यह वो बम था " फैट मैन"
नागासाकी पहले और बाद में
आज नागासाकी पर परमाणु हमले की ६३वीं बरसी है......१९४५ में आज ही के दिन जापान के इस बड़े बंदरगाह शहर पर .................. और इस हमले में कोई लगभग ८०,००० लोग तुंरत मारे गए थे ! क्या इंसान इतना निर्दयी हो सकता है ? हाँ शायद इंसान ही इतना निर्दयी हो सकता है !
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आपसे वादा था की ये सप्ताह हिरोशिमा और नागासाकी तथा विश्व शान्ति को समर्पित रहेगा सो इसी कड़ी में प्रस्तुत है हिन्दी के प्रसिद्द कवि गोपाल दास नीरज की ये कविता जो विश्व नागरिकता की बात करती है !
जलाओ दिए !
जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
अन्धेरा धरा पर कहीं रह न जाये।
नयी ज्योति के धर नये पंख झिलमिल,
उडे मर्त्य मिट्टी गगन स्वर्ग छू ले,
लगे रोशनी की झडी झूम ऐसी,
निशा की गली में तिमिर राह भूले,
खुले मुक्ति का वह किरण द्वार जगमग,
उषा जा न पाये, निशा आ ना पाये।
जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
अन्धेरा धरा पर कहीं रह न जाये।
स्रजन है अधूरा अगर विश्व भर में,
कहीं भी किसी द्वार पर है उदासी,
मनुजता नहीं पूर्ण तब तक बनेगी,
कि जब तक लहू के लिए भूमि प्यासी,
चलेगा सदा नाश का खेल यूं ही,
भले ही दिवाली यहां रोज आये।
जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
अन्धेरा धरा पर कहीं रह न जाये।
मगर दीप की दीप्ति से सिर्फ जग में,
नहीं मिट सका है धरा का अंधेरा,
उतर क्यों न आयें नखत सब नयन के,
नहीं कर सकेंगे ह्रदय में उजेरा,
कटेंगे तभी यह अंधरे घिरे अब,
स्वय धर मनुज दीप का रूप आये।
जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
अन्धेरा धरा पर कहीं रह न जाये।
गोपाल दास "नीरज"
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