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Friday, July 31, 2009
कब तक सहते रहेंगे अपमान........
मीडिया में मामला प्रकाश में आने के बाद पटेल को सफाई देनी पड़ी॥ वैसे यह घटना भारत से जुड़ी है अतः इस बार बवाल मचा॥| फिर मामला पूर्व महामहिम का था...| अरसे पहले हमारे कई नेता इस तरह की जांच प्रक्रियाओं से गुजर चुके है..|पूर्व रक्षा मंत्री फर्नांडीज की एक बार अमेरिका में इस तरह की तलाशी ली जा चुकी है॥| यही नही अपने सोमनाथ दा ने तो एक बार इसके चलते अपना विदेशी दौरा ही रद्द कर दिया था..|इस बार अमेरिका ने कलाम की तलाशी भारत में लेकर पूरे मुल्क को बदनाम करने की कोई कसर नही छोडी...|भारत में हमारे अधिकारियो के बीच इस तरह एक पूर्व रास्ट्रपति के साथ भद्दा व्यवहार नही किया जाना चाहिए था..|साथ ही अमेरिकी विमान कंपनी को यह मालूम होना चाहिए थाभारत में अमेरिका जैसे कानून नही चला करते है..|वैसे मामला मीडिया में आने के बाद एयर लाइंस द्बारा माफ़ी मांग ली गई है लेकिन माफ़ी से काम नही चलेगा..|वह तो कलाम का व्यक्तित्व इतना शालीन है की इतनी बेइज्जती होने के बाद भी इस मसले पर उन्होंने अपना मुह नही खोला है ...|आख़िर हम इस अपमान को कब तक सेहन करते रहेंगे??अमेरिका को किसी दूसरे देश को सिक्यूरिटी का पाठ पदाने की कोई जरुरत नही है ...| बेहतर होगा वह अपने देश में अपने कानूनों के हिसाब से चले ....|पूरा विश्व उसके अपने कानूनों से नही चलेगा....| हर देश का अपना ख़ुद का संविधान होता है ॥ बाकायदा अलग नियम कानून भी होते है...............|
रफी साहब को श्रद्धांजलि
हिन्दुस्तानी फ़िल्म संगीत में मुहम्मद रफी एक ऐसा नाम है जिसे कभी भुलाया नही जा सकता । २६ हज़ार से ज्यादा नगमे, ६ फ़िल्म फेयर अवार्ड, २ राष्ट्रीय पुरस्कार , पद्मश्री , मौसिकी की दुनिया में 35 साल का शीरीं सफर और स्वर सम्राट जैसी पहचान रखने वाले रफी की याद जब आती है तो बहुत शिद्दत से आती है । लेकिन आज वो दिन है जब रफी के शैदाई उनके तरन्नुम में डूब कर उन्हें अकीदत का नजराना पेश करते हैं । आज यानि ३१ जुलाई को रफी साहब की पुण्यतिथि होती है ।
रफी को याद करने का तकाजा सिर्फ़ इतना नही की वो फिल्मी दुनिया के सबसे बड़े गायक है। मुहम्मद रफी दरअसल गायिकी की उस ख्वाहिश का साकार रूप हैं जिसे हिन्दुस्तान का हर शख्स पैदाइश से वफात तक के अपने सफर के दौरान अपने दिल में सजा कर रखता है । ये रफी के ही गाये नगमें हैं जो कभी नए नए इश्क की आवाज़ बनकर बहारों से फूल बरसाने को कहते हैं , तो कभी मुहब्बत की रुसवा होने से कभी ख़ुद पे तो कभी हालत पे रोते हैं । कभी भगवान् से अपने दर्द भरे नाले सुनने की फरियाद करते हैं तो कभी चम्पी वाले के गले से हमें पुकार कर कहते हैं की सर जो तेरा चकराए .... जितने रंग ज़िन्दगी के हैं उतने ही रंग रफी के भी हैं ।
सन १९२४ में पंजाब के कोटला सुलतानपुर गाँव में जन्मे मुहम्मद रफी ने बचपन ने ही सुर और साज़ का दामन थाम लिया था। अब्दुल वहीद खान और उस्ताद बड़े गुलाम अली खान से संगीत के तालीम लेने के बाद रफी ४० के दशक में फिल्मी दुनिया में किस्मत आजमाने पहुचे । संगीतकार श्याम सुंदर ने रफी को पहला ब्रेक पंजाबी फ़िल्म गुल-बलोच में दिया , लेकिन रफी की गायिकी को असल मुकाम मिला नौशाद की शरण में जाकर । नौशाद ने ही अपनी फ़िल्म पहले आप(१९४४) में रफी को पहली बार हिन्दी गीत गाने का मौका दिया था । तलत महमूद की सिगरेट पीने की आदत नौशाद को इतनी नागवार गुजरी की उन्होंने १९५२ की शास्त्रीय धुन आधारित फ़िल्म बैजूबावरा में रफी को मुख्या गायक के तौर पर लिया । इस फ़िल्म में रफी ने अपनी गायिकी के वो जौहर बिखेरे की मन्ना डे ने भी कहा की रफी से अच्छा मालकौंस गाया ही नही जा सकता । इसके बाद रफी नें प्यासा (१९५७), कागज़ के फूल(१९५८), मुगले-आज़म(१९६०), चौदहवी का चाँद (१९६०) के बाद तो अपनी जगह सबसे बड़ी कर ली । सन १९५० से ७० का दशक अगर फ़िल्म संगीत का स्वर्ण युग कहा जाता है तो उसकी सबसे बड़ी वजह रफी का वहां होना ही है , ये वो दौर था जब सिर्फ़ नौशाद ही नही बल्कि मदन मोहन, शंकर जैकिष्ण , रवि, रौशन , लक्ष्मीकांत प्यारेलाल जैसे सभी संगीतकारों की पहली पसंद रफी ही हुआ करते थे ।
कहा जाता है की ७० का दशक आते आते किशोर कुमार ने रफी का जादू ख़त्म कर दिया । लेकिन हकीकत इससे थोडी अलग है । दरअसल १९७० के बाद फिल्मों में गायिकी का जो रंग बना रफी का मिजाज़ उसके अनुकूल नही था । वेस्टर्न बीट्स पर आधारित ये धुनें रफी जैसी भारतीय मिटटी में सनी आवाज़ पर बैठती नही थीं, लेकिन इसके बावजूद भी रफी नें इन्हे गाने में भी कोई कसार नही छोड़ी। चाहें वो ओह हसीना जुल्फों वाली हो या दर्दे दिल दर्दे जिगर । रफी नें अपने इस कमज़ोर कहे जाने वाले दौर में भी अभिमान (१९७३) , लैला मजनू( १९७६) अमर अकबर अन्थानी (१९७७) , क़र्ज़(१९८०) के लिए ऐसे नगमे गाये हैं जिन्हें सिर्फ़ रफी ही आवाज़ दे सकते थे ।
रफी ने अपने पीछे गायिकी का जैसी परम्परा छोड़ी है वैसी शायद ही किसी दूसरे कलाकार ने छोड़ी हो। अपनी ज़िन्दगी में ही उन्होंने अपनी जैसी आवाज़ वाले अनवर को काम दिलाने की कोशिश की। बाद में भी शब्बीर कुमार, अगम निगम , मुहम्मद अजीज , और हालिया सोनू निगम कहीं न कहीं रफी की याद दिलाते हैं । लेकिन रफी की ये याद इतनी शदीद होती है की ये जिस गायक के कंधे पर चढ़ कर आती है उसे भी रफी में ही समेत लेती है ... इसीलिए ३१ जुलाई १९८० को रफी के इंतकाल पर नौशाद ने कहा था -
"तुझे नगमों की जान अहले नज़र यूँ ही नही कहते
तेरे गीतों को दिल का हमसफ़र यूँ ही नही कहते
महफिलों के दामन में साहिलों के आसपास
ये सदा गूंजेगी सदियों तक दिलों के आसपास"
Thursday, July 30, 2009
जन्मदिन मुबारक ....!!!
आज हिन्दी सिनेमा के सबसे प्रतिभाशाली समकालीन पार्श्वगायकों में से एक सोनू निगम का जन्मदिन है । मैं यह दावा भी कर सकता हूँ की आज के दौर में वे सर्वश्रेष्ठ भी हैं। आने वाले दिनों में उनका जन्मदिन भी शायद उतना ही बड़ा होगा जितना २४ दिसंबर को रफी साहब का या ४ अगस्त को किशोर दा का । वे उनकी शख्सियत और गायिकी मिल कर उन्हें एक प्यारा गायक बनाती है जैसा शान को उनकी मुस्कुराती हुयी आवाज़ । मैं सोनू को लेकर आग्रही इसलिए भी हूँ क्यूंकि सोनू निगम करियर के लिए संघर्षरत मेरे जैसे कईयों के लिए एक प्रेरणा हैं। वो ख़ुद से बना गायक है , एक आम व्यक्ति जिसके कैरियर की शुरुआत उसी तरह रिवायती ढंग से हुई थी जिस तरह छोटे शहर के ज्यादातर लोगों की होती है....छोटे-छोटे मील के पत्थरों पर आगे बढ़ते ये एक दिन आख़िर बुलंदी का मुकाम पाते हैं, क्लासरूम के उम्दा गायक से लेकर , कॉलेज के मोहम्मद रफी तक , स्टेज शो से जागरण तक, अताउल्लाह खान से रफी साहब के अंदाज़ तक , एल्बम गायक से लेकर मठाधीशों से भिडंत तक और फ़िर अंततः चोटी पर पहुचने तक सोनू निगम बहुत चले हैं , और चल कर सफलता तक पहुचे हैं उन्हें किसी पिता ने सफलता तोहफे के रूप में नही दी ।
जीविका के लिए सोनू ने बेताब जैसी कुछ फिल्मों में बाल कलाकार के रूप में अभिनय भी किया था। और उनके पिता रफी की शैली के गायक हुआ करते थे जो रफी नाइट्स जैसे कार्यक्रमों के गायक थे । ऐसे ही एक कार्यक्रम में सोनू को पहला मंच मिला और गाना था , क्या हुआ तेरा वादा ? , रफी की शैली जो पिता जी पर थी और उसको बनाए रखने के लिए वे घंटों रफी को सुनते थे, जिससे सोनू में भी रफी की शैली घुल गई । कुछ रफी के कानों में बस जाने के कारण और कुछ पिता जी के प्रभाव से , जो की हर लड़के में थोड़ा थोड़ा आ ही जाता है ... इसी कारण सोनू की गायिकी ने हमेशा कहीं न कहीं रफी की याद दिलाई । रफी की नक़ल के लिए उनकी आलोचना भी खूब हुयी लेकिन इस आलोचना को मैं नई प्रतिभा को डिगाने वाली साजिश के तौर पर ही देखूंगा । आप ज़रा टी सीरीज़ के प्री रेकॉर्डेड केसेट उठा कर सुनिए ... १९ साल का एक लड़का कितनी खूबसूरती से रफी जैसे अजीम फनकार की ऊंचाई पर पहुचने की कोशिश कर रहा है...और कहीं कहीं पर तो असली रफी नकली लग रहे हैं और ये तथा कथित नकली लड़का ही रफी लग रहा है , इस बात को गोपाल दास नीरज की उक्ति से जोड़ कर भी देखा जा सकता है , उन पर जब बच्चन की नक़ल के आरोप लगे तो उनका कहना था की जब आप बचपन से किसी की तरह बनना या करना चाहें तो आपके निखार में भी कहीं न कहीं वो प्रेरणा स्पष्ट होगी आप इसे निश्चित तौर पर नक़ल कह सकते हैं लेकिन इससे पूरी तरह बच पाना मुमकिन भी नही है और एक शिष्य बचना भी नही चाहता ।
सोनू के लिए भी रफी भगवान् का दर्जा रखते हैं और सोनू पर उनका प्रभाव अब अनायास ही है...कम से कम रफी के दूसरे क्लोन की तरह(शब्बीर,अज़ीज़) की तरह उन्होंने रफी की आवाज़ की नक़ल के चाकर में सुरों से समझौता नही किया , उन्होंने रफी के अंदाज़ को अपनाया और उसे अपनी आवाज़ देकर एक नई गायिकी के आयाम उत्पन्न किए जिसमें अंदाज़ और आवाज़ दोनों का माधुर्य था और आज के नए गायक इस तरह की गायिकी के लिए सोनू को जेहन में रख कर रियाज़ कर रहे हैं ...उनके लिए सोनू एक विशुद्ध मौलिक अंदाज़ हैं जहाँ तक वे पहुचना चाहते हैं और हो सकता है की इसी मशक में उन्हें कोई नया रास्ता मिल जाए । बशीर बद्र ने एक बार मुझसे कहा था की इंसान उम्र भार केवल प्रैक्टिस करता है । एक लम्बी प्रैक्टिस के बाद सोनू के गाने सतरंगी रे, साथिया , सोनिया, गुमशुदा आदि कहीं से रफी की कॉपी नही लगते बस सोनू की अपनी पूंजी लगते हैं ।
यहीं से सोनू की एक और खासियत उनकी प्रयोग धर्मिता की बात भी शुरू होती है , शायद इस गुन की प्रेरणा भी उन्हें रफी साहब से ही मिली होगी । रफी के बाद मैं उन्हें सबसे वैविध्य वाला मानता हूँ गायिकी के तौर पर भी , अंदाज़ के तौर पर भी और आवाज़ के तौर पर भी .... आप सुनिए हद कर दी आपने का .... बेकरार .....परदेस का दिल.../ धीमे गाने, तेज़ गाआने , भारतीय रंग , पश्चिमी तर्ज़, भजन ,कव्वाली ,पॉप सभी कुछ गाते हैं और आप चाहें तो इसे अतिशयोक्ति मान सकते हैं लेकिन रोते हुए गाने में उनका कोई जोड़ नही है ।
१९९१ में जब सोनू अपने पिता अगम निगम के साथ मुंबई आए थे तो सबसे पहले उन्हें रोने वाले गाने मतलब आताउलाह खान के ट्रेजिक नज्में मिलीं थीं जिन्हें हमारे अवध में मैय्यत के मगमें कहा जाता है और दिलजले आशिकों की ये पहली पसंद होते हैं ... अगर आपने इन्हे नही सुना है तो लखनऊ के किसी भी टेंपो में एक बार बैठिये आप इनका मज़ा ज़रुर समझेंगे। इन गानों की मैं कभी कभी आलोचना भी कर देता हूँ की ये कुछ ज्यादा ही निराशवादी हैं ... हर जगह मृत्यू को ही उपाय माना गया है लेकिन सच है की आलोचना करना आसन है , हो सकता है की किसी व्यक्ति के लिए सचमुच मौत ही एक मात्र विकल्प रह गे हो और तब उसने ये गीत लिखें हों ... इसीलिए इतने निराशावादी क्षणों को स्वर देना भी आसन बात नही है जिसमें आप मौत को पुकार रहे हों ....आप के सीने का दर्द आपके स्वर में दिखना चाहिए और इन गीतों में सोनू निजाम ने उसे न सिर्फ़ दिखाया है बल्कि दूसरों को महसूस भी करवाया है , कहीं कहीं पर रोते हुए उनकी आवाज़ चोक भी हो गई है ,सामान्यतः गैर-स्तरीय माने जाने वाले इन गानों में आपको १९ साल के सोनू के अद्भुत स्तर का पता चलेगा ।
आज कल सोनू कम गा रहे हैं , या उनके आलोचकों की जुबां में कहें की उन्हें गाने नही मिल रहे , लेकिन हमें ये याद्क रखना चाहिए की गायिकी में हमेशा दौर चलते हैं , एक दौर में रफी को भी गीत कम मिल रहे थे जबकि वो निर्विवाद महान्तान्म हैं , उसी तरह एक दौर में हिमेश जैसा कर्कश लोगों को भा रहा था...इसलिए सोनू कम गा रहे हों लेकिन वो कमतर बिल्कुल नहीं हैं ...
Monday, July 27, 2009
ऐ मेरे वतन के लोगों
Sunday, July 26, 2009
ऐ मेरे वतन के लोगों
कलह ने किया कमजोर...................
"अस्सी पार के इस पड़ाव में आडवाणी का सक्रिय राजनीती में बने रहना एक त्रासदी की तरह है...|क्युकि पार्टी मेंजितना योगदान उनको देना था वह दे चुके ...|अब उनकी रिटायर मेंट की एज हो गई है... बेहतर होगा वह अबआराम करे और युवा पीड़ी के हाथ कमान सौप दे.... पर आडवानी का बने रहना यह बताता है भाजपा का संकटअभी खत्म नही हुआ है .......|"
ऊपर का यह बयान भाजपा की सूरते हाल को सही से बताने के लिए काफ़ी है ...|यह बयान कभी भाजपा के थिकटेंक की रीद रहे के एन गोविन्दाचार्य का है जिन्होंने लंबे अरसे से भाजपा को करीब से देखा है ...|वर्तमान में वहभाजपा छोड़ चुके है और राष्ट्रीय स्वाभिमान आन्दोलन के संयोजक भी है ...| भाजपा में आज कुछ भी सही नही चलरहा है...| अनुशासन के नाम पर जो पार्टी अपने को दूसरो से भिन्न मानती थी आज वही अनुशासन पार्टी को अन्दरसे कमजोर कर रहा है...| चारो ओर हताशा का माहौल है ...| उनतीस सालो के लंबे इतिहास में यह पहला संकट हैजब पार्टी में व्यक्ति की लड़ाई अहम हो गई है...|
पार्टी में अभी भारी उथल पुथल मची हुई है ...|वर्तमान दौर ऐसा है जब भाजपा के पास अपने अस्तित्व को बचानेकी गहरी चुनोती है॥| उसके पुराने मुद्दे वोटरों पर अपना असर नही छोड़ पा रहे है...|इसी कारण पार्टी अभी "बेकगेयर " में चल रही है ...| हमारे देश का युवा वोटर जिसकी तादात तकरीबन ६५ फीसदी है वह राहुल गाँधी के " हाथपर मुहर लगाना पसंद करता है ....|परन्तु वह ८१ के पड़ाव पर खड़े आडवाणी को प्रधान मंत्री की कुर्सी पर नहीदेखना चाहता है॥| यह सवाल भाजपा के लिए निश्चित ही खतरे की घंटी है...|अतः ऐसे में पार्टी को आडवानी परनिर्भरता को छोड़ किसी दूसरे नेता को आगे करने पर विचार करना चाहिए..|परन्तु लोक सभा चुनाव निपटने केबाद अभी भी भाजपा आडवानी का विकल्प नही खोज पारही है यह अपने में एक चिंता जनक बात है...|
हमको तो समझ से परे यह बात लगती है आडवानी ने चुनावो से पहले यह कहा था अगर वह इस बार पी ऍम नहीबन पाये तो राजनीती से सन्यास ले लेंगे....लेकिन अभी तक आडवानी कुर्सी से चिपके हुए है..|उनके माथे पर हारकी कोई चिंता नजर नही आ रही है ...| फिर से रथ यात्रा की तैयारिया की जाने लगी है...|
पार्टी में बहुत से नेता हार का दोष आडवानी को दे रहे है...|पर आडवानी की माने तो "जब पार्टी जीतती है तो यहसभी की जीत होती है हारती है तो यह भी सभी की हार होती है "...| अब साहब इस बयान के क्या अर्थ निकाले? मतलब साफ है अगर भाजपा इस चुनाव में हारी है तो सिर्फ़ उनके कारण नही...|आडवानी की "मजबूत नेतानिर्णायक सरकार " कैम्पेन के रणनीतिकार सुधीन्द्र कुलकर्णी ने भी अपने एक लेख में उनको बचाया हैकुलकर्णी ने भी हार का ठीकरा अन्य नेताओ के सर फोड़ा है...|
साफ़ है पराजय के बाद भी आडवाणी हार मानने को तैयार नही है...| तभी तो चुनाव में भाजपा की भद्द कराने केबाद आडवानी ने अपनी पसंद के लोगो को मनचाहे पदों में बैठाने में कोई कसर नही छोडी...| लोक सभा में उपनेताके तौर पर सुषमा की ताजपोशी ओर राज्य सभा में जेटली को पुरस्कृत कर आडवाणी ने अपनी मंशा जता दी है॥हार नही मानूंगा... सिक्का तो मेरा ही चलेगा..........|
आडवानी की मंशा है अभी ज्यादा से ज्यादा लोगो को उनकी मर्जी से महत्वपूर्ण पदों में बैठाया जाए...|यही नही अगर सब कुछ ठीक रहा तो राजनाथ के बाद "अनंत कुमार " पार्टी के नए प्रेजिडेंट हो सकते है...|पर हमारी समझ अनुसार अभी आडवानी को २०१४ के चुनावो के लिए पार्टी को एकजुट करने पर जोर देना चाहिए...| साथ ही उन कारणों पर मंथन करना चाहिए जिनके चलते पार्टी की लोक सभा चुनावो में करारी हार हुई..|अभी महीने पहले हुईभाजपा की रास्ट्रीय कार्य समिति की बैठक में हार के कारणों पर कोई मंथन नही किया गया...| निष्कर्ष निकला "९दिन चले अदाई का कोस"......| वहाँ भी एक दूसरे पर टीका टिप्पणी जमकर हुई.....|पर हार के कारणों पर कोई मंथन नही हुआ.........|
भाजपा को यह समझना चाहिए इस चुनाव में आतंरिक कलह ने उसको अन्दर से कमजोर कर दिया....| राजनाथ के साथ आडवानी का ३६ का आंकडा जगजाहिर था साथ में पार्टी के कई बड़े नेता उनको प्रधान मंत्री पद की कुर्सी परबैठते नही देखना चाहते थे...|चुनावी प्रबंधन सही से न हो पाने के चलते पार्टी की करारी हार हुई.....|गौर करने लायक बात यह है आज भाजपा में वह जोश नही है जो अटल बिहारी वाजपेयी जी के दौर में था ...|उस दौर में पार्टीमें एकजुटता थी .....| पर आज पार्टी में पञ्च सितारा संस्कृति हावी हो चुकी है...| पार्टी अपने मूल मुद्दों से भटक गईहै...| सत्ता की मलाई चाटते चाटते पार्टी इतनी अंधी हो गई है "हिंदुत्व " और एकात्म "मानवता वाद " रद्दी की टोकरी में चले गए है...|आज पार्टी यह तय नही कर पा रही है किस विचारधारा में चलना उसके लिए सबसे अच्छाहै...| संघ के साथ रिश्ते बनाये रखे या उससे अपने रिश्ते तोड ले इस पर पार्टी में कलह मचा हुआ है...|
पार्टी यह नही समझ पा रही है की उसका हिंदुत्व किस तरह का है? परन्तु संघ की काली छाया से पार्टी अपने को मुक्त कर लेगी ऐसा मुश्किल दिखाई देता है ..|भाजपा को इस बात को समझना चाहिए अब समय आ गया है जब वह किसी नए नेता का चयन करे और बूडे नेताओ पर अपनी निर्भरता को छोड़ दे...|युवा देश की सबसे बड़ी ताकतहै ... २०१४ में कांग्रेस से राहुल गाँधी पी ऍम पद की दौड़ में आगे रहेंगे.... पर भाजपा अपना नया लक्ष्मण नही खोज पा रही है ......| २००४ की तरह इस बार की हार को पार्टी नही पचा पा रही है.....| तभी तो हार के बाद भी अरुण शोरी, यशवंत सिन्हा अपनी वाणी पर लगाम नही लगा पा रहे है ...|
भाजपा की ग्रह दशा इस समय सही नही चल रही है....|सादे साती की यह दशा पार्टी में लंबे समय तक बने रहने काअंदेशा बना हुआ है...| सभी ने जेटली के ख़िलाफ़ मोर्चा खोला हुआ है..|एक तरफ़ आडवानी के प्रशंसको की लॉबीखड़ी है तो दूसरी तरफ़ राजनाथ के प्रशंसको की कतार ....| एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिशे जारी है..| कहाँ तो हार की समीक्षा होनी चाहिए थी पर एक दूजे को कुर्सी से बेदखल करने की मुहिम पार्टी में चल पड़ी है...|पार्टी मेंहर नेता अपने को बड़ा समझने लगा है....| और तो और अपने आडवानी बुदापे में ओबामा जैसा बनने की चाहतफिर से पालने लगे है.... ऐसे में पार्टी की खराब हालत कैसे सुधार जायेगी?
इन हालातो में पार्टी में किसी युवा नेता की खोज दूर की कौडी लगती है ...|अगर ऐसा ही रहा तो पार्टी अपने झगडो में ही उलझ कर रह जायेगी..|वैसे इस कलह ने भाजपा को अन्दर से कमजोर कर दिया है और भगवा पार्टी केभीतर पनप रहे असंतोष के लावे को पूरे देश के सामने ला खड़ा किया है ...| इसी कारण लोग अब भाजपा की कथनी करनी समझने लगे है.............
Friday, July 24, 2009
कलाम का अपमान या देश का ?
विश्वविद्यालय में पढ़ रहे साथियों से अपील
जग आधा भरा भी तो है
Thursday, July 23, 2009
ये कैसे सच ....
सवाल ऐसे अश्लील होते है की लिख नही सकते, न जाने क्यो चैनल वाले प्रतियोगी की सेक्स लाइफ का ही सच जनता और सामने वाले के परिवार के सामने लाना चाहते है , हर आदमी जीवन के हर मोड़ पर झूठ बोलते है फिर सिर्फ़ एक ही क्षेत्र से सवाल क्यो
(लेखक ईटीवी हैदराबाद में उत्तर प्रदेश डेस्क पर कार्यरत हैं)
Praying for ourselves....
Barun Srivastava
(Writer is a journalist at Zee News Chhattisgarh, Raipur)
मौन क्यों
एक लड़का था गजब का हैण्डसम और स्मार्ट भी था पास मैं motor cycle थी और जेब मैं पैसे भी थे तो हर दिन एक नई लड़की उसके साथ दिखती थी, नतीजतन उसे ऐड्स था। जो किसी की भी जानकारी मैं नही था । एक सीधी साधी लड़की से उसकी शादी भी हो जाती है और लड़के के कौमार्य परिक्षण की कोई जरूरत महसूस नही की जाती है नतीजतन लड़की और उसके होने वाले बच्चे दोनों को ऐड्स हो जाता है लेकिन कोई शिकवा कोई शिकायत नही होती है।
हमारे इस समाज मैं हर बार सीता ही अग्नि परीक्षा देती आई है, अगर राम ने पूरी फौज के साथ रावण का मुकाबला किया था तो सीता ने भी अशोक वाटिका मैं अपने सतीत्व को बचने की लडाई अपने दम पर लड़ी थी जब राम क्या कोई भी वहां नही था जो उनकीं पुकार को सुनता। सीता अग्नि परीक्षा देती है फिर भी जंगल जाती है, और अंत मैं पुनः अपने सतीत्व को परमिट करने के लिए जमीन मैं समां जाती है वरना आज भी लोग उनके चरित्र पर संदेह कर रहे होते।
क्या राम ने किसी मौके पर देने की जरूरत समझी थी की नही भाई अगर तुम पवित्र हो तो मैं भी पवित्र हूँ , हमारे समाज मैं ये दो मुह का व्यवहार सदियों से होता चला आया है मेरी समझ से लड़की सुंदर है ये वाक्य हमारे समाज के लिए किसी गाली से कम नही है क्योंकि हम कब तक लड़की की पहचान उसके शरीर से करेंगे लड़की काली नही है सांवली है ,लम्बाई कम नही है बस जरा चोटी सी है , कानपुर विश्वविद्यालय के एक प्रोफ़ेसर थे मेरे गुरु हैं , वो मुझे इंग्लिश पढ़ते थे , उनकी एम् एड गोल्ड मेदिलिस्ट बिटिया ki शादी की बात उन्होंने राय बरेल्ली के कॉलेज मैं एक नेट कुँलिफिएर लड़के से की तो उन्होंने कहा की पहले बिटिया को मेरे कॉलेज मैं ज्वाइन करवाइए मैं स्वाभाव देखकर शादी करूंगा।
क्या उस लड़के की शिक्षा ही शिक्षा थी उनकी बिटिया की साडी महनत बेकार थी। मुझे खूब याद है गुरूजी क्लास मैं रोते थे। क्या समाज इस दोराहे को लेकर कोई सुधर वादी रविया अपनाएगा ये एक सवाल है
इक ज़रा छींक ही दो तुम....
जब धुआँ देता, लगातार
(धर्म के ठेकेदार अन्यथा न लें...)
Tuesday, July 21, 2009
एक आखिरी स्मारक....
Saturday, July 18, 2009
रोज़ ही पहली तारीख है
प्रभाषजी, आप समुद्र थे, हैं, रहेंगे
हर वक्त कभी न कभी ऐसा होता ही रहता था। लिखावट ऐसी जैसे मोती जड़े हों। आज भी कोई फर्क नहीं आया। अब अगर आपको ये बताया जाय कि एक बार फेल होकर मेट्रिक के आगे नहीं पढ़ने वाले प्रभाष जोशी भरी जवानी में लंदन के बड़े अखबारों में काम कर आये थे और इसके पहले इंदौर के चार पन्ने के नई दुनिया में संत बिनोवा भावे के साथ भूदान यात्रा में शामिल भी रहे थे और इस भूदान यात्रा की डायरी से ही नई दुनिया से उन्होंने पत्रकारिता शुरू की थी तो आप चाहें तो मुग्ध हो सकते हैं या स्तब्ध हो सकते हैं। प्रभाष जी दोनों कलाओं में माहिर हैं। लिख्खाड़ इतने कि चार पन्नों का अखबार अकेले निकाल दिया और घर जाकर कविताएं लिखी।
सर्वोदय के संसर्ग से जिंदगी शुरू की थी और जिंदगी के साथ जितने प्रयोग प्रभाष जोशी ने किए उतने तो शायद महात्मा गांधी ने भी नहीं किए होंगे। जन्म हुआ आष्टा में जो तब उस सीहोर जिले में आता था जिसमें तब भोपाल भी आता था। पढ़ाई छोड़ी और माता पिता जाहिर है कि दुखी हुए मगर प्रभाष जी बच्चों को पढ़ाने सुनवानी महाकाल नाम के गांव में चले गये। वहां सुबह सुबह वे बच्चों के साथ पूरे गांव की झाड़ू लगाया करते थे और खुद याद करते हैं कि खुद चक्की पर अपना अनाज पीसते थे। गांव की कई औरते भी अनाज रख देती थी उसे भी पीस देते थे। राजनैतिक लोगों को लगने लगा कि बंदा चुनाव क्षेत्र बना रहा है। मगर प्रभाष जी पत्रकारिता के लिए बने थे। यहां यह याद दिलाना जरुरी है कि संत बिनोवा भावे के सामने चंबल के डाकुओं ने पहली बार जो आत्मसमर्पण 1960 में किया था उसके सहयोगी कर्ताओं में से प्रभाष जी भी थे और हमारे समय के सबसे सरल लोगों में से एक अनुपम मिश्र भी।
प्रभाष जी इंदौर से निकले और दिल्ली आ गये और गांधी शांति प्रतिष्ठान में काम करने लगे। एक पत्रिका निकलती थी सर्वोदय उसमें लगातार लिखते थे। गांधी शांति प्रतिष्ठान के सामने गांधी निधि के एक मकान में रहते थे। रामनाथ गोयनका खुद घर पर उन्हे बुलाने आये। प्रभाष जी ने उन्हे साफ कह दिया कि वे बंधने वाले आदमी नहीं हैं। मगर रामनाथ गोयनका भी बांधने वाले लोगों में से नहीं थे । वे अपनाने वाले लोगों में से थे। प्रभाष जोशी और रामनाथ गोयनका ने एक दूसरे को अपनाया और सबसे पहले प्रजानीति नामक साप्ताहिक निकाला और फिर जब आपातकाल का टंटा हो गया तो आसपास नाम की एक फिल्मी पत्रिका भी निकाली। क्रिकेट के उनके दीवानेपन के बारे में तो खैर सभी जानते ही हैं । वे जब टीवी पर क्रिकेट देख रहे हों तो आदमी क्रिकेट देखना भूल जाता है। फिर तो प्रभाष जी की अदाएं देखने वाली होती है। बालिंग कोई कर रहा है, हवा में हाथ प्रभाष जी का घूम रहा है। बैटिंग कोई कर रहा है और प्रभाष जी खड़े होकर बैट की पोजीशन बना रहे हैं। कई विश्वकप खुद भी कवर करने गये। कुमार गंधर्व जैसे कालजयी शास्त्रीय गायक से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी तक से दोस्ती रखने वाले प्रभाष जोशी के सामाजिक और वैचारिक सरोकार बहुत जबरदस्त हैं औऱ उनमें वे कभी कोई समझौता नहीं करते। जनसत्ता का कबाड़ा ही इसलिए हुआ कि प्रभाष जी उस पाखंडी कांग्रेसी विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में गैर कांग्रेसी सरकार बनाने में जुटे हुए थे। इसके पहले जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में शरीक थे और जे पी जिन लोगों पर सबसे ज्यादा भरोसा करते थे उनमें से एक हमारे प्रभाष जी थे।
प्रभाष जी ने जिंदगी भी आंदोलन की तर्ज पर जी। आखिर अपना वेतन बढ़ने पर शर्मिंदा होने वाले और विरोध करने वाले कितने लोग होंगे। जिस जमाने में दक्षिण दिल्ली और निजामुद्दीन में रहने के लिए पत्रकारों में होड़ मचती थी उन दिनों उन्हे भी किसी अभिजात इलाके में रहने के लिए कहा गया मगर वे जिंदगी भर यमुना पार रहे और अब तो गाजियाबाद जिले में घर बना लिया है। आष्टा से इंदौर होते हुए गाजियाबाद का ये सफर काफी दिलचस्प है। मगर जो आदमी भोपाल जाकर सिर्फ वायदों के भरोसे दैनिक अखबार निकाल सकता है और वहां खबर लाने वाले चपरासी का नाम पहले पन्ने पर संवाददाता के तौर पर दे सकता है और अखबार बंद न हो जाय इसलिए अपनी मोटरसाइकिल बेच सकता है, पत्नी के गहने गिरवी रख सकता है वह कुछ भी कर सकता है। लेकिन ऐसे लोग कम होते हैं। सब प्रभाष जोशी नहीं होते जो जिसे सही समझते हैं उसके लिए अपने आपको दांव पर लगा देते हैं। यह उनकी चकित करने वाली विनम्रता है कि वे कहते हैं कि दिल्ली में आकर वे कपास ही ओटते रहे। यही उनकी प्रस्तावित आत्मकथा का नाम भी है। हिंदी पत्रकारिता का इतिहास दूसरे ढ़ंग से लिखा जाता अगर प्रभाष जोशी, राजेंद्र माथुर और उनके बाद की पीढ़ी में उदयन शर्मा और सुरेंद्र प्रताप सिंह पैदा नहीं हुए होते ।
ये प्रभाष जी का ही कलेजा हो सकता है कि पत्रकारिता में सेठों की सत्ता पूरे तौर पर स्थापित हो जाने के बाद भी वे मूल्यों की बात करते हैं और डंके की चोट पर करते हैं। अखबार मालिक या संपादक दलाली करें, पैसे लेकर खबरें छापे ये सारा जीवन सायास अकिंचन रहने वाले प्रभाष जी को मंजूर नहीं। इसके लिए वे दंड लेकर सत्याग्रह करने को तैयार हैं और कर भी रहे हैं। इन दलालों में से कुछ नये प्रभाष जी की नीयत पर सवाल उठाया है लेकिन वे बेचारे यह नहीं जानते कि प्रभाष जी राजमार्ग पर चलने वाले लोगों में से नहीं हैं और बीहड़ों में से रास्ता निकालते हैं। उन्होने सरोकार को थामकर रखा है और जब सरकारें उन्हे नहीं रोक पायी तो सरकार से लाइसेंस पाने वाले अखबार मालिक और उनके दलाल क्या रोकेंगे।
आखिर में प्रभाष जी को जन्मदिन की बधाई के साथ याद दिलाना है कि आप समुद्र थे, समुद्र हैं लेकिन अपन जैसे लोगों की अंजुरी में जितना आपका आशीष समाया उसी की शक्ति पर जिंदा हूं।
Thursday, July 16, 2009
.........................किताबे...............
Monday, July 13, 2009
देख तमाशा छत्तीसगढ़ का
Wednesday, July 8, 2009
आम बजट और आम आदमी....
राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार योजना की सफलता से तो सरकार इतनी खुश हुई... कि साल 2008-09 के बजट के मुकाबले नरेगा के लिए 144% ज़्यादा धनराशि 39,100 करोड़ रुपए आवंटित कर दी...तो शहरी और ग्रामीण दोनो ही इलाकों के गरीबों के लिए 3 रुपए प्रति किलो की दर से 25 किलो अनाज मासिक देने की घोषणा कर दी...भारत निर्माण योजना के लिए वित्त मंत्री ने आवंटन 45% बढ़ा दिया तो राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना के लिए 7000 करोड़ रुपए देने की घोषणा कर दी
गरीबों के लिए आवास संबंधी सुविधाएं बढ़ाने के लिए इंदिरा आवास योजना को 8,800 रुपए कर दिया गया तो ग्रामीण आवास योजनाओं के लिए 2000 करोड़ रुपए दिए गए...अनुसूचित जातियों की बहुलता वाले ग्रामों के लिए प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना शुरु की जाएगी....ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत निर्धन परिवारों को व्यावसाय हेतु सब्सिडी आधारित ऋण दिया जाएगा....और 2014-15 तक सरकार 50% गरीबी उन्मूलन के लक्ष्य पर काम करेगी...इसके अलावा महिला सशक्तिकरण के लिए स्व सहायता समूहों को बढ़ावा देने के अलावा राष्ट्रीय महिला कोष को 100 करोड़ सो बढ़ा कर 500 करोड़ किया जाएगा...और महिला सक्षरता के लिए राष्ट्रीय महिला साक्षरता मिशन शुरु किया जाएगा
शिक्षा को आसान करने के लिए बजट आर्थिक रुप से कमज़ोर छात्रों के लिए ब्याज मुक्त ऋण की व्यवस्था करने की बात करता है...तो अल्पसंख्यक विद्यार्थियों के लिए राष्ट्रीय फैलोशिप स्कीम की भी योजना है...अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के केरल और पश्चिम बंगाल परिसरों के लिए 25-25 करोड़ रुपए... और चंडीगढ़ विश्वविद्यालय के लिए 50 करोड़ रुपए के अनुदान की घोषणा की गई
आर्थिक सर्वे की अनुशंसा को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन में 257 करोड़ रुपये आवंटन बढ़ा है...तो गरीबी रेखा से नीचे के सभी परिवारों को राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के अंतर्गत लाने का वायदा किया गया...इसके लिए भी 350 करोड़ रुपए आवंटित किए गए...इसके अलावा 12-18 महीनों में यूनीक आईडी के आवंटन को शुरु करने और सार्वजनिक सेवाओं के वितरण को सुधारने की बात कही गई यही नहीं बजट हर साल १।2 करोड़ नौकरी देने का लक्ष्य रखने की बात करता है...
वित्त मंत्री ने कहा कि केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के लिए एक लाख आवास बनेंगे...हर राज्य में एक केंद्रीय विश्वविद्यालय होगा...आईआईटी और एऩआईटी के लिए 2,113 करोड़ रुपए दिए जाएंगे....उच्च शिक्षा के लिए 2000 करोड़ रुपए ज़्यादा आवंटित किए जाएंगे...श्रीलंका से विस्थापित तमिलों के लिए 500 करोड़ रुपए दिए जाएंगे और आइला से प्रभावित लोगों लिए भी 1000 करोड़ रुपए दिए जाएंगे...कुल मिलाकर सरकार बजट आर्थिक सर्वेक्षण में दिए गए ज़्यादातर सुधारों पर सरकार अमल करने के मूड में दिख रही है लेकिन एक बड़ा सवाल ये है की इन उपायों को कैसे लागू किया जाएगा....और प्राथमिक शिक्षा के स्टार को लेकर सरकार अभी भी गंभीर क्यूँ नहीं है.....
Saturday, July 4, 2009
दीदी की रेल.....
- असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले और 1500 रुपए मासिक आमदनी वाले लोग 25 रुपए में 100 किलोमीटर तक की यात्रा के लिए मासिक पास जारी किया जाएगा
- ममता बनर्जी ने 'तुरंत' नाम की एक रेल सेवा शुरू करने की घोषणा की है, जो एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन तक बिना कहीं रुके पहुँचेगी। इस योजना के तहत 12 ट्रेनें चलाई जाएँगी
- रेल मंत्री ने 57 नई ट्रेन चलाने की घोषणा की
- ममता बनर्जी ने तत्काल स्कीम के तहत स्लीपर क्लास में टिकट ख़रीदने का अतिरिक्त शुल्क 150 रुपए से घटाकर 100 रुपए कर दिया है। इसके अलावा अब पाँच दिन की बजाए दो दिन पहले तत्काल के तहत टिकट ख़रीदे जा सकेंगे
- 50 स्टेशनों को विश्व स्तरीय बनाने के लिए चुना गया है और इसमें निजी कंपनियों की भी सहायता ली जाएगी।
- लंबी दूरी की ट्रेनों में डॉक्टर तैनात किए जाएँगे।
- बंगाल के काचरापाड़ा में रेलवे कोच फ़ैक्टरी बनाई जाएगी।
दिल्ली-चेन्नई के बीच सुपर फ़ास्ट पार्सल एक्सप्रेस सर्विस.
18 हज़ार माल डब्बे ख़रीदे जाएँगे.
फल, सब्ज़ी के लिए रेलवे कोल्ड स्टोरेज की संख्या बढ़ाई जाएगी.
ईस्टर्न कॉरिडोर के लिए विशेषज्ञ समिति.
रेलवे के कुछ अस्पतालों को मेडिकल कॉलेज बनाया जाएगा.
मान्यता प्राप्त पत्रकारों को टिकट लेने में अब 30 की जगह 50 फ़ीसदी की छूट मिलेगी
कोलकाता मेट्रो का विस्तार किया जाएगा
इस बजट को एक ओर जहां तमाम विशेषज्ञ जल्दबाज़ी में तैयार और बिना सिर पैक का केवल लुभावना बजट बता रहे हैं तो जनता तो इससे खुश है ही...आप क्य सोचते हैं वो भी बताएं....
स्रोत एवं सहायता-बीबीसी हिंदी
Wednesday, July 1, 2009
आज पहली तारीख है....
तो आगे की पंक्तियां गुनगुनाएं और पहली तारीख का इंतजार करें...
दिन है सुहाना आज पहली तारीख है - २
खुश है ज़माना आज पहली तारीख है
पहली तारीख अजी पहली तारीख है
बीवी बोली घर ज़रा जल्दी से आना,जल्दी से आना
शाम को पियाजी हमें सिनेमा दिखाना,
हमें सिनेमा दिखाना करो ना बहाना
हाँ बहाना बहाना करो ना बहाना
आज पहली तारीख है
खुश है ज़माना आज पहली तारीख है
मिलजुल के बच्चों ने बापू को घेरा,
बापू को घेरा
कहते हैं सारे की बापू है मेरा,
बापू है मेराखिलौने ज़रा लाना,
खिलौने ज़ला लाना आज पहली तारीख है
खुश है ज़माना ... आज पहली तारीख है...
नितिन शर्मा
ज़ी २४ घंटे छत्तीसगढ़