आज स्वाधीनता दिवस पर जो महसूस हुआ वो इस कविता में है ..... इसके बाद नहीं समझता की ज्यादा कुछ कहने की ज़रूरत रहेगी इसलिए आप लोगो को सुनना चाहूँगा सो कृपया टिपण्णी करें .... जो भी कहना हो कहें पर कहें ज़रूर !
सुबह सुबह एक लाल बत्ती पर रुका
झंडे को देख कर झुका
स्कूल से निकलते
मासूम छातियों
और नन्हे हाथों में
सजे तिरंगों को देखा
ये नन्हे हाथ ही लिखेंगे
भविष्य का लेखा
सोच कर थी मुस्कराहट
चेहरे पर आई
पर तभी किसी ने
पीछे से आवाज़ लगाई
" बाबू जी झंडा ले लो !
गाड़ी पर खूब सजेगा
मेज़ पर भी चलेगा !"
मुड़ते ही पीछे पाया
एक और नन्हा बदन
हाथ में ढेर तिरंगे
नंगे बदन
"बाबू जी घर में बच्चो को देना,
खुश होंगे !'
वे नन्हे होंठ फिर हिले
पर
मेरे होंठ रह गए सिले
ट्रैफिक छूटा
और
मैं चल पडा
वो बच्चा वही खडा रहा
देखता
स्कूल से निकलते अपने हमउम्रों को
और हम
हर सिग्नल पर
उनसे मिलते हैं
और
उन्हें छोड़ कर आगे बढ़ जाते हैं
फिर अगले स्ग्नल पर मुझे आवाज़ आती है
" बाबू जी एक रुपये का झंडा है !
इससे सस्ता नहीं मिलेगा ....
बस एक झंडा ले लो ......??? "
पीछे मुड़ने पर मिलता है बच्चा
फिर वही
इस बार एक झंडा ले लेता हूँ
और देखता हूँ उसकी आंखों में
कम उम्र में अधिक भार
नन्हे हाथों में जीवन का विस्तार
कमज़ोर कन्धों पर बड़ी जिम्मेदारियां
ज़िन्दगी की दुश्वारियां
पूछा " बड़े होकर क्या करोगे ?"
जवाब मिला " काम करूंगा !!"
मैंने पूछा "मालूम है आज कौन सा दिन है ?"
जवाब था " नहीं !"
और फिर
वो चल पडा और कहीं !
बच्चा पता नहीं वो
समझदार या नादान था ...
पर उसके हाथों में झंडा
और
हालातों में हिन्दोस्तान था
अगले सिग्नल पर फिर पीछे से
" बाबू जी झंडा ले लो"
की आवाज़ आ रही है
पर इस बार पीछे देखने की
हिम्मत नहीं है !
बेहद संवेदनशील पोस्ट है..
ReplyDelete***राजीव रंजन प्रसाद
बेहद संवेदनशील
ReplyDeleteसंवेदनशील!!!
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की बहुत बधाई एवं शुभकामनाऐं.
Bharat is loosing grounds & identity under the INDIA.
ReplyDeleteWe salute our country and that is all.
Poem touching.
Umakantgupt
meri samvednaaye aapke saath hai lekin hum kyon bhool jate hain ki hamari apni canteen main bhi ek sonu kaam karta hai...?
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