सबसे पहले क्षमा चाहत हूँ कि माता जी की बीमारी की वजह से दो दिन कुछ नही लिखा पाया पर शिकायत करना चाहूंगा कि और किसी ने भी ब्लॉग पर कुछ लिखने का प्रयास नही किया ...... ख़ास कर कम से कम श्री राम के अनन्य भक्तजनों से तो उम्मीद थी कि वे श्री राम के घर लौटने पर ब्लॉग पर कुछ दिए जला देंगे पर वही न कि जो बादल ........ जिस तरह से ब्लॉग पर पिछले दिनों जय श्री राम के उद्घोष किए गए थे लगा था कि ....... पर मैं क्षमा सहित पूछना चाहूँगा कि क्या राम भक्ति केवल बहस और बहस तक ही सीमित है ?
कबीर ने कहा
कस्तूरी कुंडली बसे, मृग ढूंढें बन माहि
ऐसे घट घट राम हैं, दुनिया देखे नाही
खैर क्षमा फिर मांगते हुए ..... श्रृंखला में प्रस्तुत है हमारे नियमित पाठक अनुपम अग्रवाल जी की भेजी एक मजेदार कविता पटाखों के नाम .................................
पटाखों के नाम
ये नहीं है परदा ,हुआँ हुआँ
बारूद का गर्दा ,धुआँ धुआँ
है बढ़ा प्रदूषण , हुआँ हुआँ ,
ये धुंध नहीं , है धुआँ धुआँ
यूँ छोडे पटाखे हैं कम भी
हर जन कहता थोड़े हम भी
ना बच पायें , निकले दम भी
ना बच्चे समझे ना हम भी
पानी सूखा , सूखी ज़मीन
और सूख गया है कुआँ कुआँ
है बढ़ा प्रदूषण , हुआँ हुआँ
सज गयी ज़िंदगी धुआँ धुआँ
है बढ़ा प्रदूषण वहाँ वहाँ
है चले पटाखे जहाँ जहाँ
ये नहीं है .....
अनुपम अग्रवाल
कविता अच्छी है.
ReplyDeleteआशा है माता जी की तबीयत अब अच्छी होगी. शुभकामनाऐं.