नही मानती कलम हमारी लिख देती है नाम तुम्हारा
जहाँ जहाँ तक दृष्टि पहुँचती नामहीन है जगह न कोई
अंगडाई लेने लगती है अन्तर मैं पीडाएं सोयी
कण -कण मैं आभासित होता है प्रतिबिम्ब ललाम तुम्हारा
नही मानती कलम हमारी लिख देती है नाम तुम्हारा
बन जाते हैं नयन सरोवर डूब रही काजल की कश्ती
गीत रूठ जाते अधरों पर गालों पर उदास है मस्ती
तन से दूर-दूर रहकर भी मन मैं सदा मुकाम तुम्हारा
नही मानती कलम हमारी लिख देती है नाम तुम्हारा
जैसे कोई टहनी टूटे लदे हुए हों मीठे फल से
ख़ुद को भरमाये रहता हूँ यादों को समेट आँचल से
चिंता यही लगी रहती है नाम न हों बदनाम तुम्हारा
नही मानती कलम हमारी लिख देती है नाम तुम्हारा।
क्या बात है !!
ReplyDeleteनही मानती कलम हमारी लिख देती है नाम तुम्हारा
ReplyDeleteबन जाते हैं नयन सरोवर डूब रही काजल की कश्ती
गीत रूठ जाते अधरों पर गालों पर उदास है मस्ती
तन से दूर-दूर रहकर भी मन मैं सदा मुकाम तुम्हारा
नही मानती कलम हमारी लिख देती है नाम तुम्हारा
अच्छा लिखा है. बधाई.