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Friday, January 30, 2009

युगावतार गांधी....


महात्मा गाँधी पर यह कविता कई साल पहले प्रसिद्ध कवि सोहनलाल द्विवेदी ने लिखी थी। द्विवेदी बच्चो के लिए लिखने वाले कुछ प्रमुख कवियों में से एक थे। यह कविता मैंने अपनी स्कूल बुक में कक्षा ७ या ८ में पढी थी। प्रस्तुत है अंश ............ याद करें राष्ट्रपिता को उनकी पुण्यतिथि पर !



चल पड़े जिधर दो डग, मग में,
चल पड़े कोटि पग उसी ओर
पड़ गई जिधर भी एक दृष्टि,
पड़ गये कोटि दृग उसी ओर;
जिसके सिर पर निज धरा हाथ,
उसके शिर-रक्षक कोटि हाथ
जिस पर निज मस्तक झुका दिया,
झुक गये उसी पर कोटि माथ।

हे कोटिचरण, हे कोटिबाहु!
हे कोटिरूप, हे कोटिनाम!
तुम एक मूर्ति, प्रतिमूर्ति कोटि!
हे कोटि मूर्ति, तुमको प्रणाम!

युग बढ़ा तुम्हारी हँसी देख,
युग हटा तुम्हारी भृकुटि देख;
तुम अचल मेखला बन भू की,
खींचते काल पर अमिट रेख।

तुम बोल उठे, युग बोल उठा,
तुम मौन बने, युग मौन बना
कुछ कर्म तुम्हारे संचित कर,
युग कर्म जगा, युगधर्म तना।

युग-परिवर्त्तक, युग-संस्थापक,
युग संचालक, हे युगाधार!
युग-निर्माता, युग-मूर्ति! तुम्हें,
युग-युग तक युग का नमस्कार!

सोहन लाल द्विवेदी

2 comments:

  1. पिछले साल इसी दिन "गाँधी के विचारों की प्रासंगिकता " विषय पर एक गोष्ठी में गया था । चर्चा में मूल उद्येश्य से भटके वक्तागण वही पुरानी घिसी-पिटी बातें को लेकर गाँधी गुणगान में लगे थे । बात होनी चाहिए थी किआज २१ वीं सदी में गांधीवाद कितना प्रासंगिक है ? लेकिन पुरी चर्चा से ये मुद्दा ही गायब था । क्या कीजियेगा हमारे यहाँ शुरू से इस महिमामंडन कि परम्परा रही है! जीवन पर्यंत इश्वर में अविश्वास रखने वाले बुद्ध की प्रतिमा आज उतने ही आडम्बर के साथ पूजी जाती है! गाँधी जो ख़ुद जीवन भर ऐसी चीजों का विरोध करते रहे आज उनके चेले उनके विचारों पर गोबर डाल रहे हैं ! गाँधी जिस राम का नाम लेते-लेते जहाँ से चले गए आज उसी राम का नाम लेने से उनके चेले घबराते हैं! विडंबना ही है साहब !आजीवन गाँधी स्वदेशी - स्वदेशी रटते रहे आज उनके छद्म अनुयायी विदेशी कंपनियों को भारत को लुटने का लाइसेंस दोनों हाथों से बाँट रहे हैं! अब कितनी बात बताऊँ इन गांधीवादियों की सुन-सुन कर पक जायेंगे आप ।
    तो अब वापस चलते हैं गोष्ठी में । गोष्ठी में ७-८ प्रतिभागी बोल कर जा चुके थे । लगभग बापू के हर सिद्धांत सत्य ,अहिंसा और भाईचारा वगैरह-वगैरह सभी पर लम्बी -लम्बी बातें फेंकी जा चुकी थी । आगे एक छात्रा ने बोलते हुए कहा कि आज बापू के सिद्धांत कई तरह से प्रासंगिक है । क्षमा ,दया ,प्रेम और अहिंसा के सहारे समाज को बदला जा सकता है। समाज में बढ़ते अमानवीय कृत्यों को बापू के रस्ते पर चल कर ही रोका जा सकता है । अपने गाँधी -दर्शन के प्रेम में या शायद श्रोताओं का ध्यान खींचने के लिए व्यावहारिकता को ताक पर रख कर अंत में कह गई कि अगर निठारी कांड के अभियुक्तों को छोड़ दिया जाए तो उनको सुधार जा सकता है । सुनते ही मेरे अन्दर खलबली सी मच गई ।{ मैं ठहरा, गाँधी नही गांधीवाद का विरोधी ।मेरी नजर में गाँधी एक सफल राजनेता अवश्य हैं लेकिन उनके विचारों ( उनके व्यक्तिगतachchhi aadaton को छोड़ कर) से मेरा कोई सरोकार नही है । }main भी आयोजक के पास पहुँचा और २ मिनट का समय माँगा , संयोग से मिल भी गई । मैंने कहा - में कोई शायर या विचारक नही जो शेरो-शायरी और बड़ी -बड़ी बातों /नारों सच को झूट और झूट को सच बता सकूँ । मैं तो केवल कुछ पूछना चाहता हूँ आप सब से । क्या गाँधी के विचारों के नाम पर निठारी के नर -पिशाचों को छोड़ने की भूल कर हम और हजारों सुरेन्द्र & मोनिदर सिंह पंधेर को जन्म नही देंगे ?क्या आप एक भी ऐसे देश का नाम बता सकते हैं जहाँ आज अहिंसा को राजकीय धर्म बनाया गया और वहां अपराध नही है ? नही बल्कि जिस देश में (चीन तथा अरब देशो
    आदि में)जुर्म के खिलाफ कड़ी से कड़ी सज़ा का प्रावधान है अपराध भी वहीँ कम हैं । हकीकत से जी मत चुराइए । एक सवाल और जानना चाहूँगा कि अगर किसी लड़की / महिला के साथ बलात्कार हो रहा हो अथवा कोशिश कि जा रही हो तब क्या वो गाँधी के तस्वीर को याद करेगी ? क्या वो एक बार बलात्कारहो जाने पर दोबारा उन दरिंदो के सामने अपने को पेश करेगी ?या फ़िर अपने बचाव में हिंसा का सहारा लेगी ? इस उदाहरण से मैंने यह साबित करना चाह कि दूसरा गाल बढ़ाने वाली गाँधी के सिद्धांत हर जगह लागु नही हो सकते । और कब तक हम गाँधी - गाँधी चिल्लाते रहेंगे ?आज देश को विश्व को नए गाँधी , नए मार्क्स की जरुरत है , नए विचारों को आगे लाना होगा ताकि हम भी आगे जा

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  2. हम गाँधी को दरअसल ग़लत रूप में ही अनुकूलित करते आए.....आपने गांधी को पढ़ा नहीं इसलिए ऐसा कहते हैं....
    गांधी ने नहीं कहा था की अहिंसा की लकीर पीटते रहो...गाँधी ने स्पष्ट कहा की " किसी पूरी पीढी के नपुंसक हो जाने से बेहतर है की हम अहिंसा भूल जाए."
    "जब कायरता और हिंसा में से एक विकल्प चुन लेने की बात होगी तो मैं हमेशा हिंसा चुनूंगा"
    गांधी को ठीक से पढ़ें और समझें.....

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