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Wednesday, December 31, 2008
नया साल मंगलमय हो !
हर्ष नव,
जीवन उत्कर्ष नव।
नव उमंग,
नव तरंग,
जीवन का नव प्रसंग।
नवल चाह,
नवल राह,
जीवन का नव प्रवाह।
गीत नवल,
प्रीत नवल,
जीवन की रीत नवल,
जीवन की नीतनवल,
जीवन की जीत नवल
तस्वीरों में २००८ (भारत)
देश एकजुट है
अगर देश का अपराधी वर्ग भी राष्ट्र सेवा के लिए इतना तत्पर है तो हम पीछे कैसे रह सकते हैं । हम जहाँ भी हैं जो भी हैं राष्ट्र के काम मैं समर्पित हैं और रहेंगे
Tuesday, December 30, 2008
केव्स संचार पर नए वर्ष के स्वागत समारोह में शामिल हों !
यही नहीं हम एक विशेष अभियान " देश के नाम, देश की पाती" भी लेकर आए हैं जिसमे आप हमें आतंकवाद के ख़िलाफ़ भारत कितना एक जुट है इसके लिए अपने शुभकामना संदेश भारतीयों के नाम भी भेज सकते हैं इसके लिए हमें अपने संदेश भेजें jantajanaardan@gmail.com ! सर्वश्रेष्ठ संदेश हम रोज़ प्रकाशित करेंगे और अंत में उन पर आधारित एक विशेष आलेख प्रकाशित करेंगे !
Monday, December 29, 2008
जम्मू कश्मीर में चुनाव नतीजे, सवाल और संभावनाएं ....
चुनाव परिणाम जहाँ कि कहा जा रहा है कि जनता ने लोकतंत्र को जिताया है इस प्रकार रहे,
नेशनल कोंफ्रेंस: २८ सीट
पीपुल्स डेमोक्रटिक पार्टी: २१ सीट
कोंग्रेस: १७ सीट
भाजपा: ११ सीट
अन्य: १० सीट
दरअसल इन परिणामों को किसी एक वाद या धरा से जोड़ कर देखना मुश्किल है....और यह दूसरी बार है जब कश्मीर में जनता ने एक त्रिशंकु विधानसभा चुनी है। कौंग्रेस को ज़ाहिर तौर पर नुक्सान हुआ पर उस नुक्सान का फायदा किसी एक दल को मिलने की जगह बनता हुआ नज़र आया है और यह दिखा रहा है कि जनता के अलग अलग धडो में अलग अलग विचार चल रहा था।
नेशनल कौन्फ्रेंस की सीट पिछली बार भी उतनी ही थी और इस बार भी उतनी ही रही इसका सीधा अर्थ यह है कि उन्होंने कोई तीर नहीं मारा है और वे वहीं खड़े हैं...पर कौंग्रेस की सीट कम होने का फायदा उसे मिला। इससे यह ज़रूर कहा जा सकता है कि फारूक और उमर के लिए कश्मीरी अवाम का प्यार कम नहीं हुआ है पर बढ़ा भी नहीं है।
उधर पी डी पी की सीट पिछली बार की सोलह से बढ़कर इस बार २१ हो गई है, इसके दो कारण हो सकते हैं एक यह कि वे शायद अपनी बारी में कुशल प्रशासन दे सके (जो कहना अतिश्योक्ति होगा) और दूसरा यह कि वह इन चुनावों में अपने पुराने घिसे पिटे कश्मीरियत/ स्वायतता के राग और अमरनाथ बवाल को भुनाने में सफल रही। पर सीट बढ़ने पर भी सरकार बना पाने की स्थिति में वह नही दिखती है।
कौंग्रेस दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से अमरनाथ विवाद का शिकार हो गई। गुलाम नबी की सरकार ने काम ठीक ठाक किया पर अमरनाथ विवाद में जम्मू के हिन्दुओं से उन्होंने नाराजगी मोल ली और उनकी नाव गोते खाने लगी हालांकि अभी भी सत्ता की चाबी उनके ही पास है।
सबसे ज्यादा किसी को फायदा हुआ तो वह है भारतीय जनता पार्टी, सही समय पर मौके की नब्ज़ पकड़ कर उसने जिस तरह जम्मू में अमरनाथ विवाद को हवा दी और उग्र आन्दोलन चलाया; उसका पूरा फायदा उसे हुआ। एक बार फिर भाजपा को ईश्वर के नाम का सहारा मिला और इस तरह धर्म के चोर दरवाज़े से भाजपा जम्मू कश्मीर में अपनी राजनीतिक ज़मीन तलाशने में कामयाब हुई। भाजपा को ११ सीट मिली हैं जबकि पिछली बार वह १ सीट ही जीत पायी थी।
पर शायद सबसे बड़ा नुक्सान किसी का हुआ है तो वह है अन्य जिनमे अधिकतर निर्दलीय हैं, वे बेचारे २२ से घटकर १० पर आ गए हैं। इनका सबसे बड़ा नुक्सान किया है भाजपा ने और फिर पीपुल्स डेमोक्रटिक पार्टी ने, शायद यह पिछली बार वाली संख्या में होते तो कौंग्रेस की जगह इनके हाथ में सत्ता की चाबी होती।
लेकिन जब हम इन चुनावों के परिणामों का विउश्लेशन करेंगे तो कई चौकाने वाली बातें निकलेंगी। पहला तो यह कि जम्मू की और कश्मीर की अवाम की सोच बिल्कुल अलग अलग है। भाजपा की चकित करने वाली बढ़त ने यह स्पष्ट संदेश दिया है कि अमरनाथ मुद्दे पर वह भाजपा के रुख का समर्थन करती है। दूसरी ओर कश्मीर की अवाम ने पी डी पी को ज्यादा सीट दे कर कहीं न कहीं अमरनाथ मुद्दे पर जम्मू की जनता से विरोध जताया है और कहीं न कहीं इसके और भी खतरनाक छुपे संकेत हैं और वह है कि कट्टरपंथी पूरे भारत की तरह यहाँ भी हावी हैं।
यही नहीं निर्दलियों की घटती संख्या यह भी संकेत देती है कि लोग निर्दलीय उम्मीदवार की जगह पार्टी को वोट देना बेहतर समझ रहे है जबकि पिछली बार की स्थिति इससे अलग थी। लेकिन उससे भी बड़ी बात यह है कि लोगों ने वहाँ की सबसे पुरानी राष्ट्रीय पार्टी कौंग्रेस की बजाय क्षेत्रीय दल को वोट देना बेहतर समझा।
पर सबसे बड़ा जो सवाल मेरे जेहन में उठ रहा है कि कहीं यह जम्हूरियत के साथ साथ अलगाववाद को भी वोट तो नहीं है ? जम्मू और कश्मीर में एक ही मुद्दे पर आधारित मतदान के दो परस्पर विरोधी रुख कहीं जम्मू और कश्मीर में दो ध्रुवों के कट्टरपंथ की हवा के दिशा सूचक तो नहीं ? कहीं ऐसा तो नहीं की कश्मीर के लोग अलगाव वाद के रास्ते पर चलते हुए मूलभूत विकास भी चाहते हैं और इस लिए वोट भी करते हैं ?
हालांकि ऐसा पूरी तरह नहीं कहा जा सकता क्यूंकि पी डी पी ने जम्मू में भी २ सीट जीती हैं, फिर भी सवाल बड़े हैं क्यूंकि भले ही सरकार इन चुनावों को जम्हूरियत की जीत बता रही हो, गौर से देखने पर यह कट्टरपंथ की बढ़त भी है। क्या भाजपा की बढ़त बदलाव का संकेत है या घाटी में राजनीतिक कट्टरपंथ के नए युग कान सूत्रपात ? क्या केवल चुनाव हो जाना और सरकार बन जाना NC और पी डी पी के भारतीय समर्थक दल होने का प्रतीक हैं या इस बहाने अप्रत्यक्ष रूप से अलगाव वाद के एजेंडे को आगे बढाया जा रहा है और वह भी सरकारी खर्चे पर. सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि अलगाववादी गुटों की अनदेखी कर के मतदान तो हुआ है पर आज भी वहा के अवाम के लिए बड़ा क्या है, भारतीयता या कश्मीरियत ?
Thursday, December 25, 2008
जन्मदिन की माया
अलवा ने जब कोंग्रेस में टिकट बेचने की बात कही तो माया ने एक राहत की साँस ली होगी की कम से कम टिकट के हमाम में कई नंगे और भी हैं लेकिन जन्मदिन को लेकर बसपा जैसी व्हिप कही नही जारी होती होगी । मायावती के पिछले जलसों पर भी उप के कई अधिकारी वर्दी में उन्हें अपने हाथों से केक खिलाते देखे गए हैं , जबकि ये वही माया हैं जो उत्तर प्रदेश के कृषि आयुक्त अनीस अंसारी को इसलिए हटा देती हैं की उनकी पत्नी ने सरकारी घर पर फैशन शो किया जो की सरकार की गरिमा को ठेस पहुचने वाला काम था ।
मायावती २००७ में जब सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूला से मुख्यमंत्री बनी थी तो जनता ने पहली बार उनसे सकारात्मक उम्मीद की थी । शायद माया ने भी अपने से कुछ ज्यादा उम्मीदें पाल राखी थी तभी उन्होंने प्रधानमंत्री की कुर्सी पर भी नज़र दाल ली , लेकिन इस प्रकरण ने माया को तो न सही जनता को तो ये बता ही दिया है की लोकतंत्र में सिर्फ़ वोट देना और सही व्यक्ति को चुन लेना दो अलग अलग बातें हैं । फिलहाल बहिन जी कह रही हैं की इस घटना को उनके जन्मदिन से जोड़ कर देखना ग़लत है, और रिपोर्ट दर्ज होने , हर्जाना , दोषियों के ख़िलाफ़ कार्यवाही जैसी बातें , लेकिन माया ये भूल जाती हैं की सियासत के ताज में कांटे भी होते हैं । हर्जाना तो शायद मजाक जैसा ही होता है और कार्यवाही के बारे में तो सबको पता है.......
क्रिसमस और ईसा की बात .....
आज क्रिसमस है...और कल से ही इसे मनाने की शुरुआत हो चुकी है, क्रिसमस के दिन / रात कहा जाता है कि ईसा का जन्म बेथलेहेम में हुआ था....ईसा जिन्होंने ईसाइयत से ज्यादा मानवता की सीख दुनिया में फैलाई। पता नहीं पर हम में से ज़्यादातर लोग उन्हें ईसाई धर्म के प्रवर्तक के रूप में ज्यादा जानते हैं ( ईसाई भाई भी ) और ऐसा शायद दुनिया के ज़्यादातर प्रचारकों के साथ हुआ। फिर चाहें वो मोहम्मद रहे हों या बुद्ध ......
दरअसल समस्या यह रही कि हम लोगों को उनके द्वारा कही गई बातों और उनके द्वारा किए गए कामों से ज़्यादा उनके अनुयायियों की कट्टरता से जोड़ कर देखते हैं। हम अपने भी धर्म प्रचारकों के धर्म प्रचार को तो याद रखते हैं पर उनकी मूल शिक्षाओं को भूल चलते हैं, यही इस्लाम के साथ हुआ और कमोबेश यही हुआ ईसाइयत के साथ। बाद के धर्मावलम्बियों ने ईसा या मोहम्मद की शिक्षाओं की जगह केवल और केवल धर्म के प्रचार को लक्ष्य बना लिया और वह भी किसी भी तरीके से।
कुछ ऐसे लोग जिन्होंने अपनी ताकत से अपनी धार्मिकता के प्रसार का तरीका अपनाया उन्होंने हिंसा का सहारा लिया, प्रलोभन का सहारा लिया, अन्य समाजों में व्याप्त अशिक्षा का सहारा लिया और दुर्भाग्य वश उनकी वजह से एक आम मुसलमान या आम ईसाई को भी कट्टर या हिंसक होने के ठप्पे नवाज दिया गया।
गलती उनकी भी थी जिन्होंने धर्म की भावना के बजाय धर्म का प्रसार करना चाहा और उनकी भी जिन्होंने हर उस धर्म के अवलंबी को ग़लत मान लिया ...... गलती उनकी भी रही जिन्होंने अपने धर्म की पंथ की मूल बातों की जगह केवल कर्मकांडों के पालन को ही धर्मावलंबन बना लिया। फिर चाहे वो अन्धविश्वासी हिन्दू रहे हों, हर मुहर्रम पर पुरानी धारणाओं को लेकर लड़ पड़ने वाले मुसलमान या चर्च के प्रति अंधभक्ति में मासूम स्त्रियों को डायन कह जला देने वाले ईसाई !
आज जयंती है ईसा की .....इसे मनाएं उस ईसा की याद में जिसने येरुशलम के तानाशाहों के खिलाफ अहिंसक लड़ाई की ....वो जिसने बताया कि बाँट कर खाने पर एक रोटी भी पूरे कुनबे का पेट भरती है। ईसा वो महापुरुष थे जिन्होंने कहा कि दूसरे पर ऊँगली उठाने से पहले ख़ुद के गुनाह गिनो !
मनाये उस ईसा का जन्मदिन जिसने सलीब पर लटकते वक़्त अपने कातिलों के लिए कहा था,
" हे प्रभु इन्हे माफ़ कर देना, क्यूंकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं !"
क्यूँ न सीखें हम सब एक दूसरे को माफ़ करना हर परिस्थिति में ?
कहते हैं कि क्रिसमस पर सच्चे दिल से सांता क्लाज़ से जो मांगो वो मिलता है....तो क्यूँ न मांग लें एक खूबसूरत दुनिया ...... जहाँ हम सबकी अच्छी बातों को अपना लें .....बुराइयों को बताएं उन पर चर्चा करें और अपने मन से उखाड़ फेंकें.......ईर्ष्या, द्वेष और शत्रुता .......क्यों न सीखें दोस्ती करना दुश्मन से भी..अपनी नफरत का ज़हर अपने बच्चों तक ना जाने दें!....और आखिरकार बना पाएं इस दुनिया को रहने के लिए एक बेहतर जगह !
बशीर बद्र का कहा याद रखें,
ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे
कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे
हँसो आज इतना कि इस शोर में
सदा सिसकियों की सुनाई न दे
ग़ुलामी को बरकत समझने लगें
असीरों को ऐसी रिहाई न दे
ख़ुदा ऐसे इरफ़ान का नाम है
रहे सामने और दिखाई न दे
अंत में क्रिसमस का विश्वप्रसिद्ध गीत प्रस्तुत है एक अलग अंदाज़ में !
Sunday, December 21, 2008
गरीबी
एक कवि था जिसने हमें यह बताया की किस प्रकार प्रेम की कोमल अनुभूतियों और जीवन के कड़वे सच को एक साथ बिठा कर दोनों से बातें की जा सकती है.....एक कवि था जिसने तब द्रोह्गान किया जब दुनिया उसकी दुश्मन थी, एक कवि हुआ जिसने लिखा वो जो लिखा ना गया उसके पहले न उसके बाद......
१९७१ में पाब्लो नेरुदा को साहित्य का नोबेल मिला तब वे किस्मत से फ्रांस में चिली की राजदूत थे नहीं तो शायद फरारी में होते और अपना पदक लेने भी ना जा पाते। १२ जुलाई १९०४ को चिली के छोटे शहर पराल में पैदा हुए नेरुदा ने तानाशाहों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई और देश छोड़ने को मजबूर हुए, इटली में शरण लेने गए तो वहाँ भी छुप छुप कर रहे.....अलग अलग तरह की कवितायें लिखी....एक ओर प्रेम की आकांक्षाओं से भरी तो दूसरी ओर बगावत और यथार्थ के तेवरों से भरी......ऐसी ही एक कविता पेश है.........
इस कविता का अनुवाद प्रसिद्द कवि सुरेश सलिल ने किया है और उनके अनुदित नायक के गीत संग्रह में यह कविता उपलब्ध है।
गरीबी
आह, तुम नहीं चाहतीं--
डरी हुई हो तुम
ग़रीबी से
घिसे जूतों में तुम नहीं चाहतीं बाज़ार जाना
नहीं चाहतीं उसी पुरानी पोशाक में वापस लौटना
मेरे प्यार, हमें पसन्द नहीं है,
जिस हाल में धनकुबेर हमें देखना चाहते हैं,
तंगहाली ।
हम इसे उखाड़ फेंकेंगे दुष्ट दाँत की तरह
जो अब तक इंसान के दिल को कुतरता आया है
लेकिन मैं तुम्हें
इससे भयभीत नहीं देखना चाहता ।
अगर मेरी ग़लती से
यह तुम्हारे घर में दाख़िल होती है
अगर ग़रीबी
तुम्हारे सुनहरे जूते परे खींच ले जाती है,
उसे परे न खींचने दो अपनी हँसी
जो मेरी ज़िन्दगी की रोटी है ।
अगर तुम भाड़ा नहीं चुका सकतीं
काम की तलाश में निकल पड़ो
गरबीले डग भरती,
और याद रखो, मेरे प्यार, कि
मैं तुम्हारी निगरानी पर हूँ
और इकट्ठे हम
सबसे बड़ी दौलत हैं
धरती पर जो शायद ही कभी
इकट्ठा की जा पाई हो ।
पाब्लो नेरुदा
Saturday, December 20, 2008
रास्ट्रीय जांच एजेंसी
आतंकवाद बनाम देश की सुरक्षा
सबसे पहले ४०९६ किलोमीटर लंबा भारत-बंलादेश सीमा,३२६८ किलोमीटर लंबाभारत-पाकिस्तान सीमा,भारत-नेपाल सीमा की पुरी तरह बदेबंदी,तथीय इलाके कीसुरक्षा को बाध्य जाए, विदेशी नागरिक पहचान कानून को सख्त बनायाजाए,आंतरिक सुरक्षा को और फुर्तीला और जांच एजेंसियों को और मुस्तैदबनाया जाए जन जागरूकता फैलाई जाए तभी दहशतगर्द रुपी भस्मासुर से निपटा जासकेगा वरना बीएसऍफ़,आईटीबीपी,सीआईएसऍफ़,सीआरपीऍफ़, होमगार्डस,वायुसेना,जलसेना,थलसेना के रहने का कोई मतलब नही रह जाएगा. कबतक हमअमेरिका,ब्रिटेन,फ्रांस के सरपरस्त बने रहेंगे. आख़िर कबतक हम अपना दुखडादुनिया के सामने रोते रहेंगे. इससे चीन, पाकिस्तान,बांग्लादेश प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से हमारे ऊपर लगातार हावी हो रहे हैं और हम चुपचाप सहनकर रहे हैं. अब वक्त आ गया है की हम मुहतोड़ जवाब दें वरना देश कीएकता,अखंडता और विकास की गति को पटरी से उतरने से कोई नही बचा पायेगा. ओमप्रकाश , भोपाल
Wednesday, December 17, 2008
हँसे या रोये
नेहा गुप्ता, भोपाल.
Friday, December 12, 2008
हाँ वह मेरा बेटा है .....
Thursday, December 11, 2008
सत्ता का उलट फेर
नेहा गुप्ता,भोपाल.
Wednesday, December 10, 2008
वैश्वीकरण की माया
Tuesday, December 9, 2008
गीतों भरी शाम ..... कुर्सी की मातमपुर्सी के नाम !
उम्मीद है कि आज का फौजी भाइयों का गीतों भरा फरमाइशी कार्यक्रम आपको पसंद आएगा। आज के गीतों की फरमाइश की है दिल्ली से शीला दीक्षित ने, भोपाल से शिवराज ने, जयपुर से अशोक गहलोत ने, रायपुर से रमन ने और आइजोल से ललथनहाव्ला ने .......
वसुंधरा राजे (राजस्थान)
दिल के अरमां आंसुओं में बह गए....
साथियों तो ये था आज का फरमाइशी प्रोग्राम ....अगले किसी ऐसे ही मौके पर फिर मिलेंगे तब तक के लिए शब्बा खैर !
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Monday, December 8, 2008
दिग्गज हारे चुनाव, जीती जनता !
इन चुनावों में कई बड़े बड़े दिग्गज धूल चाट गए हैं। सबसे बड़ा उलटफेर हुआ है उमा भारती की हार से, आश्चर्यजनक रूप से उमा भारती अपने गृह विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के अखंड प्रताप सिंह से हार गई हैं, उधर छत्तीसगढ़ में विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष महेंद्र करमा भी अपनी सीट गँवा बैठे हैं।
पाक की सच्चाई..............
Saturday, December 6, 2008
६ दिसम्बर पर कैफी आज्ज़मी की एक नज़्म -
राम बनवास से जब लौटके घर में आये
याद जंगल बहुत आया जो नगर में आये
रक़्सेदीवानगी आँगन में जो देखा होगा
छह दिसंबर को श्रीराम ने सोचा होगा
इतने दीवाने कहाँ से मेरे घर में आये
जगमगाते थे जहाँ राम के क़दमों के निशां
प्यार की कहकशां लेती थी अँगडाई जहाँ
मोड़ नफ़रत के उसी राहगुज़र से आये
धर्म क्या उनका है क्या ज़ात है यह जानता कौन
घर न जलता तो उन्हें रात मे पहचानता कौन
घर जलाने को मेरा लोग जो घर में आये
शाकाहारी है मेरे दोस्त तुम्हारा ख़ंजर
तुमने बाबर की तरफ़ फेंके थे सारे पत्थर
है मेरे सर की ख़ता ज़ख़्म जो सर में आये
पाँव सरयू में अभी राम ने धोये भी न थे
कि नज़र आये वहाँ ख़ून के गहरे धब्बे
पाँव धोये बिना सरयू के किनारे से उठे
राजधानी की फ़िज़ा आयी नहीं रास मुझे
छह दिसंबर को मिला दूसरा बनवास मुझे !
राजनीती,राजनेता और विकास
आतंकवाद पर एक नज़्म
विस्फोट के बाद ।
मुल्क को लगी ,
चोट के बाद ।
बेरहम दहशतगर्द !
कितना कुछ कर डालते हैं ,
और अपने गुनाह का बोझ ,
खुदा के सर डालते हैं ।
खुदा अपने आप को ,
कितना बेबस पाता होगा !
ऐसे खुदापरस्तों पर ,
किस कदर शर्माता होगा !
Thursday, December 4, 2008
एक न्यूज़ चैनल की ब्रेकिंग न्यूज़ का स्वरुप देखिये
Wednesday, December 3, 2008
अब डरने लगा हूँ
रोज़ तिल तिल कर मरने लगा हूँ ,
रोज़ बस से आफिस जाता हूँ ,
इसलिए आस पास की चीज़ों पर ध्यान लगता हूँ
सीट के नीचे किसी बम की शंका से मन ग्रसित रहता है
कभी कोई लावारिस बैग भ्रमित करता है ।
ख़ुद से ज़्यादा परिवार की फ़िक्र करता हूँ
इसलिए हर बात मे उनका ज़िक्र करता हूँ
रोज़ अपने चैनल के लिए ख़बर करता हूँ
और किसी रोज़ ख़बर बनने से डरता हूँ
मैं एक आम हिन्दुस्तानी की तरहां रहता हूँ
इसलिए रोज़ तिल तिल कर मरता हूँ
हालात यही रहे तो किसी रोज़ मैं भी
किसी सर फिरे की गोली या बम का शिकार बन जाऊँगा
कुछ और न सही पर बूढे अम्मी अब्बू के
आंसुओं का सामान बन जाऊँगा।
इस तरह एक नही कई जिनदगियाँ तबाह हो जाएँगी
बहोत न सही पर थोडी ही
दहशतगर्दों की आरजुओं की गवाह हो जाएँगी ।
इसीलिए मैं अब डरने लगा हूँ
हर रोज़ तिल तिल कर मरने लगा हूँ ,तिल तिल कर मरने लगा हूँ ।
Tuesday, December 2, 2008
वक़्त की पुकार......
हम उनकी औकात से वाकिफ , वो न हमको जाने हैं
हम वो हैं, जो देश की खातिर जीते हैं, और मरते हैं
वक़्त सही है , दुश्मन के अब होश ठिकाने लाने है
हिन्दू,मुस्लिम,सिख,ईसाई सबको हिंद से प्यार बहुत
जो भी दुश्मन इसको देखे वो सब मार गिराने है
मिलकर अपने देश को यारों , सूरज जैसा चमका दो
दहशत की दुनिया से बच कर गुलशन यूँ तामीर करो
ज़ुल्मत को दुनिया से मिटाओ , जालिम को ज़ंजीर करो.
(मुल्क में नाजुक हालात के मद्देनज़र भाईचारगी ही सबसे अहम है-
..........आपका अलाउद्दीन -अय्यूब )
शूटर और शूटर ......
एक ओलम्पिक शूटर के स्वर्ण जीतने पर सरकार उसे ईनाम के तौर पर 3 करोड़ रुपये देती है। ( सनद रहे कि वह शूटर पहले ही करोड़पति है ! )
एक और शूटर आतंकवादियों से लड़ते हुए मर जाता है .... ( देश और हमारी रक्षा के लिए ) और सरकार उसे केवल 5 लाख रुपये देती है !
Monday, December 1, 2008
यह सब तकलीफदेह है....
इस समय वाकई असहाय महसूस कर रहा हूँ ( शायद कुछ लोग यही चाहते हैं ! ) पर इतना स्पष्ट करना चाहूँगा किकुछ भी हो जाए CAVS संचार को धार्मिक राजनीति का अड्डा नहीं बनने दूँगा...हम पत्रकार हैं ...बेहतर होगा कि वैसा ही बर्ताव करें.....अब बस करिए
यह ब्लॉग किसी हिन्दू या मुस्लिम के दिल की भड़ास निकालने के लिए नहीं है .....मैंने पहले ही विनती की थी .... ना तो हम मुस्लिम लीग और जमायत के हिमायती हैं और ना ही किसी बजरंग दल या हिन्दू महासभा के !
हमें क्षमा करें हम निष्पक्ष पत्रकार है....किसी मज़हबी संस्था के मुखपत्र नहीं !
इसलिए आप सभी जो किसी धर्म विशेष की पैरवी करने अथवा किसी मज़हब के ख़िलाफ़ ज़हर उगलने की मंशा रखते हैं ..... आप कृपया इस ब्लॉग का प्रयोग ना करें .... आप इस काम के लिए व्यक्तिगत या सामूहिक अन्य ब्लॉग बनाने हेतु स्वतंत्र हैं ! कृपया हमें कुछ वाकई सार्थक करने दें .....
हम क्षमा प्रार्थी हैं किसी आपके मज़हबी उद्देश्यों में हम साधक नहीं बन सकते ! किसी ने कहा किसी धमकी न दें तो बन्धु यह प्रार्थना है...वैसे भी उग्रपंथियों ( किसी भी धर्म के ) के आगे एक आम आदमी केवल प्रार्थना ही कर सकता है !
इसीलिए हमने यह निर्णय लिया है कि हम इस प्रकार की किसी भी पोस्ट से अपनी छवि एक कट्टरपंथी ब्लॉग की नहीं बनने देंगे .....बेहतर होगा कि हम मुद्दों की बात करें......
वैसे भी मुल्क की ज़रूरत आज हिंदू या मुसलमान नहीं ....... हिन्दुस्तानी होना है !
क्षमाप्रार्थी
केव्स परिवार !
( हमारे पास लगातार प्रतिक्रियाएं और मेल आई जिसके फलस्वरूप यह प्रार्थना की जा रही है। CAVS की धर्मनिरपेक्ष छवि हम सभी के लिए ज़रूरी है। )
भारतीय खेती की दशा और दिशा
गौर फरमाएं
रोज विस्फोट अब हो रहे हैं।
टांग में टांग देखों फसांए,
गधे ये चैन से सो रहे हैं।
- सुभाष भदौरिया
Sunday, November 30, 2008
अतिथि लेख: हर शाख पर उल्लू बैठा है
वाह री राष्ट्रवादी पार्टी, धिक्कार है।
अब क्या कहें, सरकार चाहे अटल बिहारी वाजपेयी की हो या मनमोहन सिंह की, आतंकवाद हमारी नियति है। ये तो केवल भूमिका बन रही है, हम पर और बड़ी विपत्तियां आने वाली हैं।क्यूं कि 2020 तक महाशक्ति बनने का सपना देख रहे इस देश की हुकूमत चंद कायर और सत्तालोलुप नपुंसक कर रहे हैं।
Saturday, November 29, 2008
शहीदों को नमन ( गुरुदेव टैगोर का अनूदित पद्यांश )
आंसू स्याही हैं और कलम आँखें
जब घायल हुआ हिमालय ख़तरे में पड़ी आजादी,
जब तक थी साँस लड़े वो फिर अपनी लाश बिछा दी
संगीन पे धर कर माथा सो गए अमर बलिदानी जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुरबानी
थी खून से लथ-पथ काया फिर भी बंदूक उठा के
दस-दस को एक ने मारा फिर गिर गए होश गँवा के
जब अंत-समय आया तो कह गए के अब मरते हैं खुश रहना देश के प्यारों अब हम तो सफ़र करते हैं
गजेन्द्र सिंह
राजीव खांडेकर
नाना साहेब भोंसले
जयवंत पाटिल
योगेश पाटिल
अम्बादास रामचंद्र पवार
एम् आई सी चौधरी
शशांक शिंदे
प्रकाश मोरे
ऐ आर चितले
बबुसाहेब दुरगुडे
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क्षोभ और शोक ......
Friday, November 28, 2008
जाना एक फ़कीर का
अंबरीश कुमार (http://virodh.blogspot.com)
भारतीय राजनीति में पिछड़े तबके को राजनैतिक ताकत दिलाने और समाज में उनकी नई पहचान बनाने वाले विश्वनाथ प्रताप सिंह नहीं रहे। अंतिम समय तक वे सामाजिक बदलाव के संघर्ष से जुड़े रहे। गुरूवार दोपहर करीब ढाई बजे उनका निधन हुआ जबकि बुधवार की रात जन मोर्चा के नेताओं से उनकी राजनैतिक चर्चा भी हुई। जन मोर्चा वीपी के नेतृत्व में जल्द ही उत्तरांचल में सम्मेलन करने ज रहा था तो १५ दिसम्बर को संसद घेरने का कार्यक्रम तय था। वीपी सिंह अंतिम समय तक सेज के नाम पर किसानों की जमीन औने-पौने दाम में लिए जने के खिलाफ आंदोलनरत थे। ७७ वर्ष की उम्र में १६ साल वे डायलिसिस पर रहकर लगातार आंदोलन और संघर्ष से जुड़े रहे। अगस्त,१९९0 में प्रधानमंत्री के रूप में जब उन्होंने मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू की तो पूरे उत्तर भारत में राजनैतिक भूचाल आ गया था। मंडल के बाद ही हिन्दी भाषी प्रदेशों की जो राजनीति बदली, उसने पिछड़े तबके के नेताओं को नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया। बिहार, उत्तर प्रदेश से लेकर राजस्थान तक अगड़ी जतियों की जगह पिछड़ी जतियों ने लेना शुरू किया। बिहार और उत्तर प्रदेश की राजनीति तो ऐसी बदली कि डेढ़ दशक बाद भी कोई सवर्ण मुख्यमंत्री नहीं बन पाया। उत्तर भारत की राजनीति बदलने वाले वीपी सिंह अगड़ी जतियों और उच्च-मध्यम वर्ग के खलनायक भी बन गए। यह भी रोचक है कि लालू यादव से लेकर मुलायम सिंह यादव तक को सत्ता के शीर्ष पर पहुंचाने का राजनैतिक एजंडा तय करने वाले वीपी सिंह एक बार जो केन्द्र की सत्ता से हटे तो फिर दोबारा सत्ता में नहीं आए। मंडल के बाद ही मंदिर का मुद्दा उठा जिसने भगवा ब्रिगेड को केन्द्र की सत्ता तक पहुंचा दिया। लोगों को शायद याद नहीं है कि लाल कृष्ण आडवाणी का रथ बिहार में जब लालू यादव ने रोक कर गिरफ्तार किया था तो देश के प्रधानमंत्री वीपी सिंह थे। इसी के चलते लालू यादव आज भी अल्पसंख्यकों के बीच अच्छा खासा जनाधार रखते हैं। २५ जून, १९३१ को जन्म लेने वाले वीपी सिंह इंदिरा गांधी से लेकर राजीव गांधी मंत्रिमंडल तक में शामिल रहे। कांग्रेस से उनका टकराव बोफोर्स को लेकर हुआ था जिसने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया। आज भी बोफोर्स का दाग कांग्रेस के माथे पर से हट नहीं पाया है। कुछ दिन पहले ही वीपी सिंह की कविता की एक लाइन प्रकाशित हुई थी-रोज आइने से पूछता हूं, आज जाना तो नहीं है। पता नहीं आज उन्होंने यह सवाल किया था या नहीं पर वे आज चले गए। राजनीति के बाद उनका ज्यादातर समय कविता और पेंटिंग में गुजरता था। अगड़ी जतियों के वे भले ही खलनायक हों लेकिन पिछड़ी जतियों, दलितों, वंचितों और अल्पसंख्यकों के वे हमेशा नायक ही रहे। मुलायम सिंह के शासन में उन्होंने दादरी के किसानों का सवाल उठाया तो वह प्रदेश व्यापी आंदोलन में तब्दील हो गया। इससे पहले बोफोर्स का सवाल उठाकर जब वे उत्तर प्रदेश के गांव-गांव में घूमें तो नारा लगता था-राज नहीं फकीर है, देश की तकदीर है। वीपी सिंह लगातार आंदोलनरत रहे और समाज पर उनकी छाप अमिट रहेगी। चाहे मंडल का आंदोलन हो या फिर मंदिर आंदोलन के नाम पर सांप्रदायिक ताकतों का विरोध करना या फिर किसानों के सवाल पर देश के अलग-अलग हिस्सों में अलख जगाना, इन सब में वीपी सिंह का महत्वपूर्ण योगदान रहा। लोकनायक जय प्रकाश नारायण के बाद वीपी सिंह दूसरे नेता रहे जिन्होंने कांग्रेस के वर्चस्व को तोड़ा। यही वजह है कि बाद में उनके समर्थकों ने उन्हें जन नायक का खिताब दिया। पर उनका सबसे महत्वपूर्ण योगदान मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने का था। जिसके बाद उन्हें मंडल मसीहा कहा जने लगा। यह बात अलग है कि मंडल के नाम पर राजनीति करने वाले नेताओं ने उन्हें हाशिए पर ही रखा। यही वजह है कि उत्तर भारत की राजनीति को बदलने वाले वीपी सिंह कई वर्षो से किसी भी सदन के सदस्य नहीं रहे। आज भी उनके परिवार का कोई सदस्य विधानसभा या संसद में नहीं है। उनके पुत्र अजेय सिंह पिछले कुछ समय से किसानों के सवाल को लेकर सामने आ चुके हैं पर किसी राजनैतिक दल से उनका कोई संबंध नहीं रहा है। वीपी सिंह से करीब १५ दिन पहले फोन पर बात हुई तो उन्होंने किसानों के सवाल को लेकर आंदोलन की योजना की बारे में बताया था। यह भी कहा था कि वे जल्द ही विदर्भ के किसानों के सवाल को लेकर न सिर्फ वहां जएंगे बल्कि वहां धरना भी देंगे। इससे पहले दादरी के मुद्दे को लेकर उन्होंने उत्तर प्रदेश में व्यापक आंदोलन छेड़ा। डेरा डालो-घेरा डालो आंदोलन के जरिए उन्होंने देवरिया से दादरी तक किसानों को लामबंद किया था। इसके अलावा बुंदेलखंड में जब किसानों की खुदकुशी का सिलसिला शुरू हुआ तो वीपी सिंह कई क्षेत्रों में गए। बाद में जन मोर्चा और किसान मंच ने वामदलों के साथ बुंदेलखंड में आंदोलन भी छेड़ा। एक दौर में उनके आंदोलन के साथ राष्ट्रीय लोकदल, भाकपा, माकपा, भाकपा माले, इंडियन जस्टिस पार्टी और कई छोटे-छोटे दल जुड़ गए थे। मुलायम सिंह के खिलाफ राजनैतिक माहौल बनाने में वीपी सिंह की महत्वपूर्ण भूमिका रही। यह बात अलग है कि छोटे-छोटे दलों के नेताओं की बड़ी महत्वाकांक्षाओं को वे संभाल नहीं पाए। और इसका फायदा विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को मिला। कुछ महीने से उनकी तबियत काफी खराब चल रही थी पर पिछले २0-२५ दिन से वे स्वस्थ थे। सारी तैयारी उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, पंजब और महाराष्ट्र में किसान आंदोलन को लेकर चल रही थी। महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के ११ जिलों में वीपी सिंह का किसान मंच पिछले एक साल से सक्रिय है। अब दिसम्बर से महाराष्ट्र के किसानों को लेकर नए सिरे से आंदोलन की तैयारी थी। हालांकि आंदोलन का नेतृत्व अजेय सिंह ने संभाल लिया था पर वीपी सिंह की उपस्थिति से ही राजनैतिक माहौल बनता। वीपी सिंह के अचानक गुजर जने से देश के किसानों के आंदोलन को गहरा ङाटका लगा है। वीपी सिंह १९६९ से ७१ तक विधायक रहे। १९७१ में वे पांचवी लोकसभा के लिए चुने गए। १९८0 में वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और १९८२ तक इस पद पर रहे। १९८३ से १९८८ तक वे राज्यसभा के सदस्य रहे। १९८४ से १९८७ तक राजीव गांधी मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री रहे। बाद में वे १९८७ में रक्षा मंत्री बने।जनसत्ता से
क्या आतंकी हमले हमारी नियति बन गए हैं ?
कल लखनऊ महोत्सव के मंच से एक अप्पील की गई थी जिसे मैं एक बार फिर आप लोग से दोहरा देता हूँ ...
"हिन्दोस्तान में आतंकी बार बार ऐसी घटनाओं को अंजाम देने में इसलिए कामयाब हो जाते हैं क्यूंकि जो इंसानियत के दुश्मन हैं वो तो मुत्तहिद (एकजुट) हैं और जो इंसानियत के रखवाले हैं वो बिखरे हुए हैं .........वक्त आ गया है की हम एक होकर इसका मुकाबला करें ...."
दुष्यंत की पंक्तियों के साथ अपनी बात आप पर छोड़ता हूँ....
पक गयीं हैं आदतें , बातों से सर होगी नही
कोई हंगामा करो , ऐसे गुज़र होंगी नही
Thursday, November 27, 2008
आओ बैठे बात करें कुछ हल निकालें
Tuesday, November 25, 2008
कुंवर नारायण को ज्ञानपीठ
भाषा के चक्कर में
ज़रा टेढ़ी फँस गई ।
भाषा को उलटा पलटा
तोड़ा मरोड़ा
घुमाया फिराया
कि बात या तो बने
या फिर भाषा से बाहर आये-
बात और भी पेचीदा होती चली गई ।
सारी मुश्किल को धैर्य से समझे बिना
मैं पेंच को खोलने के बजाय
उसे बेतरह कसता चला जा रहा था
साफ़ सुनायी दे रही थी
तमाशाबीनों की शाबाशी और वाह वाह ।
ज़ोर ज़बरदस्ती से
बात की चूड़ी मर गई
और वह भाषा में बेकार घूमने लगी ।
उसी जगह ठोंक दिया ।
ऊपर से ठीकठाक
न तो उसमें कसाव था
न ताक़त ।
मुझसे खेल रही थी,
मुझे पसीना पोंछती देख कर पूछा –
“क्या तुमने भाषा को
सहूलियत से बरतना कभी नहीं सीखा ?”
Saturday, November 22, 2008
बेचारे नेताजी....
बेचारे नेताजी उन लोगों के सुख- दुख में भागीदार बनने की कोशिश कर रहे हैं.. जिनके लिए कल तक समय भी नहीं था.. सचमुच अपने जीवन के सबसे कठिन दौर से गुजर रहे हैं नेताजी.. अब इसे आप उनके लिए कठिन दौर नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे.. जो कल तक सितारा होटलों और सुविधायुक्त गेस्ट हाउस में ही बैठा करते थे.. आज जहां तहां दरी बिछाकर बैठने के लिए मजबूर हैं..कल तक जिन सरकारी योजनाओं और सुविधाओं पर अपने स्वार्थ की खातिर नेतागिरी का अड़ंगा लगाते थे.. अब उन मसलों पर जनता की अदालत में अपनी मजबूरियां गिनाते हैं.. बेचारे नेताजी पापी वोट की खातिर अपनी ही कारगुजारी को अब विपक्ष का अड़ंगा बताते हैं..
कहां नेताजी पांच साल तक सुकून से सोते थे.. अब नींद में भी जनता के सामने रोते हैं.. दिमाग का हाल कम Ram के कम्प्यूटर की तरह हो गया है.. गाहे बगाहे ज्यादा वर्क लोड के कारण हैंग हो जा रहा है.. कल तक हर काम के बदले मोटा कमीशन मांगा करते थे.. आज हर काम के बदले खुलकर कमीशन देने के लिए तैयार बैठे हैं नेताजी.. बेचारे नेताजी कहां पांच साल तक लोगों के बीच तन कर खड़े रहते थे.. आज उन्हीं के बीच फैल जाने की सोचते रहते हैं..
कल तक कानून का भी दायरा नहीं मानते थे नेताजी.. आज तरह- तरह के दायरों में खुद बंध गए हैं नेताजी.. बेचारे नेताजी कभी आचार संहिता के दायरे में खुद को फंसा पाते हैं तो कभी मैप पर अपनी विधान सभा के दायरे को देखकर सिर खुजलाते हैं.. क्या करें हाल बेहाल है बेचारे नेताजी..
कभी अपनी निधि से जैसे तैसे पैसा जुटाते थे नेताजी.. आज संचित निधि से दिल खोल कर पैसा लुटाते हैं बेचारे नेताजी.. कल तक दबंगई से ठेका हथियाते थे नेताजी.. आज हाथ जोड़-जोड़ कर भीड़ जुटाने के लिए भी ठेका देते हैं बेचारे नेताजी..
नेताजी के तकलीफों की फेहरिश्त बड़ी लम्बी है.. और तो और रोजाना मर्ज की संख्या भी बढ़ी जा रही है.. फिर भी अपने दिल को दिलासा देकर जिए जा रहे हैं नेताजी.. व्यस्त समय में भी अपने मन को समझाते रहते हैं नेताजी.. कि चिंता मत करो प्यारे जल्द ही वो नई सुबह आएगी जब हम इलेक्शन जीत जाएंगे.. इलेक्शन जीतते ही सारी कठिनाईयों से छुटकारा पा जाएंगे.. तब ये आचार संहिता बताने वाले हमारी संहिता गाएंगे.. फिर इलेक्शन का पैसा ब्याज सहित निकालेंगे.. अपना तो छोड़ो दूसरों के ठेके भी दबंगई से हथिया लेंगे.. आज जो वादे किए हैं वो अगले इलेक्शन के लिए लॉकर में दबा देंगे.. जनता तो बड़ी भोली है.. चुनाव आने पर एक बार फिर बहानों सहित वादा सुना देंगे..
जो भी कहें आप बड़े न्यारे हैं नेताजी.. लाख ऐब है फिर भी जनता की आंखों के तारे हैं.. अब मुझे समझ में नहीं आ रहा कि आप पर तरस खाऊं या आम जनता पर.. जो पांच साल तक आपको गरियाती है फिर भी चुनाव में वोट डालकर आप ही को जिताती है.. वाकई आप की नस्ल बड़ी उन्नत है.. तभी तो आप नेता हैं और हम आम जनता..
माफ करिएगा नेताजी जो हमने आपकी काबिलियत पर सवाल उठाया.. वैसे भी हमसे आप पर क्या फर्क पड़ता है जब कचहरी और कानून भी आपके हौसले को नहीं डिगा पाया..
सचमुच आप कलियुग के भगवान हैं बेचारे नेताजी!!!!
Posted by- Ajeet.....
Friday, November 21, 2008
चुनाव रिपोर्ट
चुनावी ग़ज़ल
चुनावी ग़ज़ल
हुए थे लापता कुछ साल पहले, अब हैं लौट आए
वो नेता हैं, कि हाँ फितरत यही है।
हम उनकी राह तक-तक कर बुढाए
हम जनता हैं, कि बस किस्मत यही है।
वो बोले थे, ना हम सा कोई प्यारा
वो भूले, उनकी तो आदत यही है।
बंटी हैं बोतलें, कम्बल बंटे हैं
वो बोले आपकी कीमत यही है।
वो मुस्काते हैं, हम हैं लुटते जाते
कि बस हर बार की आफत यही है।
जो पूछा, अब तलक थे गुम कहाँ तो
वो बोले, बस हुज़ूर फुर्सत यही है।
चाउर वाले बाबा वर्सेस लबरा राजा...
देश की शीर्ष पार्टियां तन-मन-धन से इस महासंग्राम मे लगी हुई है...एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोपो का दौर चल रहा है...
वहीं छत्तीसगढ़ जैसे भोलेभाले प्रदेश की राजनितिक फिज़ा भी दूषित हो गयी है...यहां की अनपढ़,गरीब और वनांचल मे रहने वाली जनता इस प्रदूषण को भलीभाती समझ रही है और 68 फीसदी मतदान करते हुए इस प्रदूषण को काफी हद तक खत्म करने के लिए अपना योगदान दे भी दिया है...
बहरहाल अब 8 दिसंबर को ही स्थिती स्पष्ट हो पाएगी...
प्रदेश की भोलीभाली गरीब जनता ने अभी तक दो ही सरकारो और दो ही मुख्यमंत्रियो का कार्यकाल देखा हुआ है...
हालाकि दोनो ही पार्टियो ने अभी तक मुख्यमंत्रियो की दौड़ मे काई दूसरा विकल्प पेश नही किया है...
अब जनता के समक्ष दो ही उम्मीदवार थे एक भाजपा के डाक्टर रमन सिंह(जिसे प्रदेश की जनता चाउर वाले बाबा के नाम से जानती है और अति गरीब जनता इन्हे अन्नदाता मतलब भगवान मानती है)...
और दूसरे कांग्रेस के अजीत जोगी(जिन्हे लोग तेजतर्रार प्रशासनिक अनुभव रखने वाले व्यक्ती के रूप मे पहचानती है)...
छत्तीसगढ़िया मे लबरा राजा का अर्थ है बकबक,बड़बोला,और झूठा वादा करने वाला व्यक्ति...
दुर्भाग्यवश अजीत जोगी को यहां की अवाम इसी नाम से जानती है...कारण केवल ये कि कांग्रेस कार्यकाल मे इनके प्रशासनिक अनुभव के चलते कोई विकास कार्य नही हुए...
जबकी एक सरल-साधारण से डाक्टर ने प्रदेश के हर घर मे जगह बनाई और जगह जगह विकास की गंगा बहाई...
यदि दोनो सरकारो की तुलना की जाए तो भाजपा ने 5 साल मे जिस गति से विकास कार्य किया है उतना कार्य करने मे कांग्रेस को 10 वर्ष लगते...(3 रू किलो चावल,24 घंटे बिजली,3.5फीसदी कृषि लोन,कितने ही रोजगार,सलवा जूडुम----
बात घोषणपत्र की हो तो कांग्रेस ने भाजपा के अन्त्योदय की नकल करते हुए 2 रू किलो चावल 1 रू नमक देने की घोषणा की थी...
वहीं भाजपा ने इसका जवाब देने के लिए 1 रू किलो चावल और नमक मुफ्त देने की घोषणा की है...
पोलिंग बूथो पर मतदाताओ को केवल 2 नम्बर का बटन और चाउर वाले बाबा ही याद थे...
यहां मै किसी पार्टी विशेष का प्रचार नही कर रहा हूं...यह आम जनता की बात सुन कर ही लिख पा रहा हूं...
यहां मुख्य रूप से फाईट दो ही लोगो मे है(रमन और जोगी मे...
पर फिर भी राज्य मे किसकी सरकार बनेगी कहना मुश्किल है...
जहां तक मुझे लगता है 90 विधानसभा सीटो मे से भाजपा 50-51,कांग्रेस 35-36,निर्दलीय एवं अन्य पार्टियां 6-7 सीटो पर विजयश्री पा सकती है...
नवीन सिंह...
Thursday, November 20, 2008
साहित्य और पत्रकारिता के सेतुपुरुष थे पराड़कर जी -
‘ विरोध (http://virodh.blogspot.com/)
पं बाबूराव विष्णु पराड़कर हिंदी साहित्य और पत्रकारिता के सेतुपुरुष थे. पत्रकारिता की मौजूदा परिस्थिति में आज उनकी ओर से स्थापित मूल्य और ज्यादा प्रासंगिक हैं. उन्होंने हिंदी साहित्य को दो सौ से ज्यादा शब्द दिए थे. उन्होंने आजादी के आंदोलन में पत्रकारिता का इस्तेमाल तलवार की तरह किया था. पत्रकारिता में चुनौतियां उस जमाने में भी कम नहीं थी. इस समय जरूरत है पराड़कर की तरह उनसे निपटने की दिशा में एक ठोस पहल की.’ देश की हिंदी पट्टी से यहां जुटे तमाम आलोचकों, साहितियकारों, पत्रकारों और विद्वानों ने पराड़कर जी को कुछ इन्हीं शब्दों में याद किया. मौका था भोपाल स्थित माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता और संचार विश्वविद्यालय की ओर से पराड़कर की 125वीं जयंती के मौके पर यहां आयोजित एक संगोष्ठी का. संगोष्ठी का विषय था-‘पराड़कर युग और आज की पत्रकारिता.’
कबीरचौरा स्थित नागरी नाटक मंडली के सभागार में इस संगोष्ठी के लिए पांच सौ से ज्यादा लोगों की भीड़ देखना अपने आप में एक सुखद अनुभव था. अमूमन ऐसे आयोजनों में भीड़ या तो जुटती नहीं है या फिर मुख्य वक्ताओं को सुनने के बाद ही निकल जाती है. लेकिन पहले सत्र में समय लंबा खिंचने के बावजूद लोग न सिर्फ जमे रहे, बल्कि ध्यान से सबको सुना भी. संगोष्टी के दौरान पराड़कर जी की पुत्रवधू अर्चना पराड़कर को सम्मानित किया गया. इस मौके पर भोपाल के ही....की ओर से उदंड मार्तंड से लेकर पराड़कर जी के संपादन में निकलने वाली ‘आज’, ‘संसार’, ‘कमला’ और ‘रणभेरी’ की दुर्लभ प्रतियों की प्रदर्शनी आयोजित की गई थी. इसे देखना पत्रकारिता के एक कालखंड से गुजरने की तरह था.
माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता और संचार विश्वविद्यालय के कुलपति अच्युतानंद मिश्र ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि ‘पराड़कर जी हिंदी साहित्य और पत्रकारिता के सेतु पुरुष थे. उन्होंने हिंदी साहित्य को दो सौ से ज्यादा शब्द दिए.’ मिश्र का कहना था कि आजादी के बाद साहित्य और पत्रकारिता के बीच दूरी बढ़ी. नतीजा यह रहा कि हिंदी को उसका उचित स्थान और पहचान दिलाने की जो लड़ाई इन दोनों को मिल कर लड़नी थी वह कमजोर हो गई. उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय की ओर से देश के ऐसे तमाम मूर्धन्य संपादकों की जन्म या कर्मभूमि ने ऐसे आयोजन किए जाएँगे, जिनका आजादी की लड़ाई में अहम योगदान रहा है.
संगोष्ठी के प्रधान वक्ता वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी ने कहा कि ‘पराड़कर युग और आज की पत्रकारिता के बीच कोई सेतु बनाने का प्रयास बुरी तरह विफल होगा. पत्रकारिता का जो अर्थ उस समय था, वह आज के इस दुर्भाग्यपूर्ण माहौल में कहीं फलता-फूलता नजर नहीं आता. लेकिन पराड़कर के जरिए आज की पत्रकारिता को समझने की एक कुंजी तो मिल ही सकती है.’ उनका सवाल था कि मराठी होते हुए भी पराड़कर को हिंदी इलाके ने अपना मान कर प्रतिष्ठित किया था, लेकिन क्या आज के माहौल में यह संभव है? उन्होंने कहा कि ‘पराड़कर ने आजादी के लिए पत्रकारिता को तलवार की तरह इस्तेमाल किया था. लेकिन अब उसी आजाद देश में मुंबई और असम में हिंदीभाषियों को बाहरी कह कर मारा और भगाया जा रहा है. तमाम अखबार और चैनल राज ठाकरे को खलनायक बताते हुए उसका महिमामंडन करने में जुटे हैं.’
जाने-माने आलोचक नामवर सिंह ने पहले तो इस बात पर आक्रोश जताया कि काशी के लोग अपनी भुलक्कड़ी की आदत के चलते पराड़कर को भी भूल गए हैं. उन्होंने कहा कि ‘आज की पत्रकारिता कठिन दौर से गुजर रही है. इसकी विश्वसनीयता तेजी से कम हुई है. लेकिन पराड़कर युग से तुलना कर इसे कोसने की बजाय इसकी दशा में सुधार के लिए साहित्य और पत्रकारिता से जुड़े लोगों को गंभीरता से विचार करना होगा.’
संगोष्ठी में असहमति के स्वर भी उभरे. कई पत्रकारों ने सवाल उठाया कि अब बाजार के दबाव में प्रबंधन इस बात का फैसला करता है कि कौन सी खबर छपेगी और कौन सी नहीं. ऐसे में पत्रकार कर ही क्या सकता है? अच्युतानंद मिश्र ने इन सवालों का जवाब देते हुए कहा कि ‘स्वरूप भले बदला हो, चुनौतियां हर युग में रही हैं. ऐसे में पराड़कर की तरह ही इन चुनौतियों से निपटने के लिए एक ठोस पहल की जरूरत है.’
संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे डा. कृष्ण बिहारी मिश्र ने कहा कि पहले पत्रकारिता उदेश्य प्रधान थी लेकिन अब अर्थ प्रधान हो गई है. उन्होंने भी मौजूदा हालात में सुधार के लिए साहितय और पत्रकारिता के बीच सहयोग की जरूरत पर जोर दिया. संगोष्ठी का संचालन किया वाराणसी स्थित मदन मोहन मालवीय हिंदी पत्रकारिता संस्थान के निदेशक प्रोफेसर राममोहन पाठक ने. धन्यवाद ज्ञापन सप्रे संग्रहालय के निदेशक विजयदत्त श्रीधर ने किया. संगोष्ठी के दौरान ही पराड़कर के सहयोगी रहे पारस नाथ सिंह को भी सम्मानित किया गया. तमाम वक्ता इस बात से सहमत थे कि एक दिन की किसी संगोष्ठी में इतने गंभीर विषय पर विस्तार से चर्चा संभव नहीं है. लेकिन उन्होंने उम्मीद भी जताई कि इस पहल के दूरगामी नतीजे होंगे.
Wednesday, November 19, 2008
जय बोल.......
चुनावी दंगल की जब परिकल्पना आई तो दिमाग में यह भी था कि इसी बहाने अपने राजनीतिज्ञों पर कुछ बेहतरीन व्यंग्य भी लिखने और पढने का मौका मिलेगा। कल एक व्यंग्य लिखना शुरू किया( जो कुछ दिनों में आपके सामने होगा) तो अचानक काका हाथरसी याद आ गए। दरअसल राजनीति और भ्रष्टाचार पर सबसे मारक व्यंग्य करने वाले लोगों में काका का नाम शुमार है। काका हाथरसी की कवितायें व्यवस्था की छोटी से छोटी खामी को भी अपनी पैनी नज़र से पकड़ती है और ऐसी धार से कागज़ पर उकेरती है कि आम आदमी पढ़े और उसके अन्दर व्यवस्था से विद्रोह पैदा हो.....काका हाथरसी वस्तुतः इसी प्रकार के कवि थे और इतने बड़े कवि थे कि आज भी कई लोग उनकी नक़ल कर के जीवन यापन कर रहे हैं। इसीलिए लगा कि चुनावी दंगल में अगर काका की पंक्तियों का छौंक लग जाए तो दंगल का रोमांच और बढ़ जायेगा, सो प्रस्तुत है, ऐसी पंक्तियाँ जो आज के नेताओं और आज की परिस्थितियों पर बिल्कुल अनुकूल हैं,
जय बोल बेईमान की
मन, मैला, तन ऊजरा, भाषण लच्छेदार,
ऊपर सत्याचार है, भीतर भ्रष्टाचार।
झूटों के घर पंडित बाँचें, कथा सत्य भगवान की,
जय बोलो बेईमान की !
प्रजातंत्र के पेड़ पर, कौआ करें किलोल,
टेप-रिकार्डर में भरे, चमगादड़ के बोल।
नित्य नई योजना बन रहीं, जन-जन के कल्याण की,
जय बोल बेईमान की !
महँगाई ने कर दिए, राशन-कारड फेल
पंख लगाकर उड़ गए, चीनी-मिट्टी तेल।
‘क्यू’ में धक्का मार किवाड़ें बंद हुई दूकान की,
जय बोल बेईमान की
चैक केश कर बैंक से, लाया ठेकेदार,
आज बनाया पुल नया, कल पड़ गई दरार।
बाँकी झाँकी कर लो काकी, फाइव ईयर प्लान की,
जय बोलो बईमान की !
बेकारी औ’ भुखमरी, महँगाई घनघोर,
घिसे-पिटे ये शब्द हैं, बंद कीजिए शोर।
अभी जरूरत है जनता के त्याग और बलिदान की,
जय बोलो बईमान की !
मिल-मालिक से मिल गए नेता नमकहलाल,
मंत्र पढ़ दिया कान में, खत्म हुई हड़ताल।
पत्र-पुष्प से पाकिट भर दी, श्रमिकों के शैतान की,
जय बोलो बईमान की !
न्याय और अन्याय का, नोट करो डिफरेंस,
जिसकी लाठी बलवती, हाँक ले गया भैंस।
निर्बल धक्के खाएँ, तूती बोल रही बलवान की,
जय बोलो बईमान की !
नेता जी की कार से, कुचल गया मजदूर,
बीच सड़कर पर मर गया, हुई गरीबी दूर।
गाड़ी को ले गए भगाकर, जय हो कृपानिधान की,
जय बोलो बईमान की !
अंत में एक हथगोला और संभालें जो एक दूसरी कविता से है ......
नेता अखरोट से बोले किसमिस लाल
हुज़ूर हल कीजिये मेरा एक सवाल
मेरा एक सवाल, समझ में बात न भरती
मुर्ग़ी अंडे के ऊपर क्यों बैठा करती
नेता ने कहा, प्रबंध शीघ्र ही करवा देंगे
मुर्ग़ी के कमरे में एक कुर्सी डलवा देंगे
तो अंत में बस यही कि
चुनाव अनंत, चुनाव कथा अनंता
कहही, सुनहि बहुविधि सब संता
Tuesday, November 18, 2008
चुनाव रिपोर्ट
आज की रपट
महेश मेवाड़ा
छत्तीसगढ़ में दो चरणों में चुनाव में होना है...... और में आपको बता दूं की पहले चरण में 39 सीटों के लिए मतदान 14 नंवबर को संपन्न हो गया है...... जिसमें अधिकतर नक्सली बेल्ट सीटें थी........ यहां मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच रहा है...... वहीं दूसरे चरण की बची 51 सीटों के लिए 20 नंवबर को मतदान होना है........ और इन सीटों पर भी मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस की बीच ही है...... परन्तु तीसरी ताकत का दंभ भर रही बसपा को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता...... वह भी पिछली बार 2 सीटों पर फतह हासिल करने में कामयाब रही थी....... दूसरे चरण के मतदान के लिए अब दो दिन ही शेष है...... और मंगलवार की शाम से ही राजनीतिक पार्टियों का प्रचार थम जाएगा............
महेश मेवाडा mahesh.journalist@gmail.com
जी 24घंटे 36गढ़,
( लेखक ज़ी छत्तीसगढ़ चैनल में इलेक्शन डेस्क पर कार्यरत हैं )
Monday, November 17, 2008
गनतंत्र पर जनतंत्र रहा हावी
"तरह तरह के सर्वे हुए हैं किसी में भाजपा को आगे बताया गया है तो किसी में कांग्रेस को परंतु मुझे लगता है अधिकांश सर्वे बहुत कम सच्चाई लिए होते हैं।"
यहां एक बात यह दुख की रही कि मतदान कर्मियों को पोलिंग बूथ से वापस ला रहे हैलिकॉप्टर पर नक्सलियों ने अत्याधुनिक हथियारों से फायरिंग कर दी जिसमें फ्लाईट इंजीनियर अपना कर्तव्य पालन करते हुए शहीद हो गए वे कानपुर निवासी थे। केव्स के सभी ब्लागवीरों की तरफ से उनको श्रद्धांजली।
39 विधानसभा सीटों पर मतदान के बाद अब सबकी नजर अगले चरण पर टिकीं हुई हैं जो कि 20 तारीख को होगा जिसमें कुल 51 सीटों पर चुनाव होना है। तरह तरह के सर्वे हुए हैं किसी में भाजपा को आगे बताया गया है तो किसी में कांग्रेस को परंतु मुझे लगता है अधिकांश सर्वे बहुत कम सच्चाई लिए होते हैं। देखा जाए तो छत्तीसगढ का भोलाभाला मतदाता वोट से पहले तक कोई रूझान झलकने नहीं देता।
जनता से तमाम लुभावने वादे किए जा रहे हैं जहां कांग्रेस ने 2 रू किलो चावल देने का वादा किया वहीं भाजपा ने 1 रू किलो चावल देने का वादा कर दिया जो अभी 3 रू किलो चावल दे रही है। वादे तो चुनावों में काफी होते हैं पर निभाए बहुत कम जाते हैं वादों के बजाए यदि संकल्प लिया जाए तो शायद बात बने।
वैसे देखा जाए तो प्रथम चरण के बाद ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस की आपसी गुटबाजी और लचर प्रचार के चलते ( सोनिया का दौरा तीन बार रद्द हुआ) रमन सिंह की साफ स्वच्छ छवि भाजपा को फायदा पहुंचा सकती है इसके साथ रमन सरकार ने विकास के कार्य भी काफी किए हैं हालांकि छत्तीसगढ के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए अभी काफी कुछ किया जाना है।
परंतु अभी असली लड़ाई अभी बाकी है दूसरे दौर के मतदान में। क्योंकि इस दौर मे 51 सीटों के लिए चुनाव होना है, इसमें जो भी बाजी मार लेगा बाजीगर वही बन जाएगा..कांग्रेस को सरकार में आने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ेगी और गुटबाजी से निपटना पड़ेगा(क्योंकि यहां पर कांग्रेस के तीन प्रदेशाध्यक्ष है).. वहीं भाजपा के लिए उसके बागी मुसीबत बने हुए हैं साथ ही मायावती भी भाजपा के परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए कमर कसे हुए हैं।
नितिन शर्मा
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