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Sunday, July 26, 2009

कलह ने किया कमजोर...................


"अस्सी पार के इस पड़ाव में आडवाणी का सक्रिय राजनीती में बने रहना एक त्रासदी की तरह है...|क्युकि पार्टी मेंजितना योगदान उनको देना था वह दे चुके ...|अब उनकी रिटायर मेंट की एज हो गई है... बेहतर होगा वह अबआराम करे और युवा पीड़ी के हाथ कमान सौप दे.... पर आडवानी का बने रहना यह बताता है भाजपा का संकटअभी खत्म नही हुआ है .......|"
ऊपर का यह बयान भाजपा की सूरते हाल को सही से बताने के लिए काफ़ी है ...|यह बयान कभी भाजपा के थिकटेंक की रीद रहे के एन गोविन्दाचार्य का है जिन्होंने लंबे अरसे से भाजपा को करीब से देखा है ...|वर्तमान में वहभाजपा छोड़ चुके है और राष्ट्रीय स्वाभिमान आन्दोलन के संयोजक भी है ...| भाजपा में आज कुछ भी सही नही चलरहा है...| अनुशासन के नाम पर जो पार्टी अपने को दूसरो से भिन्न मानती थी आज वही अनुशासन पार्टी को अन्दरसे कमजोर कर रहा है...| चारो ओर हताशा का माहौल है ...| उनतीस सालो के लंबे इतिहास में यह पहला संकट हैजब पार्टी में व्यक्ति की लड़ाई अहम हो गई है...|
पार्टी में अभी भारी उथल पुथल मची हुई है ...|वर्तमान दौर ऐसा है जब भाजपा के पास अपने अस्तित्व को बचानेकी गहरी चुनोती है॥| उसके पुराने मुद्दे वोटरों पर अपना असर नही छोड़ पा रहे है...|इसी कारण पार्टी अभी "बेकगेयर " में चल रही है ...| हमारे देश का युवा वोटर जिसकी तादात तकरीबन ६५ फीसदी है वह राहुल गाँधी के " हाथपर मुहर लगाना पसंद करता है ....|परन्तु वह ८१ के पड़ाव पर खड़े आडवाणी को प्रधान मंत्री की कुर्सी पर नहीदेखना चाहता है॥| यह सवाल भाजपा के लिए निश्चित ही खतरे की घंटी है...|अतः ऐसे में पार्टी को आडवानी परनिर्भरता को छोड़ किसी दूसरे नेता को आगे करने पर विचार करना चाहिए..|परन्तु लोक सभा चुनाव निपटने केबाद अभी भी भाजपा आडवानी का विकल्प नही खोज पारही है यह अपने में एक चिंता जनक बात है...|
हमको तो समझ से परे यह बात लगती है आडवानी ने चुनावो से पहले यह कहा था अगर वह इस बार पी ऍम नहीबन पाये तो राजनीती से सन्यास ले लेंगे....लेकिन अभी तक आडवानी कुर्सी से चिपके हुए है..|उनके माथे पर हारकी कोई चिंता नजर नही रही है ...| फिर से रथ यात्रा की तैयारिया की जाने लगी है...|
पार्टी में बहुत से नेता हार का दोष आडवानी को दे रहे है...|पर आडवानी की माने तो "जब पार्टी जीतती है तो यहसभी की जीत होती है हारती है तो यह भी सभी की हार होती है "...| अब साहब इस बयान के क्या अर्थ निकाले? मतलब साफ है अगर भाजपा इस चुनाव में हारी है तो सिर्फ़ उनके कारण नही...|आडवानी की "मजबूत नेतानिर्णायक सरकार " कैम्पेन के रणनीतिकार सुधीन्द्र कुलकर्णी ने भी अपने एक लेख में उनको बचाया हैकुलकर्णी ने भी हार का ठीकरा अन्य नेताओ के सर फोड़ा है...|
साफ़ है पराजय के बाद भी आडवाणी हार मानने को तैयार नही है...| तभी तो चुनाव में भाजपा की भद्द कराने केबाद आडवानी ने अपनी पसंद के लोगो को मनचाहे पदों में बैठाने में कोई कसर नही छोडी...| लोक सभा में उपनेताके तौर पर सुषमा की ताजपोशी ओर राज्य सभा में जेटली को पुरस्कृत कर आडवाणी ने अपनी मंशा जता दी है॥हार नही मानूंगा... सिक्का तो मेरा ही चलेगा..........|
आडवानी की मंशा है अभी ज्यादा से ज्यादा लोगो को उनकी मर्जी से महत्वपूर्ण पदों में बैठाया जाए...|यही नही अगर सब कुछ ठीक रहा तो राजनाथ के बाद "अनंत कुमार " पार्टी के नए प्रेजिडेंट हो सकते है...|पर हमारी समझ अनुसार अभी आडवानी को २०१४ के चुनावो के लिए पार्टी को एकजुट करने पर जोर देना चाहिए...| साथ ही उन कारणों पर मंथन करना चाहिए जिनके चलते पार्टी की लोक सभा चुनावो में करारी हार हुई..|अभी महीने पहले हुईभाजपा की रास्ट्रीय कार्य समिति की बैठक में हार के कारणों पर कोई मंथन नही किया गया...| निष्कर्ष निकला "दिन चले अदाई का कोस"......| वहाँ भी एक दूसरे पर टीका टिप्पणी जमकर हुई.....|पर हार के कारणों पर कोई मंथन नही हुआ.........|
भाजपा को यह समझना चाहिए इस चुनाव में आतंरिक कलह ने उसको अन्दर से कमजोर कर दिया....| राजनाथ के साथ आडवानी का ३६ का आंकडा जगजाहिर था साथ में पार्टी के कई बड़े नेता उनको प्रधान मंत्री पद की कुर्सी परबैठते नही देखना चाहते थे...|चुनावी प्रबंधन सही से हो पाने के चलते पार्टी की करारी हार हुई.....|गौर करने लायक बात यह है आज भाजपा में वह जोश नही है जो अटल बिहारी वाजपेयी जी के दौर में था ...|उस दौर में पार्टीमें एकजुटता थी .....| पर आज पार्टी में पञ्च सितारा संस्कृति हावी हो चुकी है...| पार्टी अपने मूल मुद्दों से भटक गईहै...| सत्ता की मलाई चाटते चाटते पार्टी इतनी अंधी हो गई है "हिंदुत्व " और एकात्म "मानवता वाद " रद्दी की टोकरी में चले गए है...|आज पार्टी यह तय नही कर पा रही है किस विचारधारा में चलना उसके लिए सबसे अच्छाहै...| संघ के साथ रिश्ते बनाये रखे या उससे अपने रिश्ते तोड ले इस पर पार्टी में कलह मचा हुआ है...|
पार्टी यह नही समझ पा रही है की उसका हिंदुत्व किस तरह का है? परन्तु संघ की काली छाया से पार्टी अपने को मुक्त कर लेगी ऐसा मुश्किल दिखाई देता है ..|भाजपा को इस बात को समझना चाहिए अब समय गया है जब वह किसी नए नेता का चयन करे और बूडे नेताओ पर अपनी निर्भरता को छोड़ दे...|युवा देश की सबसे बड़ी ताकतहै ... २०१४ में कांग्रेस से राहुल गाँधी पी ऍम पद की दौड़ में आगे रहेंगे.... पर भाजपा अपना नया लक्ष्मण नही खोज पा रही है ......| २००४ की तरह इस बार की हार को पार्टी नही पचा पा रही है.....| तभी तो हार के बाद भी अरुण शोरी, यशवंत सिन्हा अपनी वाणी पर लगाम नही लगा पा रहे है ...|
भाजपा की ग्रह दशा इस समय सही नही चल रही है....|सादे साती की यह दशा पार्टी में लंबे समय तक बने रहने काअंदेशा बना हुआ है...| सभी ने जेटली के ख़िलाफ़ मोर्चा खोला हुआ है..|एक तरफ़ आडवानी के प्रशंसको की लॉबीखड़ी है तो दूसरी तरफ़ राजनाथ के प्रशंसको की कतार ....| एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिशे जारी है..| कहाँ तो हार की समीक्षा होनी चाहिए थी पर एक दूजे को कुर्सी से बेदखल करने की मुहिम पार्टी में चल पड़ी है...|पार्टी मेंहर नेता अपने को बड़ा समझने लगा है....| और तो और अपने आडवानी बुदापे में ओबामा जैसा बनने की चाहतफिर से पालने लगे है.... ऐसे में पार्टी की खराब हालत कैसे सुधार जायेगी?
इन हालातो में पार्टी में किसी युवा नेता की खोज दूर की कौडी लगती है ...|अगर ऐसा ही रहा तो पार्टी अपने झगडो में ही उलझ कर रह जायेगी..|वैसे इस कलह ने भाजपा को अन्दर से कमजोर कर दिया है और भगवा पार्टी केभीतर पनप रहे असंतोष के लावे को पूरे देश के सामने ला खड़ा किया है ...| इसी कारण लोग अब भाजपा की कथनी करनी समझने लगे है.............

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