एक क्लिक यहां भी...
Tuesday, March 31, 2009
चुनावी चित्रकथा.....देखें मज़ा लें !
Monday, March 30, 2009
लाहौर आतंकी हमले का हिन्दी ब्लोग्स पर पहला विडियो ...
यहाँ करीब ८५० प्रशिक्षु मौजूद हैं....आखिरी समाचार मिलने तक मतभेद जारी है, देखें हिन्दी ब्लॉग पर इस हमले का पहला विडियो ......
Sunday, March 29, 2009
चुनावी चित्रकथा....देखें और मज़ा लें !
चित्र की प्रेरणा फ़िल्म फिर हेरा फेरी के पोस्टर से ली गई है.....काफ़ी कुछ फ़िल्म का नाम भी इनकी हरकतों से मिलता जुलता है......देखें और मज़ा लें !
(यह चित्र वाल पेपर आकार का है इसे सेव कर डेस्कटॉप पर भी लगाया जा सकता है)
क्या आपने कल वोट किया ?
हांगकांग का सेंट्रल कमर्शियल मार्केट जहां बत्तियां बुझा दी गईं
Saturday, March 28, 2009
आपका वोट आपकी ताक़त
गैरों पे करम,अपनों पे सितम
दरसल भाइयों के बीच इस गृह युद्ध की शुरुआत लक्ष्मन ने ही की थी जब उन्होंने गुना में ये कह कर सनसनी फैला दी थी की दिग्विजय न सिर्फ सोनिया को कमज़ोर करना चाहते हैं बल्कि मनमोहन तक को अक्षम प्रधान मंत्री मानते हैं और उनके अधीन काम करने में तौहीन समझते हैं . अब बड़े भैय्या दिग्विजय ने ख़त लिख कर छोटे भाई को सलाह दी है की वे कांग्रेस और मनमोहन की चिंता करना छोड़ दें .
लक्ष्मन सिंह राजगढ़ से भाजपा के उम्मीदवार हैं ....और उनके ताजा बयान से राजगढ़ और गुना में खलबली मची हुई है । दरअसल इसी राजगढ़ के लिए लक्ष्मन ने ये बयान देकर कभी खूब तालियाँ बटोरी थी यहाँ से दादा के खिलाफ नहीं उतरूंगा॥अब लक्ष्मन के बदले हुए सुर इस बात का संकेत देते हैं की लक्ष्मन भाजपा के शीर्ष नेत्रत्त्व को ये दिखाना चाहते हैं की उनके लिए भाई से ज्यादा महत्व पार्टी का है .....हलाँकि लक्ष्मन इससे पहले तिवारी कांग्रेस के समय अर्जुन सिंह के खिलाफ भी ज़हर उगल चुके हैं ... वहीँ दूसरी तरफ भाई के हमले से बौखलाए दिग्गी भी पलटवार करने में देर नहीं कर रहे .खैर इस जुबानी लड़ाई में जीत चाहें जिसकी हो , एक बात तो फिर साफ़ हो गयी है की सियासत में न कोई अपना है न पराया ।
पॉलिटिकल पाठशाला !
वैसे बताते चले कि धर्म की अफीम के चलते वरुण की नौटंकी में उनके साथ हजारों भाजपा कार्यकर्ता भी शामिल हो लिए हैं, वरुण ये कह रहे हैं कि उन्होंने कुछ ग़लत नहीं कहा.....फिर कह रहे हैं कि उनके ख़िलाफ़ साजिश हुई है, फिर कहते हैं कि वि जेल जाने को तैयार हैं.....क्या ये बयान विरोधाभासी नहीं ?
जवाब अपने अन्दर ढूँढिये.....हिंदुत्व का ये चिन्तक इतने दिन कहाँ था ?
Friday, March 27, 2009
लोक गाता नवसंवत्सर लोक गीत .....शुभकामना ....वालपेपर के साथ
- महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीना और वर्ष की गणना करते हुए ‘पंचांग ‘ की रचना की
- कहते हैं कि मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम का राज्याभिषेक इसी दिन हुआ।
- हिन्दू धर्म में विकास और विध्वंस की देवी मॉं दुर्गा की उपासना की नवरात्र व्रत का प्रारम्भ इसी दिन से होता है।
- उज्जयिनी सम्राट- विक्रामादित्य द्वारा विक्रमी संवत् प्रारम्भ किया गया।
- महर्षि दयानंद द्वारा आर्य समाज की स्थापना इसी दिन की गई।
यह दिन पूरे देश में उल्लास का पर्व है तो आप सभी को हमारी ओर से नव संवत्सर की शुभकामनायें और भेंट में ये वाल पेपर.....एक कविता के साथ !
ये पंछी नहीं
लोकगायक आए हैं
कुछ प्राकृत
कुछ अप्रभंश गीत लाए हैं
चिड़ियों की जिह्वा पर
बिरहड़ा
तोतों के कण्ठ में
भंगड़ा
कौव्वों के टप्पे
ये आदिवासी तानों में
कानन पर छाए हैं
यह चकवी की धुन
किन्नरी के सुर-सी
रामचिरैया रे
बोलों में चौपाई उभरी
ये आल्हा और ऊदल के उत्सर्ग
मैना ने भारी-मन गाए हैं
सुन कोयला का ढोलरू
नवसंवत्सर लाया
पपीहे ने बारहों-मास
सावनघन गाया
ये मोनाल के सोहाग राग
शतवर्धावन लाए हैं
ये चकोर-चकोरी की
लोक-ऋचाएं
ये मयूर-मयूरी की
मेघ-अर्चनाएं
ये सारसों के अरिल्ल
सृष्टि की बांसुरी बन भाए हैं
ये इतने–सारे राग रंग
गीत कण्ठ ये ढेर-ढेर
मन्त्र-गीत
प्रीत-छन्द
ये सब इन लोकगायक कवियों के जाए हैं
ओमप्रकाश सारस्वत
Thursday, March 26, 2009
हर तरफ धुआं है
हर तरफ धुआं है
हर तरफ धुआं है
हर तरफ कुहासा है
जो दांतों और दलदलों का दलाल है
वही देशभक्त है
अंधकार में सुरक्षित होने का नाम है
-तटस्थता।
यहां कायरता के चेहरे पर
सबसे ज्यादा रक्त है।
जिसके पास थाली है
हर भूखा आदमी
उसके लिए,
सबसे भद्दीगाली है
हर तरफ कुआं है
हर तरफ खाईं है
यहां, सिर्फ, वह आदमी,
देश के करीब है
जो या तो मूर्ख है
या फिर गरीब है
Wednesday, March 25, 2009
चुनाव लोकतंत्र का अस्त्र....ब्लॉग एक मंच
आप सब ने अब तक इस ब्लॉग केव्स संचार को सफलता के कुछ पड़ाव तय करने में जिस तरह का योगदान और प्रोत्साहन दिया उसके लिए हम आपके ह्रदय से आभारी हैं।
साथियों जैसा की आप सब जानते हैं की देश के भाग्य के निर्धारक आम चुनाव बस आने ही वाले हैं। चुनाव लोकतंत्र का वह अस्त्र हैं जो जनता के हाथ में है, अब आप उसका सटीक उपयोग करेंगे तो वह आपके भाग्य को सूर्य सा चमका देगा और नहीं तो हमेशा के लिए अन्धकार भी पैदा कर सकता है .....एक पत्रकार या भावी पत्रकार होने के नाते हमारा यह दायित्व है कि हम गणतंत्र के आम आदमी की आवाज़ हाकिमों तक और हाकिमों की सच्चाई आम आदमी को दिखायें.....
हम चाहते हैं हमारा ब्लॉग एक मंच बने जहां से सच सामने दिखे ! सच वो कैसा भी हो, किसी का भी हो कभी भी सामने आये....चुनाव में आम आदमी एक बार फिर मूर्ख ना बनाया जाए.....विचारों पर खुली बहस हो और आपकी ज़बरदस्त लेखनी की धार और ताक़त दुनिया भी देखे !दोस्तों इसलिए केव्स संचार पर कलम से देश को जगाने का एक छोटा सा प्रयास करना चाहते हैं, वस्तुतः प्रयास की सफलता उसके किये जाने में है ना कि उसकी प्रसिद्धि में इसलिए मेरा आप सबसे अनुरोध है कि इस श्रृंखला जिसका नाम भी आप ही हमें सुझायेंगे का हिस्सा बने और सदैव की भांति हमें अपने लेख और रचनाएँ भेजें ....
केव्स संचार पर यह अब तक की शायद सबसे बड़ी श्रृंखला होगी अतः इसका नाम भी आप ही निर्धारित करेंगे, हम चाहेंगे कि इस लोकतंत्र की शुरुआत आप ही से हो इसलिए इस श्रृंखला के लिए हमें नाम सुझाएँ cavssanchar@gmail.com पर या टिप्पणी के रूप में.....आप हमें इस मौके के लिए ले आउट, सामग्री, विषयों, मुद्दों पर एवं अन्य सुझाव भी इसी ई मेल पते पर भेज सकते हैं पर ध्यान रहे कि इसके लिए समय बहुत कम बचा है।
आपकी प्रतिक्रिया हमारे लिए जीवन अमृत है.....ईधन है
आपका
केव्स परिवार
Tuesday, March 24, 2009
सुलझी सौम्या की ह्त्या की गुत्थी ?
दिल्ली पुलिस ने बताया कि दोनों की हत्या में इस्तेमाल सेन्ट्रो कार और हथियार बरामद कर लिया गया है। गिरफ्तार चारों आरोपियों ने जुर्म स्वीकार लिया है। इनके नाम हैं- रवि, बॉबी, अमित और अजय हैं। पुलिस के अनुसार रवि कपूर ने ही सौम्या को गोली मारी थी। इनके पास से खाकी वर्दी, लाल बत्ती, वायरलेस सेट, कुछ चैनलों के स्टीकर मिले हैं। पुलिस के मुताबिक हत्या का मकसद निजी रंजिश नहीं, बल्कि लूटपाट था। सितंबर में सौम्या की हत्या करने वाले ही जिगिशा के हत्यारे निकले। पुलिस ने कहा कि जिगिशा हत्याकांड की जांच करते वक्त उन्हें सौम्या की हत्या के सुराग हासिल हुए।
जिगिशा नोएडा के बीपीओ में ऑपरेशंस मैनेजर थी। जिगिशा का अपहरण उनके घर के सामने से नहीं, बल्कि वसंत विहार की सीपीडल्यूडी कॉलोनी के गेट के बाहर किया गया था। बीपीओ की कैब ने उन्हें इस गेट के बाहर उतारा था। इंतजार कर रही गाड़ी में तीन अपराधी थे। जैसे ही जिगिशा गेट की ओर बढ़ीं, उन्हें गाड़ी में खींच लिया गया। कैब ड्राइवर शाहिद ने पुलिस के सामने कबूल कर लिया कि उसने जिगिशा को उनके घर के सामने नहीं, बल्कि कॉलोनी गेट के बाहर ड्रॉप किया था। बदमाशों ने जिगिशा को अगवा करने के बाद पहले महिपालपुर ले गए। वहां उन्होंने जिगिशा से एचडीएफसी बैंक के डेबिट कार्ड का पासवर्ड लेकर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के एटीएम से रुपये निकाले। यहां सीसीटीवी में अपराधी की तस्वीर आ गई। इसके बाद साकेत में एटीएम से रुपये निकाले गए। वहां भी सीसीटीवी के जरिए अपराधियों की तस्वीर पुलिस को मिल गई। इसके बाद सूरजकुंड रोड पर जिगिशा का गला घोंटकर झाड़ियों में फेंक दिया गया। जिगिशा की लाश दो दिन बाद बरामद हुई।
दिल्ली पुलिस के अनुसार सौम्या और जिगिशा दोनों की हत्या के पीछे लूट का मकसद था। अंग्रेजी टीवी चैनल हेडलाइंस टुडे की पत्रकार सौम्या विश्वनाथन की पिछले साल 30 सितंबर को हत्या कर दी गई थी। सौम्या उस वक्त देर रात ऑफिस से घर लौट रही थीं। लेकिन वह घर न पहुंच सकीं और सुबह सड़क पर उनकी गाड़ी में शव पाया गया था। इस बीच, सौम्या के परिजनों ने पुलिस जांच के प्रति संतोष व्यक्त किया है। सौम्या के पिता एमके विश्वनाथन ने बताया कि वे जांच से संतुष्ट हैं। पुलिस ने अच्छा काम किया है। उनकी जांच सही दिशा में थी। विश्वनाथन ने कहा कि पिछले छह महीनों से पुलिस उन्हें जांच की प्रगति के संबंध में सूचित करती रही है और उन्हें इसमें पूरा विश्वास था।
हाय-हाय बोर्ड...बाय-बाय देश
Monday, March 23, 2009
या तो हम भूल गए हैं या याद रखना नहीं चाहते....
भगत सिंह आज भी एक हीरो हैं और इसके पीछे के कारण समझना बहुत मुश्किल नहीं है। एक आम भारतीय नागरिक रोज़ देखता है कि मुल्क गाँधी के देखे गए स्वप्न के भारत से दिन पर दिन दूर और दूर जा रहा है, आम आदमी से गाँधी के सिद्धांतों का पालन करने की अपेक्षा की जाती है जिनके ख़िलाफ़ तो वह वैसे भी नहीं जा सकता है क्यूंकि वह उसकी सामर्थ्य में ही नहीं है....पहले विदेशियों और अब देशियों के हाथों लुटता पिटता आम आदमी भगत सिंह में व्यवस्था के प्रति विद्रोह और आक्रोश देखता है और याद करता है कि भगत सिंह ने कहा था कि गोरे साहब चले जायेंगे तो भूरे साहब राज करेंगे और हो भी यही रहा है।
भगत सिंह को आज के समय याद करती अशोक कुमार पाण्डेय की एक कविता,
जिन खेतों में तुमने बोई थी बंदूकें
उनमे उगी हैं नीली पड़ चुकी लाशें
जिन कारखानों में उगता था
तुम्हारी उम्मीद का लाल सूरज
वहां दिन को रोशनी रात के अंधेरों से मिलती है
ज़िन्दगी से ऐसी थी तुम्हारी मोहब्बत
कि कांपी तक नही जबान
सू ऐ दार पर इंक़लाब जिंदाबाद कहते
अभी एक सदी भी नही गुज़री और
ज़िन्दगी हो गयी है इतनी बेमानी
कि पूरी एक पीढी जी रही है ज़हर के सहारे
तुमने देखना चाहा था जिन हाथों में सुर्ख परचम
कुछ करने की नपुंसक सी तुष्टि में
रोज़ भरे जा रहे हैं अख़बारों के पन्ने
तुम जिन्हें दे गए थे एक मुडे हुए पन्ने वाले किताब
सजाकर रख दी है उन्होंने
घर की सबसे खुफिया आलमारी मैं
तुम्हारी तस्वीर ज़रूर निकल आयी है
इस साल जुलूसों में रंग-बिरंगे झंडों के साथ
सब बैचेन हैं तुम्हारी सवाल करती आंखों पर
अपने अपने चश्मे सजाने को तुम्हारी घूरती आँखें
डरती हैं उन्हें और तुम्हारी बातें
गुज़रे ज़माने की लगती हैं
अवतार बनने की होड़ में
तुम्हारी तकरीरों में मनचाहे रंग
रंग-बिरंगे त्यौहारों के इस देश में
तुम्हारा जन्म भी एक उत्सव है
मै किस भीड़ में हो जाऊँ शामिल तु
म्हे कैसे याद करुँ भगत सिंह
जबकि जानता हूँ की तुम्हे याद करना
अपनी आत्मा को केंचुलों से निकल लाना है
कौन सा ख्वाब दूँ मै अपनी बेटी की आंखों में
कौन सी मिट्टी लाकर रख दूँ
उसके सिरहाने
जलियांवाला बाग़ फैलते-फैलते ...
हिन्दुस्तान बन गया है
Sunday, March 22, 2009
भगत सिंह वाल पेपर .....
इस वाल पेपर को आप इस पर क्लिक कर के डाउनलोड कर सकते हैं....
अलविदा जेड !
मुझे मालूम नहीं कि इस पर और बहुत शब्द कैसे लिखें जाए पर जिस तरह जेड ने मौत को गले लगाया उस साहस को हम सबका सलाम ......बस उनके लिए आनंद फ़िल्म से गुलज़ार की लिखी हुई एक नज़्म जो कुछ इसी तरह की परिस्थितियों में चित्रित थी .........
मेरा हाथ थामे रहना ....भले साँस मेरी जाए
जब तक रहा हूँ धूप में चादर बना रहा
मैं अपनी माँ का आखिरी ज़ेवर बना रहा
उमर घट गई डगर कट गई, जीवन की ढलने लगी सांझ।
कठिन है राहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो
बहुत बड़ा है सफ़र थोड़ी दूर साथ चलो
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
अलविदा जेड
ज़िन्दगी लम्बी नहीं ....बड़ी होनी चाहिए !
Saturday, March 21, 2009
३३ साल और २ महीने लगभग .....
Friday, March 20, 2009
मैं एंकर बनना चाहता हूँ ......क्यों नहीं ?
(लेख आज की मीडिया के ट्रेंड्स की कलाई खोलता है)
क्या मैं एंकर नहीं बन सकता ...?
ये बहुत निजी मामला है। लोग कह सकते हैं, मैं फ्रस्ट्रेट हो गया हूं। पर फिर लगता है, कहे बिना भी तो मन नहीं मानेगा। लोग ये भी कह सकते हैं, मैं जिस थाली में खा रहा हूं, उसी में छेद करने की जुर्रत कर रहा हूं।पर सारी बातें एक तरफ... और सच्चाई एक तरफ। सच तो कहना ही चाहिए। बहुत पहले मीडिया के एक बड़ा चेहरा है, एंकर हैं, बड़ा नाम है उनका..... इन्हीं साहब की लिखी एक किताब पढ़ी थी। उन्होने लिखा था, ' मीडिया में हम सुबह से लेकर शाम तक के टाइम स्लॉट में खूबसूरत लड़कियों से एंकर करवाना पसंद करते हैं।' ..... फिर खुद ही उन्होने साफ किया, 'ये टीआरपी का पंगा है। दिन के वक्त लोग खूबसूरत चेहरों को देखना अधिक पसंद करते हैं।' ज़ाहिर है, इससे टीआरपी का चक्का तेज़ी से घूमता है।
सच कहता हूं.... मुझे उनके तर्क पर गुस्सा आया था। उन्होने अपनी इस किताब में टेलीविजन न्यूज़ के बारे में बताते हुए लिखा----- 'टीवी न्यूज़.... साहब ये एंकर और रिपोर्टर होते हैं। एकंर और रिपोर्टर मिलकर टीवी न्यूज़ का निर्माण करते हैं।' मन किया उनसे सवाल पूछूं.... श्रीमान जी ये डेस्क (प्रोड्यूसर) वाले क्या करते हैं। इनका टेलीविज़न न्यूज़ में कोई योगदान होता है क्या ?
खैर... मैं मामले से क्यों भटकूं ? सारा मामला तो एंकरिंग का है। सच बताऊं तो मैं भी एंकर बनना चाहता हूं। पर कोई तो हो, जो कहे... भई, तुम एंकरिंग क्यों नहीं करते ? कोई तो पारखी नज़र हो जो कहे.... चलो आज से तुम शुरू करो। छह साल हो गए मुझको... काम करते हुए। सारे लोग यही कहते हैं, कि मैं अच्छा काम करता हूं। पर कोई ये नहीं कहता, कि चलो एंकरिंग करो।
पर इन पारखी लोगों की नज़रे खूबसूरत चेहरों को बहुत जल्दी पहचान लेती हैं। जो लोग मीडिया को करीब से जानते हैं, वो सहमत होंगे कि मीडिया में पदों पर बैठे लोगों को खूबसूरत चेहरे पहचानने में ज़रा भी दिक्कत नहीं होती। ये लोग जिसे चाहें उसे एंकर बना दें। एंकर बनने और बनाने के पीछे क्या चलता है। इसकी मुझे कोई जानकारी नहीं है। पर वक्त बेवक्त मैंने कई कहानियां सुनी है। सारी सच ही होंगी ऐसा मैं नहीं कह सकता।
मैं जानता हूं, ऐसे हसीन चेहरों को, जिन्हें ये मालूम नहीं कि मुलायम सिंह यादव कौन हैं ? और गठबंधन किसे कहते हैं ? पर साहब .... पारखी लोगों को इससे क्या फर्क पड़ने वाला। उनके लिए जैसे एंकर होने की पहली प्राथमिकता एक खूबसूरत चेहरा और दूसरा हंसकर बात करने की कला है।
अब फिर से उन बड़े एकंर... बड़े नाम से एक सवाल।.... जो ये कहते हैं कि टीवी न्यूज़ एंकर और रिपोर्टर है।..... तो साहब आपको बता दूं कि मुलायम सिंह कौन हैं ? ये सवाल पूछने वाले ज्ञानवान एंकरों को हम डेस्क वाले नादान ही बताते है.... कौन है, मुलायम सिंह ?
आपके साथ हुआ हो या नहीं, मेरे साथ तो हुआ है। ऐसे भी ज्ञानवान एंकरों को जानता हूं, जो लाठी चार्ज वाली घटना पर रिपोर्टर से सवाल पूछ रही थी...... ' तो .... बताइए..... कैसा माहौल है ?.... अच्छा ये बताइए अब अगला लाठी चार्ज कब होगा ? ' ........................अब अगला लाठी चार्ज कब होगा !!!!!!!!!!!!! पर ये भी खूबसूरत थी, ज़ाहिर है बॉस ने कहा होगा, चलो सीख जाएगी.... काम करते-करते। सही कहा था बॉस ने। ये एकंर आज देश के एक बड़े चैनल पर चमक रही है।
पर मैं ऐसे लोगों को भी कुढते हुए देखता हूं। जो टीवी के पर्दे पर चमक रहे थे। लेकिन आजकल उन पर धूल जम गयी है। भई... क्यों जमी है, उन पर धूल.... ये सवाल कोई पारखी नहीं पूछता ? अब ऐसे लोगों के दर्द के सामने मेरा दर्द तो कुछ भी नहीं है ना।..... मैं तो बनना चाहता हूं, पर वो बेचारे बने हुए थे...... लेकिन उनकी बेकद्री कर दी गयी।
पर फिर भी कहता हूं। ................. बहुत मन करता है..... मैं भी एंकर बनूं
जितेन्द्र भट्ट से संपर्क करने के लिए आप उन्हें अपनी प्रतिक्रिया jitendrakrbhatt@gmail.com पर भी भेज सकते हैं, आपकी प्रतिक्रियाएं उन तक पहुँचा दी जायेंगी .....वैसे कमेन्ट बक्सा तो है ही
Wednesday, March 18, 2009
जाने-अनजाने
रंगों और अहसासों से
सराबोर है ये ज़िन्दगी
आँखों से न जाने कितने
सपने दिखाती है
कभी खुशियों की
सौगात थमाती
तो कभी
ग़मों का सैलाब उभारती
नज़रो से ख़्वाब दिखाती
तो कभी शीशे की तरह
चटका भी देती है
कभी अपनेपन का पनाह देती
तो कभी बेगानों की
तरह अकेला छोड़ जाती है
पूरी कायनात में इसी का राज़ है
न जाने कौन-कौन से खेल खेलती है
इसके थपेडो की किस्म भी बड़ी अजीब है
कोई माँ के लिए तडपता है
तो कोई दिल प्रेमी/प्रेमिका
को पुकारता है
तो कभी ख़्वाब ग़मगीं
कर जाते हैं
कभी बहन के ब्याह की चिंता होती है
तो कभी माँ के आसूं याद आ जाते है
तो कभी पिता के छाँव को
याद करके जी भर आता है
ऐसी ही है ज़िन्दगी
जैसे सागर की लहर और किनारा
जैसे चाँद और उसकी चाँदनी
जैसे फूल और खुशबू
वैसे ही इन्सान और ज़िन्दगी
नेहा गुप्ता
Tuesday, March 17, 2009
टूटा पहिया
रथ का टूटा हुआ पहिया हूँ
लेकिन मुझे फेंको मत !
इस दुरूह चक्रव्यूह में
अक्षौहिणी सेनाओं को चुनौती देता हुआ
कोई दुस्साहसी अभिमन्यु आकर घिर जाय !
बड़े-बड़े महारथी
अकेली निहत्थी आवाज़ को
अपने ब्रह्मास्त्रों से कुचल देना चाहें
रथ का टूटा हुआ पहिया
उसके हाथों में
ब्रह्मास्त्रों से लोहा ले सकता हूँ !
लेकिन मुझे फेंको मत
इतिहासों की सामूहिक गति
सहसा झूठी पड़ जाने पर
क्या जाने
सच्चाई टूटे हुए पहियों का आश्रय ले !
(समय बस आ ही रहा है कि हम सब टूटे पहिये काम आने ही वाले हैं)
Monday, March 16, 2009
देख के मज़ा ज़रूर आएगा ....बाबा की राइफल और बापू की लाठी !
इसी बीच भीड़ में किसी ने पूछा, "क्यूँ इंसानियत के लिए क्या ऐ के ४७ खरीदनी पड़ती है?" तो एक पक्के वाले सपाई ने पहले घूर कर देखा पर फिर चुनाव का मौका देख कर प्यार से गर्दन पकड़ के समझाया "देखो वो ऐ के ४७ खरीदी नहीं गई थी, वो तो उपहार में मिली थी। सरकार को तो बस जितना टैक्स बनता था लेकर बात ख़त्म करनी थी पर बड़े आदमी को सब बदनाम करना चाहते हैं।" इस पर भी नए वोटर की संतुष्टि जब नहीं हुई तो थोड़ा सा और विनम्रता से गर्दन दबा कर बोला," अबे महर्षि वाल्मीकि भी तो पहले डाकू थे.....देखो कैसी रामायण लिख डाली...मुन्नाभाई जीत कर आए तो रामायण क्या महाभारत....!"
खैर इनकी बातें छोड़ चलें हम सत्ता के मैदानों में, तो मंच से धाराप्रवाह, ओजपूर्ण, भावुक कर देने वाला भाषण जारी था ....."लाल जी टंडन अटल जी की खडाऊ लेकर चुनाव में आए हैं तो हम भी गांधी जी की लाठी लेकर खड़े हैं !" किसी ठेठ लखनउआ ने चुटकी ले ली कि४७ क्या हुई ?" तो बाबा कोप्चे में उसे लेजाकर बोले "वो चुनाव के बाद दिखेगी बेटा!" अच्छा इसके बाद बोले कि लखनऊ में बसपा का शोर्ट सर्किट करने आए हैं तो किसी ने बोल दिया कि बहन जी का सर्किट तो वैसे ही शोर्ट रहता है कहीं इन्होने अर्थिंग दे दी तो कंकाल ना दिख जाए.....खैर संजू बाबा धोखे में बोल तो गए पर ये भूल गए कि उनको तो चुनाव बाद यू पी आना नहीं हैं .....पर मुलायम की अमर कथा का क्या होगा।
अच्छा इसके बाद बोलना शुरू किया तो पूरे फिल्मी रंग में आ गए और बोले कि "बहन जी ने पूरे प्रदेश में अपनी ख़ुद की मूर्तियाँ लगवा दी हैं, वे बुतपरस्त हैं....अरे उखाड़ फेंको इन बुतों को, इन मूर्तियों की कोई जरूरत नहीं है, बहन जी को रखना है तो अपने दिल में रखो.....(अरे रेरे रे रे साला डाइलोग ग़लत जगह बैठ गया......पर कोई बात नही अमर सिंह कौन सा बोलते पर सोचते हैं !) पर मुद्दे की बात ये है कि क्या लखनऊ या देश की जनता एक बार ये साबित करना चाहती है कि अब वो किसी सितारे के नाम पर बेवकूफ नहीं बनेगी....क्या केवल अपने काले कारनामों पर परदा डालने के लिए राजनीति अब और नहीं होने देगी ?
ये सवाल बड़ा है पर मैं ख़ुद इस के जवाब के इंतज़ार में हूँ....मैं ख़ुद लखनऊआ हूँ और देखना चाहता हूँ कि लखनऊ जो मेरी जान से बढ़कर है क्या अपने ज़मीर और दिमाग को साबित कर पायेगा, मेरी लड़ाई किसी व्यक्ति के ख़िलाफ़ नहीं पर जनता के पैसे और विश्वास से अपने पापों को धोने के ख़िलाफ़ है.....खैर मूड को हल्का फुल्का करते हैं, और पह ऐ खिदमत है मेरी एक और कलाकारी जो खाली वक़्त में किया करता हूँ उम्मीद है आपको पसंद आएगी......इसे क्लिक से खोल के डाउनलोड भी किया जा सकता है....
Sunday, March 15, 2009
किचन से करोड़ों तक .....५० वर्ष !
आज से पचास साल पहले मुंबई के मध्य वर्ग की ७ अनपढ़ स्त्रियों ने एक इमारत की छत पर ८० रुपये के क़र्ज़ से पापड़ बेलना शुरू किया और आज तमाम महिलाएं जो ज़िन्दगी की जद्दोजहद के पापड बेल कर निराश थी इन्ही पापडो के सहारे जीवन यापन कर रही हैं। जैसा कि जस्वन्तीबेन पोपट जो इस समूह की अकेली जीवित सदस्य हैं कहती हैं, " घर के पुरूष काम पर चले जाते थे और बच्चे स्कूल। घर के काम पूरे कर लेने के बाद हम दिन भर खाली रहते थे , धनी औरतों की तरह शोपिंग या किटी पार्टी नहीं कर सकते थे। तब हमें पापड बनाने का विचार आया।"
इन सात औरतों ने मिलकर अपनी इमारत की छत पर उधार लिए गए अस्सी रुपये से पहली बार यह सपना पैदा हुआ और आज यह इस विरत रूप में है कि ये पापड ही नहीं मसाले और डिटर्जेंट जैसे तमाम उत्पाद बनाता है। श्री महिला गृह उद्योग का व्यापार ७० देशों में है और ४४,०० महिलाएं इससे रोज़गार पा रही हैं। यह बधाई का अवसर है कि इन महिलाओं को, इस उद्यम को और इसके लिए तय किए गए रास्ते और संघर्ष को सलाम किया जाए पर मुद्दा दरअसल यहीं ख़त्म नहीं हो जाता।
क्या जिस तरह देश में हम महिला दिवस जैसे प्रतीक रूपों को मनाते और महिमा मंडन करते हैं वो सार्थक है जब तक हम केवल शहरों में ही कैद रहे, क्या हम वाकई उन महिलाओं को इस महिला मुक्ति के आडम्बर में शामिल करते हैं जो सच में हाशिये पर पड़ी हैं ? सवाल यह है कि कब तक महिला उत्थान की बातें केवल छद्म सोश्लाइट्स के मुंह से झरती रहेंगी, वे लोग जो झुग्गियों के पास से गुज़रते पर नाक पर रूमाल चढा लेते हैं, जिनके घरों में महिला नौकरानियों पर ज़ुल्म ही नहीं ढाते बल्कि छोटी छोटी बच्चियों से बाल श्रम कराते हैं, एक दिन एक जलसा कर के देश की महिलाओं की मुक्ति की घोषणा कर देते हैं। क्या यही है तरीका महिला मुक्ति का ......आज का दिन कई सवाल छोड़ जाता है और शायद एक रास्ता भी सुझाता है कि महिलाओं की आज़ादी के वैकल्पिक रास्ते खोजने होंगे ....लिज्जत और श्री महिला गृह उद्योग एक रास्ता हो सकता है....प्रेरणा भी !
Saturday, March 14, 2009
कभी मन्दिर, कभी मस्जिद, कभी मैखाने
ये कहानी है उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ, जिला सीतापुर और आस पास के अंचल की, जिसे सामने लाये हैं एजेंसी ऐ आई एन एस के पत्रकार रजत राय। आज ऐ आई एन एस की फीड खंगालते समय ये ख़बर हाथ लगी तो इसे आपके साथ बाँट रहा हूँ क्यूंकि जानता हूँ कि ना तो अखबार और ना ही टीवी चैनलों के पास इस फालतू सी ख़बर को प्रकाशित/प्रर्दशित करने का वक़्त होगा। मुद्दा असल में ये है कि चुनाव की घोषणा के साथ ही लखनऊ, सीतापुर और उससे जुड़े ग्रामीण अंचलों में कच्ची और देशी शराब के निर्माताओं की अचानक चांदी हो गई है। अब मुझे नहीं लगता कि आप यह नहीं समझ सकते कि चुनाव और शराब की बिक्री में क्या सम्बन्ध है। अब इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि यह चुनाव आयोग के दिशा निर्देशों का उलंघन है या नहीं, राजनैतिक दलों के लिए तो यह सब ज़रूरी है।
भाई अब चुनाव है तो वोटर जनता को रिझाने के लिए उसकी सेवा तो करनी पड़ेगी, तो उसे खुश करने का सबसे सस्ता और त्वरित उपाय है सस्ती देशी शराब, जैसा कि कांग्रेस से जुड़े एक पूर्व ग्राम प्रधान कहते हैं,"जैसे ही चुनाव घोषित होते हैं हम रात को गांव की ग्रामीण बैठकों में शराब बंटवानी शुरु कर देते हैं। पोलिंग के दो तीन दिन पहले से हम गाँव में घर घर जाते हैं और देशी शराब बटवाना शुरू करते हैं और इससे कम से कम १५ से २० फीसदी वोट ज्यादा मिलते हैं।"
इससे भी ज्यादा मज़ेदार बात देखें कि एक सभासद क्या कहता है," शहरी इलाकों में हम छोटे छोटे समूहों में लोगों की महफिलें जमाते हैं और वहाँ कई बार विदेशी शराब परोसते हैं"। ख़बर आगे कहती है कि सीतापुर जिले के दुन्दपुर गाँव में करीब ५० अवैध शराब की भट्टियां हैं और लखनऊ के आस पास के करीब ५० गाँव की अर्थव्यवस्था इसी व्यवसाय पर टिकी हुई है। लखनऊ की सीमाओं से लगे मलीहाबाद, गोसाईगंज, चिनहट और बख्शी का तालाब इलाकों में भी इस तरह के अवैध कुटीर उद्योग जड़ें जमाये हैं। सबसे ज्यादा रोचक है इस अवैध शराब को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने का तरीका, जिसमें इसे फुटबॉल और वौलीबौल के ब्लैडरों में भर कर पहुंचाया जाता है।
आश्चर्य की बात है कि भयमुक्त समाज की सरंचना में लगी पुलिस इससे अनजान है या फिर राजनीतिक संरक्षण के चलते मूक दर्शक बनी हुई है। दरअसल इससे भी बड़ी कमी हमारी अशिक्षा और जागरूकता का अभाव है जिस कारण हम अभी भी शराब जैसे प्रलोभन में फंस कर अपना वोट बदल डालते हैं। खैर जो कुछ भी इतना तय है कि पुलिस सरकार के कहे से चलती है और शायद भयमुक्त सरकार चाहती है कि जनता खूब नशा करे जिससे वो हर तरह के भय भूल जाए......लोकतंत्र की हत्या का भय भी !
रात को खूब मय पी, सुबह को तौबा की
रिंद के रिंद रहे, हाथ से जन्नत ना गई
और नेताओं को अगर चुनाव आयोग का भय हो जाए तो फिर चुनाव जीतना भी उनके लिए मुश्किल हो जायेगा पर इतना है नशा सर चढ़ के बोलता है फिर चाहे वो शराब का हो या फिर सत्ता का.......
कभी मन्दिर, कभी मस्जिद, कभी मैखाने जाते हैं
सियासी लोग तो बस आग को भड़काने जाते हैं
Friday, March 13, 2009
इक आँगन की मिट्टी है
लोरी दे दे हार गई जो घर आँगन की मिट्टी है
Thursday, March 12, 2009
ब्लॉग की इज्ज़त का सवाल है.....भी आर आल्सो टेक्नीकल !
भइया तो अपन तो रेल गाड़ी में दिल्ली तक आते आते हाई डिप्रेशन में कि लो भइया हुई गई फजीहत और अब लोग कहेंगे कि साले बड़े टेक गुरु बनते हो निकल गई सारी हेकडी तो तुरत फुरत में ढूंढ डाला गीत और कहा कि एक दिन बादै सही सुन्वाइहें ज़रूर ससुर ई गाना तो लो मियाँ बीडा संभालो लो और देखो स्वाद
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होली की मुबारकबाद.....
और हाँ अब कोई कहेओ ना कि ससुर नॉन टेक्नीकल हैं......अमा ब्लॉग की इज्ज़त का सवाल है !
(शैलेश जी और युनुस जी का आभार .....कल इस गीत को सुन लेने की इच्छा उन्होंने पूरी की ....प्रकृति उनकी हर इच्छा पूरी करे)
होली बहुत बहुत मुबारक हो मियाँ
होली से होली तक हो
होली का त्योहार
जीवन-सरिता मेँ तरँग हो
और बहे रसधार,
रंगोँ के त्योहार मेँ हो
सभी रंगोँ की बौछार,
वाणी से अभिव्यक्ति ना सम्भव
ऐसे हैँ उदगार ,
अंजलि भर-भर खुशियाँ
लाये आपको होली का त्योहार,
यही दुआ है भगवन से
अनुपम की हर बार ॥
अनुपम/अंजलि अग्रवाल
अगली पोस्ट में अपनी लखनऊ की होली की रिपोर्ट .....इंतज़ार करें !
Wednesday, March 11, 2009
खेले मसाने में होली दिगंबर...
बनारस के घाट पर एक बार छन्नूलाल मिश्र की आवाज़ में शमशान में शिव की होली का वर्णन सुना था। रिकॉर्डिंग तो अपलोड नहीं कर सकता लेकिन उस रचना के बोल अभी तक स्मृति में बने हुए हैं .....तो मिश्र जी आवाज़ की न सही शब्दों की ठंडाई तो आपको पिला ही सकता हूँ ....
होली है !
खेलैं मसाने में होरी दिगंबर खेले मसाने में होरी ।
भूत पिसाच बटोरी, दिगंबर खेले मसाने में होरी ।।
लखि सुंदर फागुनी छटा के, मन से रंग-गुलाल हटा के
चिता-भस्म भर झोरी, दिगंबर खेले मसाने में होरी ।।
गोपन-गोपी श्याम न राधा, ना कोई रोक ना कौनऊ बाधा
ना साजन ना गोरी, दिगंबर खेले मसाने में होरी ।।
नाचत गावत डमरूधारी, छोड़ै सर्प-गरल पिचकारी
पीतैं प्रेत-धकोरी दिगंबर खेले मसाने में होरी ।।
भूतनाथ की मंगल-होरी, देखि सिहाएं बिरिज कै गोरी
धन-धन नाथ अघोरी दिगंबर खेलैं मसाने में होरी ।।
होली पर नजीर अकबराबादी की एक नज़्म
होली भारत में सिर्फ़ एक त्यौहार भर नही है , ये होली के ज़रिये फासले मिटाए जाते हैं , दीवारें गिराई जाती हैं । पूरे साल भर तो हम कुछ और hi बने रहते हैं केवल होली के धमाल में ही हम हम हो पाते हैं .... साम्प्रदायिक लोगों को भी होली मिलन का संदेश देती है .....लखनऊ में वाजिद अली शाह तो गुज़रे ज़माने में होली खेलते थे लेकिन चौक वाला जुलुस अभी भी निकलता है......और नजीर की नज़्म भी अभी बाकी है .... केव्स संचार की तरफ़ से होली और याद रहे कल ईदे मिलादुन्नबी (मुहम्मद साहब के जन्म का दिन ) भी थी.....मुबारकबाद !!!
जब खेली होली नंद ललन हँस हँस नंदगाँव बसैयन में
।नर नारी को आनन्द हुए ख़ुशवक्ती छोरी छैयन में।।
कुछ भीड़ हुई उन गलियों में कुछ लोग ठठ्ठ अटैयन में ।
खुशहाली झमकी चार तरफ कुछ घर-घर कुछ चौप्ययन में।।
डफ बाजे, राग और रंग हुए, होली खेलन की झमकन में।
गुलशोर गुलाल और रंग पड़े हुई धूम कदम की छैयन में।
जब ठहरी लपधप होरी की और चलने लगी पिचकारी भी।
कुछ सुर्खी रंग गुलालों की, कुछ केसर की जरकारी भी।।
होरी खेलें हँस हँस मनमोहन और उनसे राधा प्यारी भी।
यह भीगी सर से पाँव तलक और भीगे किशन मुरारी भी।।
डफ बाजे, राग और रंग हुए, होली खेलन की झमकन में।
गुलशोर गुलाल और रंग पड़े हुई धूम कदम की छैयन में।।
Tuesday, March 10, 2009
मनाओ सिर्फ तिलक होली...!!
होली की ढेरों शुभकामनाएँ.......!!!!!!!!!!!!!
Monday, March 9, 2009
होली पर भेंट में वालपेपर....उड़त गुलाल लाल भये ब्लॉगर !
इस वाल पेपर के डाउनलोड के लिए इस लिंक पर जाए और इमेज सेव कर लें....
फागुन के तराने
नेहा गुप्ता
Sunday, March 8, 2009
अम्मा .......(महिला दिवस श्रृंखला)
वेश्या ..... (महिला दिवस विशेष)
क्योंकि मैं तुम्हारे समाज को
अपवित्र होने से बचाती हूँ।
कोमलतम भावनाओं को पुख्ता करती हूँ।
मानव के भीतर की उस गाँठ को खोलती हूँ
जो इस सामाजिक तंत्र को उलझा देता
जो घर को, घर नहीं
द्रौपदी के चीरहरण का सभालय बना देता।
स्वयं टूटकर भी, समाज को टूटने से बचाती हूँ
और तुम मेरे लिए नित्य नयी
दीवार खड़ी करते हो।
'बियर बार' और ' क्लब' जैसे शब्दों के प्रश्न
संसद मैं बरी करते हो।
तो रोको उस दीवार पार करते व्यक्ति को
जो तुम्हारा ही अभिन्न साथी है।
तलवार की नोंक पर रहकर भी,
तन बेचकर, मन की पवित्रता को बचा लेती हूँ
जो माँ-बहन, पत्नी, पड़ोसियों से नज़रें बचाकर
सारे तंत्र की मर्यादा को ताक पर रखकर
रोज़ यहाँ मन बेचने चला आता है।
स्त्रियाँ....
स्त्रियाँ
पढ़ा गया हमको
जैसे पढ़ा जाता है काग़ज
बच्चों की फटी कॉपियों का
‘चनाजोरगरम’ के लिफ़ाफ़े के बनने से पहले!
देखा गया हमको
जैसे कि कुफ्त हो उनींदे
देखी जाती है कलाई घड़ी
अलस्सुबह अलार्म बजने के बाद !
सुना गया हमको
यों ही उड़ते मन से
जैसे सुने जाते हैं फ़िल्मी गाने
सस्ते कैसेटों पर
ठसाठस्स ठुंसी हुई बस में !
भोगा गया हमको
बहुत दूर के रिश्तेदारों के दुख की तरह
एक दिन हमने कहा–हम भी इंसान हैं
हमें क़ायदे से पढ़ो एक-एक अक्षर
जैसे पढ़ा होगाबी ए के बाद
नौकरी का पहला विज्ञापन।
देखो तो ऐसे
जैसे कि ठिठुरते हुए देखी जाती है
बहुत दूर जलती हुई आग।
सुनो, हमें अनहद की तरह
और समझो जैसे समझी जाती है
नई-नई सीखी हुई भाषा।
इतना सुनना था कि अधर में लटकती हुई
एक अदृश्य टहनी से
टिड्डियाँ उड़ीं और रंगीन अफ़वाहें
चींखती हुई चीं-चीं
‘दुश्चरित्र महिलाएं, दुश्चरित्र महिलाएं–
किन्हीं सरपरस्तों के दम पर फूली फैलीं
अगरधत्त जंगल लताएं!
खाती-पीती, सुख से ऊबी
और बेकार बेचैन, अवारा महिलाओं का ही
शग़ल हैं ये कहानियाँ और कविताएँ।
फिर, ये उन्होंने थोड़े ही लिखीं हैं।’
(कनखियाँ इशारे, फिर कनखी)
बाक़ी कहानी बस कनखी है।
हे परमपिताओं,परमपुरुषों–
बख्शो, बख्शो, अब हमें बख्शो!
अनामिका
Saturday, March 7, 2009
स्त्री मतलब क्या?
नेहा गुप्ता
भ्रूण परीक्षण
मेरे सामने की बर्थ पर था