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Saturday, July 18, 2009

रोज़ ही पहली तारीख है

शायद हमारे देश मैं ही ऐसा होता है जब आम आदमी अपनी पगार की ओर बीरबल की खिचडी की तरह टाक लगा कर बैठता है और पगार है की मुई मुट्ठी की रेत की तरह हाथ से फिसल ही जाती है। सरकारी बाबूजो धोखे से भी इमानदार होने की गुस्ताखी कर बैठता है पगार के दिन गरीब गाय की तरह सर झुकाए घर की तरफ़ आता है, और वो बाबू जो मिल्लेनियम का स्मार्ट बाबू है बाज़ार की गाय बन के लौटता है जिसे दुकान वाला लाख भगाए लेकिन वो सब्जी जबड़े मैं दबा के ही लौटती है। लेकिन एक चीज जो दोनों में समान होती है दोनों ही अपना टैक्स मदर इंडिया के सुखिमल बनिए के जैसे मनमाने रेट पर सरकार को चुका कर आते हैं। और सरकार की तरफ़ से सबसे ज्यादा बेरुखी और रुसवाई झेलते हैं चाहें वो पेट्रोल के दाम बढ़ने की बात हो या फिर सब्जी के दाम बढ़ने की। आम आदमी वो बूढा बैल है जिसे किसान ताकत न होते हुए भी मंचे में जोत लेता है और चल बेटा कहकर उकसाता है बैल फिर चलता है। बस यही एक बात थी जिसने मुझे इस बात को लिखने के लिए मजबूर कर दिया जो बात मेरे बड़े भाई नितिन जी ने लिखी उसी को चंद शब्द घुमा फिरा कर कहने को प्रेरित किया की साहब करो न बहाना आख़िर आज पहली तारीख है, पहली तारीख है आम आदमी के सपने की ,पहली तारीख है उस वजह की जिसके कारन भारतीय नारी सदियों से जानी जाती रही है कम पानी में भी नाव को खेकर ले जाने की कला, मोम के घोडे को आग के दरिये से निकलना वो भी एक से एक तारीख तक, लेकिन हमारे देश में हासिये पर पड़े वो लोग भी हैं जिनके लिए पहली तारीख बेमानी है , जिनके लिए हर रोज़ शाम ही जेब में पड़े सत्तर रुपये से दाल चावल रोटी का जुगाड़ करती है और रोज़ शाम को मयखाने में भी दस्तक दे आती है,जो दूसरो के महल बना कर भी कुतिहीन हैं शायद यही बात है की राज़ को राज़ ही रहने दो कोई नाम न दो और कोई बहाना भी मत करना क्योंकि आज पहली तारीख है

1 comment:

  1. पसंद आया आपका आलेख। अंत और बेहतर लगा।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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