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Wednesday, December 31, 2008
नया साल मंगलमय हो !
हर्ष नव,
जीवन उत्कर्ष नव।
नव उमंग,
नव तरंग,
जीवन का नव प्रसंग।
नवल चाह,
नवल राह,
जीवन का नव प्रवाह।
गीत नवल,
प्रीत नवल,
जीवन की रीत नवल,
जीवन की नीतनवल,
जीवन की जीत नवल
तस्वीरों में २००८ (भारत)
देश एकजुट है
अगर देश का अपराधी वर्ग भी राष्ट्र सेवा के लिए इतना तत्पर है तो हम पीछे कैसे रह सकते हैं । हम जहाँ भी हैं जो भी हैं राष्ट्र के काम मैं समर्पित हैं और रहेंगे
Tuesday, December 30, 2008
केव्स संचार पर नए वर्ष के स्वागत समारोह में शामिल हों !
यही नहीं हम एक विशेष अभियान " देश के नाम, देश की पाती" भी लेकर आए हैं जिसमे आप हमें आतंकवाद के ख़िलाफ़ भारत कितना एक जुट है इसके लिए अपने शुभकामना संदेश भारतीयों के नाम भी भेज सकते हैं इसके लिए हमें अपने संदेश भेजें jantajanaardan@gmail.com ! सर्वश्रेष्ठ संदेश हम रोज़ प्रकाशित करेंगे और अंत में उन पर आधारित एक विशेष आलेख प्रकाशित करेंगे !
Monday, December 29, 2008
जम्मू कश्मीर में चुनाव नतीजे, सवाल और संभावनाएं ....
चुनाव परिणाम जहाँ कि कहा जा रहा है कि जनता ने लोकतंत्र को जिताया है इस प्रकार रहे,
नेशनल कोंफ्रेंस: २८ सीट
पीपुल्स डेमोक्रटिक पार्टी: २१ सीट
कोंग्रेस: १७ सीट
भाजपा: ११ सीट
अन्य: १० सीट
दरअसल इन परिणामों को किसी एक वाद या धरा से जोड़ कर देखना मुश्किल है....और यह दूसरी बार है जब कश्मीर में जनता ने एक त्रिशंकु विधानसभा चुनी है। कौंग्रेस को ज़ाहिर तौर पर नुक्सान हुआ पर उस नुक्सान का फायदा किसी एक दल को मिलने की जगह बनता हुआ नज़र आया है और यह दिखा रहा है कि जनता के अलग अलग धडो में अलग अलग विचार चल रहा था।
नेशनल कौन्फ्रेंस की सीट पिछली बार भी उतनी ही थी और इस बार भी उतनी ही रही इसका सीधा अर्थ यह है कि उन्होंने कोई तीर नहीं मारा है और वे वहीं खड़े हैं...पर कौंग्रेस की सीट कम होने का फायदा उसे मिला। इससे यह ज़रूर कहा जा सकता है कि फारूक और उमर के लिए कश्मीरी अवाम का प्यार कम नहीं हुआ है पर बढ़ा भी नहीं है।
उधर पी डी पी की सीट पिछली बार की सोलह से बढ़कर इस बार २१ हो गई है, इसके दो कारण हो सकते हैं एक यह कि वे शायद अपनी बारी में कुशल प्रशासन दे सके (जो कहना अतिश्योक्ति होगा) और दूसरा यह कि वह इन चुनावों में अपने पुराने घिसे पिटे कश्मीरियत/ स्वायतता के राग और अमरनाथ बवाल को भुनाने में सफल रही। पर सीट बढ़ने पर भी सरकार बना पाने की स्थिति में वह नही दिखती है।
कौंग्रेस दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से अमरनाथ विवाद का शिकार हो गई। गुलाम नबी की सरकार ने काम ठीक ठाक किया पर अमरनाथ विवाद में जम्मू के हिन्दुओं से उन्होंने नाराजगी मोल ली और उनकी नाव गोते खाने लगी हालांकि अभी भी सत्ता की चाबी उनके ही पास है।
सबसे ज्यादा किसी को फायदा हुआ तो वह है भारतीय जनता पार्टी, सही समय पर मौके की नब्ज़ पकड़ कर उसने जिस तरह जम्मू में अमरनाथ विवाद को हवा दी और उग्र आन्दोलन चलाया; उसका पूरा फायदा उसे हुआ। एक बार फिर भाजपा को ईश्वर के नाम का सहारा मिला और इस तरह धर्म के चोर दरवाज़े से भाजपा जम्मू कश्मीर में अपनी राजनीतिक ज़मीन तलाशने में कामयाब हुई। भाजपा को ११ सीट मिली हैं जबकि पिछली बार वह १ सीट ही जीत पायी थी।
पर शायद सबसे बड़ा नुक्सान किसी का हुआ है तो वह है अन्य जिनमे अधिकतर निर्दलीय हैं, वे बेचारे २२ से घटकर १० पर आ गए हैं। इनका सबसे बड़ा नुक्सान किया है भाजपा ने और फिर पीपुल्स डेमोक्रटिक पार्टी ने, शायद यह पिछली बार वाली संख्या में होते तो कौंग्रेस की जगह इनके हाथ में सत्ता की चाबी होती।
लेकिन जब हम इन चुनावों के परिणामों का विउश्लेशन करेंगे तो कई चौकाने वाली बातें निकलेंगी। पहला तो यह कि जम्मू की और कश्मीर की अवाम की सोच बिल्कुल अलग अलग है। भाजपा की चकित करने वाली बढ़त ने यह स्पष्ट संदेश दिया है कि अमरनाथ मुद्दे पर वह भाजपा के रुख का समर्थन करती है। दूसरी ओर कश्मीर की अवाम ने पी डी पी को ज्यादा सीट दे कर कहीं न कहीं अमरनाथ मुद्दे पर जम्मू की जनता से विरोध जताया है और कहीं न कहीं इसके और भी खतरनाक छुपे संकेत हैं और वह है कि कट्टरपंथी पूरे भारत की तरह यहाँ भी हावी हैं।
यही नहीं निर्दलियों की घटती संख्या यह भी संकेत देती है कि लोग निर्दलीय उम्मीदवार की जगह पार्टी को वोट देना बेहतर समझ रहे है जबकि पिछली बार की स्थिति इससे अलग थी। लेकिन उससे भी बड़ी बात यह है कि लोगों ने वहाँ की सबसे पुरानी राष्ट्रीय पार्टी कौंग्रेस की बजाय क्षेत्रीय दल को वोट देना बेहतर समझा।
पर सबसे बड़ा जो सवाल मेरे जेहन में उठ रहा है कि कहीं यह जम्हूरियत के साथ साथ अलगाववाद को भी वोट तो नहीं है ? जम्मू और कश्मीर में एक ही मुद्दे पर आधारित मतदान के दो परस्पर विरोधी रुख कहीं जम्मू और कश्मीर में दो ध्रुवों के कट्टरपंथ की हवा के दिशा सूचक तो नहीं ? कहीं ऐसा तो नहीं की कश्मीर के लोग अलगाव वाद के रास्ते पर चलते हुए मूलभूत विकास भी चाहते हैं और इस लिए वोट भी करते हैं ?
हालांकि ऐसा पूरी तरह नहीं कहा जा सकता क्यूंकि पी डी पी ने जम्मू में भी २ सीट जीती हैं, फिर भी सवाल बड़े हैं क्यूंकि भले ही सरकार इन चुनावों को जम्हूरियत की जीत बता रही हो, गौर से देखने पर यह कट्टरपंथ की बढ़त भी है। क्या भाजपा की बढ़त बदलाव का संकेत है या घाटी में राजनीतिक कट्टरपंथ के नए युग कान सूत्रपात ? क्या केवल चुनाव हो जाना और सरकार बन जाना NC और पी डी पी के भारतीय समर्थक दल होने का प्रतीक हैं या इस बहाने अप्रत्यक्ष रूप से अलगाव वाद के एजेंडे को आगे बढाया जा रहा है और वह भी सरकारी खर्चे पर. सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि अलगाववादी गुटों की अनदेखी कर के मतदान तो हुआ है पर आज भी वहा के अवाम के लिए बड़ा क्या है, भारतीयता या कश्मीरियत ?
Thursday, December 25, 2008
जन्मदिन की माया
अलवा ने जब कोंग्रेस में टिकट बेचने की बात कही तो माया ने एक राहत की साँस ली होगी की कम से कम टिकट के हमाम में कई नंगे और भी हैं लेकिन जन्मदिन को लेकर बसपा जैसी व्हिप कही नही जारी होती होगी । मायावती के पिछले जलसों पर भी उप के कई अधिकारी वर्दी में उन्हें अपने हाथों से केक खिलाते देखे गए हैं , जबकि ये वही माया हैं जो उत्तर प्रदेश के कृषि आयुक्त अनीस अंसारी को इसलिए हटा देती हैं की उनकी पत्नी ने सरकारी घर पर फैशन शो किया जो की सरकार की गरिमा को ठेस पहुचने वाला काम था ।
मायावती २००७ में जब सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूला से मुख्यमंत्री बनी थी तो जनता ने पहली बार उनसे सकारात्मक उम्मीद की थी । शायद माया ने भी अपने से कुछ ज्यादा उम्मीदें पाल राखी थी तभी उन्होंने प्रधानमंत्री की कुर्सी पर भी नज़र दाल ली , लेकिन इस प्रकरण ने माया को तो न सही जनता को तो ये बता ही दिया है की लोकतंत्र में सिर्फ़ वोट देना और सही व्यक्ति को चुन लेना दो अलग अलग बातें हैं । फिलहाल बहिन जी कह रही हैं की इस घटना को उनके जन्मदिन से जोड़ कर देखना ग़लत है, और रिपोर्ट दर्ज होने , हर्जाना , दोषियों के ख़िलाफ़ कार्यवाही जैसी बातें , लेकिन माया ये भूल जाती हैं की सियासत के ताज में कांटे भी होते हैं । हर्जाना तो शायद मजाक जैसा ही होता है और कार्यवाही के बारे में तो सबको पता है.......
क्रिसमस और ईसा की बात .....
आज क्रिसमस है...और कल से ही इसे मनाने की शुरुआत हो चुकी है, क्रिसमस के दिन / रात कहा जाता है कि ईसा का जन्म बेथलेहेम में हुआ था....ईसा जिन्होंने ईसाइयत से ज्यादा मानवता की सीख दुनिया में फैलाई। पता नहीं पर हम में से ज़्यादातर लोग उन्हें ईसाई धर्म के प्रवर्तक के रूप में ज्यादा जानते हैं ( ईसाई भाई भी ) और ऐसा शायद दुनिया के ज़्यादातर प्रचारकों के साथ हुआ। फिर चाहें वो मोहम्मद रहे हों या बुद्ध ......
दरअसल समस्या यह रही कि हम लोगों को उनके द्वारा कही गई बातों और उनके द्वारा किए गए कामों से ज़्यादा उनके अनुयायियों की कट्टरता से जोड़ कर देखते हैं। हम अपने भी धर्म प्रचारकों के धर्म प्रचार को तो याद रखते हैं पर उनकी मूल शिक्षाओं को भूल चलते हैं, यही इस्लाम के साथ हुआ और कमोबेश यही हुआ ईसाइयत के साथ। बाद के धर्मावलम्बियों ने ईसा या मोहम्मद की शिक्षाओं की जगह केवल और केवल धर्म के प्रचार को लक्ष्य बना लिया और वह भी किसी भी तरीके से।
कुछ ऐसे लोग जिन्होंने अपनी ताकत से अपनी धार्मिकता के प्रसार का तरीका अपनाया उन्होंने हिंसा का सहारा लिया, प्रलोभन का सहारा लिया, अन्य समाजों में व्याप्त अशिक्षा का सहारा लिया और दुर्भाग्य वश उनकी वजह से एक आम मुसलमान या आम ईसाई को भी कट्टर या हिंसक होने के ठप्पे नवाज दिया गया।
गलती उनकी भी थी जिन्होंने धर्म की भावना के बजाय धर्म का प्रसार करना चाहा और उनकी भी जिन्होंने हर उस धर्म के अवलंबी को ग़लत मान लिया ...... गलती उनकी भी रही जिन्होंने अपने धर्म की पंथ की मूल बातों की जगह केवल कर्मकांडों के पालन को ही धर्मावलंबन बना लिया। फिर चाहे वो अन्धविश्वासी हिन्दू रहे हों, हर मुहर्रम पर पुरानी धारणाओं को लेकर लड़ पड़ने वाले मुसलमान या चर्च के प्रति अंधभक्ति में मासूम स्त्रियों को डायन कह जला देने वाले ईसाई !
आज जयंती है ईसा की .....इसे मनाएं उस ईसा की याद में जिसने येरुशलम के तानाशाहों के खिलाफ अहिंसक लड़ाई की ....वो जिसने बताया कि बाँट कर खाने पर एक रोटी भी पूरे कुनबे का पेट भरती है। ईसा वो महापुरुष थे जिन्होंने कहा कि दूसरे पर ऊँगली उठाने से पहले ख़ुद के गुनाह गिनो !
मनाये उस ईसा का जन्मदिन जिसने सलीब पर लटकते वक़्त अपने कातिलों के लिए कहा था,
" हे प्रभु इन्हे माफ़ कर देना, क्यूंकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं !"
क्यूँ न सीखें हम सब एक दूसरे को माफ़ करना हर परिस्थिति में ?
कहते हैं कि क्रिसमस पर सच्चे दिल से सांता क्लाज़ से जो मांगो वो मिलता है....तो क्यूँ न मांग लें एक खूबसूरत दुनिया ...... जहाँ हम सबकी अच्छी बातों को अपना लें .....बुराइयों को बताएं उन पर चर्चा करें और अपने मन से उखाड़ फेंकें.......ईर्ष्या, द्वेष और शत्रुता .......क्यों न सीखें दोस्ती करना दुश्मन से भी..अपनी नफरत का ज़हर अपने बच्चों तक ना जाने दें!....और आखिरकार बना पाएं इस दुनिया को रहने के लिए एक बेहतर जगह !
बशीर बद्र का कहा याद रखें,
ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे
कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे
हँसो आज इतना कि इस शोर में
सदा सिसकियों की सुनाई न दे
ग़ुलामी को बरकत समझने लगें
असीरों को ऐसी रिहाई न दे
ख़ुदा ऐसे इरफ़ान का नाम है
रहे सामने और दिखाई न दे
अंत में क्रिसमस का विश्वप्रसिद्ध गीत प्रस्तुत है एक अलग अंदाज़ में !
Sunday, December 21, 2008
गरीबी
एक कवि था जिसने हमें यह बताया की किस प्रकार प्रेम की कोमल अनुभूतियों और जीवन के कड़वे सच को एक साथ बिठा कर दोनों से बातें की जा सकती है.....एक कवि था जिसने तब द्रोह्गान किया जब दुनिया उसकी दुश्मन थी, एक कवि हुआ जिसने लिखा वो जो लिखा ना गया उसके पहले न उसके बाद......
१९७१ में पाब्लो नेरुदा को साहित्य का नोबेल मिला तब वे किस्मत से फ्रांस में चिली की राजदूत थे नहीं तो शायद फरारी में होते और अपना पदक लेने भी ना जा पाते। १२ जुलाई १९०४ को चिली के छोटे शहर पराल में पैदा हुए नेरुदा ने तानाशाहों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई और देश छोड़ने को मजबूर हुए, इटली में शरण लेने गए तो वहाँ भी छुप छुप कर रहे.....अलग अलग तरह की कवितायें लिखी....एक ओर प्रेम की आकांक्षाओं से भरी तो दूसरी ओर बगावत और यथार्थ के तेवरों से भरी......ऐसी ही एक कविता पेश है.........
इस कविता का अनुवाद प्रसिद्द कवि सुरेश सलिल ने किया है और उनके अनुदित नायक के गीत संग्रह में यह कविता उपलब्ध है।
गरीबी
आह, तुम नहीं चाहतीं--
डरी हुई हो तुम
ग़रीबी से
घिसे जूतों में तुम नहीं चाहतीं बाज़ार जाना
नहीं चाहतीं उसी पुरानी पोशाक में वापस लौटना
मेरे प्यार, हमें पसन्द नहीं है,
जिस हाल में धनकुबेर हमें देखना चाहते हैं,
तंगहाली ।
हम इसे उखाड़ फेंकेंगे दुष्ट दाँत की तरह
जो अब तक इंसान के दिल को कुतरता आया है
लेकिन मैं तुम्हें
इससे भयभीत नहीं देखना चाहता ।
अगर मेरी ग़लती से
यह तुम्हारे घर में दाख़िल होती है
अगर ग़रीबी
तुम्हारे सुनहरे जूते परे खींच ले जाती है,
उसे परे न खींचने दो अपनी हँसी
जो मेरी ज़िन्दगी की रोटी है ।
अगर तुम भाड़ा नहीं चुका सकतीं
काम की तलाश में निकल पड़ो
गरबीले डग भरती,
और याद रखो, मेरे प्यार, कि
मैं तुम्हारी निगरानी पर हूँ
और इकट्ठे हम
सबसे बड़ी दौलत हैं
धरती पर जो शायद ही कभी
इकट्ठा की जा पाई हो ।
पाब्लो नेरुदा
Saturday, December 20, 2008
रास्ट्रीय जांच एजेंसी
आतंकवाद बनाम देश की सुरक्षा
सबसे पहले ४०९६ किलोमीटर लंबा भारत-बंलादेश सीमा,३२६८ किलोमीटर लंबाभारत-पाकिस्तान सीमा,भारत-नेपाल सीमा की पुरी तरह बदेबंदी,तथीय इलाके कीसुरक्षा को बाध्य जाए, विदेशी नागरिक पहचान कानून को सख्त बनायाजाए,आंतरिक सुरक्षा को और फुर्तीला और जांच एजेंसियों को और मुस्तैदबनाया जाए जन जागरूकता फैलाई जाए तभी दहशतगर्द रुपी भस्मासुर से निपटा जासकेगा वरना बीएसऍफ़,आईटीबीपी,सीआईएसऍफ़,सीआरपीऍफ़, होमगार्डस,वायुसेना,जलसेना,थलसेना के रहने का कोई मतलब नही रह जाएगा. कबतक हमअमेरिका,ब्रिटेन,फ्रांस के सरपरस्त बने रहेंगे. आख़िर कबतक हम अपना दुखडादुनिया के सामने रोते रहेंगे. इससे चीन, पाकिस्तान,बांग्लादेश प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से हमारे ऊपर लगातार हावी हो रहे हैं और हम चुपचाप सहनकर रहे हैं. अब वक्त आ गया है की हम मुहतोड़ जवाब दें वरना देश कीएकता,अखंडता और विकास की गति को पटरी से उतरने से कोई नही बचा पायेगा. ओमप्रकाश , भोपाल
Wednesday, December 17, 2008
हँसे या रोये
नेहा गुप्ता, भोपाल.
Friday, December 12, 2008
हाँ वह मेरा बेटा है .....
Thursday, December 11, 2008
सत्ता का उलट फेर
नेहा गुप्ता,भोपाल.
Wednesday, December 10, 2008
वैश्वीकरण की माया
Tuesday, December 9, 2008
गीतों भरी शाम ..... कुर्सी की मातमपुर्सी के नाम !
उम्मीद है कि आज का फौजी भाइयों का गीतों भरा फरमाइशी कार्यक्रम आपको पसंद आएगा। आज के गीतों की फरमाइश की है दिल्ली से शीला दीक्षित ने, भोपाल से शिवराज ने, जयपुर से अशोक गहलोत ने, रायपुर से रमन ने और आइजोल से ललथनहाव्ला ने .......
वसुंधरा राजे (राजस्थान)
दिल के अरमां आंसुओं में बह गए....
साथियों तो ये था आज का फरमाइशी प्रोग्राम ....अगले किसी ऐसे ही मौके पर फिर मिलेंगे तब तक के लिए शब्बा खैर !
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Monday, December 8, 2008
दिग्गज हारे चुनाव, जीती जनता !
इन चुनावों में कई बड़े बड़े दिग्गज धूल चाट गए हैं। सबसे बड़ा उलटफेर हुआ है उमा भारती की हार से, आश्चर्यजनक रूप से उमा भारती अपने गृह विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के अखंड प्रताप सिंह से हार गई हैं, उधर छत्तीसगढ़ में विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष महेंद्र करमा भी अपनी सीट गँवा बैठे हैं।
पाक की सच्चाई..............
Saturday, December 6, 2008
६ दिसम्बर पर कैफी आज्ज़मी की एक नज़्म -
राम बनवास से जब लौटके घर में आये
याद जंगल बहुत आया जो नगर में आये
रक़्सेदीवानगी आँगन में जो देखा होगा
छह दिसंबर को श्रीराम ने सोचा होगा
इतने दीवाने कहाँ से मेरे घर में आये
जगमगाते थे जहाँ राम के क़दमों के निशां
प्यार की कहकशां लेती थी अँगडाई जहाँ
मोड़ नफ़रत के उसी राहगुज़र से आये
धर्म क्या उनका है क्या ज़ात है यह जानता कौन
घर न जलता तो उन्हें रात मे पहचानता कौन
घर जलाने को मेरा लोग जो घर में आये
शाकाहारी है मेरे दोस्त तुम्हारा ख़ंजर
तुमने बाबर की तरफ़ फेंके थे सारे पत्थर
है मेरे सर की ख़ता ज़ख़्म जो सर में आये
पाँव सरयू में अभी राम ने धोये भी न थे
कि नज़र आये वहाँ ख़ून के गहरे धब्बे
पाँव धोये बिना सरयू के किनारे से उठे
राजधानी की फ़िज़ा आयी नहीं रास मुझे
छह दिसंबर को मिला दूसरा बनवास मुझे !
राजनीती,राजनेता और विकास
आतंकवाद पर एक नज़्म
विस्फोट के बाद ।
मुल्क को लगी ,
चोट के बाद ।
बेरहम दहशतगर्द !
कितना कुछ कर डालते हैं ,
और अपने गुनाह का बोझ ,
खुदा के सर डालते हैं ।
खुदा अपने आप को ,
कितना बेबस पाता होगा !
ऐसे खुदापरस्तों पर ,
किस कदर शर्माता होगा !
Thursday, December 4, 2008
एक न्यूज़ चैनल की ब्रेकिंग न्यूज़ का स्वरुप देखिये
Wednesday, December 3, 2008
अब डरने लगा हूँ
रोज़ तिल तिल कर मरने लगा हूँ ,
रोज़ बस से आफिस जाता हूँ ,
इसलिए आस पास की चीज़ों पर ध्यान लगता हूँ
सीट के नीचे किसी बम की शंका से मन ग्रसित रहता है
कभी कोई लावारिस बैग भ्रमित करता है ।
ख़ुद से ज़्यादा परिवार की फ़िक्र करता हूँ
इसलिए हर बात मे उनका ज़िक्र करता हूँ
रोज़ अपने चैनल के लिए ख़बर करता हूँ
और किसी रोज़ ख़बर बनने से डरता हूँ
मैं एक आम हिन्दुस्तानी की तरहां रहता हूँ
इसलिए रोज़ तिल तिल कर मरता हूँ
हालात यही रहे तो किसी रोज़ मैं भी
किसी सर फिरे की गोली या बम का शिकार बन जाऊँगा
कुछ और न सही पर बूढे अम्मी अब्बू के
आंसुओं का सामान बन जाऊँगा।
इस तरह एक नही कई जिनदगियाँ तबाह हो जाएँगी
बहोत न सही पर थोडी ही
दहशतगर्दों की आरजुओं की गवाह हो जाएँगी ।
इसीलिए मैं अब डरने लगा हूँ
हर रोज़ तिल तिल कर मरने लगा हूँ ,तिल तिल कर मरने लगा हूँ ।
Tuesday, December 2, 2008
वक़्त की पुकार......
हम उनकी औकात से वाकिफ , वो न हमको जाने हैं
हम वो हैं, जो देश की खातिर जीते हैं, और मरते हैं
वक़्त सही है , दुश्मन के अब होश ठिकाने लाने है
हिन्दू,मुस्लिम,सिख,ईसाई सबको हिंद से प्यार बहुत
जो भी दुश्मन इसको देखे वो सब मार गिराने है
मिलकर अपने देश को यारों , सूरज जैसा चमका दो
दहशत की दुनिया से बच कर गुलशन यूँ तामीर करो
ज़ुल्मत को दुनिया से मिटाओ , जालिम को ज़ंजीर करो.
(मुल्क में नाजुक हालात के मद्देनज़र भाईचारगी ही सबसे अहम है-
..........आपका अलाउद्दीन -अय्यूब )
शूटर और शूटर ......
एक ओलम्पिक शूटर के स्वर्ण जीतने पर सरकार उसे ईनाम के तौर पर 3 करोड़ रुपये देती है। ( सनद रहे कि वह शूटर पहले ही करोड़पति है ! )
एक और शूटर आतंकवादियों से लड़ते हुए मर जाता है .... ( देश और हमारी रक्षा के लिए ) और सरकार उसे केवल 5 लाख रुपये देती है !
Monday, December 1, 2008
यह सब तकलीफदेह है....
इस समय वाकई असहाय महसूस कर रहा हूँ ( शायद कुछ लोग यही चाहते हैं ! ) पर इतना स्पष्ट करना चाहूँगा किकुछ भी हो जाए CAVS संचार को धार्मिक राजनीति का अड्डा नहीं बनने दूँगा...हम पत्रकार हैं ...बेहतर होगा कि वैसा ही बर्ताव करें.....अब बस करिए
यह ब्लॉग किसी हिन्दू या मुस्लिम के दिल की भड़ास निकालने के लिए नहीं है .....मैंने पहले ही विनती की थी .... ना तो हम मुस्लिम लीग और जमायत के हिमायती हैं और ना ही किसी बजरंग दल या हिन्दू महासभा के !
हमें क्षमा करें हम निष्पक्ष पत्रकार है....किसी मज़हबी संस्था के मुखपत्र नहीं !
इसलिए आप सभी जो किसी धर्म विशेष की पैरवी करने अथवा किसी मज़हब के ख़िलाफ़ ज़हर उगलने की मंशा रखते हैं ..... आप कृपया इस ब्लॉग का प्रयोग ना करें .... आप इस काम के लिए व्यक्तिगत या सामूहिक अन्य ब्लॉग बनाने हेतु स्वतंत्र हैं ! कृपया हमें कुछ वाकई सार्थक करने दें .....
हम क्षमा प्रार्थी हैं किसी आपके मज़हबी उद्देश्यों में हम साधक नहीं बन सकते ! किसी ने कहा किसी धमकी न दें तो बन्धु यह प्रार्थना है...वैसे भी उग्रपंथियों ( किसी भी धर्म के ) के आगे एक आम आदमी केवल प्रार्थना ही कर सकता है !
इसीलिए हमने यह निर्णय लिया है कि हम इस प्रकार की किसी भी पोस्ट से अपनी छवि एक कट्टरपंथी ब्लॉग की नहीं बनने देंगे .....बेहतर होगा कि हम मुद्दों की बात करें......
वैसे भी मुल्क की ज़रूरत आज हिंदू या मुसलमान नहीं ....... हिन्दुस्तानी होना है !
क्षमाप्रार्थी
केव्स परिवार !
( हमारे पास लगातार प्रतिक्रियाएं और मेल आई जिसके फलस्वरूप यह प्रार्थना की जा रही है। CAVS की धर्मनिरपेक्ष छवि हम सभी के लिए ज़रूरी है। )
भारतीय खेती की दशा और दिशा
गौर फरमाएं
रोज विस्फोट अब हो रहे हैं।
टांग में टांग देखों फसांए,
गधे ये चैन से सो रहे हैं।
- सुभाष भदौरिया