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Wednesday, October 8, 2008
समझ का फेर
बात निकल कर पाकिस्तान तक ही जा सकती क्युकी इससे आगे आप सोच नही सकते .संकीर्ण मानसिकता इंसान को कुवे का मेंढक बना देती। मै किसी धर्म की बुराई कर ही नही सकता क्युकी दुसरे के धर्म का आदर न करने वाला अपने धर्म के प्रति कभी वफादार नही हो सकता । बुराइयां और कुरीतिया हर धर्म मे है मगर वो समाज की बनाई हुई है ,कोई धर्म इंसानियत के विरुद्ध नियम नही गढ़ता वो तो समाज के ठेकेदार अपनी सहूलियत के हिसाब से उसमे फेर बदल करते रहते है । जहाँ तक सवाल लेख का है तो मैंने आपकी तरहां ही अपने विचार रखे थे,लेकिन इसे आपने धार्मिक रंग दे दिया जो इस बात की पुष्टि करता है की आप कितना व्यथित हैं । कृपया करके ऐसे बीज न बोए की कड़वी फसल किसी के भी गले न उतरे और फ़ूड पोइसिनिंग से इंसानियत की तबियत ख़राब हो जाए .ये देश मुहब्बत की डोर से बंधा है इस रस्सी को रेतने का काम न करें .मेरा लेख आपकी समझ मे नही आया शायद इसी लिए आपने एक धर्म और सम्प्रदाए को निशाना बना दिया .अगर लेख एक बार मे समझ नही आता तो कई बार पढ़े और समझने की कोशिश करे रस्सी की लगातार रगड़ से सख्त पत्थर भी घिस जाया करते हैं ,फिर कुंद दिमाग की बिसात ही क्या.
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ये मारा है गर्म पत्थर पर हथौडा ..... क्या बात है !
ReplyDeleteदिल खुश कर दिया
इकबाल साहब ने कहा था
पत्थर की मूरतों में समझा है तू ख़ुदा है
ख़ाक-ए-वतन का मुझ को हर ज़र्रा देवता है