एक पूरा साल बीत गया....बीत गए 365 दिन...हर दिन देश के लोगों ने देखा कुछ नया....कुछ अनोखा....और कुछ अलग....साल भर तमाम लोग... तमाम वजहों से चर्चा में आते रहे....पर इनमें से सबकी चर्चा एक जैसी नहीं थी....कुछ तो देश के गौरव के प्रतीक बन गए....पर कुछ देश के दामन पर दाग भी लगा गए....आज हम ऐसी ही कुछ कहानियां लेकर आए हैं....जो साल 2009 में देश के गर्व और शर्म की वजह बनती रहीं....
- इन शर्म और गर्व दोनों की तारीखें एक ही थी....और वक्त में एक महीने का अंतर.....27 सितम्बर को कश्मीर की रुखसाना अपने घर में घुसे एक आतंकी को मार कर मुल्क का गौरव बन गई....तो ठीक एक महीने बाद अक्टूबर की 27 तारीख को देश और देश की व्यवस्था शर्मसार हो गई...जब माओं वादियों ने पश्चिम बंगाल में पूरी की पूरी ट्रेन बंधक बना ली....शर्म और गर्व का नौवां पायदान....27 तारीख इस साल देश के लिए शर्म और गर्व दोनो का सबब बन गई....जी हां दो अलग अलग महीनों की एक ही तारीख अलग अलग मौके की गवाह बन गई....पहला वाकया है 27 सितम्बर का....उस रात जम्मू कश्मीर के राजौरी की रुखसाना कौसर के घर में कुछ आतंकी घुस आए....रात 10 बजे रुखसाना के घर में ज़बर्दस्ती घुसकर इन आतंकवादियों ने पहले उसके भाई और चाचा पर हमला कर दिया.....और फिर उसे मां बाप को मारना पीटना शुरू कर दिया....रुखसाना ने इस मौके पर वो नहीं किया जो कोई और लड़की करती....न वो रोई...न ही चिल्लाई....और न ही दहशत गर्दों के सामने गिड़गिड़ाई....उसने अपने भाई के साथ कर दिया एक आतंकी पर हमला....घायल आतंकी जब भागने लगा तो रुखसाना ने उस पर उसी की ए के 47 से फायर किया....जिसमें आतंकी मारा गया....बाकी आतंकवादी भाग खड़े हुए....और इस तरह कश्मीर की बेटी बन गई देश का गर्व.....लेकिन जहां सितम्बर की 27 तारीख को रुखसाना ने अकेले दम पर आतंकियों से लोहा लिया....तो अक्टूबर की 27 तारीख को एक राज्य की पूरी व्यवस्था माओवादियों के सामने घुटनों पर दिखी....27 अक्टूबर को राजधानी एक्सप्रेस जब दिल्ली से भुवनेश्वर जा रही थी....तो पश्चिम बंगाल में झारग्राम के पास पूरी रेलगाड़ी को ही माओवादियों ने अगवा कर लिया....माओवादी अपने एक गिरफ्तार नेता को छोड़ने की मांग कर रहे थे.... अपनी तरह की इस पहली घटना ने राज्य में कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए....हालांकि माओवादी बाद में खुद ही ट्रेन छोड़ कर चले गए....पर ज़ाहिर है कि माओवादियों से निपटने के दावे शर्म में बदल गए....देश ने देखा कि किस तरह एक राज्य की पूरी सुरक्षा व्यवस्था विफल होकर शर्म बन जाती है....तो दूसरी ओर एक अकेली लड़की हाथ में बंदूक लेकर आतंकियों से भिड़ कर गर्व बन जाती है....
- शर्म और गर्व के क्षण ऐसे भी थे....जब जिन पर गरिमा संभालने की ज़िम्मेदारी थी वो चूकते नज़र आए....और उन्होंने मान बढ़ाया जिनकी पहचान साधारण थी....लखनऊ की 11 साल की युगरत्ना ने दुनिया भर में देश का मान बढ़ाया....तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शर्म अल शेख में साझा बयान से अकेले शर्मिंदगी उठाई.....ये है शर्म और गर्व का साल का आठवां पल.... शर्म का मौका था शर्म अल शेख में....गुट निरपेक्ष देशों के सम्मेलन का.....जहां पहुंचे थे प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह....और फिर वहां हुई पाकिस्तानी प्रधानमंत्री युसुफ़ रज़ा गिलानी और मनमोहन सिंह की मुलाकात....लेकिन मुंबई हमलों के ज़ख्मों से भी प्रधानमंत्री ने कोई सबक नहीं लिया....और बना दिया शर्म अल शेख को देश की शर्म....वहां जारी हुए भारत और पाक के साझा बयान में भारत ने उस दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर कर दिए....जिसमें भारत पर बलूचिस्तान में अस्थिरता फैलाने का आरोप लगाया गया था.....शर्म अल शेख में देश के प्रधानमंत्री ने देश को शर्मसार कर दिया....तो दूसरी ओर देश को एक छोटी सी बच्ची ने अभूतपूर्व गर्व दिया....लखनऊ की ग्यारह साल की युगरत्ना श्रीवास्तव ने इतिहास रच दिया....युगरत्ना को मिला संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में ग्लोबल वॉर्मिंग पर बोलने का मौका....और युगरत्ना ने वहां बराक ओबामा समेत दुनिया भर के नेताओं को सम्मोहित कर दिया....देश ने देखा कि कैसे देश का प्रतिनिधि शर्म का सबब बना तो एक साधारण बच्ची असाधारण गर्व....
- बॉलीवुड दुनिया भर में भारत की एक और विशेष पहचान है....लेकिन इस साल इसकी साख पर एक धब्बा लग गया...और नाम था शाइनी आहूजा....साल भर शाइनी के ज़ख्म बॉलीवुड को सालते रहे....लेकिन दूसरी ओर साल के अंत में महानायक अमिताभ बच्चन ने....पा में अपने अनोखे किरदार और बेजोड़ अभिनय से गर्व बढ़ाया....7वीं शर्म और सातवां गर्व....बॉलीवुड के लिए शर्मिंदगी का ये वो अहसास था जो शायद ने वाले कई सालों में नहीं मिटेगा....फिल्म इंडस्ट्री का एक उभरता हुआ अभिनेता एक ऐसे मामले में फंसा कि जेल जा पहुंचा....और पूरी मुंबई का सर झुक गया....शाइनी आहूजा बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार हुए....शाइनी पर लगाया उनकी ही नौकरानी ने बलात्कार का आरोप....और इन आरोपों का पुष्टि भी हो गई.....शाइनी की इस हरकत ने कर दिया बॉलीवुड समेत देश को शर्मसार....लेकिन दूसरी ओर इसी इंडस्ट्री के एक शख्स ने गौरव पताका भी फहरा दी....और कोई नहीं वो शख्स हैं महानायक अमिताभ बच्चन....अमिताभ ने आर बाल्की की फिल्म पा में प्रोजेरिया से ग्रसित एक बच्चे के किरदार को निभा कर....इतिहास रच दिया....अमिताभ जो उम्र के सातवें दशक में हैं वो इस तरह के किसी किरदार को निभाने वाले दुनिया के अकेले फिल्म अभिनेता हैं.....और तो और उनका अभिनय भी बेजोड़ रहा....अमिताभ ने एक और इतिहास बनाया उन्होंने इस फिल्म में अपने ही बेटे अभिषेक के बेटे का किरदार निभाया....तो एक ओर शाइनी आहूजा की वजह से बॉलीवुड को मिला न मिटने वाला ज़ख्म....तो बिग बी ने दिया बड़ा गौरव....
- शर्म और गर्व के इस तराजू पर छठा भार है धर्म का....एक ओर अपने आश्रम...और अपनी साख पर तमाम विवाद झेल कर धर्म की शर्म बन गए....आसाराम बापू....तो दूसरी ओर दुनिया भर में देसी योग के प्रचार मे जुटे स्वामी रामदेव...बढ़ा रहे थे देश का गौरव.....कहते हैं कि धर्म इंसान को सही राह दिखाता है....और उसका माध्यम होता है गुरु...पर तब क्या जब गुरू होने का दावा करने वाले ही राह भटक जाएं....धर्मगुरू खुद ही अधर्म के दलदल में फंस जाएं....इस साल कुछ ऐसा ही हुआ....धर्मगुरू आसाराम बापू मशहूर से विवादित हो गए....उन पर लग गए हत्या के प्रयास से लेकर हेराफेरी तक के आरोप....ये साल आसाराम बापू के लिए अच्छा नहीं रहा....आसाराम बापू का छिंदवाड़ा आश्रम तो पहले ही दो बच्चों की रहस्यमय मौत को लेकर विवादों में था....लेकिन इस साल उन पर देश भर में न केवल तमाम ज़मीनों पर अवैध कब्ज़े के आरोप लगे....बल्कि दिल्ली और अहमदाबाद में हत्या के प्रयास और अपहरम के मुकदमे भी दर्ज हो गए.....तो दूसरी ओर एक बार फिर गर्व का पर्याय बन गए बाबा राम देव....इस विश्वप्रसिद्ध योगगुरू ने हर साल की तरह इस साल भी दुनिया भर में योग शिविर तो आयोजित किए ही....देश की राजनीति पर भी तीखे कटाक्ष किए....और तो और सीएनईबी से विशेष बातचीत में बाबा रामदेव ने एक व्यापक आंदोलन खड़ा करने.....और राजनीति में अपने प्रतिनिधि उतारने की भी लगभग एक घोषणा सी कर दी....इस तरह से एक जहां एक ओर एक धर्मगुरू पर लगे आरोप धर्म को शर्म बना रहे थे....तो दूसरा धर्मगुरू धर्म का असली मतलब समझा रहा था.....
- हमारे पांचवें पायदान पर है धर्म बन चुका खेल क्रिकेट....मैं खड़ी हूं उस पिच पर जिसने देश को दुनिया भर में शर्मसार किया....कार्बन मोबाइल श्रृंखला के आखिरी मैच में कोटला की पिच इतनी खराब थी....कि मैच रद्द हो गया....दर्शक खाली हाथ लौटे....तो दूसरी ओर इसी साल भारतीय टीम ने टेस्ट रैंकिंग में पहली बार नम्बर वन बनकर....देश का सर गर्व से ऊंचा कर दिया.....20-20 विश्व विजेता टीम इस बार के 20-20 विश्व कप से शुरुआती दौर में ही बाहर हो गई....तो सचिन ने एक बार फिर क्रिकेट के शीर्ष को छुआ.....लेकिन सबसे बड़ा गर्व का मौका तब आया जब भारतीय टीम टेस्ट इतिहास में पहली बार....टेस्ट रैंकिंग में पहले स्थान पर पहुंची....77 साल में पहली बार आए इस मौके ने भारतीय क्रिकेट और भारत दोनो का सिर फख्र से ऊंचा कर दिया.....लेकिन जाते जाते ये साल एक ऐसा अपराधबोध....और शर्मिंदगी दे गया....जो हमेशा सालता रहेगा....दिल्ली के फिरोज़शाह कोटला मैदान में भारत और श्रीलंका की वन डे सीरीज़ का आखिरी मैच.....घटिया पिच के चलते रद्द करना पड़ा....वो भी तब जब मैच की पहली पारी के 24 ओवर खेले जा चुके थे....पिच इतनी खराब थी श्रीलंकाई टीम मैदान से वॉकआउट कर गई.....और मैच रद्द कर दिया गया....डीडीसीए की पिच कमेटी ने इस्तीफा दे दिया.....आईसीसी ने जांच बिठा दी....पर इस सब से भारतीय क्रिकेट की गरिमा को जो ठेस पहुंची वो शर्मनाक है.....क्रिकेट बन गया शर्म और गर्व दोनो का कारण.....
- चौथे नम्बर पर साल 2009 में एक तरफ थे झारखंड के मुख्यमंत्री मधु कोड़ा....जिन पर लगे आय से अधिक सम्पत्ति के आरोपों ने एक बार फिर देश की राजनीति को शर्मिंदा किया....तो दूसरी ओर थे कई उच्च न्यायालयों....और उच्चतम न्यायालय के जज जो अपना सम्पत्ति का ब्यौरा सार्वजिनक कर बन गए देश का गर्व.....इस साल शीर्ष पदों पर रहे लोगों की सम्पत्ति एक तरफ राष्ट्रीय शर्म बन रही थी.....तो दूसरी ओर दुनिया भर में हमारी इज़्ज़त भी बढ़ा ही रही थी....सम्पत्ति शर्म बन गई देश के अपनी तरह के इकलौते मुख्यमंत्री रहे मधु कोड़ा की वजह से.....झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा पर आय से अधिक....बल्कि कहें तो बहुत अधिक सम्पत्ति के आरोप लग गए.....जांच अधिकारियों की मानें तो कोड़ा के पास उनकी आय से कई हज़ार गुना अधिक सम्पत्ति है....आरोप लगते ही कोड़ा की तबीयत बिगड़ गई और वो अस्पताल में भर्ती हो गए....लेकिन जांच अधिकारी भी उनका इंतज़ार करते रहे और बाहर आते ही वो गिरफ्तार हो गए....फिलहाल जांच चल रही है....तो दूसरी ओर देश के कई उच्च न्यायालयों....और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों ने एक ऐसा सराहनीय कदम उठाया...जिससे देश की न्यायपालिका ही नहीं....देश की साख भी पूरी दुनिया में बढ़ गई....न्यायाधीशों ने अपनी सम्पत्ति की सार्वजनिक तौर पर घोषणा की....और बन गए भ्रष्ट नेताओं और अफसरों के लिए एक मिसाल....बढ़ा दिया देश का मान....
- दोनो वरिष्ठ पुलिस अधिकारी....दोनो पर थी कानून व्यवस्था बनाए रखने की ज़िम्मेदारी....लेकिन एक ओर देश की पुलिस को दुनिया भर में शर्मसार कर रहे थे....वरिष्ठ आईपीएस एस. पी. एस राठौर....तो दूसरी ओर छत्तीसगढ़ में एक एसपी विनोद कुमार चौबे नक्सलियों से लड़ते हुए शहीद हो गए....शर्म और गर्व का तीसरा विरोधाभास....देश के हालिया माहौल में बस एक ही आवाज़ चारों ओर से आ रही है....और इस आवाज़ ने देश को शर्मसार भी कर दिया है....आवाज़ है रुचिका को इंसाफ़ दो....ये आवाज़ न केवल देश के पुलिस अधिकारियों के रवैये पर.... बल्कि न्याय व्यवस्था पर सवाल उठाती है....और इस आवाज़ के पीछे छुपी है एक आला पुलिस अधिकारी की करतूत....हरियाणा के पूर्व डीजीपी.....एस पी एस राठौर ने एक 14 साल की लड़की से 19 साल पहले छेड़छाड़ की....केस दर्ज कराने पर उसके परिवार को इतना प्रताड़ित किया गया कि 17 साल की उम्र में उस लड़की ने आत्महत्या कर ली....और अब जब 19 साल बाद आया उस मुकदमे का नतीजा....तो राठौर को मिली सिर्फ 6 महीने की सज़ा....अदालत से बाहर राठौर का मुस्कुराता चेहरा बन गया पूरे देश के लिए शर्म....दूसरी तरफ था एक और आईपीएस अधिकारी....जो तैनात था छत्तीसगढ़ में....और उसकी जांबाज़ी बन गई राठौर जैसे अफसरों के लिए एक सीख....छत्तीसगड़ के राजनांदगांव के एसपी विनोद कुमार चौबे नक्सलियों से भिड़ते हुए शहीद हो गए....12 जुलाई को नक्सलियों के हमले की ख़बर मिलने पर घटनास्थल के लि रवाना हुए एसपी विनोद कुमार चौबे.... रास्ते में हुए हमले में नक्सलियों से लोहा लेते हुए 36 पुलिसकर्मियों के साथ शहीद हो गए.....और बढ़ा गए न केवल पुलिस बल्कि देश का सम्मान....
- दो संवैधानिक पद....दो ज़िम्मेदार ओहदे....लेकिन कितना बड़ा विरोधाभास....एक ओर नारायण दत्त तिवारी...बेहद विवादित सेक्स स्कैंडल में फंस कर राजभवन की गरिमा को तार तार कर रहे थे....तो दूसरी ओर देश की राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल हर दिन देश के सम्मान में इजाफा कर रही थी....दूसरा पायदान.... एक राष्ट्रपति भवन....एक राजभवन....एक देश का संवैधानिक प्रमुख....तो एक राज्य में उसका प्रतिनिधि....एक ने बढ़ा दिया देश का मान...तो एक ने कर दिया राजभवन का मानमर्दन....आंध्र प्रदेश का राजभवन उस वक्त शर्म का राष्ट्रीय प्रतीक बन गया...जब वहां के राज्यपाल नारायण जत्त तिवारी पर बेहद आपत्तिजनक आरोप लगे....आंध्र के एक समाचार चैनल ने दावा किया कि उसने तिवारी का एक स्टिंग ऑपरेशन किया है....और उसमें नारायण दत्त तिवारी कुछ महिलाओं के साथ बेहद आपत्तिजनक अवस्था में नज़र आ रहे हैं....दावा किया गया कि ये दृश्य राजभवन के अंदर के हैं....और आखिरकार इस सेक्स स्कैंडल के बाद तिवारी को इस्तीफा देना पड़ा....लेकिन देश के इतिहास में पहली बार एक राजभवन इस तरह से शर्मसार हुआ...और शर्मसार हुई राजमर्यादा.....एक ओर नारायण दत्त तिवारी पर लगे आरोपों से देश की अस्मिता तार तार हो रही थी....तो दूसरी ओर देश की संवैधानिक प्रमुख राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल रोज़ नए इतिहास रच रही थी....वो न केवल तमाम तरह की सामाजिक गतिविधियों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रही थीं...बल्कि इस उम्र में भी वो कभी आइएनएस विराट पर नज़र आई....तो कभी सुखोई में आसमान की ऊंचाईयों पर दिखाई दीं....एक राज्यपाल ने किया शर्मिंदा....तो राष्ट्रपति ने दिलाया गौरव....
- अब बात साल की सबसे बड़ी शर्म और सबसे बड़े गर्व की....और ये दोनो ही देश के लिए आने वाले दिनों में सबक बनेंगे....दोनो जुड़े हैं हिंदी से....शर्म के क्षण की गवाह बनी महाराष्ट्र की विधानसभा जहां....कुछ बवालियों ने हिंदी को थप्पड़ जड़ दिया....तो गर्व का गवाह बना वो क्षण जब एक युवा सांसद ने मातृभाषा न होने के बाद भी....मंत्रिपद की शपथ हिंदी में ली.....ये है पहला पायदान.... देश की आर्थिक राजधानी मुंबई....मुंबई में महाराष्ट्र विधानसभा....विधानसभा का शपथग्रहण....और फिर....एक थप्पड़....एक हमला....एक प्रहार....एक विधायक पर नहीं बल्कि पूरे देश के सम्मान पर....हिंदी के सम्मान पर....देश ने लोकतंत्र का सबसे काला दिन देखा....और देखा क्षेत्रवाद की राजनीति का सबसे भयानक चेहरा...जब महाराष्ट्र विधानसभा में सपा के विधायक अबू आज़मी के हिंदी में शपथ लेने पर....मनसे के विधायकों ने न केवल हंगामा खड़ा कर दिया....बल्कि अबू आज़मी को इस गलती की सज़ा के तौर पर थप्पड़ भी जड़ दिया....पर थप्पड़ लगा हिंदी के चेहरे पर....पूरे देश के चेहरे पर...लोकतंत्र के चेहरे पर....देवनागरी लिपि में ही लिखी जाने वाली मराठी के नाम पर हिंदी को अपमानित कर दिया गया....ये पल बन गया साल का देश का सबसे शर्मनाक पल....तो दूसरी ओर संसद में एक गर्व का इतिहास रच दिया इस लोकसभा की सबसे कम उम्र की सांसद ने....मिजोरम से एनसीपी सांसद अगाथा संगमा ने मातृभाषा न होने के बावजूद....मंत्रिपद की शपथ हिंदी में ली....न केवल देश भर में प्रशंसा पाई....और हिंदी के मान को स्थापित किया....बल्कि उन लोगों के लिए एक सबक बन गई जो राजनीति के लिए हिंदी का विरोध करते हैं....हिंदी पर थप्पड़ बन गया साल की सबसे बड़ी शर्म.... तो अगाथा संगमा की शपथ बन गई साल का गर्व....
देश किसी एक का नहीं है....देश अलग अलग लोगों और उनकी मेहनत से बनता है....देश अगर गर्व से तनता है तो शर्म से झुकता भी है....लेकिन जब जब देश में कुछ नादान लोग शर्मिंदगी की वजह बनते हैं....तो उसी वक्त कुछ हाथ उठ कर देश का झुकता सर थाम लेते हैं....और ज़ाहिर है शर्म पर हमेशा गर्व की जीत होती है....ये थी साल 2009 की शर्म और गर्व की कहानियां....
(प्रस्तुत आलेख एक कार्यक्रम '9/9 शर्म/' गर्वके तौर पर सीएनईबी समाचार चैनल पर 30 और 31 दिसम्बर को प्रसारित हो चुका है
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