आज २७ अगस्त है , हिन्दी फ़िल्म जगत के लिए एक कभी न भूलने वाला दिन । १९७6 में आज के ही दिन फ़िल्म जगत में "आम आदमी" की आवाज़ की लय अचानक खामोश हो गई थी । एक स्टेज शो के सिलसिले में अमेरिका गए सोज़ के बादशाह मुकेश हमें छोड़ गए । रह गई गहरी खामोशी .......
मुकेश चंद्र माथुर से मुकेश के तौर पर पहचाने जाने तक गम के इस मुतरिब ने लंबा सफर तय किया । पैदाइश २२ जुलाई १९२३ को हुई । उनके बड़े होने के साथ ही फ़िल्म संगीत में सहगल का दौर भी परवान चढा। मुकेश पर भी सहगल का खुमार था , लता , रफी की तरह । हलाँकि मुकेश ने पहली बार १९४१ में फ़िल्म निर्दोष के लिए अपनी आवाज़ दी ( उन्होंने इसमे अभिनय भी किया ) लेकिन उन्हें पहचान सहगल-शैली के गायन के जरिये फ़िल्म "पहली नज़र" के गीत दिल जलता है तो जलने दे .... से मिली । लेकिन जल्दी ही मुकेश ने अपनी एक शैली विकसित कर ली जो सादगी की शैली थी । ५० के दशक में उन्होंने राजकपूर के साथ जोड़ी बनाई जो वो शायद दिलीप और रफी से भी ज़्यादा बेजोड़ थी ..... यहाँ एक मज़े की बात और याद आती है की महबूब खान की अंदाज़ में रफी राजकपूर और मुकेश दिलीप कुमार के लिए गाते हैं ।
आग , आवारा , श्री४२० , अनारी, जिस देश में गंगा बहती है , संगम तो आपको याद ही होंगी ।
मुकेश ने गैर फिल्मी गीत भी बहुत गाये । उनके गले से निकला राम चरित मानस का पथ आज भी सर्वोत्कृष्ठ और सबसे ज्यादा लोकप्रिय है , खुसरो का कलाम जेहले मिस्कीं भी उनके गले से अनूठा लगता है .......
रफी , किशोर के साथ अक्सर हम मुकेश का नाम लेते हैं लेकिन शायद मुकेश को इन दोनों के साथ सुनने से ही हमें पता लगता है की जहाँ मुकेश हैं वहां केवल मुकेश हैं ..... रफी या किशोर की तरह मुकेश दिल में बहुत अधिक गति से भले न प्रवेश करें लेकिन दिल पर मुकेश का रंग जितना धीमे चढ़ता है वोह उतना ही पक्का होता है ॥
आज इकबाल का एक शेर याद आ रहा है -
जौहर-ऐ- इन्सां अदम से आशना होता नही
आंखों से ओझल तो होता है फ़ना होता नही
मुकेश चंद्र माथुर से मुकेश के तौर पर पहचाने जाने तक गम के इस मुतरिब ने लंबा सफर तय किया । पैदाइश २२ जुलाई १९२३ को हुई । उनके बड़े होने के साथ ही फ़िल्म संगीत में सहगल का दौर भी परवान चढा। मुकेश पर भी सहगल का खुमार था , लता , रफी की तरह । हलाँकि मुकेश ने पहली बार १९४१ में फ़िल्म निर्दोष के लिए अपनी आवाज़ दी ( उन्होंने इसमे अभिनय भी किया ) लेकिन उन्हें पहचान सहगल-शैली के गायन के जरिये फ़िल्म "पहली नज़र" के गीत दिल जलता है तो जलने दे .... से मिली । लेकिन जल्दी ही मुकेश ने अपनी एक शैली विकसित कर ली जो सादगी की शैली थी । ५० के दशक में उन्होंने राजकपूर के साथ जोड़ी बनाई जो वो शायद दिलीप और रफी से भी ज़्यादा बेजोड़ थी ..... यहाँ एक मज़े की बात और याद आती है की महबूब खान की अंदाज़ में रफी राजकपूर और मुकेश दिलीप कुमार के लिए गाते हैं ।
आग , आवारा , श्री४२० , अनारी, जिस देश में गंगा बहती है , संगम तो आपको याद ही होंगी ।
मुकेश ने गैर फिल्मी गीत भी बहुत गाये । उनके गले से निकला राम चरित मानस का पथ आज भी सर्वोत्कृष्ठ और सबसे ज्यादा लोकप्रिय है , खुसरो का कलाम जेहले मिस्कीं भी उनके गले से अनूठा लगता है .......
रफी , किशोर के साथ अक्सर हम मुकेश का नाम लेते हैं लेकिन शायद मुकेश को इन दोनों के साथ सुनने से ही हमें पता लगता है की जहाँ मुकेश हैं वहां केवल मुकेश हैं ..... रफी या किशोर की तरह मुकेश दिल में बहुत अधिक गति से भले न प्रवेश करें लेकिन दिल पर मुकेश का रंग जितना धीमे चढ़ता है वोह उतना ही पक्का होता है ॥
आज इकबाल का एक शेर याद आ रहा है -
जौहर-ऐ- इन्सां अदम से आशना होता नही
आंखों से ओझल तो होता है फ़ना होता नही
mukesh ji ki yaad dila dee aapne...unhe shraddhanjali..
ReplyDeleteMukesh jis din chal base the uwo din ka mujhe khayal hai. Radio par Ek din bik jayega geet baar baar baj raha tha.
ReplyDeletePar aapne 1970 shayad ghalat likha hai unki mrityu 76 ke aas paas huyi thi. Kripya sudhar lein.
Himanshu ji bakai apne mukesh ji k bare mein kafi aacha likha hia, main bas yahi khunga ki.....
ReplyDeleteAaya hai mujhe phir yaad wo zalim.....