मित्रो, साथियों और कामरेडों ( वामपंथी अर्थों में नहीं ), आज से हम CAVS संचार पर हिन्दी सप्ताह का प्रारंभ कर रहे हैं। इस वेब आयोजन का उद्देश्य यह नहीं है कि हम इसके बाद हिन्दी को भूल जायेंगे और न ही यह कि हम अंग्रेज़ी सहित अन्य भाषाओं का विरोध या बहिष्कार कर रहे हैं बल्कि बात सिर्फ़ इतनी है कि दुनिया के साथ कदम मिलाने के लिए मां को छोड़ नहीं दिया जाता। बिल्कुल हिन्दी हमारी माँ है...... हिन्दी वह भाषा है जिसने पूरे देश को एक सूत्र में जोड़ा, कैसे जोड़ा वह हम सप्ताह भर बात करेंगे। हिन्दी ने स्वतन्त्रता आन्दोलन में महती भूमिका निभाई तो मित्रो हम इस सप्ताह बात करेंगे कि किस तरह इसे और प्रचलित और सहज बनाया जाए। हिन्दी किसी भाषा का विरोध नहीं करती पर यदि कोई हिन्दी बोलने वालों को हीन दृष्टि से देखता है तो वह अपने माता पिता और पूर्वजो पर भी शर्म महसूस करता है।
हिन्दी हमारी पहचान है ...... हमारे अतीत के गौरव का शिलालेख है ...... भविष्य के निर्माण की नींव है.......तरक्की के महान शिल्प कभी मांगे हुए औजारों से नही गढे जाते......
तरक्की करनी है तो बाहर का मुंह मत ताकें अपनी भाषा में ही तरक्की मिलेगी और बड़ी मिलेगी ...
आज पहले परिशिष्ट में भाषा और उन्नति के सम्बन्ध की बात जो कही थी हिन्दी के पितामह भारतेंदु ने,
निज भाषा उन्नति अहै
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल ।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल ।
अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन
पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन ।
पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन ।
उन्नति पूरी है तबहिं जब घर उन्नति होय
निज शरीर उन्नति किये, रहत मूढ़ सब कोय ।
निज शरीर उन्नति किये, रहत मूढ़ सब कोय ।
निज भाषा उन्नति बिना, कबहुं न ह्यैहैं सोय
लाख उपाय अनेक यों भले करे किन कोय ।
लाख उपाय अनेक यों भले करे किन कोय ।
इक भाषा इक जीव इक मति सब घर के लोग
तबै बनत है सबन सों, मिटत मूढ़ता सोग ।
तबै बनत है सबन सों, मिटत मूढ़ता सोग ।
और एक अति लाभ यह, या में प्रगट लखात
निज भाषा में कीजिए, जो विद्या की बात ।
निज भाषा में कीजिए, जो विद्या की बात ।
तेहि सुनि पावै लाभ सब, बात सुनै जो कोय
यह गुन भाषा और महं, कबहूं नाहीं होय ।
यह गुन भाषा और महं, कबहूं नाहीं होय ।
विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार
सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार ।
सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार ।
भारत में सब भिन्न अति, ताहीं सों उत्पात
विविध देस मतहू विविध, भाषा विविध लखात ।
विविध देस मतहू विविध, भाषा विविध लखात ।
सब मिल तासों छांड़ि कै, दूजे और उपाय
उन्नति भाषा की करहु, अहो भ्रातगन आय ।
उन्नति भाषा की करहु, अहो भ्रातगन आय ।
भारतेंदु हरिश्चन्द्र
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