इब्बार रब्बी की यह कविता या नज़्म जो भी कहें मुझे बहुत पसंद है.....आप भी गुने ...
महामान्य महाराजाधिराजाओं के
निकल जाएं वाहन
आयातित राजहंस
कैडलक, शाफ़र,
टोयोटा बसें और
टैक्सियाँ और स्कूटर
महकते दुपट्टे
टाइयां और सूट
निकल जाएं ये प्रतियोगी
तब हम पार करें सड़क
मन्त्रियों, तस्करों
डाकुओं और अफ़सरों की
निकल जाएं सवारियां
इनके गरुड़
इनके नन्दी
इनके मयूर
इनके सिंह
गुज़र जाएं
तो सड़क पार करें
यह महानगर है
विकास का
झकाझक नर्क
यह पूरा हो जाए
तो हम
सड़क पार करें
ये बढ़ लें तो हम बढ़ें
ये रेला आदिम प्रवाह
ये दौड़ते शिकारी थमें
तो हम गुज़रें।
sachmuch ,bahut hi sundar.
ReplyDeleteयह महानगर है
ReplyDeleteविकास का
झकाझक नर्क
यह पूरा हो जाए
तो हम
सड़क पार करें
ये बढ़ लें तो हम बढ़ें
bahut sunder
सुबह होती है शाम होती है
ReplyDeleteउम्र यूँ ही तमाम होती है
मगर
विकास का झकाझक नर्क
समझो यही है जिंदगी का अर्क
डगर
सूट वाहन सवारिओं के बाद ही सही
सड़क से थम के हम पार करें
इब्बार रब्बी की रचना पढ़कर आनन्द आ गया. बहुत आभार.
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