आज ६ जनवरी है और आज है भारत को क्रिकेट विश्व कप दिलाने वाले महान हरफनमौला क्रिकेटर कपिल देव का जन्मदिन। कपिल ख़ास और महान क्रिकेटर हैं इस मायने में नहीं की उनकी अगुआई में हमने विश्व कप जीता बल्कि इस कारण से कि वे हमेशा अन्याय के ख़िलाफ़ लड़ने और खुल कर अपनी बात रखने से कई बार मुसीबतों से भी घिरे पर हमेशा साहस दिखाया। शायद इसी वजह से वे अपने समकालीन और खिलाड़ियों से ऊपर उठ जाते हैं।
कभी हार ना मानने का रवैया और कुछ अलग की ओर उनका खिचाव जगजाहिर है। फिर चाहे क्रिकेट से संन्यास के बाद गोल्फ का पेशेवर बन जाना या बी सी सी आई के ख़िलाफ़ जा कर आई सी एल के साथ खड़े हो जाना यह सब ना केवल अलग है बल्कि मिथक और तानाशाही तोड़ने के लिए उनकी प्रतिबद्धता भी। एक योद्धा जो अन्दर से शिशु है, आपको याद होगा कि जब कपिल पर फिक्सिंग का आरोप लगा तो कैसे वे एक बच्चे की तरह टीवी कैमरे पर फूट फूट कर रो पड़े थे।
हममें से क्रिकेट का कोई भी शौकीन उनकी १९८३ विश्व कप में जिम्बाब्वे के विरुद्ध खेली गई १७५ रनों की आतिशी पारी को दुनिया की अब तक की सर्वश्रेष्ठ पारियों में गिनने में शायद ही शक करे।
आज कपिल का जन्मदिन है, कपिल जिनको विस्डन ने सदी का सबसे महान खिलाडी चुना और ना भी चुनती तो हम तो मानते ही थे। आज की यह विशेष प्रस्तुति है कपिल देव के नाम
पिछले वर्ष मार्च की महीने में
बी बी सी हिन्दी सेवा ने कपिल देव का एक साक्षात्कार प्रसारित किया यह साक्षात्कार सम्पादक
संजीव श्रीवास्तव ने किया .....इसके कुछ अंश आज के दिन आपके
लिए साभार
प्रस्तुत हैं....,
संजीव श्रीवास्तव: सबसे पहले जब आप पहली सिरीज़ खेलने पाकिस्तान गए थे, आप 18-19 साल के रहे होंगे, कैसा लग रहा था आपको?
कपिल :तब इतना होश नहीं था। ज़्यादा कुछ मालूम नहीं था। वैसे भी 18-19 साल का लड़का क्या सोच सकता है। बस देश के लिए खेलने की लगन थी और इसके अलावा मन में कुछ ख़ास नहीं था।
संजीव श्रीवास्तव: और उस वक़्त आपके हीरो कौन थे?
कपिल : यकीनन विश्वनाथ का मैं बहुत बड़ा प्रशंसक था। हालाँकि उनके बारे में ज़्यादा कुछ देखा-सुना नहीं था, लेकिन उनका नाम बहुत अच्छा था. जब उनसे मिला तो वो इंसान भी बहुत अच्छे निकले.
संजीव श्रीवास्तव: कपिल देव से पहले भारत के पहले ऐसा तेज़ गेंदबाज़ नहीं था, जिसका ख़ौफ़ विपक्षी टीम पर हो। तो उस दौर में जब हर कोई बेदी, वेंकटराघवन, चंद्रशेखर बनना चाहता था, आपने तेज़ गेंदबाज़ी की क्यों सोची?
कपिल: मैं समझता हूँ कि जिंदगी में कुछ चीजें ऐसी होती हैं जो किसी योजना से नहीं होती। किस्मत साथ थी और लोग मेरी तेज़ गेंदबाज़ी की तारीफ करते थे. तो बस मेहनत कर इसमें सुधार किया.
संजीव श्रीवास्तव: अपने शुरुआती दिनों का कोई यादगार लम्हा। मसलन फॉलोऑन बचाने के लिए 24 रन चाहिए थे और आपने एक के बाद एक चार छक्के उड़ा दिए. लोग तो अब भी मानते हैं कि कुछ चीजें तो सिर्फ कपिल ही कर सकते थे?
कपिल: ऐसा नहीं है, आज के क्रिकेटर बहुत प्रतिभाशाली और अच्छे हैं. अगर आप किसी खिलाड़ी का 15 साल का कैरियर देखें तो बहुत से यादगार लम्हे होंगे. चाहे वो किरमानी हो, रोजर बिन्नी हो, गावस्कर हों, वेंगसरकर हों, मदनलाल हों या फिर मोहिंदर.
सभी से कुछ न कुछ यादें जुड़ी होंगी। जैसे बलविंदर सिंह संधू की 1983 के विश्व कप की इनस्विंगर कोई नहीं भूला, जिस पर गॉर्डन ग्रीनिज आउट हुए थे. तो जब आप खेलते हैं तो यकीनन लोगों को आपकी अच्छी चीजें याद रहती हैं.
संजीव श्रीवास्तव: तो क्या इस बेख़ौफ बल्लेबाज़ी का राज़ ये था कि आप मुख्यतः गेंदबाज़ थे?
कपिल: यकीनन ये था। बहुत से क्रिकेटर मुझसे कहते भी थे कि अगर मैं अपनी बल्लेबाज़ी पर ध्यान दूँ तो बहुत से रन बना सकता हूँ. शायद वो सही कहते होंगे. लेकिन मैने बल्लेबाज़ी को हमेशा बोनस माना और जब बोनस अच्छा मिल रहा हो तो सबको खुशी होती है.
संजीव श्रीवास्तव: वर्ष 1983 का विश्वकप. जिम्बाब्वे से मुक़ाबला. आप कप्तान थे. चार विकेट 9 रन पर गिर चुके थे. जब आप बल्लेबाज़ी के लिए निकले तो सोचा था कि आप मैच की शक्ल बदल देंगे?
कपिल: हर खिलाड़ी यही इरादा लेकर मैदान में उतरता है कि मैच की शक्ल बदल देगा, लेकिन होता नहीं है। वो वक़्त था, जब टीम मुश्किल में थी और मेरे ऊपर ज़िम्मेदारी थी और अच्छी बात ये रही कि ज़रूरत के वक़्त मैं ये पारी खेल सका। ऐसे लम्हे लोगों के दिमाग में लंबे समय तक रहते हैं.
संजीव श्रीवास्तव: ये पारी तो भारतीय क्रिकेट की लोककथा बन गई है। क्या आपको लगता है कि ये मैच विश्व कप का टर्निंग प्वाइंट था?
कपिल: नहीं, मैं ऐसा नहीं मानता। विश्व कप का टर्निंग प्वाइंट वेस्टइंडीज के ख़िलाफ़ पहला मैच या इंग्लैंड के विरुद्ध सेमीफाइनल था.
संजीव श्रीवास्तव: जब टीम 183 रन ही बना सकी तो ड्रेसिंग रूम में बैठे खिलाड़ी क्या सोच रहे थे?
कपिल: देखिए ये सब नहीं सोचा जाता. ठीक है वेस्टइंडीज की टीम अच्छी थी, लेकिन हममें जोश की कमी नहीं थी. सोच ये होनी चाहिए कि हमसे बेहतर कोई नहीं है.
मुझे याद है कि जब हम क्षेत्ररक्षण के लिए जा रहे थे तो मैने कहा था कि हम 183 रन बना चुके हैं और वेस्टइंडीज़ को अभी इतने रन बनाने हैं। हम उन्हें मुश्किल में डाल सकते हैं. मैने कहा 'चलो जवानों लड़ो' तब गावस्कर ने कहा, कभी ऑफिसर भी बोल दिया करो. तो उन हालात में भी ऐसे मजाक चला करते थे.
संजीव श्रीवास्तव: जीत के बाद जश्न कैसे मनाया?
कपिल: आलम ये था कि हर मोड़ पर कोई न कोई शैंपेन लिए खड़ा था। सच बताऊँ तो इतनी खुशी में शैंपेन और जश्न के माहौल में हमें खाना भी नहीं मिला. लंदन में 11 बजे रेस्त्रां बंद हो जाते हैं और हम एक-दो बजे खाना ढूँढ रहे थे. फिर ब्रेड-टोस्ट खाकर रात गुज़ारी.
संजीव श्रीवास्तव: चार सौ विकेट और चार हज़ार रन। आपके दौर में तीन ऑलराउंडर और भी थे. आपकी नज़र में उनमें से कौन बेहतरीन था?
कपिल: मैं कहूँगा कि रिचर्ड हेडली का बतौर गेंदबाज़ मैं बहुत सम्मान करता हूँ। इमरान ख़ान ने शानदार गेंदबाज़ी के साथ-साथ टीम का नेतृत्व किया। पाकिस्तानी टीम का नेतृत्व करना आसान नहीं है, लेकिन इमरान ने इस काम को बखूबी अंज़ाम दिया. ऑलराउंडर की बात करें तो बॉथम सर्वश्रेष्ठ थे.
संजीव श्रीवास्तव: इस पूरे दौर में आपको बेहतरीन उपलब्धियों को लिए लोगों से खूब सम्मान मिला। पर जब मैच फिक्सिंग प्रकरण हुआ और आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला चला तो आपको क्या लगा?
कपिल: कई ख़याल मन में आए. बहुत दुख हुआ और लगा कि डूब मरना चाहिए, गुस्सा भी आया और लगा कि आरोप लगाने वालों को गोली मार देनी चाहिए. दुख तो होता ही है कि इतने साल की मेहनत और सच्चाई की राह पर चलने के बाद लोग आप पर आरोप लगाते हैं.
लेकिन ये जिंदगी का दस्तूर है और सारी उम्र इस पर बात करने का कोई मतलब नहीं है। हाँ, लोगों को इतना ज़रूर सोचना चाहिए कि किसी की बातों में यूँ ही नहीं आना चाहिए. अपनी सूझबूझ से काम लेना चाहिए.
(बी बी सी हिन्दी से साभार)
दरअसल इस साक्षात्कार को यहाँ उद्घृत करने का मकसद यह बताना नहीं था की कपिल ने क्या सोचा और क्या किया बल्कि यह की इतनी बुलंदियों पर पहुँच कर भी एक व्यक्ति कितना सहज और कितना विनम्र है।
एक बड़ा दिलचस्प वाकया है जब कपिल काफ़ी युवा थे और टीम में नहीं चुने गए थे , बात 1976 की है जब कपिल देव 17 बरस के थे। एक ट्रेनिंग कैंप में उन्होंने खाने के लिए और रोटियाँ माँगीं लेकिन उन्हें रोटियाँ नहीं दी गईं और ये वाक़या हुआ मुंबई के क्रिकेट क्लब ऑफ़ इंडिया के एक ट्रेनिंग कैंप में।
कपिल के रोटी माँगने पर अनुशासन के लिए मशहूर कैंप कमांडर केकी तारापोर ने उनसे पूछा,"तुम्हें और रोटियाँ क्यों चाहिए?"
कपिल ने कहा,"मैं जवान हूँ और ताक़तवर बनना चाहता हूँ ताकि भारत के लिए तेज़ गेंदबाज़ी कर सकूँ"।
तारापोर ने झिड़कते हुए उनसे कहा,"भूल जाओ ये सब। तुम्हारे लिए अलग से कुछ भी नहीं होगा. मैं तेज़ गेंदबाज़ों को शक्ल से ही पहचान जाता हूँ"
इसके दो साल बाद कपिल अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में आए और आज वो कहाँ हैं इसके बारे में क्या कहा जाए....पर यह वाकया भी यही बताता है कि कपिल ने हमेशा अपनी आवाज़ और हौसले को बुलंद रखा।
खैर अभी तो ६ जनवरी १९५९ को जन्मे कपिल देव रामलाल निखंज को उनके पचासवें जन्मदिन पर बधाई और आखिरी में पढ़ते हैं कि क्या कहा था कपिल ने १९८३ विश्व कप की ट्रोफी उठाने के बाद,
"मैं बहुत खुश हूँ. मेरी टीम ने जो कर दिखाया है उससे मैं बेहद खुश हूँ. हम यहाँ दोबारा आने चाहते हैं, अगले साल इसी जज़्बे के साथ।हम अगली बार भी ऐसा ही करना चाहेंगे।वीवी रिचर्डस वेस्टइंडीज़ के लिए अच्छी बल्लेबाज़ी कर थे पर वो कुछ ज़्यादा ही तेज़ खेल रहे थे।हमारे लिए अच्छा ही था कि वे तेज़ खेलें क्योंकि हमें लगा कि इसी दौरान वे अपना विकेट गंवा देंगे।वे 60 ओवर के हिसाब से नहीं 30 ओवर के हिसाब से खेल रहे थे।
83 का स्कोर कुछ ख़ास नहीं था लेकिन हमें बस कुछ विकेटों की ज़रूरत थी। पूरी प्रतियोगिता में हम विजेताओं की तरह खेले. हर खिलाड़ी जी जान से खेला और कहा कि हम जीत कर रहेंगे. अब हम जश्न मनाएँगे क्योंकि ऐसे मौके आसानी से नहीं आते
और हम तो बस यही कहेंगे जो शायद मेरी याद में बप्पी दा ने कहा था और कुमार सानू से कहलवाया था
हकीकत है यह ख्वाब नहीं
कपिल देव का जवाब नहीं
behtareen prastutikaran
ReplyDeleteकपिल कपिल है| कपिल ने ही सिखाया जीत भी सकते है . कपिल देव को जन्मदिन की हार्दिक बधाई
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