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Sunday, March 22, 2009

अलविदा जेड !

बिल्कुल अभी अभी यह दुखद समाचार आया है कि ब्रिटिश सेलिब्रिटी और अदाकारा जेड गुडी नहीं रहीं। जेड को सर्वाइकल कैंसर था और अभी कुछ मिनट पहले ही वो हमारे बीच नहीं रहीं......शिल्पा शेट्टी पर नस्ल भेदी टिपण्णी को लेकर चर्चा में आई जेड के व्यक्तिगत जीवन में हसक्षेप करने का किसी को कोई हक नहीं पर इस छोटी सी उम्र में जितना कुछ जेड ने हासिल किया वह उपलब्धि ही कही जायेगी। जेड ने विवाह किया और उनके दो बच्चे भी हैं.....वो कलाकार हैं और मशहूर भी और सबसे बड़ी बात वो एक लाइलाज बीमारी से लड़ रही थी....
मुझे मालूम नहीं कि इस पर और बहुत शब्द कैसे लिखें जाए पर जिस तरह जेड ने मौत को गले लगाया उस साहस को हम सबका सलाम ......बस उनके लिए आनंद फ़िल्म से गुलज़ार की लिखी हुई एक नज़्म जो कुछ इसी तरह की परिस्थितियों में चित्रित थी .........
मौत तू एक कविता है,
मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको
डूबती नब्ज़ों में जब दर्द को नींद आने लगे
ज़र्द सा चेहरा लिये जब चांद उफक तक पहुचे
दिन अभी पानी में हो, रात किनारे के करीब
ना अंधेरा ना उजाला हो, ना अभी रात ना दिन
जिस्म जब ख़त्म हो और रूह को जब साँस आऐ
मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको
जेड तुम्हारे साहस और जिजीविषा को सलाम....तुम्हारी प्रेरणा को नमन .....तुम्हे श्रद्धांजलि ....

मेरा हाथ थामे रहना ....भले साँस मेरी जाए

जब तक रहा हूँ धूप में चादर बना रहा
मैं अपनी माँ का आखिरी ज़ेवर बना रहा

उमर घट गई डगर कट गई, जीवन की ढलने लगी सांझ।

कठिन है राहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो
बहुत बड़ा है सफ़र थोड़ी दूर साथ चलो

अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें

अलविदा जेड

ज़िन्दगी लम्बी नहीं ....बड़ी होनी चाहिए !

4 comments:

  1. आनेवाली मौत को भी हिंमत से गले लगानेवाली इस "नारी" को प्रणाम.

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  2. कितना खौफनाक है.सांसो की गिनती बड़ा कठिन है.सिर्फ सोचकर रूह हिल जाती है. जेड़ के जिंदादिली को मेरा नमन .

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  3. मुझे उम्मीद है ऎसी ही संवेदनाएँ आप देश के लोगों के प्रति भी रखेंगे । मौत को भी बाज़ार के हवाले कर देने वाली महिला के लिए इतने आँसू ...? देश में लाखों बच्चे भूख से बेमौत मर रहे हैं उनके लिए कोई दर्द नहीं । धिक्कार है ऎसी नकली भावनाओं और संजीदगी पर । कब तक पश्चिम परस्त बने रहोगे । बाहर निकलो इस ग़ुलामी से । अफ़सोस है कि अँग्रेज़ों के जाने के छह दशक बाद भी हमारी मानसिक ग़ुलामी की प्रवृत्ति में राई रत्ती फ़र्क नहीं आया ।

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  4. उस महिला ने अगर अपने बच्चों के लिए अपनी मौत को बेचा तो इतना हल्ला क्यों ? वह धन वह अपने साथ नहीं ले गई....और जिस देशी और विदेशी की आप बात करती हैं तो मुझे आपसे देशभक्ति का प्रमाणपत्र नहीं चाहिए, उसे अपने पास रखें और जो मांगे उसे ही दें......आपकी टिप्पणियों अक्सर पढ़ता हूं, कई बार तर्किक लगती हैं तो कई बार......
    सरिता जी आप वरिष्ठ हैं...ज़्यादा नहीं कहूंगा, बस भारतीयता और अपनी संस्कृति का और अध्ययन करें....संकीर्णता निकाल फेंके

    अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम्
    उदारचरितानांतु वसुधैव कुटुम्बकम्

    बाकि देश के बारे में पिछली पोस्टें देखें क्या विचार हैं हम सबके

    जय हिंद
    वंदे मातरम्

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