दोस्त मयंक इसको निजि आक्षेप न माने....
पिछले लेखो मे मैने कोई आपत्तीजनक शब्द नही लिखे थे....और अगर आप जय श्री राम को आपत्तीजनक मानते है....तो ये आपकी मानसिक्ता है....
और बार बार ऐसा लिख के क्या साबित करना चाहते है कि आप बहुत बडे धर्मनिर्पेक्ष,और निष्पक्ष पत्रकार हो गए है....
ये तुष्टीकरण बंद कर दीजीए....
बजरंगीयो पर राजनिती नामक लेख मे मैने किसी तरह से कोई आपत्तीजनक शब्द नही लिखा है...और भाषा भी सभ्य है....
और जैसा आप हम पर आरोप लगाते रहते है कि हम संघी है या भाजपाई है.....तो मित्र आप के लेखो से भी स्पष्ट है कि आप भी कांग्रेसी है....
तुष्टीकरण की राजनीती तो कांग्रेसी ही करते हैं....
आप को भी कांग्रेस का प्रवक्ता बन जाना चाहिए.....
कैव्ससंचार चुकी हमारे विभाग के नाम पर बना हुआ है और मै इस विभाग का पूर्व छात्र हू ईसलिए इसे अपना मानते हुए ऐसा लिखता हु...क्योकी किसी भी विषय को सर्वप्रथम परिवार मे डिसकस किया जाता है.....
और मेरा मानना है कि हमारे विभाग के सभी विद्यार्थि आप की तरह
धर्मनिर्पेक्ष नही होंगे
....क्योंकी मेरे पास भी कई लोगो फोन आते है और ऊनके द्वारा मेरी इन टिप्पणीयो पर समर्थन मिलता है....
और मेरे लेखो से आप भी कई जगह सहमत है....जिसकी मुझे आशा नही थी....
ऊसके लिए आपका साधुवाद.....
और रही बात बार बार मेरे इसी विषय पर लिखने की तो ये विषय इस वक्त सबसे गर्म और सामयिक है.....और पत्रकारो को सामयिक विषय पर लिखते पढते रहना चाहिए....
और आपकी मंशा मै अच्छी तरह से समझता हूं.....
बहरहाल
मै भी यही चाहूंगा की अब विवाद आगे न बढे.....इसके लिए आपका सहयोग वांछित है....
मेरी कुंठा को समझे और मुझे राष्ट्रवाद के पथ पर आगे बढने दे और अपने बहके हुए साथीयो को संगठित करने दे......
अपना ब्लाग अजर अमर रहे...... ऐसी मेरी मंगलकामना है......
जय हिन्द....जय भारत.....नवीन सिंह....
प्रिय नवीन ....... जहाँ तक रही कांग्रेसी होने की बात तो आपसे बेहतर कोई नहीं जानता कि मैं भीषण रूप से कांग्रेस का विरोधी हूँ ..... आपसे कई बार चर्चा भी हुई होगी !
ReplyDeleteदरअसल मैं किसी एक दल के पीछे चलने की बात ही नहीं करता ....मेरा मानना है कि जो सही कह रहा है उस समय उसका समर्थन होना चाहिए !
बाकी मैंने भी यही लिखा था कि तुष्टिकरण नहीं होना चाहिए मैं इसका विरोधी हूँ पर
राष्ट्रवाद का अर्थ मुस्लिम विरोध भी तो नही
नवीन ठीक लिखा है होना चाहिय क्योंकि इसकी बडी ज़रूरत है मगर सस्ती लोकप्रियता के चक्कर में कभी मूलभावना को सत भूलना। अच्छा है पर जान कर अफसोस हुआ कारवां जो चला था भटकों को वापस लाने के लिये वो अब थम सा गया है मेरी सोच और ग़ुज़ारिश है इस बहस को ससंशोधन जारी रखें।
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