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Friday, March 20, 2009

मैं एंकर बनना चाहता हूँ ......क्यों नहीं ?

मीडिया के हमारे एक वरिष्ठ साथी हैं जितेन्द्र भट्ट (मुझे लगता है कि मीडिया में छः वर्ष का अनुभव वरिष्ठता लायक अनुभव है....बाकी मानक अपने अपने हैं), नैनीताल के रहने वाले भट्ट जी ने २००२-२००३ में आई आई एम् सी से पत्रकारिता की शिक्षा ली और उसके बाद से दिल्ली में कार्यरत हैं और वर्तमान में एक बड़े राष्ट्रीय समाचार चैनल में हैं.....उनका एक लेख जो उनके ब्लॉग http://www.apana-pahar.blogspot.com/ पर प्रकाशित हुआ था उसे आज अतिथि लेख के तौर पर केव्स संचार प्रकाशित कर के गौरवान्वित है।
(लेख आज की मीडिया के ट्रेंड्स की कलाई खोलता है)

क्या मैं एंकर नहीं बन सकता ...?

ये बहुत निजी मामला है। लोग कह सकते हैं, मैं फ्रस्ट्रेट हो गया हूं। पर फिर लगता है, कहे बिना भी तो मन नहीं मानेगा। लोग ये भी कह सकते हैं, मैं जिस थाली में खा रहा हूं, उसी में छेद करने की जुर्रत कर रहा हूं।पर सारी बातें एक तरफ... और सच्चाई एक तरफ। सच तो कहना ही चाहिए। बहुत पहले मीडिया के एक बड़ा चेहरा है, एंकर हैं, बड़ा नाम है उनका..... इन्हीं साहब की लिखी एक किताब पढ़ी थी। उन्होने लिखा था, ' मीडिया में हम सुबह से लेकर शाम तक के टाइम स्लॉट में खूबसूरत लड़कियों से एंकर करवाना पसंद करते हैं।' ..... फिर खुद ही उन्होने साफ किया, 'ये टीआरपी का पंगा है। दिन के वक्त लोग खूबसूरत चेहरों को देखना अधिक पसंद करते हैं।' ज़ाहिर है, इससे टीआरपी का चक्का तेज़ी से घूमता है।
सच कहता हूं.... मुझे उनके तर्क पर गुस्सा आया था। उन्होने अपनी इस किताब में टेलीविजन न्यूज़ के बारे में बताते हुए लिखा----- 'टीवी न्यूज़.... साहब ये एंकर और रिपोर्टर होते हैं। एकंर और रिपोर्टर मिलकर टीवी न्यूज़ का निर्माण करते हैं।' मन किया उनसे सवाल पूछूं.... श्रीमान जी ये डेस्क (प्रोड्यूसर) वाले क्या करते हैं। इनका टेलीविज़न न्यूज़ में कोई योगदान होता है क्या ?
खैर... मैं मामले से क्यों भटकूं ? सारा मामला तो एंकरिंग का है। सच बताऊं तो मैं भी एंकर बनना चाहता हूं। पर कोई तो हो, जो कहे... भई, तुम एंकरिंग क्यों नहीं करते ? कोई तो पारखी नज़र हो जो कहे.... चलो आज से तुम शुरू करो। छह साल हो गए मुझको... काम करते हुए। सारे लोग यही कहते हैं, कि मैं अच्छा काम करता हूं। पर कोई ये नहीं कहता, कि चलो एंकरिंग करो।
पर इन पारखी लोगों की नज़रे खूबसूरत चेहरों को बहुत जल्दी पहचान लेती हैं। जो लोग मीडिया को करीब से जानते हैं, वो सहमत होंगे कि मीडिया में पदों पर बैठे लोगों को खूबसूरत चेहरे पहचानने में ज़रा भी दिक्कत नहीं होती। ये लोग जिसे चाहें उसे एंकर बना दें। एंकर बनने और बनाने के पीछे क्या चलता है। इसकी मुझे कोई जानकारी नहीं है। पर वक्त बेवक्त मैंने कई कहानियां सुनी है। सारी सच ही होंगी ऐसा मैं नहीं कह सकता।
मैं जानता हूं, ऐसे हसीन चेहरों को, जिन्हें ये मालूम नहीं कि मुलायम सिंह यादव कौन हैं ? और गठबंधन किसे कहते हैं ? पर साहब .... पारखी लोगों को इससे क्या फर्क पड़ने वाला। उनके लिए जैसे एंकर होने की पहली प्राथमिकता एक खूबसूरत चेहरा और दूसरा हंसकर बात करने की कला है।
अब फिर से उन बड़े एकंर... बड़े नाम से एक सवाल।.... जो ये कहते हैं कि टीवी न्यूज़ एंकर और रिपोर्टर है।..... तो साहब आपको बता दूं कि मुलायम सिंह कौन हैं ? ये सवाल पूछने वाले ज्ञानवान एंकरों को हम डेस्क वाले नादान ही बताते है.... कौन है, मुलायम सिंह ?
आपके साथ हुआ हो या नहीं, मेरे साथ तो हुआ है। ऐसे भी ज्ञानवान एंकरों को जानता हूं, जो लाठी चार्ज वाली घटना पर रिपोर्टर से सवाल पूछ रही थी...... ' तो .... बताइए..... कैसा माहौल है ?.... अच्छा ये बताइए अब अगला लाठी चार्ज कब होगा ? ' ........................अब अगला लाठी चार्ज कब होगा !!!!!!!!!!!!! पर ये भी खूबसूरत थी, ज़ाहिर है बॉस ने कहा होगा, चलो सीख जाएगी.... काम करते-करते। सही कहा था बॉस ने। ये एकंर आज देश के एक बड़े चैनल पर चमक रही है।
पर मैं ऐसे लोगों को भी कुढते हुए देखता हूं। जो टीवी के पर्दे पर चमक रहे थे। लेकिन आजकल उन पर धूल जम गयी है। भई... क्यों जमी है, उन पर धूल.... ये सवाल कोई पारखी नहीं पूछता ? अब ऐसे लोगों के दर्द के सामने मेरा दर्द तो कुछ भी नहीं है ना।..... मैं तो बनना चाहता हूं, पर वो बेचारे बने हुए थे...... लेकिन उनकी बेकद्री कर दी गयी।
पर फिर भी कहता हूं। ................. बहुत मन करता है..... मैं भी एंकर बनूं

जितेन्द्र भट्ट से संपर्क करने के लिए आप उन्हें अपनी प्रतिक्रिया jitendrakrbhatt@gmail.com पर भी भेज सकते हैं, आपकी प्रतिक्रियाएं उन तक पहुँचा दी जायेंगी .....वैसे कमेन्ट बक्सा तो है ही

4 comments:

  1. दरअसल यह गहरी व्यथा हम सभी की है....दुर्भाग्य यह है कि पुरुष मीडिया कर्मी इसे केवल अपनी कहानी मानते हैं पर इस सौंदर्याभिषेक में कई योग्य महिला पत्रकार भी बलि चढ़ती हैं....केवल इसलिए क्योंकि ज्ञान होना महत्वपूर्ण नहीं, चेहरा होना अपरिहार्य है....स्त्री या पुरुष

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  2. han ye to hai hm bhi yahin aapke paas hi hain... chalo hme bahut kya kuch nahi ata par aise log bhi yahan hai jinko ane k bavjood bhi pooch isliye nahi hai kyon bhai ladki ka chehra hi to naya channel chala sakta hai .......ladka, (bhale hi jitni knowlege kyon na ho) kya ladke mein hai ye dam...ab hm aap kya bolen itne anubhavi ko bhi agar ye anubhav nahi ki channel kaun chala sakte ha to ab kya kahen......... khair apne apni baaton mein kaiyon ki badhaas bayan ki hai.... shukriya

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  3. खूबसूरती क्या है? इसके क्या पैमाने हैं? किसने
    निर्धारित किया? दर्शको को किसने दर्शन कराये? ये पूंजीवाद न जाने कौन-कौन से खेल अभी दिखायेगा?

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  4. mind blowing..abhi-abhi media se sarokar hona chalu hua hai....lekin ye bat bilkul sach lagti hai...

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