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Saturday, November 22, 2008

बेचारे नेताजी....

मौसम चुनावी है.. माहौल गरम है.. मुद्दे कई हैं.. कुछ नए कुछ पुराने हैं.. कभी जनता की सुध न लेने वाले नेताजी अब जनता के ही चश्मे से मुद्दों को देखने, समझने और हथियाने में जुटे हैं.. हमेशा जिन वोटरों को देखकर मुंह मोड़ लेते थे.. अब उनकी तरफ ही बेचारगी भरी नजर से देखते रहते हैं नेताजी ..
बेचारे नेताजी उन लोगों के सुख- दुख में भागीदार बनने की कोशिश कर रहे हैं.. जिनके लिए कल तक समय भी नहीं था.. सचमुच अपने जीवन के सबसे कठिन दौर से गुजर रहे हैं नेताजी.. अब इसे आप उनके लिए कठिन दौर नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे.. जो कल तक सितारा होटलों और सुविधायुक्त गेस्ट हाउस में ही बैठा करते थे.. आज जहां तहां दरी बिछाकर बैठने के लिए मजबूर हैं..कल तक जिन सरकारी योजनाओं और सुविधाओं पर अपने स्वार्थ की खातिर नेतागिरी का अड़ंगा लगाते थे.. अब उन मसलों पर जनता की अदालत में अपनी मजबूरियां गिनाते हैं.. बेचारे नेताजी पापी वोट की खातिर अपनी ही कारगुजारी को अब विपक्ष का अड़ंगा बताते हैं..
कहां नेताजी पांच साल तक सुकून से सोते थे.. अब नींद में भी जनता के सामने रोते हैं.. दिमाग का हाल कम Ram के कम्प्यूटर की तरह हो गया है.. गाहे बगाहे ज्यादा वर्क लोड के कारण हैंग हो जा रहा है.. कल तक हर काम के बदले मोटा कमीशन मांगा करते थे.. आज हर काम के बदले खुलकर कमीशन देने के लिए तैयार बैठे हैं नेताजी.. बेचारे नेताजी कहां पांच साल तक लोगों के बीच तन कर खड़े रहते थे.. आज उन्हीं के बीच फैल जाने की सोचते रहते हैं..
कल तक कानून का भी दायरा नहीं मानते थे नेताजी.. आज तरह- तरह के दायरों में खुद बंध गए हैं नेताजी.. बेचारे नेताजी कभी आचार संहिता के दायरे में खुद को फंसा पाते हैं तो कभी मैप पर अपनी विधान सभा के दायरे को देखकर सिर खुजलाते हैं.. क्या करें हाल बेहाल है बेचारे नेताजी..
कभी अपनी निधि से जैसे तैसे पैसा जुटाते थे नेताजी.. आज संचित निधि से दिल खोल कर पैसा लुटाते हैं बेचारे नेताजी.. कल तक दबंगई से ठेका हथियाते थे नेताजी.. आज हाथ जोड़-जोड़ कर भीड़ जुटाने के लिए भी ठेका देते हैं बेचारे नेताजी..
नेताजी के तकलीफों की फेहरिश्त बड़ी लम्बी है.. और तो और रोजाना मर्ज की संख्या भी बढ़ी जा रही है.. फिर भी अपने दिल को दिलासा देकर जिए जा रहे हैं नेताजी.. व्यस्त समय में भी अपने मन को समझाते रहते हैं नेताजी.. कि चिंता मत करो प्यारे जल्द ही वो नई सुबह आएगी जब हम इलेक्शन जीत जाएंगे.. इलेक्शन जीतते ही सारी कठिनाईयों से छुटकारा पा जाएंगे.. तब ये आचार संहिता बताने वाले हमारी संहिता गाएंगे.. फिर इलेक्शन का पैसा ब्याज सहित निकालेंगे.. अपना तो छोड़ो दूसरों के ठेके भी दबंगई से हथिया लेंगे.. आज जो वादे किए हैं वो अगले इलेक्शन के लिए लॉकर में दबा देंगे.. जनता तो बड़ी भोली है.. चुनाव आने पर एक बार फिर बहानों सहित वादा सुना देंगे..
जो भी कहें आप बड़े न्यारे हैं नेताजी.. लाख ऐब है फिर भी जनता की आंखों के तारे हैं.. अब मुझे समझ में नहीं आ रहा कि आप पर तरस खाऊं या आम जनता पर.. जो पांच साल तक आपको गरियाती है फिर भी चुनाव में वोट डालकर आप ही को जिताती है.. वाकई आप की नस्ल बड़ी उन्नत है.. तभी तो आप नेता हैं और हम आम जनता..
माफ करिएगा नेताजी जो हमने आपकी काबिलियत पर सवाल उठाया.. वैसे भी हमसे आप पर क्या फर्क पड़ता है जब कचहरी और कानून भी आपके हौसले को नहीं डिगा पाया..
सचमुच आप कलियुग के भगवान हैं बेचारे नेताजी!!!!

Posted by- Ajeet.....

3 comments:

  1. इन्हे कृपया भगवान न कहें वरना भगवान को भी लोग केवल आश्वासन गुरु ही समझने लगेंगे .नेता जी लोग सही दिशा में हैं -और जगे हैं इसी से अपना विकास कर रहें हैं .इस देश में जिसे सदा जागना चाहिए वह कुम्भ्करनी निद्रा में सो रहा है वह है मतदाता .

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  2. बढिया व्यंग्य है।बधाई।

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  3. बच्चे ने मास्टर से पूछा
    नेता कैसा होता है
    मास्टर बोला क्या बतलाऊं
    नेता कैसा होता है....

    नई पेंट की हुई
    खटारा मोटर जैसा होता है
    और गाँधी टोपी में रखे
    गोबर जैसा होता है

    सटीक व्यंग्य

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