१४ जनवरी १९३१ को नव्शेरा पाकिस्तान मे एक बच्चे की विलादत हुई .इस बच्चे की सलाहियतों ने इसे आम से ख़ास बना दिया .इनके वालिद ने इनका नाम अहमद रखा जो आगे चल कर अहमद फ़राज़ के नाम से मशहूर हुए .आप ने पेशावर यूनिवर्सिटी से तालीम हासिल की .उर्दू और पर्शियन मे आपको महारत हासिल थी .आपकी शाएरी मे उस दौर के हालात का तफ्सेरा भी है और खुशनूदगी भी .अली सरदार जाफरी और फैज़ अहमद फैज़ जैसे शायेरों के साथ आपका नाम बड़े अदब के साथ लिया जाता है.२४ अगस्त २००८ को वाक़े अहमद फ़राज़ की वफ़ात अदबी माशरे के लिए ग़म का बाएस है ।
कठिन है राहगुज़र थोरी दूर साथ चलोबहुत करा है सफर थोडी दूर साथ चलो (kaThin : difficult; raahguzar : path) तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है मैं जानता हूँ मगर थोडी दूर साथ चलो नशे में चूर हूँ मैं भी तुम्हें भी होश नही बड़ा मज़ा हो अगर थोडी दूर साथ चलो ये एक शब् की मुलाक़ात भी ग़नीमत हैकिस है कल की ख़बर , थोरी duur saath chalo अभी तो जाग रहे हैं चिराघ राहों के अभी है दूर सहर थोडी दूर साथ चलो (sahar : dawn) तवाफे मंजिले जानां हमें भी करना है “फ़राज़ ” तुम भी agar थोडी दूर साथ चलो tavaaf-e-manzil-e-jaanaaN : circumabulation of the house of beloved) Ahmed Faraz
तेरी बातें ही सुनाने आये
ReplyDeleteदोस्त भी दिल ही दुखाने आये
फूल खिलते हैं तो हम सोचते हैं
तेरे आने के ज़माने आये
ऐसी कुछ चुप सी लगी है जैसे
हम तुझे हाल सुनाने आये
इश्क़ तन्हा है सर-ए-मंज़िल-ए-ग़म
कौन ये बोझ उठाने आये
अजनबी दोस्त हमें देख के हम
कुछ तुझे याद दिलाने आये
दिल धड़कता है सफ़र के हंगाम
काश फिर कोई बुलाने आये
अब तो रोने से भी दिल दुखता है
शायद अब होश ठिकाने आये
क्या कहीं फिर कोई बस्ती उजड़ी
लोग क्यूँ जश्न मनाने आये
सो रहो मौत के पहलू में "फ़राज़"
नींद किस वक़्त न जाने आये
"its a great loss for litreray world, can never be fulfilled, feeling a deep pain for him"
Regards
Faraaz ka achanak yoon chale jaana man ko dukhi kar gaya. aaj maine bhi is mahan vibhuti par kuch kahne ki koshish ki hai. Yahan dekhein
ReplyDeletehttp://ek-shaam-mere-naam.blogspot.com/2008/08/1931-2008.html
शायर अहमद फ़राज़ साहेब को श्रृद्धांजलि!!
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