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Saturday, December 20, 2008

रास्ट्रीय जांच एजेंसी

बड़े कयासों अरु तमाम बेकसूर लाशों के ढेर ने सरकार को आखिरकार मजबूर कर ही दिया, और अब आतंकवाद के खिलाफ भारत का नया कानून तैयार है। नाम- राष्ट्रीय जांच एजेंसी, १६ दिसम्बर २००८ है। कानून कुछ यूँ है कि संदिग्घ आतंकी को पुलिस हिरासत में एक महिना, न्यायिक करवाई में आधिकतम छह महीने, पुलिस के सामने दिए बयान को सही और आतंकी कामो के पैसे के जुटाव के लिए सजा-ऐ-मौत है। साथ ही गैर कानूनी गतिविधि अधिनियम १९६७ को भी संशोधित किया गया । अब गौर फरमाइए कि ये कानून सिर्फ उपाय भर है। ये कहता है कि अगर धमाका हुआ या चलो होने वाला हो,तो क्या कदम उठायेगे। बचाव का कहीं नामोनिशान नही है। अगर अमेरिकी कानून को देखे तो उसमे कही से कोई लूप होल्स नज़र नही आते। परिणाम भी हमारे सामने है, ९/११ के बाद कोई ब्लास नहीं हुआ। हमारे कानून में सीमा पार से आने वाले हर व्यक्ति कि गहराई से पूछताछ और उँगलियों के निशान लेने जैसा कोई प्रावधान नही है। तो भाई इस कानून को बचाव कानून कहने में कोई गुरेज नाहीं होना चाहिए। खैर, सरकार के कान पर जू तो रेंगा। ये कोई छोटी-मोटी बात नही है। अब बात आती है इसके पालन की। क्यूंकि पोता का हश्र सभी ने देखा है, किस तरह राजनितिक तुष्टिकरण के लिए इसका प्रयोग हुआ। आतंकवाद का फन तो तभी कुचला जा सकता है,जब नेता भी अपनी गन्दी राजनीति छोड़ एकजुट होंगे। नही तो बिना धमाको के भारत , का ख्वाब पुरा होने वाला नही है। आए दिन होने वाले विस्फोट का एक कारन और है की भारत की खुफिया एजेंसियां ,सैन्य विभाग और तमाम पुलिस बल एक चैन में नज़र नही आते। अलग-अलग ध्रुवों के रूप में नज़र आते हैं। इनमे कही से कोई लिंक ही नही नज़र आता। अगर ये भी आपस में जुड़ जाएँ तो मजाल नाहीं आतंकियों की, की भारत में पर (पंख ) भी मार सके।
neha gupta भोपाल

1 comment:

  1. जब तक सरकार इमान्दार नही है तब तक जांच एजेंसी से क्या होना है। हमे हरेक प्रकार के आतंकवाद – वामपंथी(नक्सली) और जेहादी के प्रति जीरो टोलरेंस दिखाना होगा। कोई भी छोटी से छोटी आतंकी घटना के तह तक जा कर मुजरिमो कानुन के तहत कडी से कडी सजा देना होगा। जो देश मे हो नही रहा है। संप्रग सरकार अपने वोट बैंक की वजह से वामपंथी(नक्सली) और जेहादी आतंकीयो के प्रति नरम रुख बनाए हुए है।

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