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Thursday, January 15, 2009

कंटेंट कोड के मायने

सुना है जनवरी के अंत तक टीवी चैनलों पर कंटेंट कोड लागू हो जाएगा । मतलब अब किसी कंटेंट के प्रसारण पर प्रशासन तय करेगा की कोई सामग्री देश हित में है या नही यदि नही है तो वह प्रसारित नही हो सकती । हर फोनों , विसुअल , स्क्रॉल, टिकर, आदि अब प्रशासन के निर्णय पर चलेगा । मतलब इस कोड के मुताबिक आने वाले दिनों में पत्रकारिता और न्यूज़ वेल्यु का निर्धारण पत्रकार नही बल्कि कलेक्टर, दरोगा , मजिस्ट्रेट आदि करेंगे ।जिनका पत्रकारिता की परम्परा और उसके मार्ग-बिन्दुओं से कोई सरोकार ही नही पत्रकारिता को खेल या स्नानघर में गाया जाने वाला गाना समझ लिया गया है जिसे कोई भी खेल या गा सकता है या फ़िर कोड ye कहना चाहता है की देश हित क्या होता है ये सिर्फ़ सरकार जानती है .....जिस २६/११ पर सरकार मीडिया के कान उमेठ रही है उसमे देश हित के माने जानने वाली सरकार की भूमिका कैसी रही ये जो है ये सब जानती है । दरअसल ye खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचे जैसी baat है । उस समय मीडिया ने बहुत आदर्श काम नही किया ये सही बात है, लेकिन उस घटना में आपको सिर्फ़ मीडिया की खामी ही दिखाई देती है , तंत्र की, राजनीति की और न किसी औरमीडिया की । और अगर मीडिया दोषी भी है तो उसके लिए आपके पास पहले से ही कम अधिकार या नियम नही हैं,केबल टीवी एक्ट के तहत आप चैनल पर जुर्माना या पाबंदी दोनों लगाने के अधिकारी हैं फ़िर ये प्रे सेंसरशिप जैसा कोड क्यूँ ? दरअसल इस कोड की आड़ लेकर सरकार मीडिया पर वार करना चाहती है . जिससे अगली बार जब कोई सांसद सदन में सवाल करने के लिए घूस मांगे तो पूरा देश उसके इस काले चेहरे को न देख पाये ? जब शहीदों के ताबूतों में घोटाला हो तो सफ़ेद पोश नंगे न हो जाए . कुछ आप को भी याद होंगे . जो लोग मेरी तरह पत्रकारिता से सरोकार रखते हैं वो तो जानते ही हैं की मीडिया में जब सरकारी दखल होगा तो लोकतंत्र में दीमक लगना तय है ...... मीडिया सरकार का प्रतिनिधि नही है , न ही सरकार के प्रति जवाबदेह है ....मीडिया जनता की आवाज़ है और उसी के प्रति उत्तर दाई है....कहते हैं न आवाजे- khalk नगाडा-ऐ खुदा......मीडिया का सरकारीकरण जब होता है तब जो होता है उसे आप इंदिरा-युग के दौरान देख चुके हैं ...... अब मीडिया को ध्रितराष्ट्र बनाने की तैय्यारी है और अब इसे सरकारी संजय की आंखों से देखना पड़ेगा ......संजय भी नही क्यूंकि वो तो तटस्थ था....... मीडिया की galtiyon या laaparwaahiyon की tarafdaari बिल्कुल नही होनी chaahiye ........ samvidhan का artikal 19(२) भी yuktiyukt nirbandhon की बात करता है ......लेकिन आपको press cauncil जैसी sansthaon को shaktiyaan देनी चाहिए .........मीडिया अगर सरकार का हो गया तो लोकतंत्र की शक्ल इतनी badsoorat हो jayegi की उसके बारे में सोचने के लिए भी बड़ी himmat karni होगी ....

3 comments:

  1. बहुत बढ़िया

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    आप भारतीय हैं तो अपने ब्लॉग पर तिरंगा लगाना अवश्य पसंद करेगे, जाने कैसे?
    तकनीक दृष्टा/Tech Prevue

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  2. sahi kaha yaar...agr sb apni jimmedari samjhte to in sb ki naubat hi nai aati

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  3. Himanshu media aur sarkar ke beech jhagre me janta ka hit bhi to hame sochana hoga... sahi hai sarkar ko journalism ka manak nahi tay karna chaheeye... lekin khas taur par tv media ko patrakarita ki jimmedaari kaun yaad dilayega... kya abhivyakti ki azzadi ke naam par hame yun hi news ki jagah dadi sa aur aanandi, siddhu ke shaitani lagne wali hunsi aur big-b ko jukham jaisi wahiyat khabron ko jhelna hoga.. jarrorat hai ki media, judge aur shashak-prashshak ek saath baith kar bina ek doosre ke mamle me dakhal dete hue content code decide karein. shyyad yahi sarkar aur prashashan se naummidi ke beech ek ummeed ki kiran hogi...

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