यूँ तो दीक्षांत समारोह का अंत विधिवत दीक्षा का अंत करना यानी कि डिग्री प्रदान कर देना है पर क्या हम सबके लिए भी इसका बस इतना ही मतलब है...ज़रा सोचिये ?(चैनल का असर है यह!)
दरअसल यह शायद भोपाल छोड़ने के बाद के इतिहास का और आने वाले भविष्य का इकलौता मौका होगा जब हम सब .....वरिष्ठ और कनिष्ठ ...... अग्रज और अनुज ....... और वर्तमान एवं भविष्य एक साथ इकट्ठे होंगे.....सोचिये कितना विहंगम दृश्य होगा.....जब कल पढ़ चुके और आज पत्रकारिता सीख रहे एक साथ होंगे.....ये अवसर शायद दुर्लभ है!
मित्रों यह मौका है पुराने मित्रों से मिलने का....शत्रुओं (हालांकि यह केवल बचपना था) से मित्रता करने का.....गिले शिकवे दूर करने का ....साथ मिल बैठने का! पुराने लम्हों को याद करने का ........ नए किस्से सुनाने का का.....बंधे पिटारे खोलने का और प्यार बिखरा देने का.....हम साथ बैठेंगे, पुराने अनुभव फिर से याद किए जायेंगे...नए अनुभव बांटे जायेंगे .......सबसे बड़ी बात सब एक साथ शायद फिर सरलता से नहीं मिल पाएंगे।
पुरानी शरारतें, चाची की चाय, पोहा जलेबी.....क्लास बंक कर के घूमना, वो बड़ी झील, महावीर पहाडी.....टॉप एंड टाऊन, चाय के साथ सिगरेट, श्रीकांत सर की डांट, संजीव सर की कातिल मुस्कराहट, महावीर सर के असाइंमेंट, बापू सर का गुनगुनाना, तिवारी सर का भोकाल,बाजपेयी सर का सीधापन, लाइब्रेरी कार्ड, हरी और मनोज भइया की सदाशयता, न्यू मार्केट, सिटी, १० नंबर, ७ नंबर.......याद आ रहा है ना सब.....को खां ? अपन को तो सब याद आ रिया है !
जानता हूँ सब लगभग रोज़ याद करते हैं......भोपाल को ! अब एक मौका है...ये गंवाया तो मियाँ जाओगे तो ज़रूर भोपाल पर एक कसक रह जायेगी कि यार सब लोग अपन लोग साथ में आते तो कितना मज़ा आता....को खां ? बस में बैठ कर याद है पूरा भोपाल घूमा था, कई बार किराए को लेकर झिकझिक भी की थी....हकीम भाई की दूकान अभी भी वहीं है पर जायका बंद हो गया है.....तो ऐसा है ज्यादा ना नुकुर ना करें....क्या करना है हम बता रहे हैं.....
- डा अविनाश बाजपेयी को तुंरत फोन लगायें, उनका मोबाइल नंबर है 09425392448
- संभवतः यह कार्यक्रम है 28 फरवरी को सो बाजपेयी जी से बात कर के आरक्षण करा लें (बाध्यता नहीं है, मेरे जैसे लोग अभी भी जनरल डिब्बे में ही सफर करते हैं)
- अपने बाकी सभी साथी जिनके भी संपर्क में हैं उनको ख़बर कर दें।
- बाजपेयी सर आपको एक ई मेल भेजेंगे जिसमे दी गई प्रोफाइल भर के उन्हें तुंरत वापिस ई मेल कर दें या डाक से भेज दें।
- अपने बढ़िया वाले कपड़े तैयार कर लें नई शोपिंग भी की जा सकती है।
- कम से कम दो दिन की छुट्टी ले कर आयें नहीं आने जाने में ही सब वक़्त निकल जायगा मिल के क्या ख़ाक बैठेंगे।
- दफ्तर में अभी से छुट्टी के लिए आवेदन दे दें।
- आने की सूचना बाजपेयी सर को, मुझे (cavssanchar@gmail.com, mailmayanksaxena@gmail.com, mayank.saxena@zeenetwork.com), हिमांशु को (kavi.him@gmail.com) अथवा अपने किसी पुराने साथी को जो वहाँ पहले से मौजूद हों उन्हें दे दें.....हमारा प्रयास रहेगा कि हम रेलवे स्टशन पर मौजूद रहे। (हालांकि मैं ख़ुद नॉएडा से वहाँ पहुंचूंगा)
- और किसी सहायता के लिए इन मोबाइल नंबरों पर या ई मेल पर संपर्क करें,
- डा अविनाश बाजपेयी (प्लेसमेंट अधिकारी) : 09425392448 (mcuconvocation@yahoo.co.in)
- डा श्रीकांत सिंह (विभागाध्यक्ष, केव्स) : 09424412772 (अभी तक ई मेल आई डी नहीं है)
- मुझे मतलब मयंक सक्सेना को : 09310797184 ( mailmayanksaxena@gmail.com, mayank.saxena@zeenetwork.com)
- देविका छिब्बर को : 09310953590 (devikachhibber@gmail.com)
- अजीत कुमार को : 09990753296 (kumarajeet20@gmail.com)
- हिमांशु बाजपेयी को : 009981907330/09415433093 (kavi.him@gmail.com)
तो तैयार हो जाइए एक अविस्मरणीय यात्रा के लिए.....ऐसी यात्रा जो पहले कभी नहीं की (वो अंग्रेज़ी में कहते हैं ना जर्नी ऑफ़ अ लाइफ टाइम ) इसके बाद कुछ लोग मिलेंगे कभी एक दूसरे की शादियों, बच्चो के मुंडन और जन्मदिनों में पर शायद एक साथ सब कभी ही इकट्ठे हो पाये....तो ये मौका चूकना कहाँ तक जायज़ है ? मुझे तो अभी से भोपाल याद आ रहा है....तो अपन सब को आना है और सबसे बड़ी बात इस री यूनियन के साथ ही हम अपने अलुमनी संगठन को भी दुबारा जिंदा करेंगे (जिसके लिए परेश सर बहुत परिश्रम कर रहे हैं)......याद आ रहा है ना फेयर वेल का दिन....पुरानी जींस और गिटार वाला गाना .....देखा हमको भी ससुर इमोशनल कर डाला ...कितना रोये थे सब एक दूसरे के गले लग लग के .....अब किस्मत फिर मौका दे रही है और वही शेर गुनगुना रही है जो उस समय गुनगुनाया था.....
अबके बिछडे हुए तो फिर कभी ख़्वाबों में मिलें
जैसे सूखे हुए कुछ फूल किताबों में मिलें
तो सामान बाँध कर आ जाओ सब एक बार फिर करने के लिए तफरीह, खाने के लिए पोहा जलेबी.....और मिलने के लिए एक दूसरे से .........और शायद मिलने के लिए खोये हुए ख़ुद से !
दिल ढूढता है फिर वही............
(जनहित में जारी)
मजा आ गया पढ़कर. पुराने दिन याद आए. खासकर पोहा-जलेबी वाली बात के तो क्या कहने. जाहिर है डॉ. श्रीकांत सर अब भी वैसे ही होंगे जैसे वो उस छोटे से गुरुकुल टाइप विश्वविद्यालय में थे. हम भी कभी माखनलाल के छात्र कहलाते थे. कुआ दिन थे.
ReplyDeleteyah khabr suna kar dil khus kar diya
ReplyDeleteMahesh Singh,
Etv U.P.