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Wednesday, December 17, 2008

हँसे या रोये

हाल-फिलहाल दो रिपोर्ट आयीं. ये दोनों रिपोर्ट देश के आर्थिक विकास में फर्क डालती हैं. पहली के ऊपर सीना ठोका जा सकता है तो दूसरी खून के आसूं रुलाने वाली है. अब पहली रिपोर्ट यूँ है कि देश कि शीर्ष १० कम्पनियाँ इस मंदी में भी बंसी बजा रही हैं. इन्हे ५२६२१ करोर का फायदा हुआ है. ऐसा लगता है कि इन कंपनियों ने मंदी के पहन को कुचल दिया है. अब बेचारी मंदी कराह रही है. वहीं राष्ट्रीय आपराध आकडे ब्यूरो की रिपोर्ट कहती है पिछले साल १६६३२ किसानो ने ख़ुद को मौत के मुंह में धकेल दिया. ४६ किसान हर दिन आत्महत्या का घूंट पी रहे हैं. सबसे ज़्यादा मौतें १९९७ में १८२९३६ हुयीं. इस दुखद दौड़ में महाराष्ट्र (४२३८) सबसे आगे है. जिसकी राजधानी पैसों की नगरी कही जाती है. जहाँ देश के नायब अमीरचंद अपना बसेरा बसाये हैं. गोवा, मणिपुर जैसे ५ राज्यों ने इस मामले में अपनी बेदाग छवि बना राखी है. एक तरफ हमारी कम्पनियाँ वैश्विक स्तर पर झंडे गाड़ रही हैं, वही हमारी कृषि आनाथ हो गई है. क्या इस ५२६२१ करोर में उन किसानो का कोई हक नही, जिनकी पीठ पर ही फायदा बरसाने वाली वट वृक्ष टिकी हैं।

नेहा गुप्ता, भोपाल.

4 comments:

  1. krishi nahi bachi to bade gharane bhi nahi bachenge.munafe ke aankde
    desh ke samuche vikash ke sandarbh me dekhne chahiy.

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  2. आँखें खोलने वाले आंकडे है ,
    जानकारी बढ़ाने के लिए धन्यवाद |
    हो सके तो विस्तृत जानकारी देने का कष्ट करें |

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  3. आपका विषय अच्छा है . आप क्या कहना चाहती है इसको पूरी तरह स्पस्ट करे. भाषा की कमियों को दूर करे और आप आकडो को कहा से ले आई इसको भी कोड करे ...

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  4. घबराइये मत ! अब ये उद्योगपति ही किसानों को बचायेंगे |

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