केव्स संचार पर हम लगातार देश की हालातों पर चर्चा करते है तो आज सोचा की क्यों ना लम्बी चर्चा की जगह एक कविता जो गुलज़ार ने लिखी है और मुझे बहुत पसंद है वो पेश कर दी जाए.....तो इस स्वाद चखें
हिंदुस्तान में दो दो हिंदुस्तान दिखाई देते हैं
एक है जिसका सर नवें बादल में है
दूसरा जिसका सर अभी दलदल में है
एक है जो सतरंगी थाम के उठता है
दूसरा पैर उठाता है तो रुकता है
फिरका-परस्ती तौहम परस्ती और गरीबी रेखा
एक है दौड़ लगाने को तय्यार खडा है‘
अग्नि’ पर रख पर पांव
उड़ जाने को तय्यार खडा है
हिंदुस्तान उम्मीद से है!
आधी सदी तक उठ उठ कर
हमने आकाश को पोंछा है
सूरज से गिरती गर्द को छान के
धूप चुनी है
साठ साल आजादी के…
हिंदुस्तान अपने इतिहास के मोड़ पर है
अगला मोड़ और ‘मार्स’ पर पांव रखा होगा!!
हिन्दोस्तान उम्मीद से है॥
अच्छी अभिव्यक्ति , बधाईयाँ !
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