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Monday, February 2, 2009

गांधी की टी आर पी

मेरा यह लेख हाल ही में गांधी जी की पुण्यतिथि पर मीडिया की कमज़ोर याददाश्त को लेकर लिखा गया; (देखें http://www.taazahavaa.blogspot.com/ और फिर मीडिया का मोतियाबिंद श्रृंखला में इसे जनसत्ता लखनऊ के अम्बरीश जी ने अपने ब्लॉग विरोध पर प्रकाशित किया ; देखें http://virodh.blogspot.com/2009/01/blog-post_31.html ..)...

मीडिया के अंतर्विरोधों और दोहरे मानदंडो को लेकर विरोध पर लगातार बहस हो रही है ।इसे प्रिंट और टीवी के खेमो में नही बाँटना चाहिए क्योकि प्रिंट में भी कम प्रतिभाशाली लोग नही है .संपादको की परिक्रमा करने वाला तबका अनादी काल से सक्रिय है.इसी कड़ी में एक और लेख.

अंग्रजो से जीते पर टीआरपी से हार गए गाँधी
आज गांधी जी की पुण्यतिथि थी ....अब आप कहेंगे की हम जानते हैं ....तो कैसे मान लें की आप जानते थे ? आपने ना तो उस पर ब्लॉग लिखा...न ही टिप्पणी की और ना ही कुछ और ...फिर क्या सबूत है की आप जानते थे ? अच्छा अच्छा आप जानते थे पर आप भूल गए थे। बहुत बढ़िया फिर मुंबई हमले के बाद से अभी तक नेताओं को क्यों गरिया रहे हो ? कोई हक है क्या ?
खैर आपसे बहस नहीं करनी है और यह बहस का मुद्दा होना भी नहीं चाहिए क्यूंकि जिस भी मुद्दे पर हमारे देश में एक बार बहस शुरू हो जाती है वो फिर बहस में ही जिंदा रह जाता है बाकी ख़त्म हो जाता है। हाँ तो बात कर रहा था मैं बापू की पुण्य तिथि की, आज सुबह से प्रतीक्षा में था की वो मीडिया जिसका मैं हिस्सा हूँ और जो आज का सबसे बड़ा बहस का मुद्दा है; क्या करता है आज के दिन। सुबह अखबार उठाया तो हिन्दुस्तान जो देश का अलमबरदार बनने के दम भरता है उसके पहले पन्ने पर गांधी की एक तस्वीर तक के दर्शन नहीं हुए.....पहला झटका ......बापू का स्कोर ....शून्य पर एक .....दिल निराशा से भर गया, दूसरे पन्ने पर एक सरकारी विज्ञापन था सो मतलब की बापू अगर बिकते हैं तो हैं नहीं तो नहीं......
खैर जैसे तैसे हिम्मत कर के रिमोट उठाया, दूरदर्शन नहीं लगाया .....मालूम था की वो याद रखेगा। सारे चैनल पलट डाले पर कहीं भी कुछ नहीं। इस समय रात हो चली है और अभी तक किसी भी टीवी चैनल ने बापू को याद करने की ज़हमत नहीं उठाई है। हमारे चैनल ने भी नहीं हाँ रात दस बजे के कार्यक्रम की शुरुआत करने के लिए उनको ज़रूर शामिल किया गया । कल ही इंडिया टीवी टी आर पी में सबसे ऊपर पहुँचा है और उनके एक शीर्ष पुरूष जो अब शिखर पुरूष होने के भ्रम में हैं, उन्होंने कहा की यह खबरों की जीत है।
अब मैं भ्रम में हूँ की क्या वाकई गांधी ख़बर नहीं रहे.....या ख़बर अब ख़बर नहीं रही.....क्या पंकज श्रीवास्तव जी मुझसे सहमत हैं....उन्होंने अभी एक लेख लिखा है, और संजीव पालीवाल जी जिन्होंने अभी इलेक्ट्रोनिक मीडिया की ज़िम्मेदारी के ढोल पीटे थे ब्लोगिया बहस में वे क्या बताएंगे कि उनके चैनल ने क्या किया ? .....शायद मैं यह ब्लॉग इसलिए लिख रहा हूँ की मैं चैनल में बहुत छोटे पद पर हूँ और नीति निर्माता नहीं हूँ पर गांधी तो राष्ट्र निर्माता थे उनको भुला दिया......भूल गए कह देने से क्या काम चलेगा ....क्या हम अपनी जिम्मेदारियों को याद रखने का ढोंग करके ख़ुद ही को तो नहीं धोखा देते हैं.....क्या पत्रकारिता केवल बिकाऊ ख़बर है ? फिर ये समाज सेवा का ढोंग क्यूँ ?
यही सवाल अखबार वालों से भी है की क्या अगर आज विज्ञापन नहीं मिलते तो अखबार में गांधी भी नहीं दीखते .........? मैं परेशान हूँ, दुखी भी और कुंठित भी.....मौका मिला तो इसे बदलना चाहूँगा पर क्या मेरे जैसे कथित आदर्शवादी को कोई मौका देगा ? हो सकता है कि मेरे इन विचारों को पढ़ने के बाद मेरे लिए कई चैनलों में नौकरी पाना भी मुश्किल हो जाए।
* आज विभिन्न चैनलों द्बारा प्रसारित कार्यक्रम.....
चांद और फिजा की प्रेम कहानी का सच
आज तक
सुष्मिता बनेंगी झांसी की रानी जी न्यूज़
फिरौती का आयडिया
मामा-भांजे की करतूत
एन डी टीवी इंडिया
बदल गई महब्बत की फिजा आई बी एन सेवेन
राजू श्रीवास्तव को धमकी इंडिया टीवी

अब आप समझ गए होंगे की क्या है गाँधी की टी आर पी
उत्तर की प्रतीक्षा में
(कुछ चैनलों ने गाँधी जी को औपचारिकता निभाने के लिए याद ज़रूर किया पर वह औपचारिकता ही रही १० सेकेण्ड के आस पास.......क्या चाँद मोहम्मद अगर दिन भर के स्लोट के अधिकारी थे तो राष्ट्रपिता आधे घंटे के भी नहीं ? मैं यह जानता हूं कि मेरे कई वरिष्ठ साथियों को यह शायद पसंद न आए पर यह सच है और मुझे लगता है कि अपनी ग़लतियां मानने और कमियां पहचानने को साहस एक सच्चे पत्रकार में ही हो सकता है)

मयंक सक्सेना
लेखक जी न्यूज़ से जुड़े है .

1 comment:

  1. बिल्‍कुल सही जगह ध्‍यान आकृष्‍ट करवाया आपने....अच्‍छा आलेख रहा।

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