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Thursday, September 11, 2008

साहित्य की महादेवी

आज ११ सितम्बर है , आप लोगों को याद होगा अमेरिका पर आतंक के हमले के लिए । मुझे याद है हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल की मीरा महादेवी वर्मा की पुण्य तिथि होने के कारण । आज ही के दिन १९८७ में वो दुनिया को छोड़ गयीं थीं । आज मैं उनको याद करते हुए , उन्ही की एक कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ , जो मेरी व्यक्तिगत पसंद भी है ......

मैं बनी मधुमास आली!

आज मधुर विषाद की घिर करुण आई यामिनी,

बरस सुधि के इन्दु से छिटकी पुलक की चाँदनी

उमड़ आई री, दृगों में सजनि, कालिन्दी निराली!


रजत स्वप्नों में उदित अपलक विरल तारावली,

जाग सुक-पिक ने अचानक मदिर पंचम तान लीं;

बह चली निश्वास की मृदु वात मलय-निकुंज-वाली!

सजल रोमों में बिछे है पाँवड़े मधुस्नात से,

आज जीवन के निमिष भी दूत है अज्ञात से;

क्या न अब प्रिय की बजेगी मुरलिका मधुराग वाली?

मैं बनी मधुमास आली!

1 comment:

  1. हिन्दी सप्ताह में महादेवी को स्मरण करना अच्छा लगा....थोड़ा अब इस पर भी लिखो की हिन्दी का विकास और प्रसार कैसे हो ? कुछ गंभीर विषयो को भी छुआ जाए....साहित्य तो तुम्हारे बटुए की दौलत है ही !
    वैसे महादेवी को याद कराने के लिए धन्यवाद पर हिन्दी दिवस कई गंभीर मुद्दे उठाने का भी वक़्त होता है ..... कुछ सोचो !

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