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Thursday, September 4, 2008

क्रन्तिकारी कवि

देश में नक्सलवादी आन्दोलन ने कई तरह के प्रभाव पैदा किए ..... कुछ अच्छे - कुछ बुरे और कुछ समझ से परे !

इस दौरान इस हवा ने कई क्रांतिकारी कवि पैदा किए, उन्ही में से एक और सबसे अलग कवि हुए वेणुगोपाल ....जिस दौर में नक्सल आन्दोलन उपजा और तब से अब तक वेणुगोपाल ने कम लिखा पर जो लिखा उसे पढ़ना किसी भी विद्रोही कवि या व्यक्ति के लिए ज़रूरी है

कवि वेणुगोपाल का सोमवार देर रात निधन हो गया। वह 65 वर्ष के थे और कैंसर से पीडित थे। 22 अक्टूबर 1942 को आंध्र प्रदेश के करीमनगर में जन्मे वेणुगोपाल का मूल नाम नंद किशोर शर्मा था और वह देश में नक्सलवादी आंदोलन से उभरे हिंदी के प्रमुख क्रांतिकारी कवियों में से थे।

उनके बारे में ज़्यादा कहने से बेहतर होगा की आपको उनकी रचना पढ़वा दूँ ..... पढे और सोचें ...

देखना भी चाहूँ

देखना भी चाहूं
तो क्या देखूं !
कि प्रसन्नता नहीं है प्रसन्न
उदासी नहीं है उदास
और दुख भी नहीं है दुखी
क्या यही देखूं ? -
कि हरे में नहीं है हरापन
न लाल में लालपन
न हो तो न सही
कोई तो 'पन' हो
जो भी जो है
वही 'वह' नहीं है
बस , देखने को यही है
और कुछ नहीं है
हां, यह सही है
कि जगह बदलूं
तो देख सकूंगा
भूख का भूखपन
प्यास का प्यासपन
चीख का चीखपन
और चुप्पी का चुप्पीपन
वहीं से
देख पाऊंगा
दुख को दुखी
सुख को सुखी
उदासी को उदास
और
प्रसन्नता को प्रसन्न
और
अगर जरा सा
परे झांक लूं
उनके
तो
हरे में लबालब हरापन
लालपन भरपूर लाल में
जो भी जो है ,
वह बिल्कुल वही है
देखे एक बार
तो देखते ही रह जाओ!
जो भी हो सकता है
कहीं भी
वह सब का सब
वही है
इस जगह से नहीं
उस जगह से दिखता है
देखना चाहता हूं
तो
पहले मुझे
जगह बदलनी होगी।

मयंक सक्सेना

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