जैसा की हिमांशु ने कहा कि यह हफ्ता वाकई हमारे सबके लिए शर्मनाक रहा। हम सबने जिस तरह से आतंक के ख़िलाफ़ लड़ाई की जगह एक दूसरे के ख़िलाफ़ लड़ाई की वह हमें दुनिया के सामने लज्जित करने के लिए काफ़ी था। कुछ लोग जैसे शायद यही चाहते थे, और हमने उनकी चाल समझे बिना उनका सहयोग किया यह हमारी भूल थी।
दरअसल जो कुछ भी अजीत ने शुरू किया था उसमे मेरी सहमती थी और उसका उद्देश्य था कि धार्मिक कट्टरपंथ और धर्मांतरण के पीछे के कारणों पर हम एक सार्थक चर्चा करें जिससे कुछ वाकई गंभीर समाधान निकल कर आयें पर मैं नही समझ पाया कि विचार करने की जगह सीधे अजीत पर आक्षेप क्यों हुआ और उसके बाद इस तरह से व्यक्तिगत टिप्पणियों का दौर क्यों शुरू हो गया। हम क्या एक अच्छे पत्रकार होने के नाते गंभीर और सार्थक चर्चा भी नही कर सकते हैं और क्या इतने सभ्य समझे जाने वाले ब्लॉग का उपयोग ऐसे करेंगे ?
मैं या अजीत या तन्जीर या फिर और कोई भी धर्मांतरण का समर्थक नहीं हैं पर क्या धर्मांतरण के विरोध के लिए किसी कट्टरपंथी संगठन के समर्थक होना जायज़ शर्त है ?
क्या हिंदू होने के लिए जे श्री राम का उद्घोष अनिवार्य है ?
क्या ज़रूरी है कि अगर कोई मुस्लिम है तो वह आई एस आई का एजेंट है ?
क्या १८५७ के संग्राम का नेतृत्व बहादुर शाह ज़फर ने नहीं किया था और उसमे मंगल पांडे और तांत्या टोपे शहीद नही हुए ?
क्या अगर पेशवा नाना साहेब को नज़र बंद किया गया तो बेगम हज़रात महल ने आज़ादी की जंग नहीं लड़ी ?
क्या क्रांति के रास्ते पर बलिदान होने के लिए चंद्रशेखर आज़ाद और अशफाक उलाह खान एक साथ नहीं बढे थे ?
क्या नेहरू और मौलाना आज़ाद अलग अलग गांधियों के सत्याग्रह के आंदोलनकारी थे ?
क्या आपको मालूम होता है कि जो गेंहू आप खाते हैं उसे हिंदू ने उगाया है या मुस्लिम ने ?
मैं भगत सिंह को याद करने वाले अपने एक मित्र से कहूँगा कि एक बार वो भगत सिंह को पढ़ें ज़रूर ....... वो धर्मनिरपेक्ष थे !
मुझे लगता है कि शायद यही हमारा दुर्भाग्य है कि जब भी हमारे बीच कोई व्यक्ति किसी गंभीर मसले पर सार्थक बहस करने की पहल करता है, हम मेरी और तेरी पर उतर आते हैं और वहीं उस मसले को भूल कर दूसरी राह पकड़ते हैं या फिर कुछ लोग चाहते हैं कि इन मसलो का कभी समाधान न हो जिससे उनकी राजनीति चमकती रहे।
मैं इतने दिन तक इस पसोपेश में रहा कि मैं इन लोगों के बीच आऊ या ना आऊ पर जिस तरह के विद्वेष भरे वक्तव्य दिखे उससे लगा कि क्या किया जाए ?
मन व्यथित था कि क्या लक्ष्य लेकर यह चर्चा शुरू की और क्या नतीजे निकले ?
हम सोचने पर मजबूर हैं कि क्या आगे से किसी विषय पर सार्थक पहल का प्रयास करें या न करें .......
क्या कहीं इसी रवैये की वजह से तो आज पूरा मुल्क मीडिया को ग़लत तो नही समझता ?
अगर आप किसी विचार से सहमत नहीं तो उस के विरोध में अपना तर्क रखें ना कि व्यक्तिगत आक्षेपों पर उतर आयें
एक पोस्ट में कहा गया कि यह मेरे तर्क हैं और इन पर मेरा कॉपीराइट है ...... एक बार उसे सब पढ़ें और देखें कि वस्तुतः उस पोस्ट में कोई तर्क था ही नहीं ......कुल मिला कर निजी प्रहार था , क्या यह तर्कसंगत है ?
हाँ आपके लिखे पर कॉपी राइट आपका ही था क्यूंकि जो आप लिखते हैं उसकी ज़िम्मेदारी भी आपकी ही होनी चाहिए !
व्यक्तिगत भड़ास निकालने के लिए और ब्लॉग हैं जो केवल यही काम देखते हैं , मैं भी अक्सर वहाँ जाता हूँ आप भी जा सकते हैं
इसके लिए कृपया केव्स संचार का दुरुपयोग ना करें
आख़िर क्यों यह धर्मान्धता कि आंधी बह रही है .....ऐसा क्यों कि अगर आप हमारे साथ नही तो शत्रु के साथ हैं ?
हम किसी भी तरह के कट्टरपंथ के विरोध में हैं.....वह चाहे किसी भी धर्म का क्यों न हो !
ना तो हम किसी जेहाद में शामिल हैं ना ही किसी धर्मयुद्ध के योद्धा हैं !
हमने सिर्फ़ यह कहा था कि धर्मांतरण के पीछे के कारणों पर विचार होना चाहिए .... क्या अपनी कमियों पर विचार करना ग़लत है ?
अगर धर्म और रोटी वाली बात ग़लत है तो रखिये सामने रोटी और भगवान् की प्रतिमा को एक साथ और भगवान् के नाम पर चार दिन तक भूखे रह कर दिखा दें और भजन करते रहे !
अगर यह हमारी गलती है तो हमारा सर कलम कर दीजिये
हमें माफ़ करें हम सिर्फ़ और सिर्फ़ इंसान है ....और इस मज़हब से हम किसी तरह का धर्मान्तरण नहीं चाहते हैं !
अंत में राही मासूम रज़ा की एक छोटी सी कविता
मेरा नाम मुसलमानों जैसा है
मुझ को कत्ल करो और मेरे घर में आग लगा दो
मेरे उस कमरे को लूटो जिसमें मेरी बयाने जाग रही हैं
और मैं जिसमें तुलसी की रामायण से सरगोशी करके
कालीदास के मेघदूत से यह कहता हूँ
मेरा भी एक संदेश है।
मेरा नाम मुसलमानों जैसा है
मुझ को कत्ल करो और मेरे घर में आग लगा दो
लेकिन मेरी रग-रग में गंगा का पानी दौड़ रहा है
मेरे लहू से चुल्लू भर महादेव के मुँह पर फेंको
और उस योगी से कह दो-महादेव
अब इस गंगा को वापस ले लो
यह जलील तुर्कों के बदन में गढा गया
लहू बनकर दौड़ रही है।
अंत में हमें वो सब एक बार फिर क्षमा करें जिन्हें हमारा सार्थक प्रयास ग़लत लगा !
अगली पोस्ट में उन सज्जन को उत्तर जिन्होंने इतिहास को ढंग से पढने की सलाह दी थी ....
जय हिंद .....