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Tuesday, October 14, 2008

धर्मनिर्पेक्षता याने हिन्दू विरोध??????

आज सारा देश जिस विडंवना से गुजर रहा है,वह सोचने लायक है। जानकारी के लिये बताना चाहता हूँ,मैं धर्म-निरपेक्षवादी बिल्कुल नहीं हूँ बल्कि धर्म-सापेक्षवादी हूँ। आज धर्म-निरपेक्षता का मतलव हिन्दुओं का विरोध है। जो राजनैतिक स्तर पर ही नहीं हम से भी जुडा हुआ है। उनके लिये खास कर कहना चाहता हूँ जो राजनीति की बात को राजनीति मानते हैं। जब देश में चल रहे हालात के लिये राजनीति ही ज़िम्मेदार है तव उसकी चर्चा क्यों ना की जाये मेरे प्रिय साथियों के लिये भी कहना चाहता हूँ जो हिन्दुओं की आँख बंद करके बुराई करते हैं पुरानी वो बातें करते हैं जो उस दौर में सब धर्मों में थीं। अगर इतना ही एतराज़ है अपने धर्म से तो छोड क्यों नहीं देते या फिर आप अपने को अलग बता कर क्या दिखाना चाहते हैं? ऐंसे हिन्दुओं के लिये सिर्फ यही शब्द हैं कि या तो वो आलोचना छोंडें या फिर आगे आकर जहाँ जो सुधार लगता है वो करें किसने रोका है। हिन्दू धर्म की खामियां दूर करने आयें कौन मना करता है। हिन्दुं के पक्ष का मतलव मुस्लिमों का विरोध नहीं है भाईयों खुद में कोई गलती है तो अपनेआप को मार डालना या छोड देना ठीक बात है ना ये संभव है। व्यवस्था बदलने के लिये व्यवस्था में रहना चाहिये ना कि व्यवस्था से हट कर इसे बदलने का निर्थक प्रयास करने चाहिये।

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