विवेक मिश्र
अपनी जिन्दगी का एक बड़ा और महत्वपूर्ण हिस्सा,
तुमने योग्यता अर्जित करने में लगा दिया,
इस दौरान तुममे कई कुंठाओ ने घर किया ,
जिसे तुम समझ न सके
अब तुन्हारी योग्यता दो पन्नों में फनफनाने लगी,
कुछ और लोग
जो अब तुम्हारे योग्यता के दो पन्नो पर सवाल पूंछेगे
ये सवाल पूछने वाले जिन्दगी के उस पड़ाव पर हैं
जन्हा इन्हें अपनी योग्यता के आधार पर
यह सवाल पूछना है की तुम्हारी योग्यता क्या है ?
प्रश्नों का दौर चलता है
तुम अपनी योग्यता साबित करते जाते हो
और अंत में एक व्यक्ती तुमसे कहता है
एक अंतिम प्रश्न पूंछू ?
आप पूरे आत्मविश्वास से लबरेज़ हो प्रश्न पूछने की अनुमती दे देते है
वह आपसे पूछता है
तुम्हारी जाति क्या है ?
और फिर भीषण सन्नाटा जो तुम्हारे मन से उपज कर
एक बंद कमरे में फ़ैल जाता है
तुम उस बंद कमरे से बाहर चुपचाप उठ कर चले आते हो
और अंत में आपके मन में एक सवाल खड़ा होता है
जो अंतविहीन बहस की तरह हो जाता है
आखिर योग्य कौन ?
बढ़िया....लेखन अबाध रहे....
ReplyDeletejabardast
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