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Saturday, January 31, 2009
वसंत पंचमी....और निराला
जो पर्व है प्रेम का....(शायद इसीलिए इसी माह में विदेशी प्रेम दिवस 'वैलेंटाइन डे' और देसी वसंतोत्सव सभी पड़ते हैं। वसंत के लिए महादेवी वर्मा कहती हैं,
मैं ऋतुओं में न्यारा वसंत
मैं अग जग का प्यारा वसंत
खैर बात होती है तो वसंत पंचमी की तो याद आते हैं निराला .......महाप्राण ! वाकई महाप्राण ........ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म भी माना जाता है कि इसी दिन हुआ था .....और हुआ हो या ना ये मस्त औघड़ अपना जन्मदिन इसी दिन मनाता था। साहित्य को निराला जैसा कुछ भी शायद ही किसी और ने दिया हो। मैं तो उस व्यक्तित्व से इतना प्रभावित था कि काफ़ी दिनों तक उसी शैली में कवितायें लिखता रहा.....प्रेम हो या समाज या फिर भक्ति, निराला की शैली ही निराली थी.....श्रृंगार देखें जब वे कहते हैं कि,
बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु!
पूछेगा सारा गाँव, बंधु!
यह घाट वही जिस पर हँसकर,
वह कभी नहाती थी धँसकर,
आँखें रह जाती थीं फँसकर,
कँपते थे दोनों पाँव बंधु!
वह हँसी बहुत कुछ कहती थी,
फिर भी अपने में रहती थी,
सबकी सुनती थी, सहती थी,
देती थी सबमें दाँव, बंधु!
समाज की बात की तो भिक्षुक की आंखों से ऐसा चित्र खींच दिया कि दर्द कागज़ पर छलक आया, दिखी समाज की विडम्बना.....
चाट रहे जूठी पत्तल वे सभी सड़क पर खड़े हुए,
और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए!
खैर निराला पर पूरी बात किसी और दिन जब उनके लखनऊ प्रवास की भी चर्चा होगी पर अभी मुद्दे की बात.....आज वसंत पंचमी है और मेरा व्यक्तिगत तौर पर यह मानना है कि सरस्वती वंदना जो निराला ने लिखी थी वह सर्वश्रेष्ठ वंदना है....सो उसे पढ़ें और गुनगुनाएं....
वीणा वादिनि
वर दे, वीणावादिनि वर दे।
प्रिय स्वतंत्र रव,
अमृत मंत्र नव
भारत में भर दे।
काट अंध उर के बंधन स्तर
बहा जननि ज्योतिर्मय निर्झर
कलुष भेद तम हर प्रकाश भर
जगमग जग कर दे।
नव गति नव लय ताल छंद नव
नवल कंठ नव जलद मन्द्र रव
नव नभ के नव विहग वृंद को,
नव पर नव स्वर दे।
वर दे, वीणावादिनि वर दे।
वसंत पंचमी की शुभकामनाएं.......
मैंने गांधी को मारा है.....
Friday, January 30, 2009
युगावतार गांधी....
पड़ गई जिधर भी एक दृष्टि,
पड़ गये कोटि दृग उसी ओर;
जिस पर निज मस्तक झुका दिया,
हे कोटि मूर्ति, तुमको प्रणाम!
तुम अचल मेखला बन भू की,
तुम मौन बने, युग मौन बना
कुछ कर्म तुम्हारे संचित कर,
युग कर्म जगा, युगधर्म तना।
युग-निर्माता, युग-मूर्ति! तुम्हें,
Wednesday, January 28, 2009
दो दो हिंदुस्तान
केव्स संचार पर हम लगातार देश की हालातों पर चर्चा करते है तो आज सोचा की क्यों ना लम्बी चर्चा की जगह एक कविता जो गुलज़ार ने लिखी है और मुझे बहुत पसंद है वो पेश कर दी जाए.....तो इस स्वाद चखें
हिंदुस्तान में दो दो हिंदुस्तान दिखाई देते हैं
एक है जिसका सर नवें बादल में है
दूसरा जिसका सर अभी दलदल में है
एक है जो सतरंगी थाम के उठता है
दूसरा पैर उठाता है तो रुकता है
फिरका-परस्ती तौहम परस्ती और गरीबी रेखा
एक है दौड़ लगाने को तय्यार खडा है‘
अग्नि’ पर रख पर पांव
उड़ जाने को तय्यार खडा है
हिंदुस्तान उम्मीद से है!
आधी सदी तक उठ उठ कर
हमने आकाश को पोंछा है
सूरज से गिरती गर्द को छान के
धूप चुनी है
साठ साल आजादी के…
हिंदुस्तान अपने इतिहास के मोड़ पर है
अगला मोड़ और ‘मार्स’ पर पांव रखा होगा!!
हिन्दोस्तान उम्मीद से है॥
Tuesday, January 27, 2009
२६ जनवरी
२६ जनवरी
कड़की है भड़की है मंहगाई भुखमरी
चुप रहो आज है छब्बीस जनवरी
कल वाली रेलगाडी सभी आज आई हैं
स्वागत में यात्रियों ने तालियाँ बजाई हैं
हटे नही गए नहीं डरे नही झिड़की से
दरवाज़ा बंद काका कूद गए खिड़की से
खुश हो रेलमंत्री जी सुन कर खुशखबरी
चुप रहो आज है छब्बीस जनवरी
राशन के वासन लिए लाइन में खडे रहो
शान मान छोड़ कर आन पर अडे रहो
नल में नहीं जल है तो शोर क्यो मचाते हो
ड्राई क्लीन कर डालो व्यर्थ क्यो नहाते हो
मिस्टर मिनिस्टर की करते क्यो बराबरी
चुप रहो आज है छब्बीस जनवरी
वेतन बढ़ाने को कान मत खाइए
गुज़र नहीं होती तो गाज़र चबाइए
रोने दो बाबू जी बीबी अगर रोती है
आंसू बह जाने से आँख साफ़ होती है
मिस्टर मिनिस्टर की करते क्यो बराबरी
चुप रहो आज है छब्बीस जनवरी
छोड़ दो खिलौने सब त्याग दो सब खेल को
लाइन में लगो बच्चो मिटटी के तेल को
कागज़ खा जाएंगी कापिया सब आपकी
तो कैसे छपेंगी पर्चियां चुनाव की
पढ़ने में क्या रखा है चराओ भेड़ बकरी
चुप रहो आज है २६ जनवरी
- काका हाथरसी
Sunday, January 25, 2009
वर्ण और हित
Saturday, January 24, 2009
आखिर कयों न हो जै-जै ओबामा वरुण जी..
वरुण जी ये तो रही ओबामा और उनके अमेरिका की बात.. अब हम कुछ अपनी बात भी कर लें.. आखिरकार हम क्यों न ओबामा की महिमा का गुणगान करें.. क्योंकि हमें भी अमेरिका की ही तरह चरण वंदना करने की आदत भी ब्रिटिश हुकूमत से विरासत में मिली थी.. कयोंकि आज भी हमारे नेता सार्वजनिक सभाओं में लोगों से चरण स्पर्श करवाने में गर्व की अनुभूति किया करते हैं..
वरुण जी अब मैं सीधे निष्कर्ष पर आ जाता हूं.. हमें कुछ बातें अमेरिका से सीखनी चाहिए.. वह देश काफी बदल गया है.. अब वह चरण वंदना करता नहीं बल्कि करवाता है.. लेकिन हम....... छोड़िए.. मैं यह नहीं कहता कि हमें अमेरिका जैसा बन जाना चाहिए.. मैं यह नहीं कहता कि हमें ओबामा के आवेग में पूरी तरह से बह जाना चाहिए.. लेकिन मैं यह जरुर कहता हूं कि हमें भी एक ऐसा ही ओबामा अपने देश में ही चाहिए.. जो देश में मौजूद तमाम सामाजिक दायरों को पाट दे.. और जरुरत पड़े तो सदियों के इतिहास को भी पलट दे..
बस आज इतना ही
नेताजी सुभाष के लिए
जै-जै हे ओबामा.......
Thursday, January 22, 2009
shant
Wednesday, January 21, 2009
सत्य से स्वप्न तक.....किंग से ओबामा तक
मार्टिन लूथर किंग के आन्दोलन के विषय में मैं एक पोस्ट में पहले ही कह चुका हूँ पर आज बात करेंगे कि यह सब महत्वपूर्ण क्यों है.....दरअसल हम सब पिछले कुछ समय से यह चिंता और विमर्श कर रहे हैं कि भारत या दुनिया पर इसका क्या असर पड़ेगा .....क्या ओबामा भारत का साथ देंगे या पाकिस्तान के साथ खड़े हो जायेंगे। पर ओबामा ने अपने कल के भाषण में एक बड़ी महत्वपूर्ण और प्रासंगिक बात की कि हमें नफरत को ख़त्म करना है। दरअसल यही मूल मंत्र है क्यूंकि जब तक नफरत ख़त्म नहीं होती किसी भी तरह के आतंकवाद को ख़त्म नही किया जा सकता ना ही यह कोई दीर्घकालिक उपाय है।
वस्तुतः यह मूलमंत्र उस पीड़ा से उपजा है जो कभी कबार ओबामा और सदियों तक उनके पूर्वजों ने सही है, जो नफरत और तिरस्कार गौर वर्णों की आंखों में उन्हें दीखता रहा उससे। और वे जानते हैं कि किसी भी समस्या को तात्कालिक नहीं दीर्घकालिक उपायों की ज़रूरत है। इन सब बातों से हटकर अगर देखें तो यूरोप से अलहदा जितने भी देश हैं जहाँ के लोगों की चमड़ी का रंग गोरा नहीं है उनकी तादाद दुनिया में सबसे ज्यादा है और ये परिवर्तन उनके लिए है। ओबामा ने शायद इसके लिए ही अपने भाषण में कहा, "अमरीका ईसाइयों, मुसलमानों, यहूदियों, हिंदुओं और नास्तिकों का भी देश है, इसे सबने मिलकर बनाया है, इसमें सबका योगदान है, अमरीका की नीतियों को हम हठधर्मी विचारों का गुलाम नहीं बनने देंगे."
परिवर्तन जो वहाँ हुआ है एक प्रेरणा स्रोत बनेगा उनके लिए और अब दुनिया के और कोनो में अंगडाई लेगा। ये सब जानते हैं कि परिवर्तन जब अंगडाई लेता है तो होके ही रहता है। ये शुरुआत है सर्वहारा में उत्साह और आत्मविश्वास भरने की। ये बदलाव है जब लोग अपनी स्थिति को और सम महसूस करंगे ......ये जीत है उस सपने की जो मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने देखा था और कहा था," आई हैव अ ड्रीम"
ज्यादा दिमाग ना खाते हुए देखिये ये दो वीडियो एक उस सपने का और एक इस हकीकत का,
सपना
हकीकत
(इस वीडियो में आप कई नागरिको की आँखों में आंसू भी देख सकते हैं)
अमरीका ईसाइयों, मुसलमानों, यहूदियों, हिंदुओं और नास्तिकों का भी देश है, इसे सबने मिलकर बनाया है, इसमें सबका योगदान है
२० जनवरी को जन्मे पितामह
Tuesday, January 20, 2009
एक अश्वेत का व्हाइट हाउस सफर
उलेखानिये है की ओबाम अमेरिका के रास्ट्रपति एसे समय बने है जब अमेरिका पुरी तरह से मंदी के चपेट में आ चुका है , अमेरिकी अर्थवयवस्था चरमरा गई है।अमेरिका के कई बैंक दिवालिया घोषित हो चुके है। लोगो को रोजगार से निकाला जा रहा है आदी । निश्चित रूप से ओबाम का पहला कर्तव्य एवं दायित्व बनता है की अमेरिका को मंदी से निकाले और अमेरिकी अर्थवेय्वास्थ को चीन की दिवार के तरह ठोस एवं मजबूत बनाये।
Monday, January 19, 2009
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के सभी पूर्व छात्रों के लिए यह ख़बर है
यूँ तो दीक्षांत समारोह का अंत विधिवत दीक्षा का अंत करना यानी कि डिग्री प्रदान कर देना है पर क्या हम सबके लिए भी इसका बस इतना ही मतलब है...ज़रा सोचिये ?(चैनल का असर है यह!)
दरअसल यह शायद भोपाल छोड़ने के बाद के इतिहास का और आने वाले भविष्य का इकलौता मौका होगा जब हम सब .....वरिष्ठ और कनिष्ठ ...... अग्रज और अनुज ....... और वर्तमान एवं भविष्य एक साथ इकट्ठे होंगे.....सोचिये कितना विहंगम दृश्य होगा.....जब कल पढ़ चुके और आज पत्रकारिता सीख रहे एक साथ होंगे.....ये अवसर शायद दुर्लभ है!
मित्रों यह मौका है पुराने मित्रों से मिलने का....शत्रुओं (हालांकि यह केवल बचपना था) से मित्रता करने का.....गिले शिकवे दूर करने का ....साथ मिल बैठने का! पुराने लम्हों को याद करने का ........ नए किस्से सुनाने का का.....बंधे पिटारे खोलने का और प्यार बिखरा देने का.....हम साथ बैठेंगे, पुराने अनुभव फिर से याद किए जायेंगे...नए अनुभव बांटे जायेंगे .......सबसे बड़ी बात सब एक साथ शायद फिर सरलता से नहीं मिल पाएंगे।
पुरानी शरारतें, चाची की चाय, पोहा जलेबी.....क्लास बंक कर के घूमना, वो बड़ी झील, महावीर पहाडी.....टॉप एंड टाऊन, चाय के साथ सिगरेट, श्रीकांत सर की डांट, संजीव सर की कातिल मुस्कराहट, महावीर सर के असाइंमेंट, बापू सर का गुनगुनाना, तिवारी सर का भोकाल,बाजपेयी सर का सीधापन, लाइब्रेरी कार्ड, हरी और मनोज भइया की सदाशयता, न्यू मार्केट, सिटी, १० नंबर, ७ नंबर.......याद आ रहा है ना सब.....को खां ? अपन को तो सब याद आ रिया है !
जानता हूँ सब लगभग रोज़ याद करते हैं......भोपाल को ! अब एक मौका है...ये गंवाया तो मियाँ जाओगे तो ज़रूर भोपाल पर एक कसक रह जायेगी कि यार सब लोग अपन लोग साथ में आते तो कितना मज़ा आता....को खां ? बस में बैठ कर याद है पूरा भोपाल घूमा था, कई बार किराए को लेकर झिकझिक भी की थी....हकीम भाई की दूकान अभी भी वहीं है पर जायका बंद हो गया है.....तो ऐसा है ज्यादा ना नुकुर ना करें....क्या करना है हम बता रहे हैं.....
- डा अविनाश बाजपेयी को तुंरत फोन लगायें, उनका मोबाइल नंबर है 09425392448
- संभवतः यह कार्यक्रम है 28 फरवरी को सो बाजपेयी जी से बात कर के आरक्षण करा लें (बाध्यता नहीं है, मेरे जैसे लोग अभी भी जनरल डिब्बे में ही सफर करते हैं)
- अपने बाकी सभी साथी जिनके भी संपर्क में हैं उनको ख़बर कर दें।
- बाजपेयी सर आपको एक ई मेल भेजेंगे जिसमे दी गई प्रोफाइल भर के उन्हें तुंरत वापिस ई मेल कर दें या डाक से भेज दें।
- अपने बढ़िया वाले कपड़े तैयार कर लें नई शोपिंग भी की जा सकती है।
- कम से कम दो दिन की छुट्टी ले कर आयें नहीं आने जाने में ही सब वक़्त निकल जायगा मिल के क्या ख़ाक बैठेंगे।
- दफ्तर में अभी से छुट्टी के लिए आवेदन दे दें।
- आने की सूचना बाजपेयी सर को, मुझे (cavssanchar@gmail.com, mailmayanksaxena@gmail.com, mayank.saxena@zeenetwork.com), हिमांशु को (kavi.him@gmail.com) अथवा अपने किसी पुराने साथी को जो वहाँ पहले से मौजूद हों उन्हें दे दें.....हमारा प्रयास रहेगा कि हम रेलवे स्टशन पर मौजूद रहे। (हालांकि मैं ख़ुद नॉएडा से वहाँ पहुंचूंगा)
- और किसी सहायता के लिए इन मोबाइल नंबरों पर या ई मेल पर संपर्क करें,
- डा अविनाश बाजपेयी (प्लेसमेंट अधिकारी) : 09425392448 (mcuconvocation@yahoo.co.in)
- डा श्रीकांत सिंह (विभागाध्यक्ष, केव्स) : 09424412772 (अभी तक ई मेल आई डी नहीं है)
- मुझे मतलब मयंक सक्सेना को : 09310797184 ( mailmayanksaxena@gmail.com, mayank.saxena@zeenetwork.com)
- देविका छिब्बर को : 09310953590 (devikachhibber@gmail.com)
- अजीत कुमार को : 09990753296 (kumarajeet20@gmail.com)
- हिमांशु बाजपेयी को : 009981907330/09415433093 (kavi.him@gmail.com)
तो तैयार हो जाइए एक अविस्मरणीय यात्रा के लिए.....ऐसी यात्रा जो पहले कभी नहीं की (वो अंग्रेज़ी में कहते हैं ना जर्नी ऑफ़ अ लाइफ टाइम ) इसके बाद कुछ लोग मिलेंगे कभी एक दूसरे की शादियों, बच्चो के मुंडन और जन्मदिनों में पर शायद एक साथ सब कभी ही इकट्ठे हो पाये....तो ये मौका चूकना कहाँ तक जायज़ है ? मुझे तो अभी से भोपाल याद आ रहा है....तो अपन सब को आना है और सबसे बड़ी बात इस री यूनियन के साथ ही हम अपने अलुमनी संगठन को भी दुबारा जिंदा करेंगे (जिसके लिए परेश सर बहुत परिश्रम कर रहे हैं)......याद आ रहा है ना फेयर वेल का दिन....पुरानी जींस और गिटार वाला गाना .....देखा हमको भी ससुर इमोशनल कर डाला ...कितना रोये थे सब एक दूसरे के गले लग लग के .....अब किस्मत फिर मौका दे रही है और वही शेर गुनगुना रही है जो उस समय गुनगुनाया था.....
अबके बिछडे हुए तो फिर कभी ख़्वाबों में मिलें
जैसे सूखे हुए कुछ फूल किताबों में मिलें
तो सामान बाँध कर आ जाओ सब एक बार फिर करने के लिए तफरीह, खाने के लिए पोहा जलेबी.....और मिलने के लिए एक दूसरे से .........और शायद मिलने के लिए खोये हुए ख़ुद से !
दिल ढूढता है फिर वही............
(जनहित में जारी)
आख़िर किराये का घर छोड़ कर
और इन सब के बीच मैंने एक नज़्म लिखी है, ये मैंने खास अपने सह-पाठियों के लिए लिखी है लेकिन जुदाई के दर्द की शिद्दत समझने वालों के लिए ये उनकी अपनी दास्ताँ होगी....
आख़िर किराये का घर छोड़ कर
जाने लगे सब शहर छोड़ कर
अलग मंजिलें हैं , अलग रास्ते हैं
मरासिम अलग हैं , अलग वास्ते हैं
आधा -अधूरा सफर छोड़ कर
जाने लगे सब शहर छोड़ कर
आख़िर किराए का घर छोड़ कर....
रंगीन समां था सजती थी अंजुमन
था रंगे जवानी , जज़्बात थे रौशन
मुहब्बत भरी रहगुज़र छोड़ कर
जाने लगे सब शहर छोड़ कर
आख़िर किराए का घर छोड़ कर ....
और पास होंगे जब दूर रहेंगे
उनकी सुनेंगे कुछ अपनी कहेंगे
कदम के निशाँ राह पर छोड़ कर
जाने लगे सब शहर छोड़ कर
आख़िर किराए का घर छोड़ कर .....
Sunday, January 18, 2009
कहां गई छग की ग्रेनबैंक योजना?
Saturday, January 17, 2009
अबुझमाड़ः अबुझ पहेली
Thursday, January 15, 2009
कंटेंट कोड के मायने
Wednesday, January 14, 2009
बोल कि लब आजाद हैं तेरे .....
खेंचो ना कमानों को ना तलवार निकालो
जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो
और ज़ाहिर है कि देश में सरकार, सरकारी और भ्रष्टाचारी पर ये तोप यानी कि मीडिया भारी पड़ने लगी है। दरअसल बड़ा सवाल यह नहीं है कि मीडिया पर सेंसरशिप हो या ना हो बल्कि बड़ा सवाल यह है कि हो या क्यूँ ना हो ? फिलहाल बात यह है कि हमारी गजब की निकम्मी सरकार मीडिया का मुंह बंद करने के लिए गजब की इच्छा शक्ति दिखा रही है। ब्रोड कास्ट बिल के बहाने जिस तरह से सरकार मीडिया को अपना पालतू गुलाम बनाने की कोशिश में है वह सफल तो नहीं होगी यह पक्का है पर उसे शायद यह अंदाजा नहीं है कि इस सब के चक्कर में उसकी कितनी फजीहत होने वाली है।
मेरा सवाल है कि आख़िर ऐसा क्या किया है देश के न्यूज़ चैनल्स ने ? क्या सच बोलना अपराध है या दिखाना ? क्या अगर हाकिम निकम्मे बन कर सोते रहे और जनता की आवाज़ उन तक ना पहुंचे तो उसको बुलंद करना गुनाह है ? मुंबई हमलों में मीडिया पर जिस तरह से आतंकवादियों की अप्रत्यक्ष मदद करने का इल्जाम लगा है वह अपने आप में ही हास्यास्पद है....और फिर अगर यहाँ मीडिया दोषी है तो क्या वे अधिकारी, मंत्री और खुफिया एजेंसी के लोग दोषी नहीं हैं जिनकी अकर्मण्यता और उपेक्षा की वजह से यह सब हुआ ? क्या इसके लिए सरकार दोषी नहीं है ?
दरअसल २६/११ के बाद जिस तरह से मुंबई और पूरे मुल्क की जनता सरकार और नेताओं के ख़िलाफ़ उठ खड़ी हुई....वह सरकार के सरदर्द का सबब है। मैं मानता हूँ कि कई जगह कई मामलों में मीडिया को विवेक से काम लेना होता है, मैं यह भी मानता हूँ कि उल जुलूल और गैर ख़बरीसामगी को ख़बर के तौर पर पेश करने से मीडिया की छवि ज़रूर गिरी है पर यह बताएं कि क्या अगर मुंबई हमले के बाद तीन दिन तक सारे अखबार, टीवी चैनल और वेब मीडिया लगातार लिखती और चीखती ना रहती तो
हमारे दोनों माननीय पाटिल इस्तीफा देते ?
क्या सरकार कभी पाकिस्तान पर इतना ज़बरदस्त दबाव बनाती ?
क्या हमारे वे मंत्री जो कहते रहते हैं कि देख रहे हैं, देखेंगे, दोषियों को छोड़ा नहीं जायेगा ....चुप रहते या फिर पड़ोसी के ख़िलाफ़ साहसी बयान देते ?
क्या ये पूरा मसला हमेशा की तरह एक दो हफ्तों बाद शांत हो कर अवचेतन में खो नहीं जाता ?
मुझे लगता है कि अब समय आ गया है कि हम ज़ाहिर तौर पर अपनी गलतियां भी स्वीकारें और अपने हक के लिए, अपनी स्वतन्त्रता के लिए अपनी तलवारें .....अपनी कलम हाथों में ले लें।
हम पत्रकार हैं, हम जानते हैं कि हमें क्या करना है, हम अपनी गलतियां भी स्वीकारेंगे, हो सकता है कि हम कभी कोई बाबा या को जानवर ख़बर बना कर कभी दिखा दें पर हम कभी भी देश के ख़िलाफ़ नहीं जाते ..... ऐसा नहीं कि फालतू खबरें ग़लत नहीं हैं पर उस बहाने से मीडिया की स्वतंत्रता पर बुरी नज़र डालता है तो न तो हम यह बर्दाश्त करेंगे न ही यह लोकतंत्र का तकाजा है। सरकार मीडिया पर अंकुश लगाने की बात करती है...क्यूँ ? हमने कौन सा राष्ट्रीय संपत्ति को नुक्सान पहुंचाया है ? हमने क्या किसी राष्ट्रीय गोपनीयता के दस्तावेजों को लीक किया है ? क्या हम चैनल्स पर देश विरोधी बातें करते हैं ? और अगर ऐसा है तो क्यूँ नहीं सरकार हमें इसके लिए जेल में डाल कर हम पर राष्ट्र द्रोह का मुकदमा चलाती है ?
दरअसल चूँकि जनता अब जागने लगी है और सरकार के ख़िलाफ़ अब खुल कर सड़कों पर उतरने लगी है....हम अब दिखाने लगे हैं की किस प्रकार जनता का नेताओं पर से विशवास उठ चुका है.....ये अच्छी तरह से जानते हैं कि जनता का सड़कों पर इस तरह से उतरना इनके लिए अच्छा संकेत नहीं है और इसलिए अब ये यह चाहते हैं कि आम आदमी वही देखे जो यह दिखाना चाहते हैं।
पर इन सबको हम बताना चाहते हैं कि हम लोकतंत्र के चौथे खंभे की स्वतन्त्रता के लिए आखिरी सफलता तक लड़ाई लडेंगे ..... हम दूरदर्शन नहीं हैं और ना ही आप हमें कभी बना सकेंगे ! मीडिया पर सेंसरशिप लादने को तैयार सरकार क्या कहना चाहेगी अपनी सरकार में शामिल अपराधियों और दागियों के बारे में ? उस पर कोई रोक क्यूँ नहीं ? क्या कहेगी अपने लापरवाह अफसरों के बारे में या भ्रष्टाचार के बारे में .....? क्या कहेगी आख़िर क्या जवाब देगी ? देश की ८५% समस्याओं के जिम्मेदार नेता आज हम पर सेंसरशिप और नैतिकता की बात करते ना तो बहुत अच्छे लग रहे हैं ना ही महान सो बंद करें ये बकवास.....
इससे पहले भी इस तरह की कोशिशें हो चुकी है पर इतिहास अपने आप सब कुछ कह देता है। मीडिया को कुचलने की जितनी कोशिश की गई है, वह उतनी ही ताक़तवर हो कर उभरी है, अज्ञेय ने एक कविता में लिखा था....
मैं कहता हूँ मैं बढ़ता हूँ, मैं नभ की चोटी चढ़ता हूँ
कुचला जाकर भी धूलि सा, आंधी सा और उमड़ता हूँ
यह कोशिश है अपने ख़िलाफ़ उठने वाली किसी भी आवाज़ को अनसुना कर के सोते रहने की। आम आदमी को यह जानना चाहिए कि इस तरह की सेंसर शिप से सरकार अप्रत्यक्ष रूप से जन आंदोलनों की कवरेज़ पर भी रोक लगा देने का प्रयास कर रही है।
तो याद रखियेगा ये आवाम की आवाज़ है, और आवाज़ ऐ खल्क - नगाडा ऐ खुदा है तो इसे छुपाना कम से कम किसी इंसान के बस की तो बात नहीं। हम जितना दबाये जायेंगे, हमारा स्वर उतना ही और मुखर होगा ! अंत में रामधारी सिंह 'दिनकर' की पंक्तियों के साथ बात को अभी विराम.....
दो में से क्या तुम्हे चाहिए
कलम या कि तलवार
एक भुजाओं की शक्ति
दूजा बल बुद्धि अपार
कलम देश की बड़ी शक्ति है
भाव जगाने वाली
मन ही नहीं विचारों में भी
आग लगाने वाली
जहाँ पालते लोग लहू में
हलाहल की धार
क्या चिंता यदि वहाँ
हाथ में नहीं हुई तलवार
अब पढिये क्या कहते हैं मीडिया जगत के वरिष्ठ लोग ;
"सेंसर का नाम आपने बहुत दिनों से नही सुना , लेकिन इस सरकार के इरादे ठीक नही लगते अभी सिर्फ़ टीवी को रेगुलेट करने के नाम पर क़ानून बनाने की बात हो रही हैं। कानून का मतलब ये हुआ कि सिर्फ़ मुंबई जैसे हमले ही नही बल्कि गुजरात जैसे दंगो का कवरेज भी वैसे ही होगा जैसे सरकार चाहेगी। न तो हम अमरनाथ का आन्दोलन टीवी पर देख पाएंगे न ही पुलिस के जुल्म की तस्वीरें क्योंकि नेशनल इंटरेस्ट के नाम पर कुछ भी रोका जा सकता हैं । नेशनल इंटरेस्ट वो सरकार तय करेगी जो मुंबई में हमला नही रोक सकी।बात अगर टीवी से शुरू हुई हैं तो प्रिंट और इन्टरनेट तक भी जायेगी। अभी नही जागे तो बहुत देर हो जायेगी"
मिलिंद खांडेकर - मैनेजिंग एडिटर स्टार न्यूज़
"सरकार का इरादा टीवी चैनलों को रेगुलेट करना नहीं उन्हें अपने काबू में करना है ताकि कभी को ऐसी खबर जिससे सरकार की सेहत पर असर पड़े, चैनलों पर न चल पाए। अगर टीवी न्यूज चैनलों से मुंबई हमलों के दौरान कोई चूक हुई तो उसे सुधारने के लिए और भविष्य में ऐसी चूक न हो इसके लिए एनबीए ने अपनी गाइडलाइन जारी कर दी है। सभी न्यूज चैनलों के संपादकों के साथ बातचीत करने के बाद एनबीए आथारिटी के चेयरमैन जस्टिस जे एस वर्मा ने सेल्फ रेगुलेशन का ये गाइडलाइन लागू कर दिया है। फिर भी सरकार चैनलों सेंसरशिप की तैयारी कर रही है। ये मीडिया का गला घोंटने की कोशिश है। इसे नहीं मंजूर किया जाना चाहिए और जिस हद तक मुमकिन हो इसका विरोध किया जाना चाहिए,वरना वो दिन दूर नहीं जब कोई सरकारी बाबू और अफसर नेशनल इंट्रेस्ट के नाम पर किसी भी न्यूज चैनल की नकेल कसने में जुट जाएगा। फिर कभी भी गुजरात दंगों के दौरान जैसी रिपोर्टिंग आप सबने टीवी चैनलों पर देखी है ,नहीं देख पाएंगे। कभी भी सरकार या सरकारी तंत्र की नाकामी के खिलाफ जनता अगर सड़क पर उतरी और उसकी खबर को तवज्जो दी गयी तो उसे नेशनल इंट्रेस्ट के खिलाफ मानकर चैनल के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर दी जाएगी। हर सूबे और हर जिले का अफसर अपने -अपने ढंग से नेशनल इंट्रेस्ट को परिभाषित करेगा और अपने ढंग से इस्तेमाल करके मीडिया का गला घोंटेगा ।"
अजीत अंजुम - मुख्य सम्पादक, न्यूज़ २४
"सरकार न सिर्फ टीवी बल्कि प्रिंट और वेब मीडिया पर भी अपना अंकुश लगाना चाहती है। सरकार की ये कोशिश किसी मीडिया सेंसरशिप से कम नहीं है। प्रेस के लिए बाकायदा कानून हैं। अगर कोई विवाद की स्थिति होती है तो संस्था और पत्रकारों पर मुकदमे चलते ही हैं, लेकिन सरकार अब जो करने की कोशिश कर रही है वो प्रेस की आजादी पर हमला है, फंडामेंटल राइट्स के खिलाफ है।"
सतीश के सिंह
(इस लेख का मतलब यह नहीं की हम सब कुछ सही कर रहे हैं पर अगर यह बिल पास होता है तो कुछ भी सही नहीं होगा।)
छत्तीसगढ़ यात्रा कराने के लिए ..... बरुन को साधुवाद
जब मेरे और बरुन के बीच वैचारिक बहस का दौर चला था तब कई लोगों ने उसे एक लड़ाई का नाम दिया था और उसे बंद करने को कहा था। कुछ लोगों को यह शंका थी कि इससे मेरे और बरुन के व्यक्तिगत संबंधों पर भी असर पड़ेगा तो कुछ ने सहपाठी होने की दुहाई भी दी थी पर मेरे अनुरोध पर बरुन का यह बड़प्पन सबकी शंकाएं निर्मूल साबित करता है।
छत्तीसगढ़ः एक खोज
छत्तीसगढ़ एक उगता सूरज।
Tuesday, January 13, 2009
उत्सव प्रिया मानवः
" ढोल की गूँज और अलाव की गर्मी के माहौल में आप सभी के साथ हम नाच नाच कर लोहडी मनाना चाहते हैं। समय शाम ६ बजे दफ्तर के ही प्रांगण में।"
ऐसा लुभावना प्रस्ताव और आमंत्रण तो कोई महा नीरस व्यक्ति ही छोडेगा। सो हम भी छः बजे पहुँच गए लोहडी मनाने। वैसे आपको बताते चलें कि लोहडी मूलतः पंजाब में मनाया जाने वाला पर्व है। इसको मनाने के कारण गिनाये तो तमाम जाते हैं पर बड़े कारण दो ही हैं। एक तो यह की इस समय सर्दी की विदाई शुरू हो जाती है और अगले दिन यानी कि मकर संक्रांति से ही सूर्य उत्तरायण होने लगता है। तो अलाव के किनारे नाच गा कर, रक्त शुद्धि के लिए नई फसल के तिल, गुड, मूंगफली और मक्का को अग्नि को समर्पयामि कर के ख़ुद भी उसका प्रसाद ग्रहण करते हैं।
अच्छा दूसरा कारण जो बताया गया वह थोड़ा किवदंती वाला है। कहते हैं कि अकबर के समय के आस पास पंजाब में एक लुटेरा हुआ करता था जिसका नाम था दुल्ला भट्टी, ये साहब एक गरीब मुस्लिम परिवार से थे और अमीरों को लूट कर गरीबों को निहाल किया करते थे। इस लिहाज से इन्हे हम रोबिन हुड का भी पूर्ववर्ती मान सकते हैं। कहा जाता है कि ख़ुद मुस्लिम होते हुए भी कई बार इन्होने खाड़ी के मुल्कों में ज़बरन ले जाई जा रही हिन्दू लड़कियों को मुक्त कराया और देखते ही देखते पूरे पंजाब के हीरो बन गए। हालांकि इस बारे में कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता कि इनका इस पर्व से क्या सम्बन्ध है पर लोहडी के हर गीत में दुल्ला भट्टी का उल्लेख ज़रूर मिलता है।
इसके अलावा तीसरी चौथी और पांचवी कथा भी है पर मैं आज यह पोस्ट कथा सुनाने की लिए नहीं लिख रहा हूँ। मकसद कुछ और है। लोहडी की जलती लकडियाँ, बंटती मूंगफली, रेवडी और ढोल की धुन पर मदमस्त होकर नाचते अपने साथियों को देख कर मेरे दिमाग में ये दंतकथाएं नहीं घूम रही थी बल्कि महाकवि कालिदास की एक सूक्ति उचर रही थी,
Sunday, January 11, 2009
हम रहें या न रहें लेकिन यह झंडा रहना चाहिए
कौन सा भारतीय होगा जिसका मस्तक इन शब्दों को सुन कर गर्व से ऊंचा किस हिंन्दुस्तानी का सर इस गर्जन को सुनकर ऊंचा नहीं हो जाएगा ? यह सिंह नाद किया था लाल किले की प्राचीर से भारत के दूसरे प्रधानमन्त्री स्वर्गीय श्री लाल बहादुर शास्त्री ने। १५ अगस्त १९६५ की उस सुबह वह भाषण इसलिए ही नहीं महत्वपूर्ण था कि उसे प्रधानमंत्री ने दिया था बल्कि इसलिए भी कि उस समय भारत एक युद्ध की स्थिति से जूझ रहा था.....युद्ध जो थोपा गया था, युद्ध जो प्रतिष्ठा का प्रश्न था। ठीक आज की तरह....'हम रहें या न रहें लेकिन यह झंडा रहना चाहिए और देश रहना चाहिए। मुझे विश्वास है कि यह झंडा रहेगा, हम और आप रहें न रहें, लेकिन भारत का सिर ऊँचा होगा।'
आज मैं यह बात इसलिए कर रहा हूँ कि आज ११ जनवरी है और आज शास्त्री जी पुण्यतिथि है। दुर्भाग्य यह रहा कि मीडिया को ढूंढ ढूंढ कर कोसने वाला ब्लॉग जगत भी आज इससे अनजान रहा, क्या वाकई हमें याद नहीं था या हम याद करना नहीं चाहते। शास्त्री जी की पुण्यतिथि का भी महत्त्व इसलिए ज्यादा है कि उनका निधन तब हुआ जब वे रूस के ताशकंद में पाकिस्तान के साथ ऐतेहासिक समझौते के लिए गए थे।
काहे कै ताना काहे कै भरनी, कौन तार से बीनी चदरिया
आठ कँवल दल चरखा डोलै, पाँच तत्त्व गुन तीनी चदरिया
साँ को सियत मास दस लागे, ठोंक ठोंक कै बीनी चदरिया
सो चादर सुर नर मुनि ओढी, ओढि कै मैली कीनी चदरिया
दास कबीर जतन करि ओढी, ज्यों कीं त्यों धर दीनी चदरिया
मेरे नज़र में छग...
Saturday, January 10, 2009
हम भी कार्टून, साल भी कार्टून....
जून 2008
Wednesday, January 7, 2009
चुनाव परिणामो ने लौटाई हसीना की मुस्कान .......
बांग्लादेश में पिछले कुछ वर्षो से भारी अस्थिरता का माहौल रहा इस दरमियान वहां पर सेन्य सरकार का भी नियंत्रण रहा जिससे दोनों प्रधानमंत्री भी अछूती नही रही आपातकाल के दौर में दोनों को सलाखों के पीछे रहना पड़ा लेकिन जनता के भारी दबाव के चलते सेन्य सरकार को चुनाव करवाने को विवस होना पड़ा जिसका परिणाम आज हम लोकतंत्र की परिणति के रूप में देख रहे है बीता साल पड़ोस में लोकतंत्र के लिहाज से भारत के लिए शुभ रहा है इस दौरान पाकिस्तान, नेपाल , भूटान , मालदीव में लोकतंत्र स्थापित हुआ अब नव वर्ष की इस कड़ी में हमारे लिए बांग्लादेश लोकतंत्र की नई सौगात लेकर आया है
भारत ने १९७१ में बांग्लादेश के मुक्ति आन्दोलन में उसको सहयोग दिया जिसकी आवश्यकता वहां की स्थानीय जनता को थी भारत शुरू से बांग्लादेश से दोस्ती का हिमायती रहा है बांग्लादेश के पितामह शेख मुजी बुर रहमान के रहते दोनों देशो के बीच सामान्य सम्बन्ध रहे परन्तु उसके बाद पाकिस्तान पोषित आई एसआई ने दोनों मुल्को के बीच के संबंधो में तल्खियों को बढाना शुरू कर दिया इस मिशन को पूरा करने में खालिदा जिया ने बड़ा योगदान दिया जो पाक के कट्टरपंथियों की हम दम साथी बने रही नए युवको को आई एस आई आतंकवाद फेलाने के लिए तैयार करने में लगी रही यही वह दौर था जब बांग्लादेश आतंकवाद की नर्सरी के रूप में जाना जाने लगा भारत में आतंकी घटनाओ को बढावा देने के लिए भरती किए जाने वालो नौजवानों को उकसाया जाने लगा इस दौरान भारत बांग्लादेश की खुली सीमा घुसपैठियों की पनाहगाह बनी रही जिस कारन लाखो की संख्या में लोग भारत में घुस गए आज यही घुसपैठिये भारत के लिए बड़ी चुनोती बन गए है क्युकिइन्होने भारत की नागरिकता और राशन कार्ड प्राप्त कर लिए है बंगलादेश सरकार इस घुसपैट की समस्या को शुरू से नकारती रही है शेख हसीना का पिछला कार्यकाल बताता है उनका झुकाव भारत की तरफ़ ज्यादा रहा है अब उनके प्रधानमंत्री बननेके बाद उम्मीद है वह भारत दोनों देशो के बीच सम्बन्ध सुधारने की दिशा में अपना अहम् रोल निभाएंगी साथ ही वह बांग्लादेश में चल रही आतंकवादी गतिविधियों और आई एस आई की अति सक्रियता पर अंकुश लगाएंगी आने वाले दिनों में कई चुनोतियों से पार पाना हसीना के लिए आसान नही रहेगा देखना होगा वह इन सबका मुकाबला कैसे करती है ??
चुनाव में जीत के बाद हसीना ने कहा है वह बांग्लादेश की धरती को आतंकवाद की नर्सरी बन्नेपर रोक लगाएंगीइसको भारत के लिए शुभ संकेत मान सकते है पिछले कुछ समय से बांग्लादेश में हुजी ने दिनों दिन अपना प्रभाव बढाया है यही नही उल्फा ने भी बांग्लादेश की धरती का इस्तेमाल भारत विरोधी गतिविधियों के लिए किया मुंबई के घावो पर अभी मरहम भी नही लगा था की अचानक आसाम में बम धमाके हो गएइसमे भी ऐसे कयास लगाये जा रहे है की घटना की रणनीति बांग्लादेश में बनी थी अभी तक बांग्लादेश की सरकार कट्टरपंथियों के इसारू पर नाचती रही है बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया को पाक का बड़ा समर्थक माना जाता रहा है जिस कारन भारत के साथ उसकी गाडी पटरी पर कम बैटीइस चुनाव में जिया को आशा थी की वह फिर से वापसी कर प्रधानमंत्री बनेंगी लेकिन मतदाताओ की गुगली ने " जिया को " बेक फ़ुट " ड्राइव पर ला दिया है अभी तक यह सवाल जिया के मन को कचोट रहा है आख़िर उनकी पार्टी से कहाँ चूक हो गई जो उनकी पार्टी २६ पर सिमट गई पर यह तो जनादेश है जनता का फेसला तो सभी को मान्य होना चाहिए
इस चुनाव में हसीना ने जिस तरह से कट्टरपंथियों को आडेहाथो चुनाव प्रचार के दौरान लिया वह दिखाता है हसीना के पास इस बार बांग्लादेश के विकास का नया विजन है जिसके लिए उन्होंने इक बड़ी कार्ययोजना तैयार की है जिसको अमल में लाने की तैयारी वह करने जा रही है हसीना को यह समजना होगा मतदाताओ ने जिस विस्वास के साथ उन पर भरोसा व्यक्त किया है उन पर वह पूरा खरा उतरने की कोसिस करेंगी मुंबई पर हमले के बाद भारत ने बांग्लादेश से आतंकियों की माग की है जिस पर बांग्लादेश की नई सरकार के रुख का सभी को इंतजार है देखना होगा इस मसले पर ऊट कौन सी करवट बैठता है???
Tuesday, January 6, 2009
कपिल देव का जवाब नहीं
सभी से कुछ न कुछ यादें जुड़ी होंगी। जैसे बलविंदर सिंह संधू की 1983 के विश्व कप की इनस्विंगर कोई नहीं भूला, जिस पर गॉर्डन ग्रीनिज आउट हुए थे. तो जब आप खेलते हैं तो यकीनन लोगों को आपकी अच्छी चीजें याद रहती हैं.
संजीव श्रीवास्तव: वर्ष 1983 का विश्वकप. जिम्बाब्वे से मुक़ाबला. आप कप्तान थे. चार विकेट 9 रन पर गिर चुके थे. जब आप बल्लेबाज़ी के लिए निकले तो सोचा था कि आप मैच की शक्ल बदल देंगे?
कपिल: हर खिलाड़ी यही इरादा लेकर मैदान में उतरता है कि मैच की शक्ल बदल देगा, लेकिन होता नहीं है। वो वक़्त था, जब टीम मुश्किल में थी और मेरे ऊपर ज़िम्मेदारी थी और अच्छी बात ये रही कि ज़रूरत के वक़्त मैं ये पारी खेल सका। ऐसे लम्हे लोगों के दिमाग में लंबे समय तक रहते हैं.
संजीव श्रीवास्तव: ये पारी तो भारतीय क्रिकेट की लोककथा बन गई है। क्या आपको लगता है कि ये मैच विश्व कप का टर्निंग प्वाइंट था?
कपिल: नहीं, मैं ऐसा नहीं मानता। विश्व कप का टर्निंग प्वाइंट वेस्टइंडीज के ख़िलाफ़ पहला मैच या इंग्लैंड के विरुद्ध सेमीफाइनल था.
संजीव श्रीवास्तव: जब टीम 183 रन ही बना सकी तो ड्रेसिंग रूम में बैठे खिलाड़ी क्या सोच रहे थे?
कपिल: देखिए ये सब नहीं सोचा जाता. ठीक है वेस्टइंडीज की टीम अच्छी थी, लेकिन हममें जोश की कमी नहीं थी. सोच ये होनी चाहिए कि हमसे बेहतर कोई नहीं है.
मुझे याद है कि जब हम क्षेत्ररक्षण के लिए जा रहे थे तो मैने कहा था कि हम 183 रन बना चुके हैं और वेस्टइंडीज़ को अभी इतने रन बनाने हैं। हम उन्हें मुश्किल में डाल सकते हैं. मैने कहा 'चलो जवानों लड़ो' तब गावस्कर ने कहा, कभी ऑफिसर भी बोल दिया करो. तो उन हालात में भी ऐसे मजाक चला करते थे.
संजीव श्रीवास्तव: जीत के बाद जश्न कैसे मनाया?
कपिल: आलम ये था कि हर मोड़ पर कोई न कोई शैंपेन लिए खड़ा था। सच बताऊँ तो इतनी खुशी में शैंपेन और जश्न के माहौल में हमें खाना भी नहीं मिला. लंदन में 11 बजे रेस्त्रां बंद हो जाते हैं और हम एक-दो बजे खाना ढूँढ रहे थे. फिर ब्रेड-टोस्ट खाकर रात गुज़ारी.
लेकिन ये जिंदगी का दस्तूर है और सारी उम्र इस पर बात करने का कोई मतलब नहीं है। हाँ, लोगों को इतना ज़रूर सोचना चाहिए कि किसी की बातों में यूँ ही नहीं आना चाहिए. अपनी सूझबूझ से काम लेना चाहिए.
कपिल ने कहा,"मैं जवान हूँ और ताक़तवर बनना चाहता हूँ ताकि भारत के लिए तेज़ गेंदबाज़ी कर सकूँ"।
83 का स्कोर कुछ ख़ास नहीं था लेकिन हमें बस कुछ विकेटों की ज़रूरत थी। पूरी प्रतियोगिता में हम विजेताओं की तरह खेले. हर खिलाड़ी जी जान से खेला और कहा कि हम जीत कर रहेंगे. अब हम जश्न मनाएँगे क्योंकि ऐसे मौके आसानी से नहीं आते
Sunday, January 4, 2009
नए साल का विजयी सूर्य
(जी हाँ ...कविता का भी स्वाद होता है)
नए साल का विजयी सूर्य
बादलों से झांकता सूरज,
आख़िर ऊपर आ पाता है
दूर पेड़ पर बैठा परिंदा,
यह देख मुस्कुराता है
आँखें खुल जाती हैं
रात हार मानती है
सूर्य की किरणें
अपना गंतव्य जानती हैं
नई सुबह आ गई है, एक झोंका यह कानों में बताता है
बादलों से झांकता सूरज , आख़िर ऊपर आ जाता है
रात टूटते तारों को देखकर
कुछ दुआएं मांगी थी
हर बार कुछ और पाने की चाहत में
ये आँखें रात भर जागी थी
जब नींद आई तो पलकों में
ढेरो स्वप्न समाये थे
ना जाने रात भर कौन कौन
किन किन सपनो में आए थे
पर अब वह पपीहा कुछ गाकर, मुझे जगाता है
बादलों से झांकता सूरज , आख़िर ऊपर आ जाता है
यह नया दिन है
वही जिसका इंतज़ार था
वो दिन आया है आज
जो हमें सदा स्वीकार था
मुंदी पलकों को खोल
स्वप्न सच करने का वक्त आ गया है
चल पडो अभीष्ट पर
समय का फ़रिश्ता बता गया है
मेरा रास्ता आज तो, ख़ुद सूरज चमकाता है
बादलों से झांकता सूरज , आख़िर ऊपर आ जाता है
वो खुशबू जो ख़्वाबों में आती थी
उससे अब आंगन महकेगा
संगीत जो दूर था कहीं
अब साँसों में चहकेगा
घर जो सूने पड़े थे
आबाद होने को हैं
मुस्कराहट बिखरने
और अवसाद खोने को है
हर नयन में आशा का दीप, झिलमिलाता है
बादलों से झांकता सूरज , आख़िर ऊपर आ जाता है
जीवन बदलने को है
पर क्या तुम तैयार हो
परिवर्तन ऐसा कि
चाहो हर बार हो
देखो कैसे सब कुछ
हां सब कुछ साकार होगा
विश्व तुम्हारा, लोग तुम्हारे
तुम्हारा आकार और निराकार होगा
क्यूंकि यह दिन
सिर्फ़ एक दिन नहीं है
ये शुरुआत है नवजीवन की
तुम्हे समझना यही है
देखो सर उठा आसमान में एक
बादल का टुकडा लहरा रहा है
नीले आसमान की गोद में
सूरज शिशु सा इठला रहा है
हँसता है गुलाब,
कमल मुस्कुरा रहा है
बरगद बाबा बूढा सुनकर, जटाएं अपनी हिला रहा है
कि देखो नया दिन आ रहा है
बादलों को चीरकर सूरज ऊपर......और ऊपर आ रहा है.......
नव वर्ष मंगलमय हो