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Sunday, January 4, 2009

नए साल का विजयी सूर्य

शायद यह कविता २००४-०५ में लिखी थी मैंने .....नए साल पर मतलब करीब ५ साल पहले। हालांकि तब और अब की परिस्थितियों में बहुत अन्तर है....तब मैं विज्ञान का विद्यार्थी था लखनऊ के डिग्री कोलेज में ...और आज एक पत्रकार हूँ एक मशहूर समाचार चैनल में। समय बीता है, उम्र बढ़ी है और माहौल भी बदला है पर शायद नए साल की शुरुआत में आज भी दिमाग कुछ भी कहे दिल यही कहता है.....क्यूंकि आशावाद के अलावा शायद कोई विकल्प भी नहीं है.....दुनिया उम्मीद पर ही कायम है और उम्मीद से ही कायम रहेगी ! स्वाद लें।
(जी हाँ ...कविता का भी स्वाद होता है)

नए साल का विजयी सूर्य

बादलों से झांकता सूरज,
आख़िर ऊपर आ पाता है
दूर पेड़ पर बैठा परिंदा,
यह देख मुस्कुराता है
आँखें खुल जाती हैं
रात हार मानती है
सूर्य की किरणें
अपना गंतव्य जानती हैं

नई सुबह आ गई है, एक झोंका यह कानों में बताता है
बादलों से झांकता सूरज , आख़िर ऊपर आ जाता है

रात टूटते तारों को देखकर
कुछ दुआएं मांगी थी
हर बार कुछ और पाने की चाहत में
ये आँखें रात भर जागी थी
जब नींद आई तो पलकों में
ढेरो स्वप्न समाये थे
ना जाने रात भर कौन कौन
किन किन सपनो में आए थे

पर अब वह पपीहा कुछ गाकर, मुझे जगाता है
बादलों से झांकता सूरज , आख़िर ऊपर आ जाता है

यह नया दिन है
वही जिसका इंतज़ार था
वो दिन आया है आज
जो हमें सदा स्वीकार था
मुंदी पलकों को खोल
स्वप्न सच करने का वक्त आ गया है
चल पडो अभीष्ट पर
समय का फ़रिश्ता बता गया है

मेरा रास्ता आज तो, ख़ुद सूरज चमकाता है
बादलों से झांकता सूरज , आख़िर ऊपर आ जाता है

वो खुशबू जो ख़्वाबों में आती थी
उससे अब आंगन महकेगा
संगीत जो दूर था कहीं
अब साँसों में चहकेगा
घर जो सूने पड़े थे
आबाद होने को हैं
मुस्कराहट बिखरने
और अवसाद खोने को है

हर नयन में आशा का दीप, झिलमिलाता है
बादलों से झांकता सूरज , आख़िर ऊपर आ जाता है

जीवन बदलने को है
पर क्या तुम तैयार हो
परिवर्तन ऐसा कि
चाहो हर बार हो
देखो कैसे सब कुछ
हां सब कुछ साकार होगा
विश्व तुम्हारा, लोग तुम्हारे
तुम्हारा आकार और निराकार होगा

क्यूंकि यह दिन
सिर्फ़ एक दिन नहीं है
ये शुरुआत है नवजीवन की
तुम्हे समझना यही है

देखो सर उठा आसमान में एक
बादल का टुकडा लहरा रहा है
नीले आसमान की गोद में
सूरज शिशु सा इठला रहा है
हँसता है गुलाब,
कमल मुस्कुरा रहा है

बरगद बाबा बूढा सुनकर, जटाएं अपनी हिला रहा है
कि देखो नया दिन आ रहा है
बादलों को चीरकर सूरज ऊपर......और ऊपर आ रहा है.......

नव वर्ष मंगलमय हो

2 comments:

  1. der se aane kee maafee.
    lekin yah kavita bhee to 4-5 saal baad post kee gayee hai ..
    kavita achhee hai.
    badlon ka tukdaa machalta huaa naye kirtimaan banaye,
    isee shubhkaamnaa ke saath

    ReplyDelete

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