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Monday, August 11, 2008

हिरोशिमा नागासाकी ..... कुछ और !

हिरोशिमा और नागासाकी को समर्पित इस सप्ताह में हम आज अपने वादे को निभाते हुए, आपके लिए लाये हैं और कुछ सामग्री ! उस विध्वंस को हुए आज ६३ साल बीत चुके हैं पर आज भी उसके निशाँ इस दुनिया के बदन पर बाकी हैं। उस विध्वंस का इतिहास आपको हम पहले ही उपलब्ध करा चुके हैं आज हम बात अपने वादे के अनुसार अफलातून जी की उपलब्ध कराई २ और कवितायें उपलब्ध करायेंगे ....... ये कवितायेँ युद्ध और उसके परिणामों पर आधारित हैं......

युद्ध : दो
जो युद्ध के पक्ष में नहीं होंगे
उनका पक्ष नहीं सुना जायेगा
बमों और मिसाइलों के धमाकों में
आत्मा की पुकार नहीं सुनी जायेगी
धरती की धड़कन दबा दी जायेगी टैंकों के नीचे

सैनिक खर्च बढ़ाते जाने के विरोधी जो होंगे
देश को कमजोर करने के अपराधी वे होंगे
राष्ट्र की चिन्ता सबसे ज्यादा उन्हें होगी
धृतराष्ट्र की तरह जो अन्धे होंगे
सारी दुनिया के झंडे उनके हाथों में होंगे
जिनका अपराध बोध मर चुका होगा
वे वैज्ञानिक होंगे जो कम से कम मेहनत में
ज्यादा से ज्यादा अकाल मौतों की तरकीबें खोजेंगे
जो शान्तिप्रिय होंगे मूकदर्शक रहेंगे भला अगर चाहेंगे

जो रक्षा मंत्रालयों को युद्ध मंत्रालय कहेंगे
जो चीजों को सही-सही नाम देंगे
वे केवल अपनी मुसीबत बढ़ायेंगे
जो युद्ध की तैयारियों के लिए टैक्स नहीं देंगे
जेलों में ठूँस दिये जायेंगे
देशद्रोही कहे जायेंगे जो शासकों के पक्ष में नहीं आयेंगे
उनके गुनाह माफ नहीं किये जायेंगे

सभ्यता उनके पास होगी
युद्ध का व्यापार जिनके हाथों में होगा
जिनके माथों पर विजय-तिलक होगा
वे भी कहीं सहमें हुए होंगे
जो वर्तमान के खुले मोर्चे पर होंगे उनसे ज्यादा
बदनसीब वे होंगे जो गर्भ में छुपे होंगे

उनका कोई इलाज नहीं
जो पागल नहीं होंगे युद्ध में न घायल होंगे
केवल जिनका हृदय क्षत-विक्षत होगा ।
- राजेन्द्र राजन



अगली कविता गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर की लिखी हुई है ..... मूल बांग्ला कृति के साथ उसका महात्मा गांधी द्बारा किया गया हिन्दी अनुवाद भी है !


जे युद्धे भाई के मारे भाई
(बांग्ला)

जे युद्धे भाई के मारे भाई
से लड़ाई ईश्वरेर विरुद्धे लड़ाई ।

जे कर धर्मेर नामे विद्वेष संचित ,
ईश्वर के अर्ध्य हते से करे वंचित ।

जे आंधारे भाई के देखते नाहि भाय
से आंधारे अंध नाहि देखे आपनाय ।

ईश्वरेर हास्यमुख देखिबारे पाइ
जे आलोके भाई के देखिते पाय भाई ।

ईश्वर प्रणामे तबे हाथ जोड़ हय ,
जखन भाइयेर प्रेमे विलार हृदय ।
- रवीन्द्रनाथ ठाकुर

(हिन्दी अनुवाद)

वह लड़ाई ईश्वर के खिलाफ लड़ाई है ,
जिसमें भाई भाई को मारता है ।

जो धर्म के नाम पर दुश्मनी पालता है ,
वह भगवान को अर्ध्य से वंचित करता है ।
जिस अंधेरे में भाई भाई को नहीं देख सकता ,
उस अंधेरे का अंधा तो
स्वयं अपने को नहीं देखता ।
जिस उजाले में भाई भाई को देख सकता है ,
उसमें ही ईश्वर का हँसता हुआ
चेहरा दिखाई पड़ सकता है ।
जब भाई के प्रेम में दिल भीग जाता है ,
तब अपने आप ईश्वर को
प्रणाम करने के लिए हाथ जुड़ जाते हैं ।
मूल बांग्ला से अनुवाद : मोहनदास करमचंद



अफलातून जी को एक बार फिर कोटि धन्यवाद करते हुए अब प्रस्तुत है कुछ तसवीरें जो हमें हाल ही में मिली ........



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