान की परवाह है और न किसी नियम कानून की। एक माला के नोट गिने नहीं जा सके थे कि नोटों की दूसरी माला पहन ली। आप अगर गौर से देखे तो इन दिनों मायावती के चेहरे की मुस्कुराहट सत्ता की शराब के नशे से विकृत हो गए चेहरे की मुस्कुराहट नजर आती हैं और उसका अर्थ यह होता है कि मेरा जो बिगाड़ सके, बिगाड़ ले।

मायावती को याद नहीं हैं कि इस देश के संविधान, विधान और उससे भी ज्यादा जनता ने बड़े बड़े तानाशाहों के होश उड़ा दिए हैं। मायावती तो राजनीति के चिड़ियाघर में बैठी एक मादा चिंपाजी हैं जिन्हें देखने के लिए भीड़ उमड़ती है। कांशीराम की मेहनत और आशीर्वाद के बाद अपनी भी मेहनत और कुटिल चालाकी से जो सम्मान मायावती ने देश की सबसे बड़ी ताकतवर दलित महिला के तौर पर अर्जित किया था वह मायावाद उनके मालावाद में विसर्जित हो गया। कानून कहता है कि मायावती की जगह तत्काल जेल होनी चाहिए। बहुजन समाज पार्टी के एक मित्र कह रहे थे कि दिल्ली में बैठ कर यह लिखना आसान है, उत्तर प्रदेश में कोई मायावती पर उंगली नहीं उठा सकता। इन मित्र को बताया और आपको भी बता रहा हूं कि मैं जिस टीवी चैनल में काम कर रहा हूं वह मायावती के उत्तर प्रदेश के नोएडा में हैं और आसानी से मेरा पता ठिकाना खोजा जा सकता है। तिहाड़ जेल देख ली है, जरूरी पड़ा तो डासना जेल भी देख लेंगे।

पहले की माला में हजार हजार के करारे नोट थे। सो रंग लाल था। लेकिन इस माला में तरह-तरह के नोट थे लिहाजा ये रंग-बिरंगी थी। मायावती की ये जवाबी माला अपनी अकड़ में, अपनी धौंस में विरोधियों को करारा जवाब है। बीएसपी का सिध्दांत है कि नोट में कोई खोट नहीं, ये नोट गरीब को अमीर बनाता है। लिहाजा अगर मायावती नोटों की माला पहनती हैं तो उनका समर्थक हर दलित वोटर भी नोटों की ताकत को फक्र से देखता है। पार्टी मानती है कि अपने नेताओं को दौलत से तौलना, उन्हें नोटों की माला पहनाना बीएसपी का पुराना तरीका है। 25 साल में पार्टी इसी तरीके से लंबा सफर तय कर पाई।

दो दिन से मायावती की माला पर बवाल चल रहा है। संसद से सड़क तक तूफान उठ रहा है। मायावती ने अपनी पार्टी के सांसदों और विधायकों की बैठक बुलाई। लगा कि शायद पहली माला पर सफाई दें। शायद माया की असली कीमत का खुलासा कर दें, या शायद मुलायम सिंह यादव को खरी खरी सुना दें जिन्होंने माला की कीमत 51 करोड़ आंकी थी। लेकिन बैठक के बाद एक दूसरी नोटों की माला मायावती का इंतजार कर रही थी।

दरअसल बीएसपी ने विपक्ष की कमजोर नस पकड़ ली है। उसे पता है कि विरोध जितना बड़ा होगा समर्थकों पर पकड़ उतनी ही मजबूत होगी। माला पर बवाल जितना बढ़ेगा असल मुद्दों से ध्यान उतना ही बंटेगा। लिहाजा वो अपने विरोधियों को चिढ़ा रही है, ललकार रही है। ऐसे में नियम, कायदे, कानून और नैतिकता की परवाह भला किसको है। माया की माला में कितने नोट। कितने की है माया की ये माला। 21 लाख, 5 करोड़, 21 करोड़ या 51 करोड़ ये सवाल सब को मथ रहा है। लेकिन सवाल ये भी उठ रहे हैं कि आखिर ये माला कैसे बनी। किसने बनवाई, किससे बनवाई। इसे बनाने में कितने नोट लगे। माया की माला पर बवाल होने के बाद इस माला का क्या हुआ। बीएसपी सूत्रों के मुताबिक माया को महारैली में करीब 1 मिनट के लिए पहनाई गई इस माला को बनाने में एक हफ्ते लगे। माया को पहनाई गई नोटों की माला को बैंगलोर की माला फैक्ट्री के कारीगरों ने बनाया। बैंगलोर से खास इन कारीगरों को लखनऊ बुलाया गया। इन्हें नोटों की माला बनाने में महारत हासिल है।

सूत्रों के मुताबिक मायावती की इस माला का डिजाइन थाइलैंड में बनने वाले माला के डिजाइन की तरह है। बीएसपी सूत्रों के मुताबिक पहले माला का पेपर मॉडल बनाया गया और उसे पार्टी के सीनियर नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा को दिखाया गया। जब उन्हें माला पसंद आई तब जाकर नोटों की माला बनी। सवाल उठता है कि आखिर दूर से देखने में ये माला फूलों की माला कैसे लगी। इसके लिए नोट के सफेद किनारों को रंगा गया ताकि दूर से माला का रंग एक सा दिखे। फूलों की तरह लगे। माया को भी माला पसंद आई। लिहाजा महारैली में उन्हें पहनाए जाने के बाद फौरन नोटों की इस माला को पजेरो कार में रखकर सीधा मुख्यमंत्री आवास भेज दिया गया।

महारैली में माया की माला का राज जब खुला तो विपक्ष ने हंगामा खड़ा कर दिया। फौरन माला को पार्टी हेडक्वॉर्टर भेज दिया गया। जहां ये माला माया की फाइनेंस कमेटी के खास लोगों की देखरेख में है। उन 4 लोगों को माला तोड़ने में लगाया गया जिन्होंने इसे बनाया था। सूत्रों के मुताबिक माला को तोड़ने और वापस नोटों की शक्ल देने में करीब 12 घंटे लगे। इस काम में 4 कारीगरों के अलावा और 12 लोग लगे। यानी कुल 16 लोगों ने मिलकर मंगलवार शाम से रात भर में माला से नोटों को अलग किया। इस बात का खास ख्याल रखा गया कि नोट ठीक से निकाले जाएं, वो फटें नहीं। फिर मुड़े हुए नोटों को सीधा किया गया और बंडल बनाया गया। भारी चीज से नोटों को दबाया गया। वापस करारा करने के लिए प्रेस किया गया। फिर नोट गिनने की मशीन के जरिए उन्हें गिना गया और गड्डियां बना दी गईं। इन्हें किस बैंक अकाउंट में जमा किया जाएगा। फिलहाल ये पता नहीं है। लेकिन बीएसपी के सूत्र ये जरूर कह रहे हैं कि माला सिर्फ 21 लाख की ही थी।

माया के नोटों के मामले में एक अहम सुराग हासिल हुआ है। माला में लगे नोटों के सीरीज के नंबर पता चले हैं। ये सभी नोट हजार हजार नए और एकदम कड़क हैं। सोमवार को बीएसपी की मेगा रैली में मायावती को पहनाई गई माला के में गुथें इन नोटों का सीरियल नंबर। नोटों के सीरियल नंबर हैं 9- वी 410249, 9- वी 416623 9-v 416663, 9 -वी 416115, 9-वी 416611, 9-वी 416755।

करीब 16 फुट लंबी इस माला में हजार-हजार के जिन नोटों का इस्तेमाल हुआ है वो सभी 9-वी सीरिज के हैं। जिसकी शुरूआत 4 के अंक से होती है। सभी नोट एक साथ एक ही सीरीज से लिए गए। फिर इन्हें माया की माला में पिरोया गया है।ऐसे में कई कई सवाल उठते हैं। जिसका पहला छोर रिजर्व बैंक आफ इंडिया है। आखिर रिजर्व बैंक ऑॅफ़ इंडिया ने 9-वी सीरिज के हजार-हजार के नोट किस राज्य में भेजे। रिजर्व बैंक ऑॅफ इंडिया ने उस प्रदेश के किस शहर में ये नोट भेजे। उस शहर के किस बैंक की करेंसी चेस्ट को 9-वी की सीरीज भेजी गई।
जैसे ही इन सवालों के जवाब मिल जाएंगे खुद-ब-खुद साफ हो जाएगा कि करेंसी चेस्ट ने अपने बैंक कि किस शाखा को ये नोट जारी किए। उस बैंक के रिकॉर्ड खंगालने से साफ हो जाएगा कि आखिर किस ग्राहक को ये नोट दिए गए। क्योंकि इतनी भारी संख्या में नए और करारे नोट एक साथ एक ग्राहक को देने का रिकॉर्ड बैंक के पास सौ फीसदी होता है। साथ ही पांच लाख से ज्यादा की नकद निकासी पर आयकर विभाग की नजर होती है। नियमों के मुताबिक ये लेखा-जोखा बैंक के पास हर हाल में होगा। माया ने फिर पहनी नोटों की माला। लेकिन 17 मार्च और 15 मार्च की मालाओं में अंतर है। 15 मार्च को लखनऊ में बीएसपी की 25वीं वर्षगांठ पर महारैली में पार्टी के कार्यकर्ताओं ने मायावती को नोटों की माला पहनाई। दूर से देखने में फूलों की माला लग रही थी। जब विपक्ष की नजर नोटों की माला पर पड़ी तो उसने हंगामा मचा दिया।
17 मार्च को मायावती ने विरोधियों के विरोध को नीचा दिखाने के लिए फिर नोटों की माला पहनी। लेकिन इन दोनों मालाओं में फर्क है। हालांकि दोनों मालाएं नोटों से बनी हैं लेकिन 15 मार्च को पहनाई गई माला 1000-1000 के करारे नोटों से बनी थी। जबकि 17 मार्च को पहनाई गई माला 100, 500, 1000 के मिले जुले नोटों से बनी थी। हालांकि दोनों मालाओं में कई समानताएं भी हैं। मसलन दोनों नोटों की माला है। दोनों मालाओं में नोट गूंथे गए हैं। दोनों की लंबाई 16 फीट है। दोनों मालाओं का वजन करीबन एक है। लेकिन कई फर्क भी हैं। 15 मार्च वाली माला में सभी नोट नए थे, एक सीरीज के थे। लेकिन 17 मार्च वाली माला में अलग अलग नोट थे। सारे नोट बिल्कुल करारे नहीं थे।
विवादों की माला मायावती के गले से होते हुए विपक्ष के नेताओं की जुबान पर चढ़ गई। इस तरह चढ़ी कि न तो माया के गले से उतरने का नाम ले रही है। विपक्षी नेताओं की जुबान से 15 करोड़ी माला का अध्याय खत्म भी नहीं हुआ कि 18 लाख की माला ने उसकी जगह ले ली। सो विपक्ष का पसंदीदा वाक्य फिर गूंजा। दलित की बेटी नहीं दौलत की बेटी। कांग्रेस ने मायावती के खिलाफ मनी लॉन्डरिंग एक्ट लगाने की मांग की। साफ है, कांग्रेस बीएसपी की ये दलील मानने को तैयार नहीं कि माला के नोट कार्यकर्ताओं के हैं। इसलिए वो जानना चाहती है कि ये नोट कहां से आए। किसके जरिए आए, और कहां गए।

पार्टी का तो ये भी आरोप है कि ये मायावती का काला पैसा है जिसे माला में गूंथकर सफेद कर दिया गया है। ये माला अब केवल नोटों की नहीं रही ये माला अब दंभ, घमंड और ताकत-तिकड़म की माल भी बन गई है। भले ही इस माला से रिजर्व बैंक की क्लीन नोट पॉलिसी की धज्जियां उड़े। भले ही ये माला देश के मेहनतकशों का मजाक उड़ाए लेकिन सियासी मकसद से ये माला नोटों से गुंथती रहेगी। सियासी मकसद से इस पर विवाद भी चलता रहेगा।

आलोक तोमर

(लेखक जनसत्ता के वरिष्ठ फायरब्रांड पत्रकार रहे हैं....सम्प्रति डेटलाइन इंडिया के सम्पादक और सीएनईबी चैनल में सलाहकार सम्पादक हैं।)

2 comments:

  1. bahut achchi bakchodi karte ho choohe ke bil mein baithkar....Chutiye.......

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