२८ सितम्बर ..... शहीद ऐ आज़म भगत सिंह की आज जन्मतिथि है......नहीं मालूम कितने लोगों को पता है पर कल यश चोपडा का जन्मदिन था और अखबार-टीवी और पोर्टल अटे पड़े थे। आज लता मंगेशकर का जन्मदिन है आज भी यही हाल है ......या तो हम सो रहे हैं या हम सब बेहोशी में हैं पर यह जो भी है इसे दूर करना होगा।
भगत सिंह की पैदाइश २८ सितम्बर, १९०७ को आज के पाकिस्तान के लायलपुर जिले के बंगा में चक नंबर १०५ में हुआ जबकि उनका पुश्तैनी घर आज भी भारतीय पंजाब के नवाशहर के खट्टरकलां गाँवमें है। भगत सिंह ने क्या कुछ किया वह शायद हम सब जानते हैं पर शायद उनको याद करने की ज़हमत उठाना हम गवारा नहीं कर सकते हैं। उनकी जयंती के अवसर पर केव्स संचार उनको याद करते हुए उनकी कुछ स्मृतियाँ आपसे बांटेगा और यही नही ताज़ा हवा (http://www.taazahavaa.blogspot.com/) इस पूरे हफ्ते भगत सिंह के दुर्लभ पात्र और किस्से आपसे बांटेगा ............
भगत सिंह के हस्ताक्षर
आख़िरी पैगाम
यह वो आखिरी ख़त है जो भगत सिंह ने २२ मार्च १९३१ को यानि की फांसी के एक दिन पहले अपने साथियों को लिखा था ..........
यह वो आखिरी ख़त है जो भगत सिंह ने २२ मार्च १९३१ को यानि की फांसी के एक दिन पहले अपने साथियों को लिखा था ..........
22 मार्च,1931
साथियो,
स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए, मैं इसे छिपाना नहीं चाहता। लेकिन मैं एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूँ, कि मैं क़ैद होकर या पाबंद होकर जीना नहीं चाहता। मेरा नाम हिंदुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है और क्रांतिकारी दल के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊँचा उठा दिया है - इतना ऊँचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊँचा मैं हर्गिज़ नहीं हो सकता। आज मेरी कमज़ोरियाँ जनता के सामने नहीं हैं। अगर मैं फाँसी से बच गया तो वो ज़ाहिर हो जाएँगी और क्रांति का प्रतीक-चिन्ह मद्धिम पड़ जाएगा या संभवतः मिट ही जाए. लेकिन दिलेराना ढंग से हँसते-हँसते मेरे फाँसी चढ़ने की सूरत में हिंदुस्तानी माताएँ अपने बच्चों के भगत सिंह बनने की आरज़ू किया करेंगी और देश की आज़ादी के लिए कुर्बानी देनेवालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना साम्राज्यवाद या तमाम शैतानी शक्तियों के बूते की बात नहीं रहेगी. हाँ, एक विचार आज भी मेरे मन में आता है कि देश और मानवता के लिए जो कुछ करने की हसरतें मेरे दिल में थी, उनका हजारवाँ भाग भी पूरा नहीं कर सका. अगर स्वतंत्र, ज़िंदा रह सकता तब शायद इन्हें पूरा करने का अवसर मिलता और मैं अपनी हसरतें पूरी कर सकता. इसके सिवाय मेरे मन में कभी कोई लालच फाँसी से बचे रहने का नहीं आया. मुझसे अधिक सौभाग्यशाली कौन होगा? आजकल मुझे ख़ुद पर बहुत गर्व है. अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतज़ार है. कामना है कि यह और नज़दीक हो जाए.
आपका साथी,
भगत सिंह
फिर यही कहूँगा ........ अब सोचना शुरू कर दें !
bhulne ki aadat theek nahi hai....wo bhi apne sheedon ko
ReplyDeleteमैने एक दिन पहले ही जयंती की सूचना दी . लोगो ने पढ़ा भी . लेकिन शहीदों से हमदर्दी कुछ कम होगई है लगता है इसीलिए तो पिट रहे है
ReplyDeleteयाद तो है भाई!!
ReplyDeleteउम्मीद भी नही थी की जनसत्ता जैसा अखबार भी भगत सिंह को भूल सकता है. मगर शायद देश मैं देश की बात करने का यही अंजाम है
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