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Thursday, October 9, 2008

कहीं निगाहें कहीं निशाना

आतंकवाद हमें निगलने को बढ़ा चला आ रहा है। हमारी कोशिश सर्वप्रथम अपने मुस्लिम भाइयों को यह विश्वास दिलाने की होनी चाहिए की आप भी इसी मुल्क के नागरिक हैं। और आपका भी इस देश पर उतना ही हक है जितना की हमारा या फिर किसी अन्य व्यक्ति का; हम ये क्यों कहें की बात निकलेगी तो पाकिस्तान तक जायेगी। हमारे घर की बात है घर मैं रहेगी। हमारी समस्या आतंकवाद कभी थी ही नही हमारी समस्या तो अपने घर के अन्दर पनप रहा असंतोष था। अब मैं कहूँगा तन्जीर भइया का क्या लेना देना पाकिस्तान से ? या इस देश के किसी भी राष्ट्रवादी मुस्लिम का क्या लेना देना पाकिस्तान से । ध्यान दे कहीं हम दुसरे भिंदरा वाले को जनम नही दे रहे हैं । जब कोई भी जंगली जानवर चारों तरफ़ से घिर जाता है तो उसकी मुद्रा रक्षात्मक नही आक्रामक हो जाती है । हम क्यों किसी भी मुस्लिम को आतंक का जिम्मेवार मान लेते हैं। और किसी एक की गलती के लिए पुरे समाज को आड़े हाथों ले लेते हैं। चौरासी के जख्मअभी भरे नही हैं , हम सतवंत सिंह और केहरसिंह की तरह पुरे मुस्लिम समुदाय को सजा देने की तरफ़ बढ़ तो नही रहे हैं। हमारे लिए ज्यादा जरुरी ये बात है की हम अपने देश को लाखों कश्मीर ना बनने दे की हर मोहल्ले मैं एक कश्मीर जन्म ले लें और हम सिर्फ़ अपने राष्ट्र को तबाही की ओरजाते देखने के सिवाय और कुछ भी न कर सकें। आपके जवाब की प्रतीक्षा मैं आपका
-------------- आशु प्रज्ञ मिश्र

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