आज करवाचौथ है......एक कविता जो मन में बचपन से मचलती रही, कागज़ पर आज आ पायी है ! स्वीकारें
आज फिर माँ
सुबह से भूखी है
और हमारी दिनचर्या
वैसी ही है
आज फिर भाभी
रात तक
पानी भी नहीं पीने वाली हैं
भइया चिल्ला कर
पूछते हैं
क्यों मेरी चाय बना ली है ?
आज फिर दीदी
व्रत रखेंगी
जीजाजी की
लम्बी उम्र के लिए
उनको
खांसते खांसते
तीन महीने हुए
सुहागन मरने की
दुआएं करती
आज फिर नानी
अस्पताल में
भूखी हैं
बीमारी के हाल में
आज फिर दादी
सुना रही हैं बहुओं
को करवाचौथ की व्रत कथा
बहुएं भूखी प्यासी हैं
सुबह से
सुनती हैं मन से यथा
आज फिर पत्नी
खाने के लिए
पति का
मुंह देखेगी पहले
आज फिर पति
का दिन
वैसे ही बीता
दफ्तर में
चाय पर चाय पीता
आज फिर बिटिया
को
बाज़ार से दिला लाया टाफी
सोचा जी लो ज़िन्दगी
तुम्हारे करवाचौथ में
वक़्त है काफ़ी
मयंक सक्सेना
आज फिर बिटिया
ReplyDeleteको
बाज़ार से दिला लाया टाफी
सोचा जी लो ज़िन्दगी
तुम्हारे करवाचौथ में
वक़्त है काफ़ी
सही कहा ..
बहुत बढिया रचना है।
ReplyDeleteप्रिय मित्र
ReplyDeleteआपकी भावनाओं और रिश्तों से भरी कविता पढी.
कुछ शब्द भेज रहा हूँ;
करवाचौथ की लो बधाई ,जिससे कविता कागज़ पर है आज
धन्य हैं जीवन में ये रस्में,जिनकी यादों से जुड़ कर है समाज
भाभी रात तक पानी नहीं पीने वाली हैं
दीदी और नानी तो ऐसे ही जीने वाली हैं
बहुओं की सुबह से है अपनी अलग ही व्यथा
पहले सुननी है दादी से करवा चौथ की कथा
माँ भी आज है सुबह से भूखी
और बीबी आज नहीं है रूखी
एक अच्छा पति ही रख पाता है सब यादों में पास
और उसे ही होता है सबकी भावनाओं का अहसास
मयंक यार तुम मानो या ना मानो तुम मल्टीटैलेन्टेड तो हो....क्योंकी तुम सबकी भावना कैसै समझ सकते हो..आश्चर्यजनक किन्तु सत्य...
ReplyDeleteतुम्हे वो सारी महिलाओ का आशिर्वाद प्राप्त हो जिन्होने भी करवाचौथ का व्रत रखा हो....
मेरी पत्नी होती तो मै आज मेरी शक्ल दिखलाने की जगह तुम्हारी शक्ल दिखवा देता....