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Monday, January 19, 2009

आख़िर किराये का घर छोड़ कर

चौथा सेमेस्टर शुरू होते ही सब भविष्य के बारे में और संजीदगी से सोचने लगे हैं । इन्टर्न-शिप और नौकरी की तलाश में भोपाल से हिजरत भी शुरू हो गई है । दिन कैसे गुज़र गए पता ही नही चला । और अब लग रहा है की एक खूब सूरत कहानी अपने अंत की ओर बढ़ रही है या किसी दूसरी कहानी की तैय्यारी है , पहले सिम्मी और शुभम गए, उसके बाद गुलशन, फ़िर सौरभ, प्रतीति, हमारे प्यारे शचीन्द्र भैय्या और अब रोहिणी और पूजा भी जा चुके हैं ,(आज से आजतक में इस बीच की पहली इन्टर्न शुरू हो रही है , पहले जत्थे को शुभकामनाएं ।) प्रियंका के बारे में भी सूचना आ रही है की वो घर जा चुकी हैं ...एक गुलज़ार चमन धीरे धीरे सूना हो रहा है । अंजुमन के चिराग मद्धम हो रहे हैं ....

और इन सब के बीच मैंने एक नज़्म लिखी है, ये मैंने खास अपने सह-पाठियों के लिए लिखी है लेकिन जुदाई के दर्द की शिद्दत समझने वालों के लिए ये उनकी अपनी दास्ताँ होगी....


आख़िर किराये का घर छोड़ कर
जाने लगे सब शहर छोड़ कर

अलग मंजिलें हैं , अलग रास्ते हैं
मरासिम अलग हैं , अलग वास्ते हैं
आधा -अधूरा सफर छोड़ कर
जाने लगे सब शहर छोड़ कर

आख़िर किराए का घर छोड़ कर....

रंगीन समां था सजती थी अंजुमन
था रंगे जवानी , जज़्बात थे रौशन
मुहब्बत भरी रहगुज़र छोड़ कर
जाने लगे सब शहर छोड़ कर

आख़िर किराए का घर छोड़ कर ....

और पास होंगे जब दूर रहेंगे
उनकी सुनेंगे कुछ अपनी कहेंगे
कदम के निशाँ राह पर छोड़ कर
जाने लगे सब शहर छोड़ कर

आख़िर किराए का घर छोड़ कर .....

5 comments:

  1. वह हिमाशु भाई क्या नज़्म लिखी है AAPNE ..भाउक कर दिया AAPNE ...
    जाने लगे सब शहर छोडके ...
    लिखते रहिये ...

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  2. अलग मंजिलें हैं , अलग रास्ते हैं
    मरासिम अलग हैं , अलग वास्ते हैं
    आधा -अधूरा सफर छोड़ कर
    जाने लगे सब शहर छोड़ कर
    इन लाइनों ने एक अलग प्रकार का भाव उत्पन्न किया है...
    किराये का एक घर तो छोड़ना है .लेकिन जिस दुसरे घर में जाना है ..वह भी शायद किराये का ही होगा ..

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  3. accha hai shahar se door janas tera
    raas ata nahi muskuraana tera
    kya karen bhai lukhnow kee sarjameen apnee lagtee hai

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  4. उम्दा.....उम्दा.......उम्दा

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  5. तुझे छोड़कर भले बहुत दूर चले जायेंगे....
    यादों मे मगर एक अहसास छोड़ जायेंगे...

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