यह कविता मैंने पिछले साल लिखी थी और उस दिन थोड़ा संतुष्ट था कि लगभग सभी मीडिया ने बापू को उनकी पुण्यतिथि पर याद किया था पर इस बार दूरदर्शन छोड़कर किसी ने भी राष्ट्रपिता को याद करने की भूल नहीं की (देखें .taazahavaa.blogspot.com), सो इस बार यह कविता प्रस्तुत है केव्स संचार के पाठकों के लिए,
मैंने गांधी को मारा है !!
मैंने गांधी को मारा है .....
हां मैंने गांधी को मार दिया !!
मैं कौन ?
अरे नही मैं कोई नाथूराम नहीं
मैं तो वही हूँ जो तुम सब हो
हम सब हैं
क्या हुआ अगर मैं उस वक़्त पैदा
नही हो पाया
क्या हुआ अगर गांधी को मैं
सशरीर नही मार सका
मैंने वह कर दिखाया
जो नाथू राम नही कर पाया
मैंने गांधी को मारा है
मैंने उसकी आत्मा को मार दिखाया है
और मेरी उपलब्धि
कि मैंने गांधी को एक बार नही
कई बार मारा है
अक्सर मारता रहता हूँ
आज सुबह ही मारा है
शाम तक न जाने कितनी बार मार चुका हूँगा
इसमे मेरे लिए कुछ नया नहीं
रोज़ ही का काम है
हर बार जब अन्याय करता हूँ
अन्याय सहता हूँ
सच छुपाता झूठ बोलता हूँ
घुटता अन्दर ही अन्दर मरता हूँ
अपने फायदे के लिए दूसरे का नुकसान
करता हूँ
और उसे प्रोफेश्नालिस्म का नाम देकर
बच निकलता हूँ
तब तब हर बार
हाँ मैंने गांधी को मारा है ........
जब जब यह चीखता हूँ कि
साला यह मुल्क है ही घटिया
तब तब ......
जब भी भौंकता हूँ कि
साला इस देश का कुछ होने वाला नही
और जब भीव्यंग्य करता हूँ कि
अमा यार' मजबूरी का नाम .........
'तब तब हर बार मैंने
उसे मार दिया
बूढा परेशान न करे हर कदम पर
आदर्शो के नखरों से
सो उसे मौत के घाट उतार दिया
तो आज गीता कुरान जिस पर कहो
हाथ रख कर क़सम खाता हूँ
सच बताता हूँ
कि मैंने गांधी को मारा है
पर इस साजिश में मैं अकेला नहीं हूँ
मेरे और भी साथी हैं
जो इसमे शामिल हैं
और
वो साथी हैं
आप सब !!बल्कि हम सब !!!!
यौर होनौर आप भी ......
अब चौंकिए मत
शर्मिन्दा हो कर चुप भी मत रहिये .......
फैसला सुनाइये
मेरा कातिल ही मेरा मुंसिफ है !!!!!!!
हाँ दो मुझे सज़ा दो क्यूंकि मैंने गांधी को ....................
sir gandhi ya yoon kanhe vichaar kabhi mar nahi sakta bas logo ke maansik star ka ye kamaal hota hai ki ve sadiyo pahle kabeer aur na jaane kitne vichaaro ko kaal me dhoondh kar bol dete hai.khair kavita ya vichaar me bhi sachhai hai jie koi nahi nakaar sakta.
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